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 # राधास्वामी संगत के नाम — दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ और चार सच्ची घटनाएँ जो विश्वास बदल देंगीसाध संगत जी, सबसे पहले...
21/10/2025

# राधास्वामी संगत के नाम — दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ और चार सच्ची घटनाएँ जो विश्वास बदल देंगी

साध संगत जी, सबसे पहले आप सभी को दीपावली की बहुमूल्य और स्नेहिल हार्दिक शुभकामनाएँ। यह पर्व रोशनी, प्रेम और परमात्मा की दया का प्रतीक है। पर सच्ची रोशनी वही है जो भीतर जलती है — वह विश्वास, श्रद्धा और गुरु की महिमा का प्रकाश। आज मैं आप सबके साथ चार ऐसी सच्ची घटनाएँ बाँट रहा/रही हूँ जो हाल ही में कोलकाता के भंडारे और डेरे पर घटीं — घटनाएँ जो हमारी समझ से परे, परन्तु अनुभव की गहराई में सत्य होती हैं। ये किस्से केवल घटनाएँ नहीं, वे आत्मा को झकझोर देने वाली गाथाएँ हैं — उन पलों की गवाही जहाँ सतगुरु की महिमा ने हर शक को, हर संशय को चूर कर दिया।

कृपया ध्यान से सुनिए और पढ़िए — ये सब सच हैं, यही शब्द-साक्ष्य हैं — और मेरा विश्वास है कि इन घटनाओं को पढ़कर आपके हृदय में गुरु के प्रति श्रद्धा और गहरी हो जाएगी।

हमने अक्सर सुना है कि किसी के जीवन में अचानक चमत्कार हो गया; लोगों ने कहा कि किसी ने गुरु की कृपा पाई और सब कुछ बदल गया। कई बार हम खुद भी ऐसे लम्हे देखते हैं — छोटी-सी उम्मीद जिससे बड़े-बड़े दुःख समाप्त हो जाते हैं, एक क्षण में बरसों की मुश्किलें हल हो जाती हैं। पर जब यही बातें हमारे सामने, हमारी अपनी संगत के बीच घटित हों, तो वह अनुभव अलग ही स्तर पर प्रभाव डालता है। यही बातें आज मैं आपके समक्ष लेकर आया/आई हूँ — चार सच्ची घटनाएँ, चार परिवार, और एक-एक ऐसा पल जिसने उनकी संपूर्ण दिशा बदल दी।

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# # घटना 1 — वह नन्हा बच्चा जो बोलना सीख गया (कोलकाता भंडारा, 19 तारीख)

यह पहला किस्सा है — एक छोटे से परिवार का, जो नियमित सत्संग सेवा में लगा रहता है। माता-पिता दोनों सेवाकार्य में होते हैं। उनका बेटा बहता-खेलता, खुशमिज़ाज सा दिखता — पर उस बच्चे के जीवन में एक क्षोभ था: वह जन्म से ही बोल नहीं पा रहा था। माता-पिता ने शहर के कई डॉक्टरों के पास भटकते हुए इलाज करवाया — मगर कोई ठोस नतीजा नहीं मिला। अंततः एक विशेषज्ञ ने ऑपरेशन की सलाह दी — जिसमें 80 से 90% सफलता बताई गई — पर खर्च इतना था कि सामान्य वेतन पर रहने वाले दम्पत्ति के बस की बात नहीं थी। डॉक्टर ने 2 से 3 लाख रुपये का जिक्र किया; एक मजदूरी या फैक्ट्री की तनख्वाह पर रहने वाले माता-पिता के लिए यह राशि असंभव सी थी।

जरूरत — उम्मीद — और फिर असमर्थता। उन रातों की खामोशी, उन दिनों की थकान — यह सब किसी भी माता-पिता के लिए समझने योग्य है। पर यह परिवार डेरे से जुड़ा हुआ था, वे सत्संग के सच्चे अनुयायी थे; पीढ़ियों से बाबा जी की शरण में। उन्होंने सबसे आखिर में अपने हाथ सिर पर रखकर कहा — “सतगुरु, यह तेरा बच्चा है, जो भी तेरा इरादा होगा, वही मंजूर है।” यह पूरी समर्पण की भावना थी — तन-मन से गुरु को सौंप देना — और इसी समर्पण का फल अगली सुबह देखने को मिला।

सत्संग का दिन था। शनिवार को हुजूर जी ने ओपन कार दर्शन दिए थे। दर्शन के बाद जैसे ही संगत बाहर निकली, वही बच्चा अपने पिता के साथ खड़ा था। पिता ने उसे सेवा पेटी में कुछ डालने के लिए भेजा — बच्चा गया और सेवा की छोटी-सी क्रिया कर लौट आया। पिता ने भीतर-ही-भीतर गुरु से प्रार्थना की — “हे मेरे सतगुरु, यह तेरा बच्चा है; इसे बोलने की शक्ति दिजिए।” परिवार ने प्रसादी ली, मेहनत की, रात को थककर सो गए। सबने सुबह 4 बजे का अलार्म लगाया था।

पर सुबह का चमत्कार अलार्म से पहले हुआ। सभी अचानक किसी आवाज़ से जागे — और जिसे देखकर उनकी साँसें थम-सी गईं — वही बच्चा बोल रहा था। नन्हे-से होंठों से पहली बार शब्द निकले — “बाबा जी” — और फिर और भी शब्द। माता-पिता की आँखों से जो आँसू निकले, वे शब्दों में बयान नहीं किये जा सकते। सालों की निराशा, दर्द और अनिश्चितता का एक ही क्षण में विस्फोट हो गया — और वह विस्फोट प्रेम और कृतज्ञता के आँसुओं में बदल गया। उन्होंने जमीन पर माथा टेका और सतगुरु को धन्यवाद दिया। वही ऑपरेशन जो डॉक्टर्स के अनुसार अनिश्चित परिणाम दे सकता था, बाबा जी की एक दृष्टि और दया से एक क्षण में सम्भव हो गया।

यह घटना हमें क्या सिखाती है?

* विश्वास का अर्थ केवल शब्दों तक सीमित नहीं होता — यह समर्पण के साथ जीवन देना है।
* गुरु की कृपा अनपेक्षित रास्तों से आती है; मानव योजना सीमित है, पर पराक्रमी गुरु की मरज़ी से सब कष्ट मिटते हैं।
* सेवा और भक्ति का फल कभी भी देरी से नहीं मिलता — वह सही समय पर आता है, पर अक्सर हमारी समझ से परे तरीके से।

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# # घटना 2 — ₹200 का उधार और गुरु की अंतःदृष्टि (दिल्ली के दयाराम जी)

दूसरी घटना छोटी सी लगती है — पर अर्थ में बेहद भारी। दयाराम जी, दिल्ली के एक बैंक के ईमानदार कैशियर — नाम दान किए हुए लगभग 18-19 साल के। वे हमेशा सेवा में लगे रहते थे और सत्संग के नियमित अनुयायी थे। उनकी जिम्मेदारी रात में शाखा का कैश लेकर मुख्य ब्रांच जमा करवाना था; उन्हें गाड़ी, ड्राइवर और सुरक्षा गार्ड दिया गया था। एक दिन जब वे उसी ड्यूटी पर जा रहे थे, तब कनॉट प्लेस के पास उनकी नज़र एक कार पर पड़ी — और उनका हृदय एक ही नाम से भर गया — “यह बाबा जी की कार है।” उन्हें लगा — कल्याण है, दर्शन मिलेंगे। पर ड्यूटी की जिम्मेदारी थी, और वे अनिदेशक स्थिति में नहीं जा सकते थे। वहाँ पर मन में एक चाल आई — “मैं ड्राइवर से कह दूँ कि सामने वाली गाड़ी वाले ने मुझसे ₹200 उधार लिये थे — मैं बस 5 मिनट लेकर आता हूँ।” यह छोटी सी बात सच बोलने के लिए नहीं थी — पर अंदर की तीव्र इच्छा ने झूठ बोलने को प्रेरित किया। उन्होंने मन ही मन क्षमा माँगी और छोटा सा झूठ बोलकर ड्राइवर से गाड़ी रोका।

वे गुरु की गाड़ी के पास गए — और उनका धैर्य, भक्ति और इंतज़ार — सब कुछ एक ही पल में पुरस्कृत हुआ। बाबा जी गाड़ी से बाहर आए और हँसते हुए बोले — “भाई, अपने ₹200 तो लेकर जाओ जो मैंने तुमसे पहले उधार लिए थे।” दयाराम जी का मन भर आया; वे वहीं फूट-फूट कर रो पड़े। वे समझ गए कि गुरु ने उनकी अंतरात्मा की बात सुनी — जो शब्दों में कही तक नहीं गई थी। भीतर के भाव, उनके छोटी-सी कमजोरी, उनकी तीव्र लालसा — सब गुरु ने जान लिया और उसी एक क्षण में सच्चाई घोषित कर दी।

इस घटना का संदेश:

* सतगुरु को हमारे मन के छोटे-से छोटे विचारों की जानकारी होती है। वे हमारी स्पष्ट और अस्पष्ट दोनों आवाज़ें सुनते हैं।
* कभी-कभी हम छोटे-छोटे मिथ्या कर्म करते हैं — पर जब उनकी जड़ प्रेम और गुरु-प्राप्ति की तीव्र इच्छा हो, तो गुरु उनकी दुर्बलताओं को भी समझते हैं और दिल से क्षमा करते हैं।
* भगवान का रूप वही है जो हमारे सबसे गुप्त मनोभाव को भी समझता है; हमें शर्मिंदा होने के बजाय अपने दिल को गुरु के आगे खोल देना चाहिए।

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# # घटना 3 — नन्हे के बालों में दाढ़ी की कंघी — गुरु की अनंत दृष्टि

तीसरी घटना एक छोटे बच्चे की मासूम आदत से जुड़ी है। एक छोटे से तीन-चार साल के बच्चे की प्रतिदिन की छोटी सी परंपरा थी — वह अपने सारे खिलौने छोड़कर बाबा जी की तस्वीर लेकर उसे गोद में बिठाता और दाढ़ी में कंघी चलाता। माँ ने कभी किसी को यह आदत बतायी ही नहीं — यह सिर्फ माँ और बच्चे के बीच की निजी बात थी। पर एक दिन जब माँ अपने बच्चे के साथ सत्संग सुनने डेरे आई, तो सत्संग के बाद जब पंडाल में बच्चे को लेने गयी, तो देखा कि बाबा जी स्वयं नन्हे को गोद में उठा कर प्यार से बोले — “क्यों भाई, आज मेरी दाढ़ी में कंघी नहीं चलाएगा?” माँ चौंक गई। वह आश्चर्य और भावुकता से भर गयी — जो बात उसके बच्चे के भीतर थी, जिसे किसी ने नहीं देखा, वह बाबा जी को कैसे ज्ञात हुई?

यह किस्सा सबको भावविह्वल कर गया। वहाँ का माहौल एक सन्नाटे सा भावुक हो गया — यह ज्ञान कि गुरु केवल हमारे कर्मों को ही नहीं, बल्कि हमारे ह्रदय की सूक्ष्मतम भाषा को भी समझते हैं, सबको झकझोर गया।

इस घटने से मिलती शिक्षा:

* गुरु की दृष्टि ऐसी है जो वर्तमान क्रियाओं और अतीत स्मृतियों के गर्भ में रेंगती भावनाओं तक पहुँचती है।
* बच्चे की सरलता और श्रद्धा ने गुरु के हृदय तक मार्ग खोल दिया — यही सच्ची भक्ति है, जितनी सरल उतनी प्रभावी।
* हमारी छोटी-छोटी बातें, हमारी निजी श्रद्धा भी गुरु तक पहुँचती है — इसलिए कोई भी भाव छोटा नहीं।

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# # घटना 4 — करोड़पति का घर डाका पड़ा पर परिवार बचा (डेरे में सेवा की रक्षा)

चौथी और अंतिम घटना उस बड़े व्यवसायी से जुड़ी है जो करोड़ों का मालिक था। उसने अपने परिवार के साथ पहली बार डेरे की यात्रा की — केवल आधे दिन का विचार था, पर सेवा और संगत में इतना मन लगा कि वे रात भर डेरे में रुक गए। कई लोगों की तरह उसे भी वही शांति और संतोष मिला जो सेवा में आता है। पर अगले दिन सुबह उसे खबर मिली कि उसके घर पर डाका पड़ा — सब कुछ लूट लिया गया। पहली प्रतिक्रिया में उसकी आस्था हिल गयी — “मैंने सेवा की, फिर भी मेरा सब कुछ छीन लिया गया — यह कैसे गुरु की रक्षा है?” पर जब वह बाबा जी के पास गया और सारी बात बताई, बाबा जी ने बड़ी शांति से कहा — “बेटा, तुम्हारा नुकसान कम हुआ है। अगर तुम कल रात घर पर होते तो सिर्फ धन नहीं, तुम्हारे परिवार की जान भी खतरे में होती। पड़ोसी परिवार को देखा? वहाँ के लोग मारे गए।” सच में वही हुआ — जो डकैतों ने पड़ोसी घर में किया, वह वहां भयावहता थी: कुछ लोगों की हत्या कर दी गई थी। पर जिस परिवार का सदस्य डेरे में रुका था, वह बच गया। गुरु ने उन्हें वहीं रोक कर उनकी रक्षा की — और समय के साथ खोई हुई संपत्ति भी लौट आई। उस करोड़पति को अब गुरु पर और भी गहरी श्रद्धा हुई; वह नियमित सेवा में लगता रहा और जीवन की दिशा बदल गई।

इस घटना द्वारा मिलने वाली सीख:

* गुरु की रक्षा हमसे कहीं अधिक व्यापक होती है — वह केवल भौतिक चीज़ों को नहीं, हमारा जीवन बचाते हैं।
* सेवा और संगत हमारी ढाल बन सकती है — क्षणिक सेवा ही दूरगामी सुरक्षा बन जाती है।
* हम जो क्षति समझते हैं, अक्सर वह नाश नहीं बल्कि श्रेष्ठ योजना का हिस्सा होती है — गुरु की दृष्टि से कहीं गहरा भाव होता है।

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# # चारों घटनाओं का समेकित संदेश — गुरु की महिमा, सेवा, और विश्वास

इन चारों घटनाओं की जड़ एक ही चीज़ में निहित है — सतगुरु की अमर महिमा और संगत की सच्ची श्रद्धा। इन कहानियों से हमें जो पाठ मिलता है वह केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि बहुआयामी है:

1. **समर्पण का प्रभाव**: जब मन में पूरा समर्पण आता है — “यह तेरा बच्चा है, तुझ पर छोड़ दिया” — तब बीते वर्षों के दुख, असफल प्रयास, और भय भी गुरु की एक दृष्टि से मिट जाते हैं। समर्पण केवल शब्द नहीं, यह जीवन की प्रस्तुति है।

2. **छोटी-छोटी कुरूपता पर गुरु की दया**: दयाराम जी की घटना बताती है कि गुरु हमारे अंदर छिपी कमजोरी को भी समझ लेते हैं — और वे हमें हमारी ही भक्ति के कारण सम्हाल लेते हैं। वे न्याय नहीं करते जैसी दुनिया करती है; वे प्रेम से देखते हैं और सुधार का अवसर देते हैं।

3. **नन्हे के मासूम भाव की गहराई**: बच्चे की तस्वीर को दाढ़ी में कंघी करना, यह एक भक्ति का स्वरूप था — और यह दिखाता है कि सच्ची भक्ति मुहावरे से परे है; वह सहज, प्राकृतिक और अनजान होती है। गुरु सहज ही ऐसे भावों को पहचान लेते हैं और उसका उत्तर प्रदान करते हैं।

4. **प्रायोगिक रूप से सुरक्षा और परमार्थ**: करोड़पति का किस्सा बताता है कि सेवा और संगत केवल धार्मिक क्रिया नहीं — यह वास्तविक सुरक्षा और जीवनदायक उपाय भी बन सकती है। गुरु की योजना हमारे जीवन के भौतिक एवं आध्यात्मिक पक्ष दोनों को संवारती है।

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# # कुछ प्रश्न जो आपके मन में आ सकते हैं (और उनके उत्तर)

**क्या हर भक्त को ऐसे चमत्कार मिलते हैं?**
नहीं, गुरु की कृपा का स्वरूप हर किसी के लिए अलग होता है। कभी-कभी वह चुपचाप मार्ग दिखाती है, कभी बड़ी घटनाओं के माध्यम से, और कभी हमारे अंदर परिवर्तन करके। चमत्कार का अर्थ केवल भौतिक परिवर्तन नहीं; कई बार दिल का परिवर्तन ही सबसे बड़ा चमत्कार होता है।

**अगर मैं भी सत्संग और सेवा में जुड़ना चाहता/चाहती हूँ, तो कहाँ से शुरू करूँ?**
साध संगत में नियमित सत्संग सुनना, सेवा में हाथ बँटाना, और अपने भीतर श्रद्धा विकसित करना — ये तीन प्राथमिक कदम होते हैं। सतगुरु के नाम का सिमਰਨ, मन का निवेदन और सेवा के छोटे-छोटे कर्म आपको मार्ग पर आगे बढ़ाते हैं।

**क्या गुरु हमारी हर कमी दूर कर देंगे?**
गुरु हमारी रक्षा करते हैं, पर उनका स्वरूप ऐसा है कि वे हमें वही देते हैं जो हमारे हित में सर्वोत्तम है। कभी-कभी हमें जो क्षति समझ आ रही है, वही हमारे जीवन को दीर्घकालिक सुरक्षा देती है। गुरु हमारे कर्मों और हमारे हृदय का न्याय करते हैं और उसी अनुरूप मार्ग दिखाते हैं।

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# # व्यक्तिगत चिंतन — मेरे/हमारे लिए यह क्या मायने रखता है

यह सब कहानियाँ केवल घटनाएँ नहीं; वे हमें यह स्मरण कराती हैं कि जीवन में जब कुछ नाकाम लगे, जब आँसू बहने लगें, तब सतगुरु की ओर पूर्ण समर्पण ही वह उपाय है जो हमें स्थिरता, शांति और आशा दे सकता है। इन उपाख्यानों से मुझे/हमें यह सीख मिलती है कि:

* हर परिस्थिति पर मानसिक रूप से हावी न हो — हम केवल कोशिश कर सकते हैं, निर्णय अन्ततः गुरु की मर्ज़ी में होते हैं।
* सेवा केवल निष्पक्ष कर्म नहीं — यह हमारे जीवन की ढाल है, जिससे विपत्ति भी टल सकती है।
* कभी-कभी हमें अपने अंदर की छोटी-छोटी भावनाओं को गुरु के पास खोल देना चाहिए — वे उसे सुन लेते हैं।

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# # अंततः — श्रद्धा, धन्यवाद और एक अनुरोध

साध संगत, दीपावली के इस पावन अवसर पर हम सब एक बार फिर यह प्रण लें कि हम सेवा को, सत्संग को और गुरु के नाम के सिमरन को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाएँगे। इन चार घटनाओं ने जो संदेश दिया, वह यह है कि विश्वास से बड़ा कोई चमत्कार नहीं। गुरु की दया अपरम्पार है — पर उसे पाने का मार्ग सरल है: सच्ची श्रद्धा, नियमित सेवा और समर्पण।

यदि आपने यह कहानी पढ़कर कुछ भी महसूस किया — विश्वास में थोड़ी वृद्धि, मन में शांति, या हृदय में कोई प्रश्न — तो कृपया शेयर कीजिए। अपने अनुभव कमेंट में लिखिए: “राधास्वामी जी” — और अगर आपको ये बातें पसंद आईं तो हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलिए, ताकि और भी ऐसे जीवन-परिवर्तक प्रसंग हम आपके साथ साझा कर सकें।

दिवाली की पुनः हार्दिक शुभकामनाएँ। राधास्वामी जी की सियाराम कृपा आप सब पर बनी रहे — जीवन के हर सुहाने और कठिन समय में उनका आशीर्वाद आपकी ढाल बने।

राधास्वामी जी — एक बार फिर दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

21/10/2025

Radha Soami ji 🙏🙏

❤️❤️

 # 🌸 **“असली दिवाली – भीतर की रोशनी”  🌸****राधास्वामी जी प्यारी साध संगत जी 🙏**सबसे पहले, आप सभी को दीपावली के इस पावन प...
21/10/2025

# 🌸 **“असली दिवाली – भीतर की रोशनी” 🌸**

**राधास्वामी जी प्यारी साध संगत जी 🙏**
सबसे पहले, आप सभी को दीपावली के इस पावन पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
बाबा जी की कृपा आप सभी पर बनी रहे, और हर घर में सुख-शांति, प्रेम और आत्मिक प्रकाश का वास हो।

आज का यह सत्संग थोड़ा अलग है संगत जी…
क्योंकि आज बात केवल दीपावली की नहीं, बल्कि उस *सच्ची दिवाली* की है जो हमारे **भीतर** जलती है।
और साथ ही आज हम डेरे में हुए कुछ बड़े बदलावों के बारे में भी बात करेंगे — जिनका संबंध केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी बहुत गहरा है।

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# # 🌿 **डेरे में बड़ा बदलाव – बाबा जी का सोच-समझा निर्णय**

संगत जी, हाल ही में डेरे में एक ऐसा निर्णय लिया गया जिसने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
वह था — **ऊपरी गेट के पास बनी पुरानी कैंटीन का बंद होना**।

जो भाई-बहन लंबे समय से डेरे जाते हैं, वे जानते हैं कि डेरे में कुल चार मुख्य कैंटीनें थीं —
एक ऊपर की दिशा में, एक भाइयों की साइड में, तीसरी बीबियों वाले शेड की तरफ और चौथी सराय की ओर।

अब इनमें से जो **ऊपरी गेट के पास वाली कैंटीन** थी, उसे अब बंद कर दिया गया है।
यह वही स्थान था जहाँ से पुराने समय में संगत डेरे में प्रवेश किया करती थी।
बलसरा की तरफ़ से आने वाली संगत भी उसी गेट से आती थी।
याद है संगत जी, बचपन में जब हम ब्यास जाते थे, तो बस वहीं से अंदर जाते थे,
वहीं मोबाइल सेक्शन था, वहीं बस स्टैंड और वही कैंटीन — डेरे की पुरानी यादों का केंद्र।

लेकिन फिर बाबा जी ने एक दिन निर्णय लिया —
उन्होंने कहा, "ऊपरी हिस्सा अब खाली किया जाए। बस स्टैंड और गेट दोनों नीचे शिफ्ट किए जाएँ।"
क्योंकि आस-पास के गाँव वालों को भीड़ से असुविधा होती थी, और ट्रैफ़िक बढ़ रहा था।
इसलिए बाबा जी ने पूरी योजना बदल दी —
ऊपर की जगह पर **डेरे के स्थायी निवासियों के लिए क्वार्टर बनाए गए**,
और बस स्टैंड नीचे शिफ्ट कर दिया गया।

अब जो **कैंटीन नंबर 1** थी, वह **केवल स्थायी सेवादारों और निवासियों** के लिए खुली रहती है।
आम संगत के लिए वह अब बंद है।
वहां अब केवल वही जा सकते हैं जिनके पास **स्मार्ट कार्ड** है।

बाबा जी के हर फैसले के पीछे एक गहरी सोच होती है —
वह कभी किसी को असुविधा देने के लिए नहीं, बल्कि संगत की **भलाई और सुविधा** के लिए होते हैं।

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# # 🚌 **बस स्टैंड और गेटों का नया स्वरूप**

सालों पहले बस स्टैंड को नीचे स्थानांतरित कर दिया गया था।
पहले संगत ऊपर से प्रवेश करती थी, अब सब नीचे की दिशा से आते हैं।
मुख्य प्रवेश **गेट नंबर 5** से होता है —
और वहीं से आगे 6, 7, 8, 9 नंबर तक के शेड बने हैं जहाँ संगत ठहरती है।

अब पूरा डेरे का संचालन नीचे के क्षेत्र में केंद्रित है।
सत्संग भी वहीं होता है, लंगर भी, सेवा भी —
क्योंकि बाबा जी ने कहा था,

> “ऊपर की चढ़ाई में बुज़ुर्गों और संगत को कठिनाई होती है।
> इसलिए सारी सुविधाएँ नीचे केंद्रीकृत की जाएँ।”

बाबा जी के इस निर्णय ने न सिर्फ़ संगत की सुविधा बढ़ाई, बल्कि डेरे की व्यवस्था को और संगठित कर दिया।

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# # 🍽️ **एक स्वाद गया, दूसरा आया – कैंटीन में कुलचा छोले की शुरुआत**

संगत जी, आपने सुना होगा कि हाल ही में डेरे की एक कैंटीन में **कुलचा छोले** शुरू किए गए हैं।
पहले वहाँ **पाव भाजी** की प्लेट मिलती थी ₹60 में।
अब उसी जगह **कुलचा छोले** रखे गए हैं — और उनकी कीमत भी वही ₹60 है।

लोगों ने सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें भी साझा कीं,
और कहा — “अब डेरे में कुलचा मिलने लगा है!”

लेकिन बहुतों को यह नहीं पता कि यह बदलाव क्यों हुआ।
पहले पाव भाजी में जो पाव मिलते थे, वे मैदे से बनते थे।
अब जो कुलचे दिए जा रहे हैं, वे भी **मैदे के ही बने हैं**, न कि गेहूँ के।

तो जो संगत मैदा नहीं खाती, वे केवल **छोले** ले सकती हैं।
और हाँ — ये कुलचे **ब्रिटानिया पैक** में आते हैं।
एक पैक में पाँच कुलचे होते हैं।
लेकिन इन्हें घर ले जाना अनुमति नहीं —
क्योंकि बाबा जी का आदेश है कि **डेरे की कोई भी वस्तु या भोजन डेरे से बाहर नहीं ले जाया जा सकता।**

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# # 🪔 **बाबा जी की वाणी में दिवाली का अर्थ**

अब बात करते हैं आज की — **दीपावली की।**
कल 20 अक्टूबर को अधिकांश लोगों ने दीपावली मनाई,
और कुछ लोग आज 21 को भी मना रहे हैं।

लेकिन बाबा जी ने हमेशा कहा है —

> “दिवाली का असली संबंध हमारे भीतर की रोशनी से है,
> बाहर के दीपक तो केवल प्रतीक हैं।”

जब तक हम *भजन सिमरन* के द्वारा अपने भीतर के अंधकार को दूर नहीं करते,
तब तक हमारी दिवाली सच्चे अर्थों में “हैप्पी” नहीं हो सकती।

**हैप्पी दिवाली का मतलब क्या है?**
वही व्यक्ति सचमुच हैप्पी है, जो भीतर से शांत है,
जिसके मन में संतोष है, और जो मालिक की मौज में प्रसन्न है।

बाबा जी कहा करते हैं —

> “अगर भीतर का दीपक नहीं जलेगा,
> तो बाहर के हजारों दीये भी रोशनी नहीं दे सकते।”

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# # 🌼 **बड़े बाबा जी की साखी – सच्ची दिवाली**

संगत जी, एक बार बड़े बाबा जी के समय की बात है।
दिवाली के दिन बाबा जी ने डेरे में सभी सेवादारों को बुलवाया।
उन्होंने कहा,

> “आज दिवाली है, जो सेवादार अपने घर जाकर अपने परिवार के साथ त्योहार मनाना चाहें, जा सकते हैं।”

सभी सेवादार अपने बैग लेकर घर चले गए।
लेकिन दो सेवादार वहीं रुके रहे।

उन्होंने सोचा —

> “आज बाबा जी अकेले हैं,
> तो क्यों न हम बाबा जी के साथ ही दिवाली मनाएँ।”

वे दोनों बाबा जी के पास बैठ गए और रूहानियत पर चर्चा करने लगे।
उनका सवाल था —

> “बाबा जी, हमारे अंदर प्रकाश कब प्रकट होगा?”

बाबा जी मुस्कुराए और बोले —

> “बेटा, तुम गिनती क्यों करते हो?
> तुम्हारा काम है भजन सिमरन करना,
> और मालिक का काम है फल देना।”

दोनों ने आग्रह किया — “बाबा जी, आज ही कृपा कर दीजिए।”
बाबा जी ने कहा — “जैसे बैठे हो, वैसे ही मन को खाली करो और भजन सिमरन में बैठो।”

और संगत जी —
बाबा जी की कृपा से उनकी सूरत रूहानी मंडलों में पहुँच गई।
उन्होंने वह देखा जो आँखों से नहीं, आत्मा से देखा जाता है।
जब वे सामान्य अवस्था में लौटे,
तो उनकी आँखों से आँसू बह निकले।

वे बोले —

> “बाबा जी, आज हमारी सच्ची दिवाली हो गई।
> आज भीतर का प्रकाश जल उठा।”

बाबा जी मुस्कुराए और बोले —

> “बेटा, बाहर की दिवाली एक दिन की होती है,
> लेकिन भीतर की दिवाली अनंत होती है।
> जब आत्मा प्रभु के प्रकाश से भर जाती है,
> तब हर दिन दिवाली बन जाता है।”

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# # 🌺 **एक हँसी में छिपा गहरा संदेश**

एक और साखी है संगत जी —
एक दिन बाबा जी अपने सेवादारों के साथ बैठे थे।
अचानक वे ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे।
सब हैरान थे।

सेवादारों ने पूछा —

> “बाबा जी, किस बात पर हँस रहे हैं?”

बाबा जी बोले —

> “बीस साल पहले एक सत्संगी ने नाम दान लिया था।
> बहुत सेवा करता था, बहुत विनम्र था।
> नाम पाकर उसने कहा —
> ‘बाबा जी, अब सारी उम्र भजन सिमरन करूंगा।’
> पर फिर वह कभी वापस नहीं आया।”

फिर बाबा जी मुस्कुराए और बोले —

> “आज वही व्यक्ति मुश्किल में है।
> अब वो मुझे पुकार रहा है।”

सेवादारों ने कहा —

> “बाबा जी, क्या आप उसकी मदद करेंगे?”

बाबा जी की आँखों में ममता झलक उठी।
उन्होंने कहा —

> “बेटा, चाहे बेटा अपने बाप को याद करे या न करे,
> लेकिन एक सच्चा बाप अपने सबसे नालायक बेटे की भी संभाल करता है।”

यह सुनकर सबकी आँखें भर आईं।
बाबा जी ने जो बात कही, वह दिल को छू जाने वाली थी —

> “हम सब उसी राह पर हैं।
> जब तक सब ठीक रहता है, हम मालिक को भूल जाते हैं।
> और जब मुसीबत आती है, तब मालिक को याद करते हैं।”

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# # 💖 **भजन सिमरन – सच्चे मिलन की राह**

बाबा जी बार-बार समझाते हैं —

> “मालिक से मिलन केवल भजन सिमरन से ही संभव है।”

नाम दान लेकर हमने वचन दिया था कि हम रोजाना भजन सिमरन करेंगे।
लेकिन आज ज़्यादातर लोग उस वचन को भूल गए हैं।
हम सोचते हैं — “बाबा जी संभाल लेंगे।”
सच है, बाबा जी संभालते हैं —
पर हमारी तरफ़ से भी तो कोई कदम बढ़े!

संगत जी,
आज दिवाली के दिन हमें अपने आप से एक नया वादा करना चाहिए —
**“मैं रोज कुछ समय अपने मालिक को याद करने में बिताऊँगा।”**
चाहे हालात जैसे भी हों।
क्योंकि सच्चा सुख बाहर नहीं, भीतर है।

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# # 🌻 **उस सेवादार की कहानी – जिसने दुख माँगा**

अब एक और प्रेरणादायक प्रसंग —
एक सेवादार थे, बहुत समर्पित, बहुत भावुक।
हर रोज़ नियम से भजन सिमरन करते थे।
पर उनकी अरदास सुनकर सब हैरान हो जाते थे —
वे कहते —

> “हे मालिक, मुझे सदा दुख देना।”

संगत चकित रह जाती —
दुख कौन माँगता है?
जब सब सुख माँगते हैं, ये दुख क्यों?

एक दिन किसी ने पूछ ही लिया —

> “भाई जी, आप सुख क्यों नहीं माँगते?”

उन्होंने मुस्कुराकर कहा —

> “अगर मैं सुख माँगूंगा तो मालिक को भूल जाऊँगा।
> इंसान की फितरत है —
> जब दुख आता है, तब मालिक को याद करता है।
> जब सुख आता है, तब दुनिया में खो जाता है।
> इसलिए मैं दुख माँगता हूँ ताकि मालिक की याद बनी रहे।”

उनकी यह बात सुनकर सभी की आँखें नम हो गईं।
क्योंकि यही तो सच्ची भक्ति है —
जो हर हाल में मालिक को याद रखे।

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# # 🌞 **शुक्र – एक छोटा शब्द, बड़ी ताकत**

संगत जी,
हम मालिक से दुख न माँग सकें, तो भी इतना कर सकते हैं —
हर हाल में “**शुक्र**” कहना न छोड़ें।

शुक्र – यह छोटा सा शब्द, लेकिन बहुत गहरी शक्ति रखता है।
जब इंसान अच्छे दिनों में भी “शुक्र” कहता है,
तो वही दिन स्थाई हो जाते हैं।
और जब बुरे दिनों में “शुक्र” कहता है,
तो वह दिन हल्के हो जाते हैं।

बाबा जी कहा करते हैं —

> “समय कभी एक सा नहीं रहता।
> सूरज हर दिन डूबता है,
> पर अगली सुबह फिर निकलता है।”

बस विश्वास रखो, धैर्य रखो,
और मालिक की मौज में रहो।

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# # 🌸 **भीतर की दिवाली – आत्मा का जागरण**

संगत जी,
हम हर साल दीप जलाते हैं,
घर सजाते हैं, मिठाई बाँटते हैं,
पर अपने *भीतर के दीपक* को जलाना भूल जाते हैं।

बाबा जी कहते हैं —

> “जब आत्मा प्रभु के प्रकाश से भर जाती है,
> तब हर दिन हमारे लिए दिवाली होती है।”

वह प्रकाश बाहर के दीपों से नहीं,
भजन सिमरन से जलता है।
उस प्रकाश में न कोई बिजली जाती है,
न दीया बुझता है,
वह अनंत ज्योति है — जो केवल भीतर जलती है।

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# # 💫 **आज का प्रण**

तो संगत जी, आज दिवाली के इस शुभ अवसर पर
आइए अपने आप से एक प्रण लें —

✨ चाहे हालात जैसे भी हों,
मैं रोज कुछ समय मालिक को याद करने में बिताऊँगा।

✨ मैं भजन सिमरन के समय को अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाऊँगा।

✨ मैं हर हाल में “शुक्र” कहना नहीं भूलूँगा।

✨ और जब भी मन डगमगाएगा, मैं याद रखूँगा —
कि मेरा मालिक हमेशा मेरे साथ है।

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# # 🕊️ **समापन संदेश**

संगत जी,
दिवाली की असली रोशनी बाहर नहीं,
हमारे भीतर है।
और उस रोशनी तक पहुँचने का रास्ता सिर्फ़ एक है —
**भजन सिमरन**।

बाबा जी की वाणी हमें यही सिखाती है —

> “जब तक भीतर का दीपक नहीं जलता,
> तब तक बाहर के दीप हमें शांति नहीं दे सकते।”

तो आइए, इस दिवाली अपने भीतर वह दीप जलाएँ।
अपने भीतर की अंधकार मिटाएँ।
मालिक की याद में जिएँ,
हर हाल में शुक्र कहें,
और अपनी आत्मा को उस अनंत ज्योति से जोड़ें।

**राधास्वामी जी 🌼**
संगत जी, अगर आपको यह सत्संग पसंद आया हो,
तो कमेंट में “**राधास्वामी जी 🙏**” ज़रूर लिखिए,
और इस संदेश को आगे शेयर करने की सेवा निभाइए।

✨ मालिक सब पर अपनी रहमत बनाए रखें।
✨ हर दिल में भक्ति का दीप जले।
✨ हर जीवन में शांति और प्रेम का प्रकाश फैले।

*राधास्वामी जी 🙏💖**

**🌸 गुरु प्यारी साध संगत जी – कोलकाता सत्संग 19 अक्टूबर 🌸**संगत जी, आज हजूर जी ने 10 मिनट पहले ही स्टेज पर आकर सत्संग की...
21/10/2025

**🌸 गुरु प्यारी साध संगत जी – कोलकाता सत्संग 19 अक्टूबर 🌸**

संगत जी, आज हजूर जी ने 10 मिनट पहले ही स्टेज पर आकर सत्संग की शुरुआत की। ठीक 9:30 बजे हजूर जी ने आरंभ किया और वही वाणी ली, जिस पर स्वामी जी महाराज अक्सर सत्संग फरमाते थे।

हजूर जी ने सबसे पहले उस वाणी को समझाया –
*“मित्र तेरा कोई नहीं संग में क्यों पड़ा सोवे इस ठगयन में।”*

यह सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि गहरी चेतावनी थी। स्वामी जी हमें जगा रहे हैं। झकझोर रहे हैं कि इस संसार में कोई भी सच्चा साथी नहीं है।

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**💖 संतों का प्रेम और चेतावनी**

हजूर जी ने बताया कि संत महात्मा हमेशा प्रेम से हमें सही राह दिखाते हैं। कभी स्नेह से समझाते हैं, तो कभी चेतावनी देकर हमारी आंखें खोलते हैं।

आज इंसान गहरी नींद में सोया है – यह नींद अज्ञानता की है। जो व्यक्ति संसार की सच्चाई नहीं पहचानता, वह असल में जागा हुआ नहीं है। हम इस दुनिया में अकेले आए हैं और अंत में अकेले ही लौटेंगे।

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**👫 सच्चा मित्र कौन है?**

हजूर जी ने समझाया – सच्चा मित्र वो होता है जो हर सुख-दुख में हमारे साथ खड़ा रहे। जीवन के अंतिम क्षण तक साथ निभाए।

जीवन में कई दोस्त आते हैं। लेकिन कौन ऐसा है जो अंतिम सफर तक साथ रहेगा?

हमारे सबसे नजदीकी रिश्ते भी अस्थायी हैं। शरीर ही हमारा सबसे बड़ा साथी है, लेकिन एक दिन यह भी थककर हमें छोड़ देता है। जब शरीर साथ नहीं देता, तो बाकी रिश्ते कैसे निभ सकते हैं?

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**🌊 रिश्ते नदी की लहरों जैसे हैं**

हजूर जी ने महाराज जी की वाणी दोहराई –
*"जैसे लहरें आती हैं और जोड़ देती हैं, फिर अगली लहर हमें उनसे अलग कर देती है। यही संसार का नियम है।"*

मिलना और बिछड़ना – सब कर्मों के प्रभाव पर निर्भर करता है। यही कारण है कि अंत समय में कोई भी स्थायी साथी नहीं होता।

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**💔 मोह और अपेक्षाएं**

आज प्रेम की जगह मोह और अपेक्षाएं रह गई हैं। बेटा पिता से उम्मीद करता है, पिता बेटे से अपेक्षा। सास सोचती है कि बहू घर का सहारा बनेगी, बहू सोचती है कि सास उसे बेटी की तरह प्यार देगी।

जब ये अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं, तो दिलों में दूरी और दुख पनपते हैं। यही दुनिया का सच है।

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**🔥 मीठे ठग और चेतावनी**

स्वामी जी महाराज ने कहा कि तीन तरह के लोग हमें लूटते हैं – डाकू, चोर और ठग।
डाकू बंदूक की नोक पर लूटता है।
चोर अंधेरे में चुरा लेता है।
ठग मीठी बातों से हमें भटका देते हैं।

आज दुनिया के मीठे ठग हमें मोह और लालच में उलझा देते हैं। इसलिए संत हमें चेतावनी देते हैं – *जागो!*

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**🕊 असली साथी – नाम और सतगुरु**

हजूर जी ने समझाया कि असली साथी वही है जो हमारे भीतर का नाम है, जो सतगुरु ने दिया है।

संगत जी, नाम केवल अक्षर नहीं है। यह वह शक्ति है जो हमें परम चेतना से जोड़ती है। नाम हमेशा रहेगा, नश्वर नहीं।

*"नामो उपजे, नामो बिसे – नाम से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई। नाम में ही सब कुछ विलीन होगा।"*

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**🌟 सत्संग की महिमा**

हजूर जी ने बताया कि सत्संग केवल सुनना पर्याप्त नहीं। असली परिवर्तन तब आता है जब हम उन बातों को अपने जीवन में जीना शुरू करते हैं।

सत्संग उस ठंडी छांव की तरह है जो जीवन की तपती धूप से राहत देती है। लेकिन केवल छांव में सुख लेना पर्याप्त नहीं। जो ज्ञान, जागृति और प्रेरणा मिले, उसे अपने जीवन में उतारना ही असली सत्संगी धर्म है।

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**💎 ज्ञान और अनुभव का अंतर**

हजूर जी ने उदाहरण दिया –
किसी अनजान रास्ते पर जाना हो और भारी बारिश हो रही हो। दो लोग हैं – एक ने किताबों में पढ़ा, दूसरा खुद वहां गया। किसके साथ चलना पसंद करेंगे?

बिलकुल, उस इंसान के साथ जिसने राह खुद तय की हो। यही फर्क है जानने और जीने में।

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**🙏 कृतज्ञता की ताकत**

हजूर जी ने फकीर की कथा सुनाई – अमीर आदमी और गरीब। अमीर कहता है – अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए। गरीब कहता है – मुझे कुछ मिला ही नहीं।

अमीर कृतज्ञ है, उसकी झोली भरी रहती है। गरीब शिकायत करता है, उसकी झोली खाली रहती है। यही कृतज्ञता की ताकत है।

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**💰 धन, मोह और संतोष**

धन जीवन की जरूरतें पूरी कर सकता है, लेकिन मन की शांति नहीं। असली सुख केवल आत्मा की पहचान में है।

हजूर जी ने स्पष्ट किया कि पैसा कमाना पाप नहीं, लेकिन मेहनत और ईमानदारी जरूरी है। गलत तरीके से कमाया धन कभी सच्चा सुख नहीं देता।

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**🌀 जीवन का असली उद्देश्य**

हजूर जी ने कहा – मनुष्य का जन्म का असली उद्देश्य है आत्मबोध। अपनी आत्मा की पहचान करना। संसार की चमक-धमक में उलझकर हमने इसे भूल लिया है।

धन, शोहरत और पद की दौड़ में हम अपनी असली पहचान खो बैठे हैं।

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**🌈 निष्कर्ष – सच्चा सत्संगी**

संगत जी, आज हजूर जी ने हमें स्पष्ट किया – जीवन का असली साथी नाम है। संसार के रिश्ते अस्थायी हैं। सत्संग और नाम ही हमारे जीवन का मार्गदर्शन करते हैं।

सत्संग केवल सुनना पर्याप्त नहीं, उसे अपने जीवन में उतारना जरूरी है। ज्ञान और अनुभव का मेल ही जीवन बदलता है।

राधा स्वामी जी संगत, इस संदेश को अपने हृदय में उतारें। इसे पढ़ते ही महसूस करें और अपने जीवन में अमल करें।

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राधा स्वामी जी 🙏 🙏

**कोलकाता सत्संग – हजूर जी के साथ हुए भावपूर्ण सवाल-जवाब का विस्तृत वर्णन**परम सतयुग योग गुरु प्यारी साध संगत जी, राधा स...
21/10/2025

**कोलकाता सत्संग – हजूर जी के साथ हुए भावपूर्ण सवाल-जवाब का विस्तृत वर्णन**

परम सतयुग योग गुरु प्यारी साध संगत जी, राधा स्वामी जी 🙏
आज हम आपके लिए लेकर आए हैं — कोलकाता में आज सुबह हुए हजूर जी के साथ हुए सवाल-जवाब का भावपूर्ण और प्रेरणादायक वर्णन। इस सत्संग का वातावरण प्रेम, श्रद्धा और आनंद से भरा हुआ था। पंडाल खचाखच भरा हुआ था, और हर चेहरा उत्सुक था कि आज हजूर जी के शब्दों में क्या कृपा की बूँदें बरसेंगी।

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# # # 🌸 प्रारंभिक सत्संग

हजूर जी की उपस्थिति में सबसे पहले पाठी साहब ने लगभग तीस मिनट का सत्संग फरमाया। उनके सत्संग के बाद बच्चों ने दो मधुर शब्द गाए —

1. **“तुम शरणाई आया ठाकुर तुम शरणाई आया”**
2. **“मैं तो प्रेम दीवानी मेरा दर्द न जाने कोई”**

इन शब्दों ने पूरे पंडाल का वातावरण एकदम पवित्र कर दिया। हर कोई मौन होकर बस सुन रहा था, मानो शब्दों में खुद मालिक का स्पर्श हो।

इसके बाद हजूर जी मंच पर पधारे और संगत के साथ सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हुआ। आज बाबा जी उपस्थित नहीं थे, क्योंकि जैसा कि पहले बताया गया था — बाबा जी इन दिनों लंदन में हैं।

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# # # 🙏 पहला प्रश्न – पंडितों का सम्मान बाहर, पर घर में नहीं

एक भाई ने पूछा, “हजूर जी, मंदिरों के पंडितों या पुरोहितों को घर में सम्मान नहीं मिलता, लेकिन बाहर सब उनकी इज्जत करते हैं, ऐसा क्यों?”

हजूर जी मुस्कुराए और बोले,
**“बेटा, हमारा काम किसी की परख करना नहीं है। हमें दूसरों को देखकर निर्णय नहीं लेना चाहिए। हमें अपने अंदर झाँकना है — हम क्या कर रहे हैं, हमारा ध्यान कहाँ है। जिस मार्ग को अपनाना है, वह अंदर का मार्ग है। भजन-सिमरन और आत्म-खोज ही सच्चा कर्म है। दूसरों की तुलना करने से हमारा मन अशांत होता है। जो भीतर देखना सीख लेता है, वही शांति पाता है।”**

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# # # 💖 दूसरा प्रश्न – नाम और प्रेम का रहस्य

एक लड़की ने पूछा, “हजूर जी, सत्संग में अक्सर कहा जाता है *‘गॉड इज़ लव एंड लव इज़ गॉड।’* क्या नाम और प्रेम अलग-अलग हैं या एक ही?”

हजूर जी ने अत्यंत सौम्य स्वर में कहा,
**“बेटा, प्रेम ही नाम की धारा का हिस्सा है। नाम तक पहुँचने का मार्ग प्रेम से होकर गुजरता है। जिन्हें सच्चा प्रेम हुआ, वही प्रभु तक पहुँचे। प्रेम ही वह पुल है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है। बिना प्रेम के नाम अधूरा है। इसलिए कहा गया है — *गॉड इज़ लव एंड लव इज़ गॉड।*”**

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# # # 🙇 तीसरा प्रश्न – बाबा जी से यदि प्रश्न पूछने का अवसर मिले

किसी बहन ने मुस्कुराते हुए पूछा, “हजूर जी, अगर आपको बाबा जी से सवाल करने का मौका मिले, तो आप क्या पूछेंगे?”

हजूर जी ने अत्यंत विनम्रता से कहा,
**“मेरी क्या हैसियत है कि मैं बाबा जी से सवाल पूछ सकूँ? मैं बस वही करता हूँ जो वो आदेश दें। मैं तो उनका छोटा सा सेवक हूँ।”**
यह सुनकर पूरा पंडाल कुछ क्षणों के लिए मौन हो गया — वातावरण में गहरा भाव छा गया।

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# # # 🕉 चौथा प्रश्न – मृत्यु से पहले नामदान न मिले तो क्या होगा?

एक लड़की ने पूछा, “यदि किसी को 25 वर्ष की उम्र से पहले नामदान न मिले और उसकी मृत्यु हो जाए, तो क्या होगा?”

हजूर जी ने समझाया,
**“बेटा, आना-जाना पहले से तय होता है। कर्म खत्म होते ही मालिक आत्मा को वापस बुला लेते हैं। नामदान सिर्फ शुरुआत है, मालिक तो हर पल हमारे साथ है। नामदान हमें उस रिश्‍ते की पहचान कराता है जो पहले से मौजूद है।”**

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# # # 🕊 पाँचवाँ प्रश्न – बाबा जी क्यों नहीं आए?

एक भाई ने पूछा, “हजूर जी, बाबा जी आज क्यों नहीं आए?”
हजूर जी मुस्कुराए —
**“बेटा, यह सब बाबा जी की मौज है। वो कब कहाँ जाएँ, यह उन्हीं की इच्छा है। मैं तो उनका सेवक हूँ, उनके आदेश से ही चलता हूँ।”**

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# # # 💰 छठा प्रश्न – सच्चा धनतेरस क्या है?

एक युवक बोला, “हजूर जी, आज धनतेरस है, और मैं आपके दर्शन से बहुत खुश हूँ।”

हजूर जी ने कहा,
**“सच्चा धनतेरस वह है जब हम नाम का धन कमाएँ। सोना-चाँदी तो मिट्टी है, पर नाम का धन अमर है। वही सच्चा खज़ाना है जो आत्मा को मुक्त करता है।”**

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# # # 📱 सातवाँ प्रश्न – मोबाइल और सोशल मीडिया

एक बहन ने पूछा, “आजकल लोग मोबाइल में ही डूबे रहते हैं, इस पर आपका क्या विचार है?”

हजूर जी बोले,
**“बेटा, मोबाइल ज़रूरत है, पर हम उसे आदत बना चुके हैं। जितनी आवश्यकता हो उतना ही प्रयोग करो। अगर समय सारा मोबाइल में जाएगा, तो सिमरन के लिए क्या बचेगा? संयम से उपयोग करना ही समझदारी है।”**

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# # # 👨‍👩‍👧 आठवाँ प्रश्न – माता-पिता की चिंता

एक बहन ने कहा, “हजूर जी, मेरे माता-पिता हमेशा चिंतित रहते हैं। मैं क्या करूँ?”

हजूर जी ने उत्तर दिया,
**“बेटा, माता-पिता की चिंता प्रेम का रूप है। वे हमेशा अपने बच्चों की भलाई चाहते हैं। जब तुम जिम्मेदार, समझदार और सच्चे बनोगे, तो उनकी चिंता अपने आप मिट जाएगी।”**

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# # # 🌀 नवाँ प्रश्न – 84 लाख योनियों का रहस्य

किसी बहन ने पूछा, “हजूर जी, 84 लाख योनियों का क्या अर्थ है?”

हजूर जी ने समझाया,
**“मालिक ने 84 लाख योनियाँ बनाई हैं, जिनमें मानव जीवन सबसे ऊँचा है। इसी जीवन में मुक्ति संभव है। इसलिए इसे व्यर्थ न जाने दो। यही अवसर है इस जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने का।”**

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# # # 📚 दसवाँ प्रश्न – पढ़ाई और सेवा में संतुलन

एक युवक ने पूछा, “हजूर जी, पढ़ाई पर ध्यान दें या सेवा पर?”

हजूर जी ने कहा,
**“बेटा, जब पढ़ाई का समय है तो पढ़ाई करो, जब सेवा का समय है तो सेवा करो। संतुलन बनाना ही जीवन की कला है। पढ़ाई छोड़कर सेवा पर नहीं आना चाहिए। दोनों जरूरी हैं।”**

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# # # 🌼 गद्दी से जुड़ा प्रश्न

किसी ने पूछा, “हजूर जी, जब आपको गद्दी मिली तब क्या महसूस हुआ?”

हजूर जी ने विनम्रता से कहा,
**“बाबा जी का आदेश मेरे लिए सर्वोपरि है। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मुझे गद्दी मिलेगी। मैं खुद को केवल एक छोटा सेवक मानता हूँ।”**

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# # # 🌿 बाहर के गुरु के दर्शन

किसी भाई ने पूछा, “हजूर जी, बाहर के गुरुओं के दर्शन से क्या लाभ होता है?”

हजूर जी बोले,
**“बेटा, बाहर के दर्शन प्रेरणा देते हैं। वे हमें भीतर के गुरु और शब्द से जोड़ने में मदद करते हैं। जैसे स्कूल में शिक्षक हमें सिखाता है, वैसे ही बाहरी दर्शन हमें भीतर की साधना के लिए प्रेरित करते हैं। लेकिन असली दर्शन भीतर का होता है।”**

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# # # 💓 प्रेम, दया और भक्ति कैसे जोड़ें?

हजूर जी बोले,
**“अच्छा इंसान बनना सबसे बड़ी भक्ति है। जो सच्चा बनता है, उसके साथ मालिक की कृपा अपने आप जुड़ती है। अपने हिस्से की कोशिश करो — भजन-सिमरन करते रहो। मालिक का काम मालिक पर छोड़ दो।”**

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# # # 😄 हल्का पल – हजूर जी की मुस्कान

एक लड़की ने हँसते हुए कहा, “हजूर जी, आप बहुत हैंडसम लगते हैं!”

हजूर जी मुस्कुराए और बोले,
**“बेटा, जब तक मैं गद्दी पर नहीं बैठा था, किसी ने यह नहीं कहा। अगर पहले कहा होता तो शायद फिल्मों में हीरो बन जाता!”**
यह सुनकर पूरा पंडाल हँसी से गूंज उठा।

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# # # ⚖ कर्म और धर्म में अंतर

एक भाई ने पूछा, “हजूर जी, कर्म और धर्म में क्या अंतर है?”

हजूर जी बोले,
**“कर्म वो हैं जो हम करते हैं — वही हमारी किस्मत बनाते हैं। धर्म का अर्थ है जिम्मेदारी। जो इंसान अपनी जिम्मेदारी को प्रेम से निभाता है, वही सच्चा धार्मिक है। धर्म कोई पूजा नहीं, बल्कि व्यवहार है।”**

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# # # 🔥 गुस्सा – आत्मा का शत्रु

वही भाई बोला, “हजूर जी, मुझे बहुत गुस्सा आता है।”

हजूर जी ने कहा,
**“गुस्सा सबसे पहले हमें ही जलाता है। यह हमारी समझ और शांति छीन लेता है। जो बात प्यार से कही जा सकती है, वह गुस्से से कभी नहीं होती। इसलिए बेटा, गुस्सा नहीं, प्रेम से काम लो।”**

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# # # 💌 पर्ची न निकलने पर दुख

किसी ने पूछा, “हजूर जी, कई लोगों की पर्ची नहीं निकलती तो वे सत्संग आना छोड़ देते हैं, क्या यह ठीक है?”

हजूर जी बोले,
**“नहीं बेटा, यह गलत सोच है। मालिक तो हमारे दिल की बात बिना कहे ही जानता है। पर्ची तो माध्यम है, लेकिन कृपा हर समय बरसती है। सत्संग आना कभी न छोड़ो।”**

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# # # 💸 आर्थिक स्थिति और कृपा

एक बहन बोली, “हजूर जी, मेरी आर्थिक स्थिति कमजोर है, कृपा करें।”

हजूर जी ने कहा,
**“मालिक सबका ख्याल रखता है। लेकिन हमें सिर्फ पैसे की मांग नहीं करनी चाहिए। सुख का असली स्रोत भजन-सिमरन है, पैसा नहीं। जब हम मालिक से जुड़ते हैं, वह स्वयं हमारे स्वार्थ और परमार्थ दोनों संभाल लेता है।”**

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# # # 💔 पारिवारिक कर्ज और दुख

एक भाई ने कहा, “हजूर जी, मेरे माता-पिता कर्ज में हैं।”

हजूर जी ने स्नेहपूर्वक उत्तर दिया,
**“बेटा, घबराओ मत। मालिक सब देखता है। भजन-सिमरन करते रहो, जिम्मेदारी निभाओ। समय के साथ सब ठीक होगा। मालिक की दया में भरोसा रखो।”**

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# # # 🔮 नामदान का महत्व

एक बहन ने पूछा, “हजूर जी, नामदान लेना इतना जरूरी क्यों है?”

हजूर जी ने समझाया,
**“नामदान वह प्रवेश द्वार है जिससे आत्मा अपनी यात्रा शुरू करती है। यह कोई गारंटी नहीं, बल्कि आरंभ है। जैसे विद्यालय में दाखिला मिलने के बाद पढ़ाई करनी पड़ती है, वैसे ही नामदान के बाद अभ्यास जरूरी है। बिना मेहनत मंजिल नहीं मिलती।”**

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# # # 🕰 समय की कमी और जिम्मेदारियाँ

एक भाई बोला, “हजूर जी, मैं सुबह से रात तक दुकान में रहता हूँ, समय नहीं मिलता।”

हजूर जी ने कहा,
**“हर किसी के पास 24 घंटे हैं। 10वां हिस्सा मालिक को दो। किसी ने नहीं कहा कि घर-परिवार छोड़ो। सच्चा साधक वही है जो जिम्मेदारी और भक्ति दोनों निभाए। संतुलन ही साधना है।”**

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# # # 🌧 जीवन के दुख और संभलना

एक बहन भावुक होकर बोली, “हजूर जी, जीवन में इतने दुख आते हैं कि इंसान टूट जाता है, तब क्या करें?”

हजूर जी ने अत्यंत करुणा से कहा,
**“बेटा, सुख-दुख हमारे कर्मों के परिणाम हैं। मालिक कभी उतना बोझ नहीं देता जितना हम सह न सकें। भजन-सिमरन आत्मा को वह शक्ति देता है जिससे वह दुखों को पार कर सके। जब कर्मों का हिसाब खत्म होता है, आत्मा मुक्त हो जाती है। इसलिए कभी निराश मत होना। भजन-सिमरन करते रहो — यही वह औषधि है जो हर घाव को भर देती है।”**

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# # # 🌺 समापन

संगत के अंत में पूरा पंडाल “राधा स्वामी जी” के जयकारों से गूंज उठा। हजूर जी के सहज शब्दों ने हर दिल को छू लिया। प्रेम, नम्रता, भक्ति और सेवा — यही संदेश इस सत्संग का सार था।

**हजूर जी के शब्दों में –**

> “बेटा, मालिक से रिश्ता दिल से जोड़ो। भजन-सिमरन प्रेम और विश्वास से करो। यही जीवन की सबसे बड़ी साधना है। जो भीतर सच्चा है, वही बाहर शांत है।”

---

संगत जी, यह था आज कोलकाता में हुआ भावनाओं से भरा सत्संग। कल हजूर जी कोलकाता में सत्संग फरमाएँगे — हम कोशिश करेंगे कि कल के सत्संग का भी सार आपके साथ साझा करें।

राधा स्वामी जी 🌸

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