02/08/2023
मेवात में पहले पंडित जी का नम्बर आया, 10 लठ पाड़े जिहादियों ने।
फिर जाट का नम्बर आया तो बोला अरे म्हारा तो भाईचारा है, कुछ नही सुनी गई उसमें भी 10 लठ जमाये गये।
फिर राजपूत का नम्बर आया तो बोला अरे म्हारी साथ कैथल में कोई हिन्दू नि आया था इसलिए हम उनके साथ नही है, लेकिन किसी तर्क ने काम नही किया और 10 लठो की खुराख दी गई।
अगले का नंम्बर आते ही उसने जय भीम-जय मीम का नारा लगाकर जिहादी से दोस्ती दिखाने की कोशिश करी लेकिन इसको तो नीचे गेरके बिना गिनती के पेला गया।
पगड़ी वाले की गाड़ी जिहादियों ने रोक ली तो उसने वाहे गुरु का खालसा , वाहे गुरु की फतेह का नारा लगाया।
उसे गाड़ी समेत तोड़ा गया।
ना कोई ब्राह्मण सभा मीटिंग कर रही और ना कोई जाट सभा।
ना किसी भोकेन्द्र राणा के हलक से जुबान बाहर निकल रही।
ना किसी आदिकिसान के भीतर क्रांति जगी।
भीम आर्मी अपनी अम्मा के लहंगे में घुस गई
ये सारी सभाएं क्या केवल दूसरे हिन्दुओ से लड़ने के लिए हैं ?
हमारे यहाँ मुजफ्फरनगर में विपरीत सरकार के समय जब जाटों ने आवाज उठाई तो सर्वसमाज ने साथ मे हुंकार भरी , दंगाई और जिहादी इसके बाद सरकारी तंबुओं में पाये गये।
लेकिन दिल्ली और मेवात में सारे पिट रहे हैं क्योंकि अलग अलग घमंड पाले बैठें हैं।
जबकि पीटने वालो में शेख, सैय्यद,तेली, कसाई,झोज्जे,मनिहार एक साथ लठ लिए खड़े हैं हालांकि इन जातियों में भी बहुत ऊंच नीच है। लेकिन काफिर के सामने सब एक हैं।
बंटते रहो-पिटते रहो ........