
12/05/2025
सीज़फायर के फ़ैसले पर क्यूँ घिरा भारत?
भारत और पाकिस्तान के बीच सीज़फायर नाम का समझौता बड़े विवादों में घिर गया है। अस्ल में यह कोई सीज़फायर है भी नहीं। इसे ज़ियादा से ज़ियादा 'वॉर ऑन होल्ड' कहा जा सकता है। 10 मई 2025 को शाम 5 बजे घोषित इस कथित सीज़फायर को पाकिस्तान ने ठीक साढ़े तीन घण्टे बाद ही तब तोड़ दिया, जब उसने भारत के राजौरी, पूँछ, जम्मू, श्रीनगर और अखनूर आदि इलाक़ौ में ड्रोन भेज दिए और गोलाबारी भी शुरू कर दी। पाकिस्तान के बारे में कहा जाता है कि उसकी फ़ितरत कुत्ते की दुम की-सी है, जो कितना भी प्रयास कर लो, टेढ़ी ही निकलती है। चार दिन तक भारत से बुरी तरह पिटने के बाद यह पाकिस्तान की हार थी, जिसे अमेरिका से गिड़गिड़ा कर वह सीज़फायर नाम देने में कामयाब हो गया। पाकिस्तान पिटकर भी बेशर्मी दिखा रहा है। उसने कभी किसी समझौते को माना ही नहीं। वह अभी भी नहीं मानेगा।1971 की लड़ाई के बाद भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति ज़ुल्फ़ेकार अली भुट्टो के मध्य LOC पर हुये शिमला समझौते को भी पाकिस्तान ने कभी नहीं माना। शिमला समझौते के तुरन्त बाद भुट्टो के पाकिस्तान पहुँचते ही उसने सीमा पर फायरिंग शुरू कर दी थी।
भारत ने शुरू में तो इस सीज़फायर को मान लिया, लेकिन कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने जब सरकार को घेरा तो वह पलट गयी। 11 मई की शाम भारत के विदेश मन्त्री और प्रधानमंत्री दोनों ने इस सीज़फायर को मानने से इनकार कर दिया। आज (12 मई) दोपहर 12 देशों के DGMO (डायरेक्टर जनरल ऑफ़ मिलिट्री ऑपरेशन) की बैठक इस कथित सीज़फायर को मूर्त रूप देने के लिये हो रही है। इसके पहले हमारे प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया है कि भारत की पाकिस्तान से वार्ता करने में कोई रुचि नहीं है। अगर वार्ता होगी भी तो वह दोनों देशों के डगमो के स्तर पर होगी, जिसमें पाकिस्तान से पूछा जायेगा कि वह POK यानी पाक अधिकृत कश्मीर और भारत में वांछित पाक आतंकियों को कब भारत को सौंपने जा रहा है। पाकिस्तान भारत के इस नये दांव से घबरा गया है। जिस तरह सीज़फायर के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने ये साफ़ कहा कि पाकिस्तान इसलिए सीज़फायर के लिये राज़ी हुआ है क्यूंकि पाकिस्तान भारत जैसे बड़े दुश्मन से युद्ध लड़ने की स्थिति में नहीं है। न तो उसके पास इसकी तैयारी है और न ही संसाधन। ऐसे में वह देर-सबेर भारत की इन दो मांगों पर विचार करने पर अगर राज़ी भी हो जाये तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए।
जहाँ तक भारत ने कथित सीज़फायर को स्वीकारने पर हामी भरी, उसके पीछे कोई बड़ा और रहष्यमयी कारण हो सकता है, जिसे मोदी और सिर्फ़ मोदी ही जानते होंगे, क्यूँकि वह अपने मन की योजनाओं और गुप्त बातों को दूसरों से शेयर करने में यक़ीन नहीं करते। एक तो परमाणु युद्ध का ख़तरा बढ़ता जा रहा था, क्यूँकि पाकिस्तान के सारे विकल्प चुकते जा रहे थे। यही वजह है कि पाकिस्तान ने खीझ कर भारत की राजधानी दिल्ली को निशाना बनाकर एक पॉवरफुल मिसाइल फेकी, जिसे भारत ने बीच में ही इंटरसेप्ट करके गिरा दिया। वह हिसार में कहीं गिरी। दूसरे पाकिस्तानी परमाणु ठिकाने भी भारत के निशाने पर आ चुके थे। रावलपिंडी के जिस नूर खान एयर बेस को भारत ने अपनी ब्रह्मॉस मिसाइलों से तहस- नहस कर दिया, इस्लामाबाद स्थित पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने वहाँ से सिर्फ़ तक़रीबन सौ किमी के ही फासले पर हैं। भारत ऐसा कर सकता है, ये बात पाकिस्तान और अमेरिका दोनों जानते हैं। इससे बड़ी तबाही हो सकती है। अमेरिका की अपनी मजबूरियां हैं। वह आज भी किसी न किसी स्तर पर पाकिस्तान के लिये सॉफ्ट कॉर्नर रखता है, यह कहने की बात नहीं है। फिर मोदी और ट्रम्प की केमिस्ट्री पर भी कोई सन्देह नहीं होना चाहिए। हालाँकि भारत ने अमेरिका की मध्यस्थता को कभी नहीं स्वीकारा। भारत तो अभी भी सीज़फायर को द्विपक्षीय बता रहा है। वह इसमें अमेरिका की भूमिका से इनकार कर रहा है, लेकिन जिस तरह सीज़फायर की घोषणा अमेरिका में ट्रम्प ने की और फिर भारत ने उस पर अपनी सहमति भी जता दी, इसके कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं, जो बेमानी भी नहीं हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच सीज़फायर नाम का समझौता बड़े विवादों में घिर गया है। अस्ल में यह कोई सीज़फायर है भी नहीं। इसे ज़...