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लंदन हाइनेस पार्क सत्संग घर की कहानी 🙏🙏
07/07/2025

लंदन हाइनेस पार्क सत्संग घर की कहानी 🙏🙏

राधास्वामी जी 🙏🏻क्या आपने कभी सोचा है कि एक संत जब किसी दूसरे धर्म की आस्था को बचा लेता है, तो वह कितना बड़ा संदेश द.....

6 जुलाई लंदन सवाल जवाब 🙏🙏
07/07/2025

6 जुलाई लंदन सवाल जवाब 🙏🙏

राधा स्वामी जी प्यारी साध संगत जी 🙏इस वीडियो में हम लेकर आए हैं 6 जुलाई 2025 लंदन सत्संग से प्रेरित एक अत्यंत भावनात्म....

6 जुलाई 2025 लंदन question answers # # **1. "मैं बहुत टूट गई हूं, अंदर से खाली हो गई हूं। अब कुछ अच्छा नहीं लगता। इस खाल...
07/07/2025

6 जुलाई 2025 लंदन question answers

# # **1. "मैं बहुत टूट गई हूं, अंदर से खाली हो गई हूं। अब कुछ अच्छा नहीं लगता। इस खालीपन को कैसे भरूं?"**

**उत्तर:**
बेटा, यह खालीपन कोई अभिशाप नहीं, बल्कि परमात्मा की ओर से एक दुआ है। जब दुनिया से टूटन आती है, तब आत्मा भीतर झांकती है। यह खालीपन दरअसल मालिक की एक पुकार है जो कहती है – "अब मेरी ओर लौट आओ।"
सुमिरन वह मधुर संगीत है जो इस सूनेपन को प्रेम में बदल देता है। टूटना जुड़ने की शुरुआत है। जैसे बीज जमीन में गिरकर मिट्टी में सड़ता है, पर फिर अंकुर बनकर ऊपर उठता है – वैसे ही ये खालीपन तुम्हें नई ऊँचाइयों की तैयारी दे रहा है। आंसू बहने दो, पर हर आंसू के साथ गुरु का नाम भी बहाओ – फिर देखो कैसे वह खालीपन एक दिन संतोष बनकर भर जाता है।

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# # # **2. "रोज ध्यान में बैठता हूं, लेकिन अनुभव नहीं होता। क्या इसका मतलब है कि मुझसे कुछ गलती हो रही है?"**

**उत्तर:**
बेटा, अनुभव तुम्हारे अधिकार में नहीं है, तुम्हारा प्रेम, धैर्य और भक्ति है। जैसे किसान बीज बोता है और फिर हर रोज खेत जाता है – पर जानता है कि फल समय पर ही आएगा। वैसा ही ध्यान भी है – यह मालिक के द्वार पर बैठना है।
तुम अगर प्रेम से बैठते हो, बिना अपेक्षा, तो तुम सबसे बड़ी सफलता के पास हो। यह भीतर की यात्रा है – हर बार बैठना आत्मा की ओर एक क़दम है। परिणाम उसके हाथ है – लेकिन प्रयत्न तुम्हारे। याद रखो – **हर बैठा गया ध्यान एक दुआ बनता है।**

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# # # **3. "अगर किसी से आत्मा से प्रेम हो और वह बिछड़ जाए तो उस पीड़ा से कैसे उबरें?"**

**उत्तर:**
बेटा, शरीर का प्रेम अस्थाई है, आत्मा का प्रेम शाश्वत। जब आत्मा किसी आत्मा से जुड़ती है, तो वह बिछड़ती नहीं। हां, शरीर की दूरी होती है – मन को पीड़ा होती है – लेकिन वह पीड़ा तुम्हें सच्चे प्रेम की ओर, यानी **परम प्रेम की ओर** मोड़ने आती है।
अब उस प्रेम को सद्गुरु में ढाल दो। तब यह विरह, मिलन बन जाएगा। तुम अकेले नहीं हो – तुम्हारा सद्गुरु तुम्हारे साथ है। **उसमें प्रेम डाल दो, और देखो प्रेम कभी नहीं मरता।**

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# # # **4. "क्या शादी ना करने से भजन में ज्यादा मन लग सकता है?"**

**उत्तर:**
बेटा, भजन का लगाव तुम्हारी **भीतर की पुकार** से है, न कि शादी के होने या ना होने से।
शादी एक जिम्मेदारी है, भजन एक यात्रा है – दोनों साथ चल सकते हैं अगर हम संतुलन बनाए रखें।
अगर तुम्हारे भीतर सच्ची तड़प है, तो चाहे शादी हो या न हो – वह प्रेम रुक नहीं सकता। संतमत कोई सन्यास का मार्ग नहीं, यह **गृहस्थ में रहते हुए मालिक से जुड़ने की कला** है।

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# # # **5. "अगर मैं बहुत क्रोधी हूं, और बार-बार प्रयास के बाद भी गुस्सा आ जाता है, तो क्या मैं भजन का अधिकारी हूं?"**

**उत्तर:**
बिलकुल बेटा। हम सब अपनी कमजोरियों को सुधारने के लिए ही तो इस मार्ग पर हैं।
क्रोध कोई पाप नहीं, वह बस चेतना की कमी है। सजग होकर, सुमिरन के सहारे हम अपने भीतर की आग को शांत जल में बदल सकते हैं।
हर बार जब गुस्सा आए, तो गहरी सांस लो, नाम जपो – यह अभ्यास तुम्हें सजग बना देगा। और जिस दिन सजगता बढ़ेगी, उस दिन क्रोध भी सेवा में बदल जाएगा।

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# # # **6. "अगर मन पढ़ाई में भी नहीं लगता और भजन में भी नहीं, तो क्या मैं खो गया हूं?"**

**उत्तर:**
नहीं बेटा, तुम खोए नहीं हो – बस **थोड़ा सा भटक गए हो।**
मन कभी एक जगह नहीं टिकता, यह उसका स्वभाव है। तुम्हें बस इसे समझदारी से साधना है।
समय का संतुलन बनाओ – सुबह सुमिरन, दिन में पढ़ाई।
मन को दोष देने से बेहतर है, **उसका कुशल चालक बनो।** घोड़ा जितना भी उछलता हो, एक शांत सवार उसे नियंत्रित कर सकता है।

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# # # **7. "क्या लड़कियों को भगवान तक पहुंचने में कोई रुकावट होती है?"**

**उत्तर:**
बिलकुल नहीं बेटा। आत्मा ना स्त्री होती है ना पुरुष – आत्मा तो बस **प्रेम का प्रकाश** है।
यह भेद दुनिया ने बनाया है, मालिक ने नहीं।
और देखा गया है, स्त्रियों में प्रेम करने, सहने और समर्पण की शक्ति कहीं ज्यादा होती है। इसलिए बेटा, तुम्हारे रास्ते में कोई रुकावट नहीं, बल्कि तुम्हारे भीतर गहराई का सागर है – बस उस पर भरोसा रखो।

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# # # **8. "कभी-कभी सत्संग और भजन से भी मन ऊब जाता है, ऐसा क्यों?"**

**उत्तर:**
बेटा, ऊब मन का स्वभाव है – क्योंकि उसे बाहरी बदलाव चाहिए।
लेकिन आत्मा को स्थिरता चाहिए, गहराई चाहिए। जब भजन आदत बन जाता है, प्रेम नहीं – तब ऊब होती है।
जैसे प्रेमी अपने प्रिय से कभी ऊबता नहीं, वैसे ही अगर भजन में प्रेम आ जाए – तो ऊब **लज्जित होकर चली जाएगी।**

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# # # **9. "क्या सद्गुरु कभी नाराज़ होते हैं?"**

**उत्तर:**
नहीं बेटा। सद्गुरु का स्वभाव नाराज़गी नहीं, ममता है।
जैसे माता-पिता बच्चों को समझाने के लिए डांटते हैं – गुरु भी कभी कभी मौन रहकर हमें हमारी गलतियां दिखाते हैं।
लेकिन वह मौन भी प्रेम से भरा होता है। **गुरु कभी नाराज़ नहीं होता – वह बस जगाता है।**

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# # # **10. "अगर जीवनभर सेवा-सुमिरन किया हो, लेकिन अंत समय में डर लगे तो क्या यह कमजोरी है?"**

**उत्तर:**
बिलकुल नहीं बेटा। डर आना **मानवीय स्वभाव** है।
जैसे बच्चा मां की गोद में जाने से पहले रो लेता है, लेकिन मां उसे थाम ही लेती है – वैसे ही सद्गुरु भी तुम्हारे अंतिम क्षणों में तुम्हें ममता से थाम लेंगे।
बस उस क्षण नाम ले लो – और देखो, कैसे डर भी प्रेम में बदल जाता है।

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# # # **11. "क्या हम किसी अपने के चले जाने के बाद उसे भुला सकते हैं?"**

**उत्तर:**
बेटा, भुलाना कभी समाधान नहीं होता – **स्वीकार करना होता है।**
जो प्रेम से जुड़ा होता है, वह कभी भूला नहीं जाता – लेकिन उसकी याद को दुख से दुआ में बदलना ही आध्यात्मिक परिपक्वता है।
अगर वह आत्मा तुमसे प्रेम में जुड़ी थी – तो वह कहीं गई नहीं, बस रूप बदलकर तुम्हारे साथ बनी हुई है।
उसे हर दिन सुमिरन, सेवा और प्रेम से याद करो – तब वह याद तुम्हें नीचे नहीं गिराएगी, बल्कि ऊपर उठाएगी।

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# # # **12. "अगर मेरी पत्नी ध्यान नहीं करने देती, तो क्या मैं भगवान से उसकी शिकायत कर सकता हूं?"**

**उत्तर:**
बेटा, ध्यान **भीतर की क्रिया** है – उसका दरवाज़ा कोई बाहर से बंद नहीं कर सकता।
कभी-कभी हम बाहर दोष देकर अपने भीतर की कमी छुपाते हैं।
अगर तुम सच्चे दिल से ध्यान करना चाहते हो, तो तुम हर जिम्मेदारी निभाते हुए भी ध्यान में जा सकते हो।
बीवी को प्रेम से समझाओ, तालमेल बनाओ – शिकायत नहीं, समाधान रास्ता दिखाता है। याद रखो – **ध्यान प्रेम है, आरोप नहीं।**

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# # # **13. "कभी लगता है कि सब कुछ किया फिर भी कुछ अधूरा रह गया, ऐसा क्यों?"**

**उत्तर:**
बेटा, क्योंकि हम **उम्मीदों से जीते हैं, संतोष से नहीं।**
हम सोचते हैं – "बस यह और मिल जाए, तब पूर्णता आएगी।" लेकिन फिर भी कुछ छूट जाता है।
हम बाहरी चीज़ों से भीतर को भरने की कोशिश करते हैं – जबकि आत्मा को भीतर से जुड़ना होता है।
सुमिरन वह गहरा जल है – जो अधूरेपन को धीरे-धीरे भर देता है। पूर्णता बाहर से नहीं, **नाम से आती है।**

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# # # **14. "क्या गुरु के बिना कोई आत्मा भगवान तक पहुंच सकती है?"**

**उत्तर:**
नहीं बेटा। गुरु के बिना आत्मा अंधेरे में भटकती रहती है।
गुरु **उस अनदेखे मार्ग का नक्शा है।**
जैसे समुद्र में बिना नाविक के जहाज गुम हो जाता है, वैसे ही आत्मा बिना गुरु के दिशा नहीं पा सकती।
गुरु का मार्गदर्शन ही आत्मा को मालिक से जोड़ता है।
जो गुरु को पाकर भी उसकी बात ना माने, वह खुद को ही धोखा देता है।

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# # # **15. "अगर कोई गलती हो जाए और हम दिल से पछता लें, तो क्या माफ़ी मिल जाती है?"**

**उत्तर:**
बिलकुल बेटा। परमात्मा **माफ़ करने वाला है, सज़ा देने वाला नहीं।**
अगर दिल से पछतावा हो और दोबारा ना करने का दृढ़ संकल्प हो, तो माफ़ी ज़रूर मिलती है।
लेकिन माफ़ी सिर्फ शब्दों से नहीं – **आचरण से मांगी जाती है।**
गलती को सुधारना ही सबसे बड़ी प्रार्थना है। गुरु गिरने से नहीं रोकते – उठने की हिम्मत देते हैं।

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# # # **16. "बच्चे अब दूर हो गए हैं, समय नहीं देते – क्या यही जीवन की सच्चाई है?"**

**उत्तर:**
बिलकुल बेटा, यही संसार है।
बच्चे बड़े होते हैं, व्यस्त हो जाते हैं – लेकिन प्रेम खत्म नहीं होता, बस **अभिव्यक्ति का तरीका बदल जाता है।**
अब यह समय तुम्हारा है – अपने जीवन को सत्संग, सेवा और सुमिरन से भर दो।
यह अकेलापन दरअसल **अकेले में मालिक से मिलने का अवसर** है।
गुरु तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ेगा।

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# # # **17. "क्या ऐसा हो सकता है कि मैं ध्यान में बैठते ही परमात्मा से मिल जाऊं?"**

**उत्तर:**
हां बेटा, अगर सच्ची तड़प हो, प्रेम हो, तो सब कुछ संभव है।
लेकिन आत्मा को कर्मों का हिसाब देना होता है – यह यात्रा **धैर्य, श्रद्धा और प्रेम से भरी होती है।**
यह कोई दौड़ नहीं – प्रेम की यात्रा है। जैसे नदी धीरे-धीरे समंदर से मिलती है – वैसे ही आत्मा धीरे-धीरे परमात्मा में लीन होती है।
बैठो – प्रेम से, बिना अपेक्षा के।

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# # # **18. "जब हम अपने दुख दूसरों को बताते हैं तो हल्का लगता है, क्या गुरु को भी सब कह देना चाहिए?"**

**उत्तर:**
बिलकुल बेटा। गुरु **मौन में भी तुम्हारी पुकार सुनता है।**
वह जानता है – लेकिन जब तुम भाव से कहते हो, तो तुम्हारा मन हल्का हो जाता है।
जैसे बच्चा मां को सब कहता है, भले मां पहले से जानती हो – वैसे ही तुम भी गुरु के सामने अपने दिल की बात कह सकते हो।
गुरु सुनता है, समझता है और सहारा भी देता है।

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# # # **19. "क्या जीवन में थोड़ा हंसना-मजाक जरूरी है या सिर्फ गंभीरता ही भक्ति है?"**

**उत्तर:**
बेटा, जीवन एक संपूर्ण संगीत है – **हंसी, आंसू, मौन – सब ज़रूरी हैं।**
भक्ति कोई उदासी नहीं, यह तो आनंद की अवस्था है।
सच्ची हंसी जो आत्मा को ऊपर उठाए – वह भी भक्ति है।
गंभीरता भीतर की सजगता है, बाहर का चेहरा नहीं।
इसलिए हंसो, मुस्कुराओ – लेकिन गुरु को याद रखकर।

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# # # **20. "अगर पति-पत्नी में एक आध्यात्मिक हो और दूसरा नहीं तो क्या रिश्ता चल सकता है?"**

**उत्तर:**
बिलकुल बेटा, रिश्ता **प्रेम और समझदारी से चलता है, जबरदस्ती से नहीं।**
अगर आप सच्चे प्रेम से आध्यात्मिक जीवन जीते हो – तो उसका प्रभाव समय के साथ दूसरे पर भी पड़ता है।
उदाहरण बनो, प्रेरणा बनो – जब हम प्रेम से बदलाव लाते हैं, तब टकराव नहीं होता।
गुरु की कृपा से हर रिश्ता **एक दुआ बन सकता है।**

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# # # **21. "क्या आप हमें रोज कहानी नहीं सुना सकते?" (एक बच्ची का सवाल)**

**उत्तर:**
बेटा, सत्संग भी तो एक कहानी ही है – **आत्मा और परमात्मा के मिलन की।**
अगर तुम रोज सुमिरन करो – तो हर दिन एक नई कहानी तुम्हारे भीतर गूंजेगी।
गुरु की हर दृष्टि, हर मौन, हर शब्द – एक कहानी है उस प्रेम की, जो कभी खत्म नहीं होती।

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# # # **22. "हम बहुत प्रयास करते हैं फिर भी लगता है कृपा नहीं हो रही, क्यों?"**

**उत्तर:**
बेटा, कृपा हर पल हो रही है – **हम पहचान नहीं पा रहे।**
जैसे सूरज रोज निकलता है, लेकिन अगर खिड़की बंद हो तो दोष सूरज का नहीं।
हमारी अपेक्षाएं कृपा की पहचान को ढक देती हैं।
गुरु वही देता है जो हमारी आत्मा के लिए सही है – ना कि जो मन चाहता है।
बस **खुली दृष्टि और विनम्रता से देखो – कृपा चारों ओर है।**

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# # # **23. "अगर कोई बार-बार हमारी भावनाओं को ठेस पहुंचाए, तो चुप रहना ही सही होता है?"**

**उत्तर:**
बेटा, चुप रहना तब तक सही है जब तक वह **आत्म-सम्मान को ना तोड़े।**
क्षमा ज़रूरी है – लेकिन सजगता के साथ।
प्रेम से, शांति से जवाब देना चाहिए – ताकि सामने वाला समझ सके कि आप कमज़ोर नहीं, संतुलित हो।
गुरु हमें ना दूसरों को चोट पहुंचाना सिखाते हैं, ना खुद को मिटा देना – **वे हमें विवेक से जीना सिखाते हैं।**

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# # # **24. "क्या आपने कभी हमें रोते हुए देखा है?"**

**उत्तर:**
बेटा, गुरु बाहर से भी देखता है, और **भीतर से भी।**
तुम्हारा हर आंसू उसकी नज़रों में है।
वो जानता है – और चाहता है कि अब तुम उसकी गोद में मुस्कुराओ।
तुम्हारी चुप्पी भी उससे छुपी नहीं है – क्योंकि वो तुम्हारे भीतर ही बैठा है।

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# # # **25. "क्या आपको भी बचपन में डांट पड़ी थी?"**

**उत्तर:**
हां बेटा, हम भी **इंसान ही हैं।**
हमने भी डांट खाई, खेला, शैतानी की।
हर अनुभव ने कुछ सिखाया – और डांट भी प्रेम ही होती है जो सही दिशा दिखाती है।
सीखना कभी खत्म नहीं होता – **गुरु भी हर दिन कुछ नया सिखाता है।**

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# # # **26. "अगर कोई बिना कहे, बिना अलविदा के चले जाए तो वह हमारी तकदीर थी या हमारी गलती?"**

**उत्तर:**
बेटा, हर आत्मा का सफर अलग होता है।
कुछ लोग हमारी ज़िंदगी में सिर्फ एक अध्याय होते हैं – पूरी किताब नहीं।
उनका आना भी मर्जी से होता है, और जाना भी।
**खुद को दोष मत दो।**
जो गया वह उसकी आत्मिक यात्रा थी – अब तुम्हारी यात्रा तुम्हारे गुरु के साथ है।
गुरु कभी कुछ अधूरा नहीं छोड़ता – वह एक दरवाज़ा बंद करता है तो दूसरा खोल भी देता है।

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# # # **27. "मैं ध्यान में बैठता हूं लेकिन सोचता रहता हूं कि गुरु मेरे बारे में क्या सोचते होंगे?"**

**उत्तर:**
बेटा, जब ध्यान **गुरु की कल्पना** में चला जाए – तो वह भीतर नहीं जाता।
गुरु कोई न्यायाधीश नहीं – वह मां है, जो प्रेम से तुम्हें देखता है।
हर कोशिश, हर गिरना, हर बैठना – वह प्रेम से देखता है।
तुम बस सुमिरन करो – गुरु तुम्हें वैसे ही स्वीकार करता है जैसे तुम हो।

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# # # **28. "उम्र ढल रही है, शरीर साथ नहीं दे रहा – भजन कैसे करें? सफर अधूरा तो नहीं रह जाएगा?"**

**उत्तर:**
नहीं बेटा, भजन **शरीर से नहीं, भावना से होता है।**
शरीर थक सकता है – आत्मा नहीं।
हर नाम लिया गया, हर आंसू, हर सांस – यह सब भक्ति है।
गुरु समय का हिसाब नहीं करता – वह भाव देखता है।
लेटे हुए सुमिरन करो, मन से नाम जपो – **यह सबसे ऊंचा भजन है।**

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# # # **29. "मैंने बहुत दुख देखे – क्या यह मेरे किसी दोष की सज़ा है?"**

**उत्तर:**
बेटा, दुख सज़ा नहीं – **एक तप है, एक अवसर है।**
जैसे आग में सोना तपकर चमकता है – वैसे ही आत्मा दुख में तपकर प्रकाशित होती है।
यह पिछले कर्मों की सफाई है – और शायद किसी ऊँचे लक्ष्य की तैयारी।
गुरु तुम्हारी पीड़ा जानता है – और एक दिन यह आंसू मोती बन जाएंगे।

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# # # **30. "क्या आपको सबके नाम याद रहते हैं?" (एक बच्चे का मासूम सवाल)**

**उत्तर:**
बेटा, नाम याद रखना जरूरी नहीं – **प्रेम याद रखना जरूरी है।**
जैसे मां हर बच्चे का नाम ना भी याद रखे – लेकिन प्रेम सबके लिए समान होता है।
गुरु आत्मा से जुड़ता है – नाम से नहीं।
जो दिल में बसा है, उसे भुलाया नहीं जा सकता।
गुरु तुम्हें हर हाल में याद करता है – जब तुम उसे याद करते हो।

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**राधा स्वामी जी 🙏**

#संतमत

फूटा हुआ घड़ा – एक शिक्षाप्रद कहानीएक समय की बात है, एक गाँव में एक किसान रहता था। वह ईमानदार, परिश्रमी और सरल स्वभाव का...
06/07/2025

फूटा हुआ घड़ा – एक शिक्षाप्रद कहानी

एक समय की बात है, एक गाँव में एक किसान रहता था। वह ईमानदार, परिश्रमी और सरल स्वभाव का था। उसका दिन बहुत सुबह शुरू होता था। रोज़ वह सूरज उगने से पहले ही उठ जाता और पास के एक झरने से पानी लेने के लिए निकल पड़ता। किसान के पास दो बड़े घड़े थे जिन्हें वह एक लकड़ी के डंडे के दोनों सिरों पर बाँधकर अपने कंधे पर रख लेता और झरने से पानी भरकर अपने घर लाता।

इन दोनों घड़ों में से एक बिल्कुल सही और मजबूत था, जबकि दूसरा घड़ा थोड़ा सा फूटा हुआ था। जब भी किसान झरने से पानी भरकर घर आता, तो एक घड़ा पूरा पानी पहुँचाता जबकि फूटा हुआ घड़ा रास्ते में पानी टपकाता जाता और घर पहुँचते-पहुँचते उसका आधा पानी खत्म हो जाता।

यह सिलसिला पिछले दो वर्षों से चल रहा था।

सही घड़े को इस बात पर बहुत गर्व था कि वह बिना किसी कमी के अपना पूरा काम करता है, जबकि फूटा हुआ घड़ा खुद को बहुत दोषी और शर्मिंदा महसूस करता था। वह हमेशा सोचता कि वह किसान की मेहनत को बेकार कर रहा है क्योंकि वह केवल आधा पानी ही पहुँचा पाता है।

एक दिन फूटे हुए घड़े से रहा नहीं गया। उसने किसान से बहुत ही दुःखी होकर कहा,
“मालिक, मुझे आपसे माफ़ी माँगनी है। मैं बहुत शर्मिंदा हूँ। पिछले दो सालों से मैं अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहा हूँ। मैं आधा पानी गिरा देता हूँ। मेरी वजह से आपकी मेहनत बेकार चली जाती है। मेरे अन्दर जो कमी है, वह मुझे बहुत दुःख देती है।”

किसान यह सुनकर मुस्कराया और बड़े प्रेम से बोला,
“तुम्हारी बात सुनकर मुझे दुःख जरूर हुआ, पर तुम जिस बात को अपनी कमी समझ रहे हो, वह असल में एक वरदान है। मैं तुम्हें कल एक बात दिखाता हूँ जिससे तुम्हारी उदासी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।”

अगले दिन जब किसान पानी भरकर लौट रहा था, तो उसने फूटे हुए घड़े से कहा,
“आज जब हम घर लौटें, तो तुम रास्ते में अपने तरफ ध्यान देना। तुम देखोगे कि तुम्हारी ओर रास्ते भर रंग-बिरंगे, सुंदर और खुशबूदार फूल खिले हैं।”

फूटा हुआ घड़ा रास्ते भर फूलों को देखता रहा—लाल, पीले, नीले, गुलाबी फूल। वह फूलों की सुंदरता में खो गया। उसकी उदासी थोड़ी कम हो गई।

मगर जैसे ही घर पहुँचा और देखा कि उसका आधा पानी फिर गिर चुका है, तो वह फिर मायूस हो गया और बोला,
“मालिक, फूल तो बहुत सुंदर थे पर मेरा काम अधूरा ही रहा। आधा पानी फिर गिर गया।”

किसान मुस्कराया और बोला,
“क्या तुमने गौर किया कि सारे फूल केवल तुम्हारी ही तरफ थे, सही घड़े की ओर नहीं?”

घड़े ने सिर हिलाकर हामी भरी।

किसान बोला,
“क्योंकि मुझे पहले ही पता था कि तुम फूटे हुए हो, इसलिए मैंने तुम्हारी ओर वाले रास्ते पर फूलों के बीज बो दिए थे। रोज़ जब तुम पानी टपकाते थे, तो वही पानी इन बीजों को सींचता था और आज उन्हीं फूलों से मैं अपने घर को सजाता हूँ, भगवान की पूजा करता हूँ। यह सब तुम्हारी ही वजह से संभव हुआ। अगर तुम जैसे हो वैसे न होते, तो यह सुंदरता, यह सौंदर्य कभी नहीं होता।”

फूटा हुआ घड़ा यह सुनकर भावुक हो गया। उसे समझ में आ गया कि हर कमी में भी एक खूबसूरती छिपी होती है — बस उसे देखने का नजरिया चाहिए।

सीख:
हम सभी में कोई न कोई कमी होती है, पर हर कमी के पीछे भी एक कारण और उपयोग छिपा होता है। यदि हम उसे सही दिशा दें, तो वह भी किसी की ज़िंदगी को खूबसूरत बना सकती है।

परम सत्कार योग्य सत्संगीजन,गुरु प्यारी साध संगत जी,आप सभी को प्यार भरी राधा स्वामी जी।**आज हम एक ऐसे भावुक, आनंदमय और प्...
06/07/2025

परम सत्कार योग्य सत्संगीजन,
गुरु प्यारी साध संगत जी,
आप सभी को प्यार भरी राधा स्वामी जी।**

आज हम एक ऐसे भावुक, आनंदमय और प्रेरणास्पद प्रसंग को आपके साथ साझा करने जा रहे हैं, जो हाल ही में लंदन में घटित हुआ और जिसने हर एक संगतजन के दिल को छू लिया। साथ ही, हम बात करेंगे उस ड्रीम प्रोजेक्ट की जो हुजूर महाराज जी के विचार से निकला और बाबा जी की रहमत से अब 7 जुलाई से डेरे में शुरू हो रहा है — सराय नंबर 4।

# # # 🌟 लंदन की वो अनमोल शाम — संत का सरल हास्य

साध संगत जी, संत का सान्निध्य केवल भक्ति और गंभीरता की मिसाल नहीं होता, बल्कि वो हँसी और रूह के आराम का भी माध्यम बनता है।

4 जुलाई की शाम लंदन के हाईनेस पार्क में कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला। बाबा जी जैसे ही शाम 4:20 पर सत्संग हॉल में पहुंचे, पूरा वातावरण किसी फूलों की खुशबू से भर गया। शब्द गूंजने लगे। हर शब्द के बाद बाबा जी की मुस्कान संगत को आशीर्वाद दे रही थी।

फिर कुछ समय बाद संगत ने फिल्मी और लोक गीत गाए। कुछ हिंदी तो कुछ पंजाबी गीत। और बाबा जी खुद भी गुनगुना रहे थे। संगत स्तब्ध थी — यह वही सतगुरु हैं जो अलौकिक हैं, और फिर भी इतने सहज, इतने अपने।

फिर आया वो क्षण, जब बाबा जी ने एक शेर सुनाया:
**"दूर से देखी इतनी सुंदर ज़ुल्फ़ें,
पास आकर देखा तो सरदार जी नहा रहे थे।"**

पूरा हॉल हँसी से गूंज उठा। संगत 15 मिनट तक हँसती रही। यह सिर्फ हँसी नहीं थी, यह उस संत का सरल हास्य था जो दिल की गांठें खोलता है।

बाबा जी के हाव-भाव, उनका साथ में मोड़े हिलाना, गानों के साथ थिरकना — यह सब बता रहा था कि कैसे एक संत संगत के साथ एक-एक पल को जीते हैं, जैसे माँ अपने बच्चों के साथ खेलती है।

# # # 🏨 हुज़ूर का सपना — सराय नंबर 4

अब बात करें उस ड्रीम प्रोजेक्ट की जो हुज़ूर महाराज जी की सोच और बाबा जी की रहमत से आज साकार हुआ है — **सराय नंबर 4**, जो डेरा ब्यास में 7 जुलाई से शुरू हो रही है।

यह सराय लंगर घर के ठीक सामने है। इसमें कुल 3 मंज़िलें हैं और हर मंज़िल पर अत्याधुनिक सुविधाएं दी गई हैं —

* हर कमरे में 12 बिस्तर, 6 पंखे और एयर कंडीशनर
* हर फ्लोर पर 18 टॉयलेट और 15 बाथरूम
* कैंटीन नंबर 4 और लंगर घर पास ही

यह कोई साधारण सराय नहीं, बल्कि संगत की सेवा में पूर्ण रूप से समर्पित एक अत्यंत सुव्यवस्थित व्यवस्था है।
यह दिखाता है कि *गुरु ना केवल हमारी आत्मा का ख्याल रखते हैं, बल्कि हमारे तन और थकान को भी समझते हैं।*

# # # 🌈 संत की दृष्टि — जीवन के हर पक्ष को अपनाना

साध संगत जी, लंदन की उस शाम से लेकर डेरे की इस सराय तक — एक ही भाव उभरकर आता है कि हमारे बाबा जी केवल धर्मगुरु नहीं, बल्कि एक ऐसे दयालु मार्गदर्शक हैं जो हर स्थिति में संगत के साथ हैं —

* जब हँसी चाहिए, वो शेर सुनाते हैं।
* जब सेवा की ज़रूरत हो, वो ड्रीम प्रोजेक्ट तैयार करवाते हैं।
* जब संगत को आराम चाहिए, तो एसी रूम्स और हाई-टेक व्यवस्थाएं बनवाते हैं।

**और जब आत्मा को पुकारना हो, तो वो शब्द के ज़रिए हमें मालिक की ओर खींचते हैं।**

# # # ❓ एक प्रश्न — क्या हमने कभी अपने गुरु की सेवा की तरह, किसी को इतना निस्वार्थ प्रेम दिया है?

**उत्तर:** नहीं। हम अकसर शर्तों में प्रेम करते हैं। लेकिन संत बिना शर्त के।
बाबा जी लंदन में संगत के साथ हँसते हैं, लेकिन उनकी हँसी में भी शिक्षा होती है।
वो डेरा में नई सराय बनवाते हैं, लेकिन केवल सुविधा के लिए नहीं — सेवा के भाव के लिए।

# # # 💬 संगत के प्रश्न:

**प्रश्न:** बाबा जी को देखकर ऐसा क्यों लगता है कि वो हर इंसान के मन की बात जानते हैं?
**उत्तर:** क्योंकि संत केवल शब्दों से नहीं, दिल की धड़कनों से बात करते हैं। वे वही देते हैं जो आत्मा को चाहिए — चाहे वह हँसी हो, सत्संग हो, सेवा हो या सहूलियत।

# # # 💖 अंत में एक निवेदन...

जैसे बाबा जी ने लंदन में संगत को मुस्कान दी, वैसे ही हम भी किसी को मुस्कान देने का संकल्प लें।
जैसे डेरा सेवा में दिन-रात लगा है, वैसे ही हम भी कुछ निस्वार्थ क्षण समाज और संगत के लिए निकालें।

**और सबसे बड़ी बात — जब भी गुरु हँसे, हम हँसें; जब वो बुलाएं, हम दौड़ चलें; और जब वो मौन हों, तो हम भीतर उतरें।**

**🙏 राधास्वामी जी।
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❖ **प्रश्न 1:****बाबा जी, अगर हम भजन सुमिरन में टिक नहीं पाते, मन भागता रहता है, तो क्या मालिक को हमारी भक्ति अधूरी लगती...
05/07/2025

❖ **प्रश्न 1:**

**बाबा जी, अगर हम भजन सुमिरन में टिक नहीं पाते, मन भागता रहता है, तो क्या मालिक को हमारी भक्ति अधूरी लगती है?**

**उत्तर:**
बिलकुल नहीं बेटा। मालिक हमारी मेहनत देखता है, मन की स्थिरता नहीं। हर उस क्षण की कीमत होती है जो तुम मालिक के नाम में बैठकर बिताते हो — भले ही मन इधर-उधर दौड़ रहा हो।

इसे ऐसे समझो जैसे एक छोटा बच्चा चलना सीख रहा हो। वह कई बार गिरता है, कभी पैर लड़खड़ाते हैं, कभी दिशा खो देता है। क्या उसकी मां उस पर नाराज़ होती है? नहीं, वह उसे उठाती है, प्यार से कहती है – कोई बात नहीं, फिर से चल।

बिलकुल वही ममता, वही दया मालिक में है। वो देखता है कि तुम बैठते हो, कोशिश करते हो, रुकते नहीं। हर बार गिरकर भी उठते हो। बस यही तुम्हारी सच्ची भक्ति है। टिके रहने का मतलब केवल मन की शांति नहीं, बल्कि कोशिश की निरंतरता है।
**भक्ति टिकाव में नहीं, समर्पण में है।**

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# # # ❖ **प्रश्न 2:**

**जब हम सेवा करते हैं लेकिन नाम की याद नहीं रहती, तो क्या वो सेवा अधूरी है?**

**उत्तर:**
बिलकुल नहीं। सेवा अगर सच्चे दिल से की जाए, मालिक की खुशी के लिए की जाए, तो वह अधूरी नहीं होती।

मान लो कि तुम्हारे पास समय कम है, मन अशांत है, फिर भी तुम थके हुए शरीर और भारी मन से सेवा करने आते हो – तो वह सेवा पूजा से भी ऊंची हो जाती है। क्योंकि उसमें त्याग है, समर्पण है, और वह आत्मा के संघर्ष की गवाही देती है।

सेवा और सुमिरन एक समय पर मिल जाते हैं, लेकिन शुरुआत में मन एक जगह नहीं टिकता। धीरे-धीरे जैसे जैसे तुम्हारा भाव शुद्ध होता है, सेवा भी सुमिरन का रूप ले लेती है।

**काम में जब प्रेम आ जाए, तो वह इबादत बन जाता है।**

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# # # ❖ **प्रश्न 3:**

**जब घर में सब लोग पैसा, दिखावा और दुनियादारी में उलझे हों और हम भक्ति की बात करें, तो सब मज़ाक उड़ाते हैं। ऐसे में कैसे टिके रहें?**

**उत्तर:**
बेटा, यह तो भक्ति का सबसे कठिन किन्तु सच्चा पड़ाव है।
यह राह फूलों से नहीं, कांटों से भरी होती है। जब कोई आत्मा भीतर की ओर मुड़ती है, तो बाहर की दुनिया उसे समझ नहीं पाती।

मगर याद रखना –
**जो अकेले चलता है, वही भीड़ से अलग मंज़िल पाता है।**

अगर तुम हंसते रहो, प्रेम से सबका व्यवहार करो, लेकिन चुपचाप अपनी साधना करो, तो वही लोग एक दिन पूछेंगे – “तू इतना शांत कैसे रहता है? तू इतना स्थिर कैसे है?”
तुम्हारी भक्ति दिखावे की नहीं होनी चाहिए, वह तो आत्मा का निजी रिश्ता है मालिक से।

**लोगों की बातें तुम्हारे इरादों को न तोड़ें, यह ही असली साधना है।**

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# # # ❖ **प्रश्न 4:**

**बाबा जी, जब शरीर साथ नहीं देता, तब क्या केवल नाम लेने से आत्मा तर सकती है?**

**उत्तर:**
हां बेटा, बिलकुल।
जब शरीर बूढ़ा हो जाता है, रोगों से थक जाता है, तब मालिक और ज्यादा करीब आ जाता है। तब शरीर के कर्म शिथिल हो जाते हैं और आत्मा की पुकार मुखर हो जाती है।

चलते-फिरते, लेटे हुए, बैठे हुए – जैसे भी संभव हो, नाम लो।
यह सोचो ही मत कि ‘अब मैं कुछ नहीं कर सकता’।
नाम की ताकत शरीर की सीमाओं से ऊपर है। नाम एक दवा है, एक पुल है, एक सहारा है।

**शरीर की लाचारी में भी, आत्मा मालिक तक पहुंच सकती है – बस नाम की डोर थामे रहो।**

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# # # ❖ **प्रश्न 5:**

**बाबा जी, इस डिजिटल युग में फोन, सोशल मीडिया, स्क्रीन – सब मन को भटका देते हैं। भजन में मन टिके कैसे?**

**उत्तर:**
सही कहा बेटा –
यह आज की आत्मा की सबसे बड़ी परीक्षा है।

हम पहले ही मन के चंचल स्वभाव से लड़ रहे थे, अब उस पर डिजिटल लत जुड़ गई है। हर सेकंड में नई सूचना, नया आकर्षण, नया विचलन।

इसका समाधान –
**डिजिटल अनुशासन।**
जैसे हम शरीर के लिए डाइट बनाते हैं, वैसे ही मन के लिए भी डिजिटल डाइट बनानी होगी।
हर दिन एक समय तय करो जब फोन बंद हो, स्क्रीन बंद हो, और वो समय सिर्फ मालिक के नाम के लिए हो।

शुरुआत में यह असहज लगेगा, पर यही अभ्यास आत्मा को फोकस करना सिखाएगा।

**हर दिन एक "नाम का घंटा" तय करो। वही समय आत्मा की खिड़की बन जाएगा।**

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# # # ❖ **प्रश्न 6:**

**जब हम रोज़ सुमिरन करते हैं लेकिन फिर भी बुरे विचार आ जाते हैं, तो क्या भक्ति रुक जाती है?**

**उत्तर:**
नहीं बेटा।
विचार आना स्वाभाविक है। मन वर्षों की आदतों, संस्कारों, और स्मृतियों से भरा हुआ है।

जब तुम बैठते हो भजन में, तो वह सब बाहर आता है – जैसे किसी शांत तालाब में पत्थर फेंकने पर पहले गड़बड़ी होती है। लेकिन यदि तुम टिके रहते हो, उस गड़बड़ी को देख तो रहे हो, पर उलझ नहीं रहे – तो वही सच्ची साधना है।

भक्ति का मतलब यह नहीं कि मन एकदम शुद्ध हो जाए। भक्ति का अर्थ है –
**मन चाहे जैसा हो, मैं बैठने का साहस नहीं छोड़ूंगा।**

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# # # ❖ **प्रश्न 7:**

**बाबा जी, जब कोई अपना बिछड़ता है, तो अंदर से टूट जाते हैं। सुमिरन करना भी भारी लगता है। तब क्या करें?**

**उत्तर:**
बेटा, यही समय है मालिक को सबसे ज्यादा याद करने का।
जो आंसू उस समय निकलते हैं, वे आत्मा की सबसे सच्ची पुकार होते हैं।

मालिक से कहो –
**"मैं कमजोर हूं, मुझे संभालो।"**
उसका नाम लो, भले ही तुम भीतर से टूटे हुए हो।

तुम्हारा रोना भक्ति की हार नहीं, बल्कि उसकी गहराई है।
जब हम कुछ नहीं कह पाते, तो आत्मा रोती है – और मालिक वही सुनता है।

**सुमिरन रोते हुए भी किया जा सकता है। और शायद उसी में सबसे ज्यादा असर होता है।**

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❖ प्रश्न 8:

**बाबा जी, क्या इस जन्म में ही आत्मा मुक्त हो सकती है या कई जन्म लगते हैं?**

**उत्तर:**
बेटा, आत्मा की मुक्ति का रहस्य केवल मालिक जानता है। यह बात पूरी तरह से उसकी रज़ा पर निर्भर है। हमारी आंखें केवल वर्तमान देखती हैं, पर मालिक संपूर्ण दृश्य देखता है—हमारे पूर्व जन्म, हमारे संचित कर्म, और हमारी वर्तमान नीयत। इसलिए हमारा काम केवल प्रयास करना है, परिणाम की चिंता नहीं करनी।

अगर हम पूरी निष्ठा और प्रेम से नाम सुमिरन करें, सेवा और भक्ति में लगे रहें, तो यह जीवन ही पूर्णता पाने का साधन बन सकता है। मुक्ति कोई अचानक मिलने वाली वस्तु नहीं, वह एक यात्रा है—जो सेवा, सुमिरन, संयम और संतोष से होकर जाती है। जब आत्मा पूरी तरह तैयार हो जाती है, तो मालिक उसे स्वयं उठा लेता है। तब समय, जन्म, और मृत्यु—all these become irrelevant. बस तुम्हारा समर्पण और प्रेम सच्चा होना चाहिए।

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# # # # ❖ प्रश्न 9:

**अगर शरीर बहुत बीमार हो जाए और ध्यान में बैठना असंभव हो जाए, तो क्या केवल नाम लेना काफी है?**

**उत्तर:**
हां बेटा, ऐसी अवस्था में मालिक और भी करीब आ जाता है। जब शरीर थक जाता है, जब हाथ-पांव साथ नहीं देते, तब आत्मा की पुकार और भी सशक्त होती है। ऐसे समय में अगर तुम सच्चे प्रेम से नाम का जाप करते हो, तो वही नाम तुम्हें संभालता है, उठाता है, और अंदर से शक्ति देता है।

नाम सिर्फ ध्यान की विधि नहीं, वह एक पुल है जो आत्मा को मालिक से जोड़ता है। इसलिए चिंता मत करो कि तुम बैठ नहीं पा रहे। बस नाम लेते रहो—चाहे लेटे हुए, बैठे हुए या चलते हुए। उस अवस्था में मालिक भाव देखता है, समय नहीं।

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# # # # ❖ प्रश्न 10:

**अगर बच्चे भक्ति से दूर हैं और नाम सुनना नहीं चाहते, तो हम क्या करें?**

**उत्तर:**
बेटा, भक्ति किसी पर थोपी नहीं जा सकती। आत्मा को जब पुकार होगी, वह खुद खिंचकर मालिक की ओर आएगी। लेकिन यह हमारे आचरण पर भी निर्भर करता है। अगर हम खुद सच्चे, संतुलित और भक्ति भाव से जीएं, तो वही सबसे बड़ा उदाहरण बनता है।

बच्चों को जबरदस्ती नाम सुनाने से ज़्यादा जरूरी है कि हम उन्हें प्रेम से, कहानियों से, साखियों से, अपने जीवन के उदाहरणों से परिचित कराएं। हर आत्मा का समय अलग होता है। तुम बस बीज बो दो, अंकुरित कब होगा, यह मालिक जानता है। वातावरण बनाओ, प्रेम और सहजता रखो, जब वक्त आएगा, बच्चे खुद मालिक की ओर खिंचेंगे।

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# # # # ❖ प्रश्न 11:

**अगर किसी प्रियजन का साथ छूट जाए तो जो खालीपन आता है, उससे कैसे उभरें?**

**उत्तर:**
बेटा, जब कोई अपना बिछड़ता है, तो दिल के अंदर एक सूनापन भर जाता है। वह खालीपन ऐसा होता है जिसे कोई शब्द भर नहीं सकते। उस वक्त सुमिरन भी भारी लग सकता है, लेकिन वही एकमात्र सहारा होता है जो आत्मा को फिर से उठने की शक्ति देता है।

मालिक से कहो – "मुझे संभालो, मुझे थाम लो।" आंसू आने दो, मन हल्का होने दो, लेकिन नाम मत छोड़ो। वही नाम तुम्हें अंधकार से निकालकर रौशनी की ओर ले जाएगा। वह सच्चा साथी है जो जन्मों-जन्मों से तुम्हारे साथ है। भक्ति के उस दर्द में भी प्रेम है, और वही प्रेम अंत में राहत बनता है।

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# # # # ❖ प्रश्न 12:

**अगर हम दुनिया के मापदंडों पर खरे नहीं उतरते – जैसे पैसा, शोहरत – तो हीन भावना आती है। क्या करें?**

**उत्तर:**
बेटा, समाज ने जो मानदंड बनाए हैं, वे बाहरी हैं—धन, प्रसिद्धि, पद—पर मालिक का तराजू बिलकुल अलग है। मालिक न शोहरत देखता है, न सम्पत्ति, वह सिर्फ दिल की सच्चाई, नीयत और प्रयास देखता है।

अगर तुम्हारा दिल निर्मल है, तुम मेहनत कर रहे हो, और मालिक की याद में टिके हुए हो, तो तुम किसी से कम नहीं हो। तुलना करके हम अपनी खासियत खो देते हैं। हीन भावना तब आती है जब हम दूसरों की परछाइयों में अपनी रोशनी ढूंढते हैं। अपने आप को स्वीकारो, मालिक तुम्हें उसी रूप में चाहता है।

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# # # # ❖ प्रश्न 13:

**अगर कोई बड़ा नुकसान हो जाए, तो कैसे मानें कि वह मालिक की रजा में भलाई के लिए है?**

**उत्तर:**
बेटा, जब जीवन में कोई गहरा नुकसान होता है, तो मन उसे स्वीकार नहीं कर पाता। लेकिन हमें यह समझना होगा कि हमारी दृष्टि सीमित है। हम केवल वर्तमान क्षण को देख सकते हैं, लेकिन मालिक पूरी जीवनगाथा जानता है।

कभी-कभी जो नुकसान दिख रहा होता है, वही किसी बड़े दुख से बचाने का माध्यम बनता है। हर घटना एक सिखावन है—या तो चेतावनी होती है या जीवन की दिशा बदलने का संकेत। अगर हम मालिक की रजा में विश्वास रखते हैं, तो हर टूटा हुआ टुकड़ा भी नई कहानी का आरंभ बन सकता है।

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# # # # ❖ प्रश्न 14:

**जब हम कुछ मांगते नहीं फिर भी मालिक वह दे देता है, तो क्या वह हमारी चुप प्रार्थनाएं सुनता है?**

**उत्तर:**
हां बेटा, मालिक हमारे बोलने से पहले जानता है कि हमारे दिल में क्या है। कई बार हम कुछ नहीं मांगते, पर अंदर से एक तड़प, एक भावना उठती है – और वही भावना मालिक तक पहुँच जाती है।

मालिक शब्दों का नहीं, भावों का देवता है। जब वक्त आता है, वह हमारी चुप दुआओं का भी जवाब देता है। इसलिए यह मत सोचो कि जो तुमने नहीं कहा वह सुना नहीं गया – वह पहले से जानता है कि तुम्हें कब, क्या और कितना देना है।

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# # # # ❖ प्रश्न 15:

**अगर हम ऊपर-ऊपर भक्ति कर रहे हों, तो क्या आत्मा नीचे गिर सकती है?**

**उत्तर:**
बेटा, सच्ची भक्ति का मतलब है – दिल से, चरित्र से, व्यवहार से मालिक से जुड़ना। अगर भक्ति केवल रस्म बन जाए – बिना सेवा, बिना समर्पण, और बिना संयम के – तो वह अधूरी रह जाती है। ऐसे में आत्मा अपने स्थान पर नहीं पहुंच पाती।

पर अगर तुम सच्चे मन से भक्ति कर रहे हो – भले ही धीरे-धीरे – और सेवा, सुमिरन, संयम के साथ चल रहे हो, तो आत्मा ऊपर ही उठती है। मालिक हर सच्चे प्रयास की कद्र करता है। नीचे गिरना तभी होता है जब हम खुद से अलग हो जाएं।

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# # # # ❖ प्रश्न 16:

**अगर हम दूसरों को गलत करते देखें और गुस्सा आए, लेकिन कुछ कर न सकें, तो क्या करें?**

**उत्तर:**
बेटा, यह स्वाभाविक है कि जब हम किसी को गलत काम करते देखें, तो मन में पीड़ा या क्रोध उठे। इसका मतलब है कि हमारे अंदर अभी भी अच्छाई बची है। लेकिन अगर उस गुस्से में हम खुद अशांत हो जाएं, तो हमने भी वही गलती दोहराई।

हमें यह समझना चाहिए कि मालिक ने हमें संसार को बदलने नहीं, खुद को बदलने भेजा है। तुम बस सही करो – खुद सही रास्ते पर चलो – और बाकी मालिक के हवाले कर दो। वह सब कुछ देख रहा है और समय आने पर न्याय करता है।

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# # # # ❖ प्रश्न 17:

**अगर सुमिरन के बीच में बुरे विचार आएं तो क्या हमारी साधना रुक जाती है?**

**उत्तर:**
बेटा, विचारों का आना स्वाभाविक है। मन वर्षों से आदतों, इच्छाओं और अनुभवों से भरा हुआ है। जब हम सुमिरन में बैठते हैं, तो वह मन एकदम शांत नहीं होता। बुरे विचार आ सकते हैं, लेकिन अगर तुम बैठे रहते हो, डटे रहते हो, तो वही असली भक्ति है।

भक्ति का मतलब यह नहीं कि विचार ना आएं – बल्कि यह कि विचारों के बावजूद तुम बैठे रहो, टिके रहो। तुम्हारी नीयत, तुम्हारी लगन ही मालिक तक पहुंचती है। विचारों को देखो, पर उन्हें पकड़ो मत – वो आएंगे और चले जाएंगे। पर तुम्हारा सुमिरन तुम्हें मालिक तक ले जाएगा।

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# # # # ❖ प्रश्न 18:

**अगर रिश्तेदार भक्ति का मजाक उड़ाएं तो क्या उस दुख को सुमिरन में ले जा सकते हैं?**

**उत्तर:**
बिल्कुल बेटा, मालिक की राह आसान नहीं होती। जब हम भक्ति की ओर बढ़ते हैं, तो कई बार अपनों की भी हँसी और उपेक्षा झेलनी पड़ती है। उस वक्त दिल दुखता है – लेकिन वही दुख अगर सुमिरन में ले जाओ, तो वह शक्ति बन जाता है।

तुम बहस मत करो, सफाई मत दो – बस विनम्र रहो और मालिक का नाम लेते रहो। वह समय देगा, जब वही लोग तुमसे पूछेंगे – तू इतना शांत कैसे है? यही सच्ची गवाही होती है भक्ति की।

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# # # # ❖ प्रश्न 19:

**हम जीवन में बहुत कुछ चाहते हैं – अगर ना मिले तो टूट जाते हैं। क्या यह गलत है?**

**उत्तर:**
बेटा, इच्छाएं मनुष्य के स्वभाव का हिस्सा हैं। लेकिन हमें यह समझना है कि हर इच्छा का पूरा होना हमारे हित में नहीं होता। मालिक हमेशा वही देता है जो हमारे लिए सबसे उपयुक्त होता है।

अगर कुछ नहीं मिला, तो हो सकता है कि वह चीज़ हमें नुकसान पहुँचाती। इसलिए टूटो नहीं – झुको। जैसे पेड़ तूफान में झुकता है और बच जाता है – वैसे ही मालिक की रज़ा में झुको। वह तुम्हें पहले से बेहतर स्थिति में उठा लेगा।

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# # # # ❖ प्रश्न 20:

**क्या कोई मालिक को नजदीक से अनुभव कर सकता है?**

**उत्तर:**
हां बेटा, लेकिन वह अनुभव बाहर नहीं, भीतर से आता है। मालिक को देखना कोई चमत्कार नहीं, वह एक गहन शांति, एक आत्मिक अनुभूति है – जो तब आती है जब मन शांत हो, सुमिरन गहरा हो और दिल सच्चा हो।

भाग्यशाली वह नहीं जो मालिक को देखे, बल्कि वह है जो हर परिस्थिति में मालिक को माने, उसमें विश्वास रखे, और हर सांस में उसे महसूस करे। मालिक का अनुभव प्रेम से, समर्पण से और सतत अभ्यास से आता है – और वह अनुभव तुम्हारे भीतर ही तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है।

राधा स्वामी जी 🙏🙏

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