14/09/2025
कहां गये हमारे संस्कार
आज की आधुनिकता ने
निगल हो जैसे
दौड़ रहें ना जाने
किसके पीछे हम
अच्छे थे हम
क्योंकि अच्छे संस्कार थे
थोड़े में ही हम
बांटना भी जानते थे
कैसा दिखावा
किसको दिखना
हम सब की मंजिल एक
आयें थे जहां से जाना है वहीं
फिर बीच में सब माया का है खेल
हम को बचना है इस मायाजाल
मेरा-मेरा कहकर
उम्र गंवा दी
कर्मों पर कभी ध्यान दिया ना
जाने की बेला जब आयीं
तो हाथ खाली थे संग ना कोई था
चलों देते हैं बच्चों को संस्कार
फिर वापस हम घर जाते हैं
जहां पर बड़ों का मान है होता
छोटे उनकी आज्ञा मानते....... ✍️ पूनम