09/10/2025
यह एक हाउस ड्राइवर (House Driver) की सऊदी अरब में संघर्ष भरी सच्ची जैसी कहानी है — एक आम भारतीय, पाकिस्तानी या बांग्लादेशी मजदूर की ज़िंदगी पर आधारित कथा।
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🧳 शुरुआत: एक सपना
रमेश, बिहार के एक छोटे से गाँव का रहने वाला था। घर में बूढ़े माता-पिता, पत्नी और दो छोटे बच्चे थे। खेती से गुजर-बसर मुश्किल थी। एक दिन उसने सुना कि सऊदी अरब में “हाउस ड्राइवर” की नौकरी मिल सकती है — तनख्वाह भी ठीक-ठाक है।
रमेश ने गाँव का छोटा सा खेत गिरवी रखकर एजेंट को ₹1.5 लाख दिए और निकल पड़ा "अरब की धरती" की ओर — बेहतर ज़िंदगी की उम्मीद लेकर।
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🏠 नई दुनिया, नए नियम
सऊदी पहुँचते ही उसे एक अमीर सऊदी परिवार के यहाँ ड्राइवर की नौकरी मिली। बड़ा घर, लंबी कारें, लेकिन आज़ादी नहीं।
हर दिन सुबह 5 बजे उठना, बच्चों को स्कूल छोड़ना, फिर बाजार जाना, और रात में मालिक को महमानों के पास ले जाना।
कभी-कभी रात के 2 बजे तक भी उसे गाड़ी चलानी पड़ती थी।
उसका कमरा घर के पिछवाड़े में था — छोटा, बिना पंखे के, बस एक पुराना बेड।
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💔 तनख्वाह और तकलीफ़ें
कॉन्ट्रैक्ट में लिखा था 1500 रियाल तनख्वाह, लेकिन पहले तीन महीने उसे कुछ नहीं मिला।
मालिक कहता — “पहले काम सीखो, फिर पैसे।”
वो बोलता भी क्या? वीज़ा मालिक के पास था, भाग नहीं सकता था।
फोन भी सीमित, घर से बात करने के लिए उसे छिपकर अपने देश के मज़दूर दोस्तों से मोबाइल उधार लेना पड़ता था।
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🕌 सुकून के पल
शुक्रवार को कभी-कभी उसे थोड़ी छुट्टी मिल जाती।
वो पास की मस्जिद में नमाज़ पढ़ने जाता, वहाँ अपने जैसे कई लोग मिलते — कोई ड्राइवर, कोई माली, कोई सफाई वाला।
सबके चेहरे पर एक ही कहानी — “घर की उम्मीदें, और दिल का दर्द।”
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⚙️ मशीन की तरह ज़िंदगी
गर्मी में 50°C तक तापमान, और उसे गाड़ी साफ करनी होती थी।
कभी-कभी मालिक का बच्चा गुस्से में कार पर पैर रख देता, रमेश झुककर साफ करता।
“अपनी इज़्ज़त का घूंट पीकर जीना” — यही उसकी रोज़ की दिनचर्या थी।
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📞 घर से एक कॉल
एक दिन घर से खबर आई — उसकी बेटी बीमार है।
वो रो पड़ा, लेकिन छुट्टी नहीं मिली।
मालिक ने कहा, “काम पहले, बाद में देखेंगे।”
वो बस आसमान की तरफ देखता रहा — “हे भगवान, कब लौटूंगा?”
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✈️ आख़िरकार वापसी
दो साल बाद, जब कॉन्ट्रैक्ट खत्म हुआ, रमेश घर लौटा।
हाथ में थोड़ा सा पैसा था, पर दिल में बहुत सा दर्द।
लेकिन उसने कहा —
> “अरब ने मुझे तोड़ा नहीं, सिखाया है कि मेहनत की कीमत हर जगह एक जैसी नहीं होती — पर इज़्ज़त अपने देश में ही मिलती है।”
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🌾 सीख
यह कहानी सिर्फ रमेश की नहीं, बल्कि उन लाखों हाउस ड्राइवरों की है जो सऊदी, दुबई, कतर या कुवैत में अपने परिवार के सपनों के लिए हर दिन पसीना बहाते हैं।
वो जिनके नाम से घर में रोशनी जलती है — लेकिन जिनकी ज़िंदगी पर अंधेरा छाया रहता है।