11/09/2025
6 ठवें पे कमीशन और 7 वें पे कमीशन के बीच में गुणा भाग करके तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करने वाले शिक्षकों को शिक्षक दिवस की बधाई । अपने T.A, D.A, H.R.A , महंगाई भत्ता और प्रमोशन को लेकर परेशान रहने वाले शिक्षकों को शिक्षक दिवस की बधाई । इनकम टैक्स के हजार रुपये बचाने के लिए साल भर फ़ाइल में हिसाब लिखने वाले शिक्षकों को आज के दिन की बधाई । धूप, जाड़ा, बरसात में पिछले 30 सालों से अपना वही "खानदानी पुरनका रजिस्टर" देख देखकर पढ़ाने वाले माट साहबो को अतिरिक्त बधाई।
'गूगल गुरु' के दौर में जिन 'गुरु घंटालों' ने अपना महत्त्व बनाए रखा है, उनको विशेष बधाई । मैं तुम्हारा पीएचडी में करवा दूँगा, तुम्हारी नौकरी लगवा दूँगा, का झांसा देकर अपने पीछे पीछे रिसर्च स्कॉलर की भीड़ लेकर चलने वाले 'आधुनिक चकमेबाज द्रोणाचार्यों' को डबल बधाई। छात्रों के रिसर्च पेपर को अपने नाम से पब्लिश करवाने वाले धूर्त 'इंटीलेक्चूअल गुरुओं' को "कॉपीराइट वाली बधाई"।
बीएड, टेट, सुपर टेट, टीजीटी, पीजीटी, नेट, जेआरएफ, पीएचडी,आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र से लेकर लोअर कोर्ट, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट की भूल भुलैया में चक्कर काटते "भावी शिक्षकों" को मेरी ओर से पहली बार "भावभीनी बधाई "। यूपी- बिहार के नौजवान शिक्षक बनने में जितनी मेहनत करते हैं उतने में तो त्रिशंकु भी स्वर्ग पहुँच जाता ।
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) और राज्य लोक सेवा आयोग से नीचे बात न करने वाले बाबू साहब लोग ,जिनको मजबूरी में "चोंगामल राजकीय विद्यालय, चंदौली" जैसी जगहों पर ज्वाइन करना पड़ा,आज उनको भी हमरा तरफ से एक ठो बधाई । इस आशा के साथ कि वे खुद तो DM न बन सकें, पर अब वे थोक में DM का निर्माण करेंगें । वैसे अंदर की बात तो यह है कि आज भी हर शिक्षक खुद को चाणक्य ही समझता है और दूरबीन से अपने चंद्रगुप्त को खोजता रहता है।
हर यूनिवर्सिटी में 'राग दरबारी' वाली मुद्रा में विराजमान छोटे छोटे 'वैध जी' लोगों को भी बधाई। आज के दिन 'रुप्पन बाबू' जैसे छात्र लोग भी अपनी अपनी बधाई लेते जावें। डिग्री कॉलेज, राज्य विश्वविद्यालय और प्राइवेट कॉलेज में बुलेट और टाटा सफारी लेकर माहौल बनाने वाले "जुआ छात्र नेता लोगों" को भी बधाई। इन युवाओं को क्या पता कि ये अपने माता पिता के सपनों के साथ ही जुआ खेल रहे हैं। भाई, मैं तो चाहता हूँ कि विश्वगुरु भारत के हर 'गुरु' तक उसके हिस्से की वाज़िब बधाई पहुँचे।
पिछले 70 वर्षों में हमारी शिक्षा व्यवस्था ने काफी प्रगति की है। घूम घूम कर दान और भीख मांगकर यूनिवर्सिटी खोलने वाले महामना मदन मोहन मालवीय से प्रेरणा पाकर चले थे, और पैसे देकर प्रोफेसर बनने तक पहुंचे हैं। सचमुच इस देश ने काफी प्रगति की। अब 'प्रतिभा' का स्थान 'सेटिंग' ने ले लिया। 'गुणवत्ता' का स्थान 'API' ने ले लिया। 'खुली परिचर्चा' का स्थान 'गुप्त मंत्रणाओं' ने ले लिया। राजनीति के गंदे दांव पेंच अब शिक्षक भी खुल कर आजमाने लगे। आज के मुबारक़ मौके पर ऐसी 'प्रगति' आप सबको मुबारक हो।
शिक्षक और शिक्षा जगत ने सबको राह दिखाई है। राजनीति के भाई-भतीजावाद को एकेडमिक्स ने अपने दिल में जगह दी है। हम भाई-भतीजावाद से आगे बढ़कर बहू, दामाद, ननद, जेठानी, देवरानी और सालीवाद तक पहुंचे हैं। इस मायने में शिक्षक समुदाय ने राजनीति का मार्गदर्शन किया है। देश के हर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पिता के कारण पुत्री, प्रोफेसर पति के कारण पत्नी , बाप के कारण बेटा असिस्टेंट प्रोफेसर के पद तक पहुँच चुका है। अपने नाते रिश्तेदारों को 'सेट' करने के मामले में शिक्षक समुदाय ने राजनेताओं को कड़ी टक्कर दी है ।
हमारी शिक्षा प्रणाली में दो तरह के शिक्षक हैं। बड़ा शिक्षक और छोटा शिक्षक। ग्रामीण भाषा में कहें तो छोटका गुरूजी और बड़का गुरुजी। यूनिवर्सिटी का शिक्षक बड़ा शिक्षक समझा जाता है, क्योंकि उसकी चिंता बड़ी होती। उसे पे कमीशन, प्रमोशन, शेयर मार्केट,प्लॉट और अपार्टमेंट के खरीद बिक्री की चिंता करनी होती है। प्राइमरी और मिडिल का मास्टर लाचार जीव होता है।वह बेसिक शिक्षा अधिकारी और कलेक्टर से आगे जा ही नहीं पता। प्राइमरी और मिडिल स्कूल का मास्टर सत्तू और पारले जी के सहारे सरकार को चुनौती देता है। अगर छोटका मास्टर पटना ,लखनऊ जैसी राजधानी में जाता भी है तो धरना प्रदर्शन करके,पीठ पर चार लाठी खाकर एक ही दिन में वापस आ जाता है। वह अपनी वैतरणी पार करने के लिए किसी न किसी की 'पूँछ' पकड़ने को अभिशप्त होता है। प्राइमरी का मास्टर जनकवि नागार्जुन के जमाने से ही लाचार है। इस केटेगरी के शिक्षक 'जमा जमा बेबस बच्चों पर मिनट मिनट पर पाँच तमाचे' जमाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। मैं सरकार से अपील करता हूँ की इनके लिए कुछ 'सॉलिड' करे। सरकार क्या करे, कैसे करे इसके लिए एक कमिटी बनाई जा सकती है। राष्ट्रहित में मैं इस कमिटी का चैयरमैन बनने को तैयार हूँ।
वैसे हमारे देश में सबसे ज्यादा मेहनत प्राइमरी और मिडिल का शिक्षक ही करता है। इन्हें मिड डे मील के लिए दो अलग-अलग रजिस्टर बनाने होते हैं। एक असली रजिस्टर एक नकली रजिस्टर।असली रजिस्टर तो असल में कामचलाऊ होता है, सारा 'असली हिसाब' तो नकली रजिस्टर में होता है। कई मायनों में ये शिक्षक 'शबरी' की भूमिका निभाते हैं। जिस तरह शबरी ने श्री राम के खाने से पहले बेर को चखकर देखा था कि कहीं राम को खट्टे बेर न मिले, उसी तरह प्राइमरी और मिडिल के मास्टर साब 'चखने' में उस्ताद होते हैं। अगर मिड डे मील के लिए 20 बोरा चावल आता है तो उसमें से ये पहले ही दो बोरे 'चख' लेते हैं ताकि यह पता चल सके कि यह चावल छात्रों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है या नहीं। अगर 50 किलो दाल आती है तो उसमें से 10 किलो दाल पहले ही 'चख' लेते हैं। पर कुछ अधम कोटि के जलनखोर लोग उनकी इस 'सेवा भावना' को नहीं समझते और इसे 'भ्रष्टाचार' का नाम देते हैं। एक अदद रजिस्टर, मिड डे मील के 4 बर्तन और टूटी हुई कुर्सी के सहारे ग्रामीण हिंदुस्तान की शिक्षा व्यवस्था को संभाले रखने वाले 'मास्टर साहबों' के लिए मैं एकमुश्त दस हजार 'पदम् श्री' की पुरजोर माँग करता हूँ।
जहाँ सरकारी स्कूल की ईमारत नहीं है, वहां आज भी कई मास्टर साहब पीपल के पेड़ के नीचे ही क्लास लेते हैं। बच्चे उसी पेड़ के नीचे तेरह और उन्नीस का पहाड़ा रटते रहते हैं। इस कारण भरी दोपहर में पीपल पर लटके भूतों के आराम में खलल पड़ता है और मास्टर से उनकी तनातनी चलती रहती है। ग्रामीण इलाकों में कई बार भूतों ने सांझ, बिहान, दुपहरिया में मास्टरों को उठा उठा कर पटका भी है। सोचिए एक शिक्षक किन किन अदृश्य खतरों से जूझते हुए देश का भविष्य गढ़ता है। मैं मांग करता हूँ कि सरकार जल्द से जल्द "शिक्षक-भूत सद्भावना समिति " का गठन करें, वरना बिहार और उत्तर प्रदेश के डेढ़ लाख शिक्षक हड़ताल पर जाने को विवश होंगे। तेलांगना शिक्षक संघ और बंगाल राज्य शिक्षक संघ ने भी हमें नैतिक समर्थन दिया है। जुलाई 2016 में जारी शासनादेश संख्या 420 में भी ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षक और भूतों के तनाव को जल्द से जल्द सुलझाने की बात कही गई है। हम मानवाधिकार आयोग तक जाएंगे। अगर सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में "भूत मुक्त शांत वातावरण" में पठन पाठन के मुद्दे पर गंभीरता से करवाई नहीं करेगी तो उसे अगले विधानसभा चुनाव में शिक्षक समुदाय के कोप का भाजन बनना पड़ेगा।
आज याद करता हूँ तो स्कूल के दिनों के शिक्षक ही ज्यादा याद आते हैं। कितना प्यार करते थे वे हमें।कभी कभी सर पर प्यार से हाथ भी फेर देते थे। वक्त गुजरा, हम सब बड़े हो गए। स्कूल पीछे रह गया और यूनिवर्सटी सामने आ गई। यूनिवर्सिटी में प्रार्थना की न कोई लाइन होती थी, न कोई सर पर हाथ फेरता था। आज भी स्कूल की यह प्रार्थना कानों में मिश्री घोल देती है:
लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी ।
ज़िन्दगी शम्मा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी ।।
मोमबती की तरह जल कर रौशनी फैलाने का सबक देने वाले और अपने आचरण से नैतिक मूल्य सिखाने वाले शिक्षक अब आसानी से नहीं मिलते। अगर आपके आस पास ऐसे शिक्षक हों, तो उनका सम्मान कीजिए। अगर आप स्वयं इस पेशे में हैं तो दिल से अपना काम कीजिए। शिक्षक होना दरअसल एक अच्छा छात्र होना ही है। बाकि शिक्षक दिवस का क्या है, आता है चला जाता है।
दिवस 5 सितंबर 2025
© Chitranjan kumar.
Allahabad university