05/07/2025
❖ **प्रश्न 1:**
**बाबा जी, अगर हम भजन सुमिरन में टिक नहीं पाते, मन भागता रहता है, तो क्या मालिक को हमारी भक्ति अधूरी लगती है?**
**उत्तर:**
बिलकुल नहीं बेटा। मालिक हमारी मेहनत देखता है, मन की स्थिरता नहीं। हर उस क्षण की कीमत होती है जो तुम मालिक के नाम में बैठकर बिताते हो — भले ही मन इधर-उधर दौड़ रहा हो।
इसे ऐसे समझो जैसे एक छोटा बच्चा चलना सीख रहा हो। वह कई बार गिरता है, कभी पैर लड़खड़ाते हैं, कभी दिशा खो देता है। क्या उसकी मां उस पर नाराज़ होती है? नहीं, वह उसे उठाती है, प्यार से कहती है – कोई बात नहीं, फिर से चल।
बिलकुल वही ममता, वही दया मालिक में है। वो देखता है कि तुम बैठते हो, कोशिश करते हो, रुकते नहीं। हर बार गिरकर भी उठते हो। बस यही तुम्हारी सच्ची भक्ति है। टिके रहने का मतलब केवल मन की शांति नहीं, बल्कि कोशिश की निरंतरता है।
**भक्ति टिकाव में नहीं, समर्पण में है।**
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# # # ❖ **प्रश्न 2:**
**जब हम सेवा करते हैं लेकिन नाम की याद नहीं रहती, तो क्या वो सेवा अधूरी है?**
**उत्तर:**
बिलकुल नहीं। सेवा अगर सच्चे दिल से की जाए, मालिक की खुशी के लिए की जाए, तो वह अधूरी नहीं होती।
मान लो कि तुम्हारे पास समय कम है, मन अशांत है, फिर भी तुम थके हुए शरीर और भारी मन से सेवा करने आते हो – तो वह सेवा पूजा से भी ऊंची हो जाती है। क्योंकि उसमें त्याग है, समर्पण है, और वह आत्मा के संघर्ष की गवाही देती है।
सेवा और सुमिरन एक समय पर मिल जाते हैं, लेकिन शुरुआत में मन एक जगह नहीं टिकता। धीरे-धीरे जैसे जैसे तुम्हारा भाव शुद्ध होता है, सेवा भी सुमिरन का रूप ले लेती है।
**काम में जब प्रेम आ जाए, तो वह इबादत बन जाता है।**
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# # # ❖ **प्रश्न 3:**
**जब घर में सब लोग पैसा, दिखावा और दुनियादारी में उलझे हों और हम भक्ति की बात करें, तो सब मज़ाक उड़ाते हैं। ऐसे में कैसे टिके रहें?**
**उत्तर:**
बेटा, यह तो भक्ति का सबसे कठिन किन्तु सच्चा पड़ाव है।
यह राह फूलों से नहीं, कांटों से भरी होती है। जब कोई आत्मा भीतर की ओर मुड़ती है, तो बाहर की दुनिया उसे समझ नहीं पाती।
मगर याद रखना –
**जो अकेले चलता है, वही भीड़ से अलग मंज़िल पाता है।**
अगर तुम हंसते रहो, प्रेम से सबका व्यवहार करो, लेकिन चुपचाप अपनी साधना करो, तो वही लोग एक दिन पूछेंगे – “तू इतना शांत कैसे रहता है? तू इतना स्थिर कैसे है?”
तुम्हारी भक्ति दिखावे की नहीं होनी चाहिए, वह तो आत्मा का निजी रिश्ता है मालिक से।
**लोगों की बातें तुम्हारे इरादों को न तोड़ें, यह ही असली साधना है।**
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# # # ❖ **प्रश्न 4:**
**बाबा जी, जब शरीर साथ नहीं देता, तब क्या केवल नाम लेने से आत्मा तर सकती है?**
**उत्तर:**
हां बेटा, बिलकुल।
जब शरीर बूढ़ा हो जाता है, रोगों से थक जाता है, तब मालिक और ज्यादा करीब आ जाता है। तब शरीर के कर्म शिथिल हो जाते हैं और आत्मा की पुकार मुखर हो जाती है।
चलते-फिरते, लेटे हुए, बैठे हुए – जैसे भी संभव हो, नाम लो।
यह सोचो ही मत कि ‘अब मैं कुछ नहीं कर सकता’।
नाम की ताकत शरीर की सीमाओं से ऊपर है। नाम एक दवा है, एक पुल है, एक सहारा है।
**शरीर की लाचारी में भी, आत्मा मालिक तक पहुंच सकती है – बस नाम की डोर थामे रहो।**
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# # # ❖ **प्रश्न 5:**
**बाबा जी, इस डिजिटल युग में फोन, सोशल मीडिया, स्क्रीन – सब मन को भटका देते हैं। भजन में मन टिके कैसे?**
**उत्तर:**
सही कहा बेटा –
यह आज की आत्मा की सबसे बड़ी परीक्षा है।
हम पहले ही मन के चंचल स्वभाव से लड़ रहे थे, अब उस पर डिजिटल लत जुड़ गई है। हर सेकंड में नई सूचना, नया आकर्षण, नया विचलन।
इसका समाधान –
**डिजिटल अनुशासन।**
जैसे हम शरीर के लिए डाइट बनाते हैं, वैसे ही मन के लिए भी डिजिटल डाइट बनानी होगी।
हर दिन एक समय तय करो जब फोन बंद हो, स्क्रीन बंद हो, और वो समय सिर्फ मालिक के नाम के लिए हो।
शुरुआत में यह असहज लगेगा, पर यही अभ्यास आत्मा को फोकस करना सिखाएगा।
**हर दिन एक "नाम का घंटा" तय करो। वही समय आत्मा की खिड़की बन जाएगा।**
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# # # ❖ **प्रश्न 6:**
**जब हम रोज़ सुमिरन करते हैं लेकिन फिर भी बुरे विचार आ जाते हैं, तो क्या भक्ति रुक जाती है?**
**उत्तर:**
नहीं बेटा।
विचार आना स्वाभाविक है। मन वर्षों की आदतों, संस्कारों, और स्मृतियों से भरा हुआ है।
जब तुम बैठते हो भजन में, तो वह सब बाहर आता है – जैसे किसी शांत तालाब में पत्थर फेंकने पर पहले गड़बड़ी होती है। लेकिन यदि तुम टिके रहते हो, उस गड़बड़ी को देख तो रहे हो, पर उलझ नहीं रहे – तो वही सच्ची साधना है।
भक्ति का मतलब यह नहीं कि मन एकदम शुद्ध हो जाए। भक्ति का अर्थ है –
**मन चाहे जैसा हो, मैं बैठने का साहस नहीं छोड़ूंगा।**
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# # # ❖ **प्रश्न 7:**
**बाबा जी, जब कोई अपना बिछड़ता है, तो अंदर से टूट जाते हैं। सुमिरन करना भी भारी लगता है। तब क्या करें?**
**उत्तर:**
बेटा, यही समय है मालिक को सबसे ज्यादा याद करने का।
जो आंसू उस समय निकलते हैं, वे आत्मा की सबसे सच्ची पुकार होते हैं।
मालिक से कहो –
**"मैं कमजोर हूं, मुझे संभालो।"**
उसका नाम लो, भले ही तुम भीतर से टूटे हुए हो।
तुम्हारा रोना भक्ति की हार नहीं, बल्कि उसकी गहराई है।
जब हम कुछ नहीं कह पाते, तो आत्मा रोती है – और मालिक वही सुनता है।
**सुमिरन रोते हुए भी किया जा सकता है। और शायद उसी में सबसे ज्यादा असर होता है।**
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❖ प्रश्न 8:
**बाबा जी, क्या इस जन्म में ही आत्मा मुक्त हो सकती है या कई जन्म लगते हैं?**
**उत्तर:**
बेटा, आत्मा की मुक्ति का रहस्य केवल मालिक जानता है। यह बात पूरी तरह से उसकी रज़ा पर निर्भर है। हमारी आंखें केवल वर्तमान देखती हैं, पर मालिक संपूर्ण दृश्य देखता है—हमारे पूर्व जन्म, हमारे संचित कर्म, और हमारी वर्तमान नीयत। इसलिए हमारा काम केवल प्रयास करना है, परिणाम की चिंता नहीं करनी।
अगर हम पूरी निष्ठा और प्रेम से नाम सुमिरन करें, सेवा और भक्ति में लगे रहें, तो यह जीवन ही पूर्णता पाने का साधन बन सकता है। मुक्ति कोई अचानक मिलने वाली वस्तु नहीं, वह एक यात्रा है—जो सेवा, सुमिरन, संयम और संतोष से होकर जाती है। जब आत्मा पूरी तरह तैयार हो जाती है, तो मालिक उसे स्वयं उठा लेता है। तब समय, जन्म, और मृत्यु—all these become irrelevant. बस तुम्हारा समर्पण और प्रेम सच्चा होना चाहिए।
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# # # # ❖ प्रश्न 9:
**अगर शरीर बहुत बीमार हो जाए और ध्यान में बैठना असंभव हो जाए, तो क्या केवल नाम लेना काफी है?**
**उत्तर:**
हां बेटा, ऐसी अवस्था में मालिक और भी करीब आ जाता है। जब शरीर थक जाता है, जब हाथ-पांव साथ नहीं देते, तब आत्मा की पुकार और भी सशक्त होती है। ऐसे समय में अगर तुम सच्चे प्रेम से नाम का जाप करते हो, तो वही नाम तुम्हें संभालता है, उठाता है, और अंदर से शक्ति देता है।
नाम सिर्फ ध्यान की विधि नहीं, वह एक पुल है जो आत्मा को मालिक से जोड़ता है। इसलिए चिंता मत करो कि तुम बैठ नहीं पा रहे। बस नाम लेते रहो—चाहे लेटे हुए, बैठे हुए या चलते हुए। उस अवस्था में मालिक भाव देखता है, समय नहीं।
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# # # # ❖ प्रश्न 10:
**अगर बच्चे भक्ति से दूर हैं और नाम सुनना नहीं चाहते, तो हम क्या करें?**
**उत्तर:**
बेटा, भक्ति किसी पर थोपी नहीं जा सकती। आत्मा को जब पुकार होगी, वह खुद खिंचकर मालिक की ओर आएगी। लेकिन यह हमारे आचरण पर भी निर्भर करता है। अगर हम खुद सच्चे, संतुलित और भक्ति भाव से जीएं, तो वही सबसे बड़ा उदाहरण बनता है।
बच्चों को जबरदस्ती नाम सुनाने से ज़्यादा जरूरी है कि हम उन्हें प्रेम से, कहानियों से, साखियों से, अपने जीवन के उदाहरणों से परिचित कराएं। हर आत्मा का समय अलग होता है। तुम बस बीज बो दो, अंकुरित कब होगा, यह मालिक जानता है। वातावरण बनाओ, प्रेम और सहजता रखो, जब वक्त आएगा, बच्चे खुद मालिक की ओर खिंचेंगे।
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# # # # ❖ प्रश्न 11:
**अगर किसी प्रियजन का साथ छूट जाए तो जो खालीपन आता है, उससे कैसे उभरें?**
**उत्तर:**
बेटा, जब कोई अपना बिछड़ता है, तो दिल के अंदर एक सूनापन भर जाता है। वह खालीपन ऐसा होता है जिसे कोई शब्द भर नहीं सकते। उस वक्त सुमिरन भी भारी लग सकता है, लेकिन वही एकमात्र सहारा होता है जो आत्मा को फिर से उठने की शक्ति देता है।
मालिक से कहो – "मुझे संभालो, मुझे थाम लो।" आंसू आने दो, मन हल्का होने दो, लेकिन नाम मत छोड़ो। वही नाम तुम्हें अंधकार से निकालकर रौशनी की ओर ले जाएगा। वह सच्चा साथी है जो जन्मों-जन्मों से तुम्हारे साथ है। भक्ति के उस दर्द में भी प्रेम है, और वही प्रेम अंत में राहत बनता है।
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# # # # ❖ प्रश्न 12:
**अगर हम दुनिया के मापदंडों पर खरे नहीं उतरते – जैसे पैसा, शोहरत – तो हीन भावना आती है। क्या करें?**
**उत्तर:**
बेटा, समाज ने जो मानदंड बनाए हैं, वे बाहरी हैं—धन, प्रसिद्धि, पद—पर मालिक का तराजू बिलकुल अलग है। मालिक न शोहरत देखता है, न सम्पत्ति, वह सिर्फ दिल की सच्चाई, नीयत और प्रयास देखता है।
अगर तुम्हारा दिल निर्मल है, तुम मेहनत कर रहे हो, और मालिक की याद में टिके हुए हो, तो तुम किसी से कम नहीं हो। तुलना करके हम अपनी खासियत खो देते हैं। हीन भावना तब आती है जब हम दूसरों की परछाइयों में अपनी रोशनी ढूंढते हैं। अपने आप को स्वीकारो, मालिक तुम्हें उसी रूप में चाहता है।
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# # # # ❖ प्रश्न 13:
**अगर कोई बड़ा नुकसान हो जाए, तो कैसे मानें कि वह मालिक की रजा में भलाई के लिए है?**
**उत्तर:**
बेटा, जब जीवन में कोई गहरा नुकसान होता है, तो मन उसे स्वीकार नहीं कर पाता। लेकिन हमें यह समझना होगा कि हमारी दृष्टि सीमित है। हम केवल वर्तमान क्षण को देख सकते हैं, लेकिन मालिक पूरी जीवनगाथा जानता है।
कभी-कभी जो नुकसान दिख रहा होता है, वही किसी बड़े दुख से बचाने का माध्यम बनता है। हर घटना एक सिखावन है—या तो चेतावनी होती है या जीवन की दिशा बदलने का संकेत। अगर हम मालिक की रजा में विश्वास रखते हैं, तो हर टूटा हुआ टुकड़ा भी नई कहानी का आरंभ बन सकता है।
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# # # # ❖ प्रश्न 14:
**जब हम कुछ मांगते नहीं फिर भी मालिक वह दे देता है, तो क्या वह हमारी चुप प्रार्थनाएं सुनता है?**
**उत्तर:**
हां बेटा, मालिक हमारे बोलने से पहले जानता है कि हमारे दिल में क्या है। कई बार हम कुछ नहीं मांगते, पर अंदर से एक तड़प, एक भावना उठती है – और वही भावना मालिक तक पहुँच जाती है।
मालिक शब्दों का नहीं, भावों का देवता है। जब वक्त आता है, वह हमारी चुप दुआओं का भी जवाब देता है। इसलिए यह मत सोचो कि जो तुमने नहीं कहा वह सुना नहीं गया – वह पहले से जानता है कि तुम्हें कब, क्या और कितना देना है।
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# # # # ❖ प्रश्न 15:
**अगर हम ऊपर-ऊपर भक्ति कर रहे हों, तो क्या आत्मा नीचे गिर सकती है?**
**उत्तर:**
बेटा, सच्ची भक्ति का मतलब है – दिल से, चरित्र से, व्यवहार से मालिक से जुड़ना। अगर भक्ति केवल रस्म बन जाए – बिना सेवा, बिना समर्पण, और बिना संयम के – तो वह अधूरी रह जाती है। ऐसे में आत्मा अपने स्थान पर नहीं पहुंच पाती।
पर अगर तुम सच्चे मन से भक्ति कर रहे हो – भले ही धीरे-धीरे – और सेवा, सुमिरन, संयम के साथ चल रहे हो, तो आत्मा ऊपर ही उठती है। मालिक हर सच्चे प्रयास की कद्र करता है। नीचे गिरना तभी होता है जब हम खुद से अलग हो जाएं।
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# # # # ❖ प्रश्न 16:
**अगर हम दूसरों को गलत करते देखें और गुस्सा आए, लेकिन कुछ कर न सकें, तो क्या करें?**
**उत्तर:**
बेटा, यह स्वाभाविक है कि जब हम किसी को गलत काम करते देखें, तो मन में पीड़ा या क्रोध उठे। इसका मतलब है कि हमारे अंदर अभी भी अच्छाई बची है। लेकिन अगर उस गुस्से में हम खुद अशांत हो जाएं, तो हमने भी वही गलती दोहराई।
हमें यह समझना चाहिए कि मालिक ने हमें संसार को बदलने नहीं, खुद को बदलने भेजा है। तुम बस सही करो – खुद सही रास्ते पर चलो – और बाकी मालिक के हवाले कर दो। वह सब कुछ देख रहा है और समय आने पर न्याय करता है।
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# # # # ❖ प्रश्न 17:
**अगर सुमिरन के बीच में बुरे विचार आएं तो क्या हमारी साधना रुक जाती है?**
**उत्तर:**
बेटा, विचारों का आना स्वाभाविक है। मन वर्षों से आदतों, इच्छाओं और अनुभवों से भरा हुआ है। जब हम सुमिरन में बैठते हैं, तो वह मन एकदम शांत नहीं होता। बुरे विचार आ सकते हैं, लेकिन अगर तुम बैठे रहते हो, डटे रहते हो, तो वही असली भक्ति है।
भक्ति का मतलब यह नहीं कि विचार ना आएं – बल्कि यह कि विचारों के बावजूद तुम बैठे रहो, टिके रहो। तुम्हारी नीयत, तुम्हारी लगन ही मालिक तक पहुंचती है। विचारों को देखो, पर उन्हें पकड़ो मत – वो आएंगे और चले जाएंगे। पर तुम्हारा सुमिरन तुम्हें मालिक तक ले जाएगा।
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# # # # ❖ प्रश्न 18:
**अगर रिश्तेदार भक्ति का मजाक उड़ाएं तो क्या उस दुख को सुमिरन में ले जा सकते हैं?**
**उत्तर:**
बिल्कुल बेटा, मालिक की राह आसान नहीं होती। जब हम भक्ति की ओर बढ़ते हैं, तो कई बार अपनों की भी हँसी और उपेक्षा झेलनी पड़ती है। उस वक्त दिल दुखता है – लेकिन वही दुख अगर सुमिरन में ले जाओ, तो वह शक्ति बन जाता है।
तुम बहस मत करो, सफाई मत दो – बस विनम्र रहो और मालिक का नाम लेते रहो। वह समय देगा, जब वही लोग तुमसे पूछेंगे – तू इतना शांत कैसे है? यही सच्ची गवाही होती है भक्ति की।
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# # # # ❖ प्रश्न 19:
**हम जीवन में बहुत कुछ चाहते हैं – अगर ना मिले तो टूट जाते हैं। क्या यह गलत है?**
**उत्तर:**
बेटा, इच्छाएं मनुष्य के स्वभाव का हिस्सा हैं। लेकिन हमें यह समझना है कि हर इच्छा का पूरा होना हमारे हित में नहीं होता। मालिक हमेशा वही देता है जो हमारे लिए सबसे उपयुक्त होता है।
अगर कुछ नहीं मिला, तो हो सकता है कि वह चीज़ हमें नुकसान पहुँचाती। इसलिए टूटो नहीं – झुको। जैसे पेड़ तूफान में झुकता है और बच जाता है – वैसे ही मालिक की रज़ा में झुको। वह तुम्हें पहले से बेहतर स्थिति में उठा लेगा।
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# # # # ❖ प्रश्न 20:
**क्या कोई मालिक को नजदीक से अनुभव कर सकता है?**
**उत्तर:**
हां बेटा, लेकिन वह अनुभव बाहर नहीं, भीतर से आता है। मालिक को देखना कोई चमत्कार नहीं, वह एक गहन शांति, एक आत्मिक अनुभूति है – जो तब आती है जब मन शांत हो, सुमिरन गहरा हो और दिल सच्चा हो।
भाग्यशाली वह नहीं जो मालिक को देखे, बल्कि वह है जो हर परिस्थिति में मालिक को माने, उसमें विश्वास रखे, और हर सांस में उसे महसूस करे। मालिक का अनुभव प्रेम से, समर्पण से और सतत अभ्यास से आता है – और वह अनुभव तुम्हारे भीतर ही तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है।
राधा स्वामी जी 🙏🙏