
30/08/2025
किसी भी टूरिस्ट प्लेस पर जाकर गंदगी और दूषित हवा-पानी की शिकायत तो हम सभी करते हैं, लेकिन इन खूबसूरत जगहों को दूषित करता कौन है और इसे बदलने की कोशिश हममें से कितने लोग करते हैं? आज हम आपको एक ऐसे शख़्स की कहानी बताने वाले हैं, जिन्होंने खुद तो इसे बदलने की कोशिश की ही, साथ ही हिमाचल प्रदेश के हज़ारों लोगों में जागरूकता लाकर उन्हें भी अपने मिशन ‘हीलिंग हिमालय’ से जोड़ दिया।
हरियाणा के प्रदीप सांगवान ने इस काम की शुरुआत अकेले ही ट्रेकिंग साइट्स से कचरा उठाने से की थी। धीरे-धीरे उन्होंने लोगों को समझाया कि जिस कचरे को वे कहीं भी फेंक देते हैं, वो हवा से उड़कर पत्थरों और चट्टानों के बीच फंस जाता है और इसे हटाना काफी मुश्किल होता है। लोगों को समझाने के साथ उन्होंने हिमालय के पहाड़ों में क्लीनिंग ड्राइव करना शुरू किया।
ज़ाहिर है इतना बड़ा काम करने में उनको काफ़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ा चैलेंज उनके लिए था इस काम को रोज़ उसी लगन के साथ करना। लेकिन क्योंकि उनका निश्चय बिलकुल मज़बूत था, इसलिए वह इस पहल को आगे बढ़ा पाए।
आज पिछले आठ सालों से प्रदीप हिमाचल के पहाड़ों से नॉन बायोडिग्रेडेबल वेस्ट कम करके इसी खूबसूरती बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने 2016 में इसकी शुरुआत की थी और फिर इस मुहिम से धीरे-धीरे ज़्यादा लोग जुड़ने लगे और कचरा भी ज़्यादा जमा होने लगा। फिर उन्होंने इसे रखने के लिए स्टोर्स बनाए और समय के साथ उन्हें स्थानीय प्रसाशन का साथ भी मिला।
प्रदीप ने लॉकडाउन के समय का सही उपयोग किया और शिमला, कुल्लू, किन्नौर, स्पीति में वेस्ट कलेक्शन सेंटर्स या Material Recovery Facilities शुरू कीं। इन सेंटर्स के ज़रिए वह हर रोज़ करीब 5 टन कचरा कलेक्ट कर, उसे स्टोर करते हैं और फिर उसे कंप्रेस कर रीसाइक्लिंग के लिए भेजते हैं।
उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि आज हिमाचल का 95% कचरा डंपिंग साइट की बजाय Recycling के लिए जा रहा है।
तो अगली बार अगर आपको भी सड़क पर चलते हुए इधर-उधर कचरा पड़ा मिले, उसे उठाकर डस्टबिन में फेंकने से पहले यह मत सोचिए कि आपके हाथ गंदे हो जाएंगें; क्योंकि ये दाग भी अच्छे हैं:blossom: और शायद ऐसा करके आप किसी और की सोच को बदल दें।