21/10/2025
# राधास्वामी संगत के नाम — दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ और चार सच्ची घटनाएँ जो विश्वास बदल देंगी
साध संगत जी, सबसे पहले आप सभी को दीपावली की बहुमूल्य और स्नेहिल हार्दिक शुभकामनाएँ। यह पर्व रोशनी, प्रेम और परमात्मा की दया का प्रतीक है। पर सच्ची रोशनी वही है जो भीतर जलती है — वह विश्वास, श्रद्धा और गुरु की महिमा का प्रकाश। आज मैं आप सबके साथ चार ऐसी सच्ची घटनाएँ बाँट रहा/रही हूँ जो हाल ही में कोलकाता के भंडारे और डेरे पर घटीं — घटनाएँ जो हमारी समझ से परे, परन्तु अनुभव की गहराई में सत्य होती हैं। ये किस्से केवल घटनाएँ नहीं, वे आत्मा को झकझोर देने वाली गाथाएँ हैं — उन पलों की गवाही जहाँ सतगुरु की महिमा ने हर शक को, हर संशय को चूर कर दिया।
कृपया ध्यान से सुनिए और पढ़िए — ये सब सच हैं, यही शब्द-साक्ष्य हैं — और मेरा विश्वास है कि इन घटनाओं को पढ़कर आपके हृदय में गुरु के प्रति श्रद्धा और गहरी हो जाएगी।
हमने अक्सर सुना है कि किसी के जीवन में अचानक चमत्कार हो गया; लोगों ने कहा कि किसी ने गुरु की कृपा पाई और सब कुछ बदल गया। कई बार हम खुद भी ऐसे लम्हे देखते हैं — छोटी-सी उम्मीद जिससे बड़े-बड़े दुःख समाप्त हो जाते हैं, एक क्षण में बरसों की मुश्किलें हल हो जाती हैं। पर जब यही बातें हमारे सामने, हमारी अपनी संगत के बीच घटित हों, तो वह अनुभव अलग ही स्तर पर प्रभाव डालता है। यही बातें आज मैं आपके समक्ष लेकर आया/आई हूँ — चार सच्ची घटनाएँ, चार परिवार, और एक-एक ऐसा पल जिसने उनकी संपूर्ण दिशा बदल दी।
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# # घटना 1 — वह नन्हा बच्चा जो बोलना सीख गया (कोलकाता भंडारा, 19 तारीख)
यह पहला किस्सा है — एक छोटे से परिवार का, जो नियमित सत्संग सेवा में लगा रहता है। माता-पिता दोनों सेवाकार्य में होते हैं। उनका बेटा बहता-खेलता, खुशमिज़ाज सा दिखता — पर उस बच्चे के जीवन में एक क्षोभ था: वह जन्म से ही बोल नहीं पा रहा था। माता-पिता ने शहर के कई डॉक्टरों के पास भटकते हुए इलाज करवाया — मगर कोई ठोस नतीजा नहीं मिला। अंततः एक विशेषज्ञ ने ऑपरेशन की सलाह दी — जिसमें 80 से 90% सफलता बताई गई — पर खर्च इतना था कि सामान्य वेतन पर रहने वाले दम्पत्ति के बस की बात नहीं थी। डॉक्टर ने 2 से 3 लाख रुपये का जिक्र किया; एक मजदूरी या फैक्ट्री की तनख्वाह पर रहने वाले माता-पिता के लिए यह राशि असंभव सी थी।
जरूरत — उम्मीद — और फिर असमर्थता। उन रातों की खामोशी, उन दिनों की थकान — यह सब किसी भी माता-पिता के लिए समझने योग्य है। पर यह परिवार डेरे से जुड़ा हुआ था, वे सत्संग के सच्चे अनुयायी थे; पीढ़ियों से बाबा जी की शरण में। उन्होंने सबसे आखिर में अपने हाथ सिर पर रखकर कहा — “सतगुरु, यह तेरा बच्चा है, जो भी तेरा इरादा होगा, वही मंजूर है।” यह पूरी समर्पण की भावना थी — तन-मन से गुरु को सौंप देना — और इसी समर्पण का फल अगली सुबह देखने को मिला।
सत्संग का दिन था। शनिवार को हुजूर जी ने ओपन कार दर्शन दिए थे। दर्शन के बाद जैसे ही संगत बाहर निकली, वही बच्चा अपने पिता के साथ खड़ा था। पिता ने उसे सेवा पेटी में कुछ डालने के लिए भेजा — बच्चा गया और सेवा की छोटी-सी क्रिया कर लौट आया। पिता ने भीतर-ही-भीतर गुरु से प्रार्थना की — “हे मेरे सतगुरु, यह तेरा बच्चा है; इसे बोलने की शक्ति दिजिए।” परिवार ने प्रसादी ली, मेहनत की, रात को थककर सो गए। सबने सुबह 4 बजे का अलार्म लगाया था।
पर सुबह का चमत्कार अलार्म से पहले हुआ। सभी अचानक किसी आवाज़ से जागे — और जिसे देखकर उनकी साँसें थम-सी गईं — वही बच्चा बोल रहा था। नन्हे-से होंठों से पहली बार शब्द निकले — “बाबा जी” — और फिर और भी शब्द। माता-पिता की आँखों से जो आँसू निकले, वे शब्दों में बयान नहीं किये जा सकते। सालों की निराशा, दर्द और अनिश्चितता का एक ही क्षण में विस्फोट हो गया — और वह विस्फोट प्रेम और कृतज्ञता के आँसुओं में बदल गया। उन्होंने जमीन पर माथा टेका और सतगुरु को धन्यवाद दिया। वही ऑपरेशन जो डॉक्टर्स के अनुसार अनिश्चित परिणाम दे सकता था, बाबा जी की एक दृष्टि और दया से एक क्षण में सम्भव हो गया।
यह घटना हमें क्या सिखाती है?
* विश्वास का अर्थ केवल शब्दों तक सीमित नहीं होता — यह समर्पण के साथ जीवन देना है।
* गुरु की कृपा अनपेक्षित रास्तों से आती है; मानव योजना सीमित है, पर पराक्रमी गुरु की मरज़ी से सब कष्ट मिटते हैं।
* सेवा और भक्ति का फल कभी भी देरी से नहीं मिलता — वह सही समय पर आता है, पर अक्सर हमारी समझ से परे तरीके से।
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# # घटना 2 — ₹200 का उधार और गुरु की अंतःदृष्टि (दिल्ली के दयाराम जी)
दूसरी घटना छोटी सी लगती है — पर अर्थ में बेहद भारी। दयाराम जी, दिल्ली के एक बैंक के ईमानदार कैशियर — नाम दान किए हुए लगभग 18-19 साल के। वे हमेशा सेवा में लगे रहते थे और सत्संग के नियमित अनुयायी थे। उनकी जिम्मेदारी रात में शाखा का कैश लेकर मुख्य ब्रांच जमा करवाना था; उन्हें गाड़ी, ड्राइवर और सुरक्षा गार्ड दिया गया था। एक दिन जब वे उसी ड्यूटी पर जा रहे थे, तब कनॉट प्लेस के पास उनकी नज़र एक कार पर पड़ी — और उनका हृदय एक ही नाम से भर गया — “यह बाबा जी की कार है।” उन्हें लगा — कल्याण है, दर्शन मिलेंगे। पर ड्यूटी की जिम्मेदारी थी, और वे अनिदेशक स्थिति में नहीं जा सकते थे। वहाँ पर मन में एक चाल आई — “मैं ड्राइवर से कह दूँ कि सामने वाली गाड़ी वाले ने मुझसे ₹200 उधार लिये थे — मैं बस 5 मिनट लेकर आता हूँ।” यह छोटी सी बात सच बोलने के लिए नहीं थी — पर अंदर की तीव्र इच्छा ने झूठ बोलने को प्रेरित किया। उन्होंने मन ही मन क्षमा माँगी और छोटा सा झूठ बोलकर ड्राइवर से गाड़ी रोका।
वे गुरु की गाड़ी के पास गए — और उनका धैर्य, भक्ति और इंतज़ार — सब कुछ एक ही पल में पुरस्कृत हुआ। बाबा जी गाड़ी से बाहर आए और हँसते हुए बोले — “भाई, अपने ₹200 तो लेकर जाओ जो मैंने तुमसे पहले उधार लिए थे।” दयाराम जी का मन भर आया; वे वहीं फूट-फूट कर रो पड़े। वे समझ गए कि गुरु ने उनकी अंतरात्मा की बात सुनी — जो शब्दों में कही तक नहीं गई थी। भीतर के भाव, उनके छोटी-सी कमजोरी, उनकी तीव्र लालसा — सब गुरु ने जान लिया और उसी एक क्षण में सच्चाई घोषित कर दी।
इस घटना का संदेश:
* सतगुरु को हमारे मन के छोटे-से छोटे विचारों की जानकारी होती है। वे हमारी स्पष्ट और अस्पष्ट दोनों आवाज़ें सुनते हैं।
* कभी-कभी हम छोटे-छोटे मिथ्या कर्म करते हैं — पर जब उनकी जड़ प्रेम और गुरु-प्राप्ति की तीव्र इच्छा हो, तो गुरु उनकी दुर्बलताओं को भी समझते हैं और दिल से क्षमा करते हैं।
* भगवान का रूप वही है जो हमारे सबसे गुप्त मनोभाव को भी समझता है; हमें शर्मिंदा होने के बजाय अपने दिल को गुरु के आगे खोल देना चाहिए।
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# # घटना 3 — नन्हे के बालों में दाढ़ी की कंघी — गुरु की अनंत दृष्टि
तीसरी घटना एक छोटे बच्चे की मासूम आदत से जुड़ी है। एक छोटे से तीन-चार साल के बच्चे की प्रतिदिन की छोटी सी परंपरा थी — वह अपने सारे खिलौने छोड़कर बाबा जी की तस्वीर लेकर उसे गोद में बिठाता और दाढ़ी में कंघी चलाता। माँ ने कभी किसी को यह आदत बतायी ही नहीं — यह सिर्फ माँ और बच्चे के बीच की निजी बात थी। पर एक दिन जब माँ अपने बच्चे के साथ सत्संग सुनने डेरे आई, तो सत्संग के बाद जब पंडाल में बच्चे को लेने गयी, तो देखा कि बाबा जी स्वयं नन्हे को गोद में उठा कर प्यार से बोले — “क्यों भाई, आज मेरी दाढ़ी में कंघी नहीं चलाएगा?” माँ चौंक गई। वह आश्चर्य और भावुकता से भर गयी — जो बात उसके बच्चे के भीतर थी, जिसे किसी ने नहीं देखा, वह बाबा जी को कैसे ज्ञात हुई?
यह किस्सा सबको भावविह्वल कर गया। वहाँ का माहौल एक सन्नाटे सा भावुक हो गया — यह ज्ञान कि गुरु केवल हमारे कर्मों को ही नहीं, बल्कि हमारे ह्रदय की सूक्ष्मतम भाषा को भी समझते हैं, सबको झकझोर गया।
इस घटने से मिलती शिक्षा:
* गुरु की दृष्टि ऐसी है जो वर्तमान क्रियाओं और अतीत स्मृतियों के गर्भ में रेंगती भावनाओं तक पहुँचती है।
* बच्चे की सरलता और श्रद्धा ने गुरु के हृदय तक मार्ग खोल दिया — यही सच्ची भक्ति है, जितनी सरल उतनी प्रभावी।
* हमारी छोटी-छोटी बातें, हमारी निजी श्रद्धा भी गुरु तक पहुँचती है — इसलिए कोई भी भाव छोटा नहीं।
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# # घटना 4 — करोड़पति का घर डाका पड़ा पर परिवार बचा (डेरे में सेवा की रक्षा)
चौथी और अंतिम घटना उस बड़े व्यवसायी से जुड़ी है जो करोड़ों का मालिक था। उसने अपने परिवार के साथ पहली बार डेरे की यात्रा की — केवल आधे दिन का विचार था, पर सेवा और संगत में इतना मन लगा कि वे रात भर डेरे में रुक गए। कई लोगों की तरह उसे भी वही शांति और संतोष मिला जो सेवा में आता है। पर अगले दिन सुबह उसे खबर मिली कि उसके घर पर डाका पड़ा — सब कुछ लूट लिया गया। पहली प्रतिक्रिया में उसकी आस्था हिल गयी — “मैंने सेवा की, फिर भी मेरा सब कुछ छीन लिया गया — यह कैसे गुरु की रक्षा है?” पर जब वह बाबा जी के पास गया और सारी बात बताई, बाबा जी ने बड़ी शांति से कहा — “बेटा, तुम्हारा नुकसान कम हुआ है। अगर तुम कल रात घर पर होते तो सिर्फ धन नहीं, तुम्हारे परिवार की जान भी खतरे में होती। पड़ोसी परिवार को देखा? वहाँ के लोग मारे गए।” सच में वही हुआ — जो डकैतों ने पड़ोसी घर में किया, वह वहां भयावहता थी: कुछ लोगों की हत्या कर दी गई थी। पर जिस परिवार का सदस्य डेरे में रुका था, वह बच गया। गुरु ने उन्हें वहीं रोक कर उनकी रक्षा की — और समय के साथ खोई हुई संपत्ति भी लौट आई। उस करोड़पति को अब गुरु पर और भी गहरी श्रद्धा हुई; वह नियमित सेवा में लगता रहा और जीवन की दिशा बदल गई।
इस घटना द्वारा मिलने वाली सीख:
* गुरु की रक्षा हमसे कहीं अधिक व्यापक होती है — वह केवल भौतिक चीज़ों को नहीं, हमारा जीवन बचाते हैं।
* सेवा और संगत हमारी ढाल बन सकती है — क्षणिक सेवा ही दूरगामी सुरक्षा बन जाती है।
* हम जो क्षति समझते हैं, अक्सर वह नाश नहीं बल्कि श्रेष्ठ योजना का हिस्सा होती है — गुरु की दृष्टि से कहीं गहरा भाव होता है।
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# # चारों घटनाओं का समेकित संदेश — गुरु की महिमा, सेवा, और विश्वास
इन चारों घटनाओं की जड़ एक ही चीज़ में निहित है — सतगुरु की अमर महिमा और संगत की सच्ची श्रद्धा। इन कहानियों से हमें जो पाठ मिलता है वह केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि बहुआयामी है:
1. **समर्पण का प्रभाव**: जब मन में पूरा समर्पण आता है — “यह तेरा बच्चा है, तुझ पर छोड़ दिया” — तब बीते वर्षों के दुख, असफल प्रयास, और भय भी गुरु की एक दृष्टि से मिट जाते हैं। समर्पण केवल शब्द नहीं, यह जीवन की प्रस्तुति है।
2. **छोटी-छोटी कुरूपता पर गुरु की दया**: दयाराम जी की घटना बताती है कि गुरु हमारे अंदर छिपी कमजोरी को भी समझ लेते हैं — और वे हमें हमारी ही भक्ति के कारण सम्हाल लेते हैं। वे न्याय नहीं करते जैसी दुनिया करती है; वे प्रेम से देखते हैं और सुधार का अवसर देते हैं।
3. **नन्हे के मासूम भाव की गहराई**: बच्चे की तस्वीर को दाढ़ी में कंघी करना, यह एक भक्ति का स्वरूप था — और यह दिखाता है कि सच्ची भक्ति मुहावरे से परे है; वह सहज, प्राकृतिक और अनजान होती है। गुरु सहज ही ऐसे भावों को पहचान लेते हैं और उसका उत्तर प्रदान करते हैं।
4. **प्रायोगिक रूप से सुरक्षा और परमार्थ**: करोड़पति का किस्सा बताता है कि सेवा और संगत केवल धार्मिक क्रिया नहीं — यह वास्तविक सुरक्षा और जीवनदायक उपाय भी बन सकती है। गुरु की योजना हमारे जीवन के भौतिक एवं आध्यात्मिक पक्ष दोनों को संवारती है।
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# # कुछ प्रश्न जो आपके मन में आ सकते हैं (और उनके उत्तर)
**क्या हर भक्त को ऐसे चमत्कार मिलते हैं?**
नहीं, गुरु की कृपा का स्वरूप हर किसी के लिए अलग होता है। कभी-कभी वह चुपचाप मार्ग दिखाती है, कभी बड़ी घटनाओं के माध्यम से, और कभी हमारे अंदर परिवर्तन करके। चमत्कार का अर्थ केवल भौतिक परिवर्तन नहीं; कई बार दिल का परिवर्तन ही सबसे बड़ा चमत्कार होता है।
**अगर मैं भी सत्संग और सेवा में जुड़ना चाहता/चाहती हूँ, तो कहाँ से शुरू करूँ?**
साध संगत में नियमित सत्संग सुनना, सेवा में हाथ बँटाना, और अपने भीतर श्रद्धा विकसित करना — ये तीन प्राथमिक कदम होते हैं। सतगुरु के नाम का सिमਰਨ, मन का निवेदन और सेवा के छोटे-छोटे कर्म आपको मार्ग पर आगे बढ़ाते हैं।
**क्या गुरु हमारी हर कमी दूर कर देंगे?**
गुरु हमारी रक्षा करते हैं, पर उनका स्वरूप ऐसा है कि वे हमें वही देते हैं जो हमारे हित में सर्वोत्तम है। कभी-कभी हमें जो क्षति समझ आ रही है, वही हमारे जीवन को दीर्घकालिक सुरक्षा देती है। गुरु हमारे कर्मों और हमारे हृदय का न्याय करते हैं और उसी अनुरूप मार्ग दिखाते हैं।
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# # व्यक्तिगत चिंतन — मेरे/हमारे लिए यह क्या मायने रखता है
यह सब कहानियाँ केवल घटनाएँ नहीं; वे हमें यह स्मरण कराती हैं कि जीवन में जब कुछ नाकाम लगे, जब आँसू बहने लगें, तब सतगुरु की ओर पूर्ण समर्पण ही वह उपाय है जो हमें स्थिरता, शांति और आशा दे सकता है। इन उपाख्यानों से मुझे/हमें यह सीख मिलती है कि:
* हर परिस्थिति पर मानसिक रूप से हावी न हो — हम केवल कोशिश कर सकते हैं, निर्णय अन्ततः गुरु की मर्ज़ी में होते हैं।
* सेवा केवल निष्पक्ष कर्म नहीं — यह हमारे जीवन की ढाल है, जिससे विपत्ति भी टल सकती है।
* कभी-कभी हमें अपने अंदर की छोटी-छोटी भावनाओं को गुरु के पास खोल देना चाहिए — वे उसे सुन लेते हैं।
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# # अंततः — श्रद्धा, धन्यवाद और एक अनुरोध
साध संगत, दीपावली के इस पावन अवसर पर हम सब एक बार फिर यह प्रण लें कि हम सेवा को, सत्संग को और गुरु के नाम के सिमरन को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाएँगे। इन चार घटनाओं ने जो संदेश दिया, वह यह है कि विश्वास से बड़ा कोई चमत्कार नहीं। गुरु की दया अपरम्पार है — पर उसे पाने का मार्ग सरल है: सच्ची श्रद्धा, नियमित सेवा और समर्पण।
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दिवाली की पुनः हार्दिक शुभकामनाएँ। राधास्वामी जी की सियाराम कृपा आप सब पर बनी रहे — जीवन के हर सुहाने और कठिन समय में उनका आशीर्वाद आपकी ढाल बने।
राधास्वामी जी — एक बार फिर दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।