29/07/2025
जावेद अख़्तर की टॉप 20 शायरी
1.कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
2.जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
3.तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे
अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है
4.डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा
5.ऊँची इमारतों से मकाँ मेरा घिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
6.तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद
निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो
7.धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है
न पूरे शहर पर छाए तो कहना
8.ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
9.हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे
10.मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा
वो मुझ से जीत भी सकता था जाने क्यूँ हारा
11.इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं
12.मुझे मायूस भी करती नहीं है
यही आदत तिरी अच्छी नहीं है
13.मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था
मिरे अंजाम की वो इब्तिदा थी
14.बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का
हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का
15.उस की आँखों में भी काजल फैल रहा है
मैं भी मुड़ के जाते जाते देख रहा हूँ
16.इक मोहब्बत की ये तस्वीर है दो रंगों में
शौक़ सब मेरा है और सारी हया उस की है
17.नेकी इक दिन काम आती है हम को क्या समझाते हो
हम ने बे-बस मरते देखे कैसे प्यारे प्यारे लोग
18.खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा
ख़ुलूस तो है मगर ए'तिबार जाता रहा
19.उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी
सर झुकाए हुए चुप-चाप गुज़र जाते हैं
20.छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर
मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं