
05/10/2024
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥4-7॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥4-8॥
जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मैं आता हूं. जब-जब अधर्म बढ़ता है तब-तब मैं साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों का विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए मेैं आता हूं और युग-युग में जन्म लेता हूं.