15/06/2025
*पिता जिन्होंने हमारे लिए सपने नहीं, भविष्य गढ़ा*
*जो अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए खुद की ख्वाहिशें भूल जाए, वही पिता होता है।*
अनिल मालवीय, लेखक एवं शिक्षाविद
मेरे पिता – एक ऐसा नाम, जो कभी अखबारों की सुर्खियों में नहीं आया, पर मेरे जीवन के हर मुकाम पर सबसे बड़ी प्रेरणा बना। गांव के मिट्टी से सने पांवों में जब उन्होंने संघर्ष की चप्पल पहनी, तब किसी को नहीं पता था कि यही आदमी अपने बच्चों को पीएचडी, इंजीनियर, पत्रकार और शिक्षाविद् बनाने का सपना देख रहा है। वे खुद केवल पाँचवीं तक ही पढ़ पाए थे – हालात ने उन्हें पढ़ाई से दूर कर दिया, लेकिन उन्होंने यह ठान लिया था कि उनके बच्चों की किस्मत किताबों से ही लिखी जाएगी। भोपाल की गलियों में मेहनत करते-करते, दिन-रात पसीना बहाकर उन्होंने न केवल घर चलाया, बल्कि हमें उन ऊँचाइयों तक पहुँचाया, जहाँ आज हम गर्व से सिर उठा सकें। उनकी मेहनत, त्याग और खामोश संघर्ष हमारे हर डिग्री में, हर सफलता में दर्ज है।
उनकी आँखों में कभी कोई शिकवा नहीं था, बस एक गहरी उम्मीद थी – "मेरे बच्चे मुझसे आगे बढ़ें"। आज जब हम डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक के रूप में समाज को कुछ देने योग्य बने हैं, तो हर सम्मान, हर उपलब्धि सबसे पहले उन्हें समर्पित होती है। उस समय पिता की डांट तीर सी लगती थी। लगता था क्यों इतना डांटते हैं? क्यों हर बात में टोका-टोकी? क्यों हर गलती पर इतना गुस्सा? लेकिन आज जब जीवन की ऊँचाइयों पर खड़े होकर पीछे मुड़कर देखते हैं, तो समझ आता है कि उनकी डांट नहीं, उनका मार्गदर्शन था। उन छोटी उम्र में दिए गए उनके 'भाषण' दरअसल वो अमूल्य पाठ थे जिन्हें आज हम जीवन की किताब के सबसे जरूरी अध्याय मानते हैं। सिर पर सूरज की तपिश में बहता पसीना हमें बहुत कुछ सिखा गया। वे ना केवल हमारे पिता हैं, बल्कि एक सच्चे कर्मयोगी हैं – जिन्होंने यह साबित किया कि डिग्री नहीं, संकल्प बड़ा होता है। शिक्षा भले उन्होंने अधूरी छोड़ी, लेकिन हमारे जीवन में उन्होंने जो पाठ पढ़ाए, वे किसी विश्वविद्यालय से कम नहीं हैं।
हर साल जून के तीसरे रविवार को 'पितृ दिवस' मनाया जाता है — यह वह दिन है जब हम उस शख्स को याद करते हैं, जिन्होंने बिना जताए, बिना शोर किए हमारे जीवन की नींव रखी। माँ जहां भावनाओं का सागर हैं, वहीं पिता एक ऐसा सुदृढ़ किनारा है जो हर लहर को चुपचाप सह लेता है। पिता का प्यार अक्सर शब्दों में नहीं, जिम्मेदारियों में दिखता है। उनकी ममता तालीम के खर्च में, आपकी पसंद की किताब या साइकिल दिलाने में, या देर रात घर लौटने तक बाहर खड़े रहने में नजर आती है। पिता वह नाविक हैं जो खुद हर तूफान में खड़े रहकर हमें पार लगाते हैं।
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से देखें तो पिता केवल परिवार के आर्थिक स्तंभ नहीं होते, वे नैतिक शिक्षा, अनुशासन और आत्मनिर्भरता के निर्माता भी होते हैं। आज के बदलते सामाजिक ढांचे में जहां महिलाएं आगे बढ़ रही हैं, वहीं आधुनिक पिताओं की भूमिका भी सहयोगी और संवेदनशील बनती जा रही है। पिता को भावनाएं व्यक्त करने की स्वतंत्रता देने की ज़रूरत है। हमें समझना चाहिए कि पिता भी थकते हैं, टूटते हैं, और उन्हें भी स्नेह, समर्थन और सम्मान की उतनी ही आवश्यकता है जितनी किसी और को।
आज पितृ दिवस के इस अवसर पर मैं सिर झुकाकर कहता हूँ – पिता, आप ही मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूँजी हैं। आपने अपने सपनों को हमारे लिए होम कर दिया। हम जो कुछ भी हैं, वो आपकी मिट्टी, मेहनत और ममता से बने हैं। "जिसने कभी खुद के लिए कुछ नहीं माँगा, वही मेरे पिता हैं। उनकी पांचवीं कक्षा की पढ़ाई, हमारी पीएचडी से कहीं बड़ी है। उन्होंने नसीब नहीं बदला, लेकिन हमारी तक़दीर बदल दी।" - अनिल मालवीय