The Better India - Hindi

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कभी वो लड़का मुंबई की सड़कों पर पानी के कैन बेचा करता था। होटल के रिसेप्शन पर काम करता, चाय पाउडर की बिक्री करता — जो भी...
23/09/2025

कभी वो लड़का मुंबई की सड़कों पर पानी के कैन बेचा करता था। होटल के रिसेप्शन पर काम करता, चाय पाउडर की बिक्री करता — जो भी हाथ में आया, बस ज़िंदगी चलती रहे और सपना ज़िंदा रहे।

ऋषभ शेट्टी के पास न कोई गॉडफादर था, न ही कोई बैकअप प्लान। लेकिन एक चीज़ थी — कहानियां सुनाने का जूनून, जो किसी भी मुश्किल से बड़ा था।

फिर वो दिन आया जब 'कांतारा' सिनेमाघरों में गूंज उठी। न कोई बड़ा सितारा, न कोई भारी प्रचार। लेकिन फिल्म ने 332 करोड़ की कमाई की और भारतीय सिनेमा को अंदर से झकझोर दिया।

कांतारा सिर्फ एक फिल्म नहीं थी — ये उन लाखों सपनों की आवाज़ थी जो मेहनत के रास्ते चलते हैं, शॉर्टकट नहीं ढूंढते। ये हर उस इंसान की कहानी थी जो छोटी शुरुआत से बड़ा सपना देखता है।

आज ऋषभ शेट्टी एक नाम है, लेकिन पीछे जो सफर है — वो हर सपने देखने वाले को उम्मीद देता है।




[ Rishab Shetty | Kantara | Struggler To Superstar | Indian Cinema | Real Life Inspo ]

एक गाँव में 70–90 साल की दादियाँ गुलाबी साड़ी पहनकर, कंधे पर बस्ता टाँगकर स्कूल जा रही हैं। यह है आजीबाईंची शाला — भारत ...
23/09/2025

एक गाँव में 70–90 साल की दादियाँ गुलाबी साड़ी पहनकर, कंधे पर बस्ता टाँगकर स्कूल जा रही हैं। यह है आजीबाईंची शाला — भारत का पहला स्कूल सिर्फ़ बुज़ुर्ग महिलाओं के लिए। कभी पेंसिल तक हाथ में नहीं पकड़ी, लेकिन आज अक्षर सीख रही हैं। अब बस के नंबर पहचान लेती हैं, अपने नाम का साइन करती हैं और पोते-पोतियों के साथ कविताएँ गुनगुनाती हैं। और आज, विश्व साक्षरता दिवस पर, उनकी कहानी हमें याद दिलाती है — सीखने की कोई उम्र नहीं होती। जब जागो तभी सवेरा।



[Aajibaichi Shala | Thane | Senior Citizen School inIndia ]

प्रीति पाल ने हर शक और रुकावट को पीछे छोड़ते हुए आज भारत की उम्मीद और प्रेरणा का झंडा यानी हमारा तिरंगा थामने की और अपना...
23/09/2025

प्रीति पाल ने हर शक और रुकावट को पीछे छोड़ते हुए आज भारत की उम्मीद और प्रेरणा का झंडा यानी हमारा तिरंगा थामने की और अपना एक सुनहरा कदम बढ़ाया है।

जन्म से ही सेरेब्रल पाल्सी की चुनौतियाँ झेलीं और तक़रीबन पूरा बचपन प्लास्टर और कैलिपर्स में बीता। लोग कहते थे कि उनकी सामान्य ज़िंदगी भी मुश्किल है। लेकिन प्रीति ने न केवल सबको गलत साबित किया बल्कि वो मुकाम हासिल किया जिसे पाने के लिए लोग पूरा जीवन लगा देते हैं।

17 साल की उम्र में पैरालंपिक के वीडियो देखे और सपना देखा दौड़ने का। बिना जूतों और साधनों के भी मैदान में अभ्यास शुरू किया। दिल्ली आकर SAI और TOPS की मदद से प्रोफ़ेशनल ट्रेनिंग मिली और असली उड़ान शुरू हुई।

पेरिस 2024 पैरालंपिक में उन्होंने 100 मीटर और 200 मीटर में दो कांस्य पदक जीते—और बनीं आज़ाद भारत की पहली एथलीट जिन्होंने ट्रैक इवेंट में मेडल जीता। अब प्रीति पाल भारत का झंडा थामेंगी World Para Athletics Championship 2025 में, दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में।

प्रीति कहती हैं: “मेरा लक्ष्य अब गोल्ड है, ताकि भारत का नाम और ऊँचा हो।”
आइए, हम सब मिलकर प्रीति को गोल्ड की ओर आगे बढ़ने का हौसला दें!



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असम की सांस्कृतिक धड़कन, 'या अली' और 'दिल तू ही बता' जैसे बेहतरीन गानों से सबका दिल जीतने वाले जुबीन गर्ग अब हमारे बीच न...
23/09/2025

असम की सांस्कृतिक धड़कन, 'या अली' और 'दिल तू ही बता' जैसे बेहतरीन गानों से सबका दिल जीतने वाले जुबीन गर्ग अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनका संगीत और इंसानियत का पैगाम हमेशा जीवित रहेगा। 🙏

जुबीन और उनकी पत्नी गरिमा सैकिया गर्ग के अपने बच्चे नहीं थे, लेकिन जुबीन ने 15 जरूरतमंद बच्चों को गोद लिया और उनका जीवन संवार दिया।

इनमें से कजली ने उनके दिल में खास जगह बनाई थी :hearts:

कजली - वो बच्ची जिसने जुबीन के पिता बनने के जज्बे को नई ऊंचाई दी। एक दिन काम से लौटते वक्त जुबीन की नजर सड़क पर कजली पर पड़ी। वो एक नौकरानी थी, जिसके साथ लगातार दुर्व्यवहार हो रहा था।

जुबीन ने न सिर्फ कजली को बचाया, बल्कि उसके लिए केस लड़ा, जीता, और उसे गोद लिया। कजली की पढ़ाई और हर जिम्मेदारी जुबीन संभाल रहे थे।

उनकी पत्नी गरिमा ने भी उनका हर कदम पर साथ दिया। वह जुबीन की ताकत और उन दोनों के गोद लिए 15 बच्चों की माँ बनकर साथ खड़ी रहीं।
जुबीन और गरिमा ने हमेशा इंसानियत और प्यार को प्राथमिकता दी - बाढ़ पीड़ितों की मदद की, COVID के समय घर को केयर सेंटर बना दिया और इन बेसहारा बच्चों को अपनाया।

जुबीन गर्ग का संगीत खत्म नहीं हुआ, और न ही उनकी इंसानियत, जो हर दिल को हमेशा हमेशा के लिए रोशन रखेगी!

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मुज़फ़्फ़रपुर की एक स्कूलगर्ल से लेकर बिहार की पहली Woman FIDE Master बनने तक, मरीअम फ़ातिमा की जर्नी हर उस सपने का सबूत...
23/09/2025

मुज़फ़्फ़रपुर की एक स्कूलगर्ल से लेकर बिहार की पहली Woman FIDE Master बनने तक, मरीअम फ़ातिमा की जर्नी हर उस सपने का सबूत है जो कभी हार नहीं मानता।

कक्षा 3 में दोस्तों और पहले चेसबोर्ड से शुरू हुआ शौक, पहले टूर्नामेंट में तीसरा स्थान और हर रविवार 150 किमी की पिता की यात्रा — यह सफ़र आसान नहीं था। किताबों और ChessBase सॉफ़्टवेयर में निवेश करते हुए जब भी मरीअम कहतीं “पापा, इतना पैसा मत खर्च करो”, तब असल में परिवार का प्यार और त्याग ही उनके पीछे खड़ा था।

कोरोना के समय माँ की ब्रेन ट्यूमर की बीमारी ने परिवार को मानसिक, आर्थिक और शारीरिक रूप से झकझोर दिया। लेकिन मरीअम ने वापसी की, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर जीत हासिल की।

आज 19 साल की उम्र में, 2000+ FIDE रेटिंग के साथ, मरीअम बिहार की पहली Woman FIDE Master हैं — समर्पण, परिवार के प्यार और बिहार में चेस के उदय की मिसाल।

अपने किसी युवा प्लेयर, माता-पिता या कोच को टैग करें जो आपको प्रेरित करता है ताकि आपके सपने अधूरे न रहें!



[Marium Fatima, Bihar first Woman FIDE Master, Muzaffarpur, Indian chess prodigy]

अगर आप 90s में बड़े हुए हैं, तो नवरात्रि की रातें फाल्गुनी पाठक की आवाज़ के बिना अधूरी थीं।लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन...
23/09/2025

अगर आप 90s में बड़े हुए हैं, तो नवरात्रि की रातें फाल्गुनी पाठक की आवाज़ के बिना अधूरी थीं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनका पहला मंच भारतीय नौसेना के जहाज़ की डेक थी और सबसे बड़ी चुनौती भीड़ नहीं, बल्कि उनके पिता का विरोध था?

9 साल की उम्र में छत पर गाने वाली यह बच्ची, आज एक ऐसी महिला बन गई हैं जिनके गाने पूरे त्योहार को पहचान देते हैं।
यह है कहानी उस लड़ाई और मेहनत की, जिसने फाल्गुनी को डांडिया क्वीन बना दिया।

👉 स्वाइप करें और जानें उनके जीवन का वो सफ़र जो आज उनकी धुनों में बसता है >>>




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77 साल के सेना से रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल सोहन रॉय ने अपनी Royal Enfield Classic 500 पर सवार होकर दुनिया की सबसे ऊँची ...
23/09/2025

77 साल के सेना से रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल सोहन रॉय ने अपनी Royal Enfield Classic 500 पर सवार होकर दुनिया की सबसे ऊँची मोटरेबल रोड, उमलिंग ला को फतह कर दिखाया।

20 अगस्त 2025 को पुणे से शुरू हुई यात्रा 30 अगस्त को लेह पहुँचकर पूरी हुई। रास्ते में उन्हें ऊबड़-खाबड़ रास्ते, बारिश, धूल, भूस्खलन और कमजोर नेटवर्क जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
रास्ते में उन्होंने जम्मू, श्रीनगर, द्रास, कारगिल, लेह, न्योमा और हनले पार किए और कारगिल वॉर मेमोरियल व बैटल ऑफ़ बडगाम मेमोरियल पर शहीदों को श्रद्धांजलि भी दी।

सोशल मीडिया पर साझा करते हुए उन्होंने लिखा:
"आज Umling La को Norbu La Top से पार किया। लंबे समय से इंतजार था। सभी के समर्थन और प्रेरणा के लिए धन्यवाद।"

77 साल की उम्र में ये कारनामा करना आश्चर्यजनक है, जो किसी 25 साल के युवा के लिए भी चुनौती है। उनका स्पोर्ट्स DNA—फ़ुटबॉल, बॉक्सिंग और मैराथन रनिंग का अनुभव—उन्हें लंबी दूरी की राइड के लिए ताक़त देता है।

30 साल की आर्मी सर्विस में उन्होंने जम्मू-कश्मीर और LoC पर देश की सेवा की।

पिछले रिकॉर्ड्स में उन्हें खारदुंग ला पहुँचने वाले सबसे उम्रदराज़ राइडर के रूप में लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स और ईस्ट-वेस्ट सोलो राइड के लिए इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज है।

यह साबित करता है कि जुनून और हिम्मत के आगे उम्र सिर्फ़ एक नंबर है।



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भोपाल के जाटखेड़ी बस्ती में रहने वाले कारपेंटर राममिलन मौर्या की तीसरे नंबर की बेटी, संध्या मध्य प्रदेश की पहली महिला सा...
23/09/2025

भोपाल के जाटखेड़ी बस्ती में रहने वाले कारपेंटर राममिलन मौर्या की तीसरे नंबर की बेटी, संध्या मध्य प्रदेश की पहली महिला साइकिलिस्ट हैं, जिनका चयन Indian Cycle National Team में हो चुका है।

यहाँ तक का सफर उन्होंने, और उनके परिवार ने कई मुश्किलों का सामना करते हुए पूरा किया है। पहाड़ों और ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर कमाल की Cycling करने वाली Mountain Biker संध्या ने कभी चंदा इकट्ठा कर जूते खरीदे, तो कभी उधार पर साइकिल लेकर प्रतियोगिता में हिस्सा लिया!

परिवार में माता-पिता और 6 बहने हैं। सुविधाएं कभी पूरी नहीं थीं; लेकिन कुछ कर दिखाने का जज़्बा भरपूर था! लोगों ने बोझ कहा लेकिन माता-पिता ने हमेशा आगे बढ़ाया.. सभी बेटियों को पढ़ाया और उन्हें सपने देखना भी सिखाया!

2021 में 12वीं पास करने के बाद घर की तीसरी बेटी संध्या ने B.P.Ed में एडमीशन लिया; और यहीं उसके हुनर को पहचान मिली। संध्या का Indian Cycle National Team में Selection हो गया!

पढ़ाई के साथ-साथ संध्या Sports को बैलेंस करते हुए आगे बढ़ती गईं और National Games में दो बार मेडल जीता। वह Asian Championship bhi खेल चुकी हैं! अब सपना है Olympic तक पहुँचने का।

लेकिन रास्ते में आर्थिक कठिनाइयां अभी भी बहुत हैं। Equipments, Cycle और Diet के लिए उन्हें लोगों के सहयोग और Sponsor की ज़रूरत है। क्या आप आगे आएंगे?

[ Navratri | Inspiring | Shakti Ke Navrang | Inspiring Women | Sports | Olympic | Never Give Up ]

हिंदी साहित्य से प्रेम करने वाला शायद की कोई शख्स होगा, जिसने रामधारी सिंह 'दिनकर' को न पढ़ा हो। बिहार के बेगूसराय में ज...
23/09/2025

हिंदी साहित्य से प्रेम करने वाला शायद की कोई शख्स होगा, जिसने रामधारी सिंह 'दिनकर' को न पढ़ा हो। बिहार के बेगूसराय में जन्में 'दिनकर' ने 'कुरुक्षेत्र', 'उर्वशी', 'रेणुका', 'रश्मिरथी', 'द्वंदगीत' सहित कई प्रमुख कृतियों की रचना की। रामधारी सिंह 'दिनकर' हिंदी साहित्य में अपनी वीर रस की कविताओं के लिए जाने जाते हैं। वह छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे।
साथ ही दिनकर ने अपनी लेखनी से एक पत्रकार का भी धर्म निभाया है। ज़ाहिर है कि अपनी रचनाओं से दूसरों में साहस जगाने वाले दिनकर खुद भी एक साहसी पत्रकार थे। पत्रकारिता से लगाव और लगातार कई पत्र-पत्रिकाओं में लिखने के कारण ही स्वतंत्रता मिलने के बाद उनको प्रचार विभाग का डिप्टी डायरेक्टर बनाया गया। रामधारी सिंह का जन्म 23 सितंबर 1908 ई. में सिमरिया, मुंगेर (बिहार) में एक सामान्य किसान रवि सिंह और उनकी पत्नी मनरूप देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। दिनकर दो वर्ष के थे, जब उनके पिता का देहावसान हो गया। परिणामत: दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालन-पोषण उनकी विधवा माता ने अकेले किया। उनका बचपन देहात में बीता, जहाँ दूर तक फैले खेतों की हरियाली, बांस के झुरमुट, आम के बगीचे और कांस के विस्तार थे। प्रकृति की इस सुषमा का प्रभाव दिनकर के मन में बस गया, जो उनकी कविताओं में भी नज़र आता है।
[Ramdhari Singh Dinkar | Poet | Writer | Hindi Writer | Inspiring ]

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