Poonam Tiwari Pandey

Poonam Tiwari Pandey जीवन का सार.....

01/11/2025

कितने मुखौटा ओढ़े आज का इंसान है ताक़त के दम पर दमन पर उतारू है भूल गया है कोई बैठा उसका हिसाब लिख रहा है और वो हिसाब बराबर करता है

01/11/2025

और जोर से बोलिए साहब
क्या पता आप जो बोले सच हो जाए लेकिन अगर आपका बोला सच हो जाएगा तो हर किसी को अपने लिए एक साउंड सिस्टम रखना होगा और थोड़ा उनका सोचिए जो बिचारे बोल नहीं सकते तो क्या होगा उनका

26/10/2025

हमने देखा त्योहारों का बदला रूप पहले ख़ुशियों से सजे होते थे आज दौलत से सजे होते हैं

26/10/2025

तस्वीर में हंसना
आसान बहुत है
ज़िन्दगी कांटों भरी
एक झाड़ से कम नहीं
जिसने कांटों से सजाया
अपना आशियाना
उससे पूछो जरा
हँसने की क़ीमत क्या है ….पूनम

26/10/2025

कई पड़ाव आए और चले गए
सोचा था बदले स्वार्थी
पर आज भी सिर्फ़
अपना फ़ायदा देखते
मैने खुद को बदल दिया
अब और नहीं कहना सीख लिया
अपने आपको खुश रखते
बिंदास ज़िंदगी अपनीं शर्तों पर जीते हैं
इसलिए जनाब दूसरों को खुश करने में
वक़्त मत गवांए वो कभी खुश नहीं हो सकते
मदद करिए और आगे बढ़ जाइए …….पूनम

02/10/2025

बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक
आप सभी को दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

02/10/2025

नैनों ने भी देखा था एक सपना
पर ज़रूरी नहीं हर सपना सच हो
अच्छा है उन सपनों को छोड़कर
आगे बढ़ जाना शायद यही जिन्दगी है ...पूनम

21/09/2025

शक्ति स्वरूपा हैं मां दुर्गा
भक्तों का कल्याण हैं करती
पापियों का संघार करके
धरा फिर से पाप मुक्त करती
जब जब पड़ी भक्तों पें मुश्किल
तब तब मां आती है धरा पर
भक्तों की रक्षा मां करती
खुशियों वरदान है देती.....✍️ पूनम

19/09/2025

भीड़ से भरी हुई
आजकल राहें हैं
ना जाने कहां से आये हैं
ना कहां जाना हैं
ना जाने कैसी दौड़ है
ना जाने किस के लिए
सिर्फ मैं की होड है
ना जाने कब और कहां
रुकेगी मैं दौड़
वक्त का कारवां
रुका है कब किसके लिए
वक्त रहते वक्त की
थोड़ी कद्र कर लें तु...... ✍️पूनम

19/09/2025

नीच दिखावन मैं चला
नीच मिला ना कोई
मन जो झांका आपना मुझ से नीच ना कोई ...✍️पूनम

19/09/2025

बड़े ना हो गुनन बिन, चाहें जितना डंका पीट, एक दिन ऐसा आएगा, ना मैं रहेगा ना तु, रहते वक्त संभल जा चुन नेकी की राह ...पूनम

14/09/2025

कहां गये हमारे संस्कार
आज की आधुनिकता ने
निगल हो जैसे
दौड़ रहें ना जाने
किसके पीछे हम
अच्छे थे हम
क्योंकि अच्छे संस्कार थे
थोड़े में ही हम
बांटना भी जानते थे
कैसा दिखावा
किसको दिखना
हम सब की मंजिल एक
आयें थे जहां से जाना है वहीं
फिर बीच में सब माया का है खेल
हम को बचना है इस मायाजाल
मेरा-मेरा कहकर
उम्र गंवा दी
कर्मों पर कभी ध्यान दिया ना
जाने की बेला जब आयीं
तो हाथ खाली थे संग ना कोई था
चलों देते हैं बच्चों को संस्कार
फिर वापस हम घर जाते हैं
जहां पर बड़ों का मान है होता
छोटे उनकी आज्ञा मानते....... ✍️ पूनम

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