Akhand Jyoti Yadav

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17/07/2025
16/07/2025

*दुनिया का सबसे*
*खूबसूरत* *म्यूजिक*
*अपनी* *हार्टबीट* है,
*क्योकि इसे खुद*
*भगवान ने कंपोज किया है*
*इसलिये हमेशा दिल की सुनें*।......

14/07/2025



13/07/2025

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13/09/2023

💢 #नेचुरल...
#या
#सिन्थेटिक...
#कैसी #हो
#सन्तान ?

💐आसपास देख रहे होंगे आप भी कि, कोचिंग का 'इंजेक्शन' लगा कर लौकी की तरह भावी 'इंजीनियर' और 'डॉक्टर' की पैदावार की जा रही है आजकल। छात्रों की 'नेचुरल' देसी नस्ल छोटी रह जा रही है,जो तनाव में आकर या तो मुरझा जा रही है या बाजार में बिकने लायक ही नहीं रह जा रही !

💐चलिये बीस, पच्चीस साल पहले चलते हैं ! जब सरकारी स्कूलों का दौर था। एक औसत लड़के को 'साइंस' और 'मैथ्स' ना दिलाकर अध्यापक ख़ुद ही उसको भट्टी में झुंकने से रोक लेते थे !

💐यानी 'आर्ट्स' और 'कामर्स' दिलवा कर लड़कों को शिक्षक, बाबू, पटवारी, व्यापारी, दरोगा और कुछ नहीं तो,नेता बनने की तरफ़ मोड़ देते थे !

💐मतलब साफ है, कि पानी को छोटी छोटी नाली,नहरों में छोड़ कर,योग्यता के हिसाब से अलग अलग दिशाओ में मोड़ देते थे,ताकि बेरोजगारों की बाढ़ का ख़तरा ही पैदा ना हो !

💐शिक्षक लड़के के गलती करने पर उसको डंडे से पीट पीट कर साक्षर बनाने पर अड़े रहते और तनाव झेलने के लिये मजबूत कर देते थे। पापा-मम्मी से शिकायत कर दी तो दो मम्मी तो दो झापड़ ही जड़ती थीं,पर पिता बेंत,लात,चप्पलों से आरती उतारते ही थे ! तुर्रा ये कि,अगले दिन सुबह बच्चे के साथ स्कूल आकर मास्साब से ये और कह जाते थे कि,"घर पर आपकी झूठी शिकायत कर रहा था,अगर न पढ़े तो दो बेंत हमारी तरफ से और लगाना आप !"

💐पक्ष और विपक्ष को एक होता देख, लड़का पिटने के बाद सीधा फील्ड में जाकर खेलकूद कर अपना तनाव कम कर लेता था। खेलते समय गिरता,पड़ता और कभी-कभी छोटी-मोटी चोट भी लग जाती तो मिट्टी डाल कर चोट को सुखा देता,पर कभी रोता बिलखता नहीं था ! घर पर आकर तो बिल्कुल नहीं बताता था चोट के बारे में ! पिता से तो भूल के भी नहीं !

💐दसवीं आते-आते लड़का लोहा बन जाता था। तनावमुक्त होकर हर खेल के लिए मैदान में तैय्यार खड़ा हो जाता था ! हर तरह के तनाव को झेलने के लिए 'फुलप्रूफ़' !

💐फिर आया कोचिंग और प्राईवेट स्कूलों का दौर,यानी कि शिक्षा स्कूल से निकल कर 'ब्रांडेड शोरुम' में आ गई। 'सोफ़ेस्टीकेटेड' हो गई। बच्चे को गुलाब के फूल की तरह 'ट्रीट' किया जाने लगा। मतलब बच्चा 50% लाएगा तो भी,
★"हमारा मुन्ना साइंस ही पढ़ेगा !"
★"हमारा मुन्ना तो डॉक्टर ही बनेगा !" ★"हमारा मुन्ना तो 'IIT' से 'B.tech' ही करेगा !"

💐आजकल शिक्षक बच्चे को अगर हल्के से चपत भी मार देते हैं,तो पापा-मम्मी 'मानवाधिकार' की किताब लेकर 'मीडिया वालों' के साथ स्कूल पर चढ़ाई कर देते हैं कि,"हमारे मुन्ना को हाथ भी कैसे लगा दिया ?" मीडिया वाले भी शिक्षक के गले में माइक घुुसेड़ कर पूछने लग जाते हैं,"आप ऐसा कर भी कैसे सकते हैं ?" यहाँ से आपका बच्चा 'सॉफ्टटॉय' बन गया ! बिल्कुल 'टैडीबियर' की तरह !

💐अब बच्चा स्कूल के बाद तीन-चार कोचिंग सेंटर में भी जाने लग गया। खेलकूद तो भूल ही गया। फ़लाने सर से छूटा,तो ढिमाके सर की क्लास में पहुँच गया। बचपन किताबों में उलझ गया और बच्चा 'कॉम्पटीशन' के 'चक्रव्यूह' में ही उलझता चला गया... अभिमन्यु की तरह और आपको पता ही है कि,जब कोई भी अभिमन्यु चक्रव्यूह का अन्तिम द्वार नहीं तोड़ पाता तो.....

💐क्यों भाई...

■आपका मुन्ना केवल 'डॉक्टर' और 'इंजीनियर' ही क्यों बनेगा ?

■वो आर्टिस्ट, सिंगर,खिलाड़ी,किसान और दुकानदार से लेकर नेता और कारख़ाने का मालिक क्यों नहीं बन सकता ?

■हजारों 'फील्ड' हैं अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करने के,उनमें से कोई क्यों नहीं चुन सकता वो ?

💐अभी कुछ दिनों पहले की बात है,मेरे मँहगे जूते आगे से थोड़े से फ़ट गये,पता किया एक लड़का लोखंडवाला ब्रिज के पास जूतों की अच्छी तरह से रिपेयरिंग करता है ! ये पता ही नहीं चलता कि जूते रिपेयर भी हुए हैं । उसके पास गया तो उसने 200 रुपये माँगे ! अमेरिका गया था तो दामाद जी ने दिलवाये थे,भारतीय मुद्रा में उस समय करीब 50 हज़ार रुपये कीमत थी,सो उन्हें रिपेयर कराना ज़रूरी था ! रिपेयरिंग वाले ने चार दिन बाद आने का 'अप्वाइंटमेंट' की पर्ची दे दी ! मैंने उस लड़के की आमदनी का पता लगाया,तो पता चला कि मरे दर्ज़े लगभग डेढ़ लाख रुपये महीने कमाता है। वो तो कभी 'कोचिंग मण्डी' कोटा नहीं गया। बस उसने अपनी 'योग्यता' को 'हुनर' में बदल दिया और अपने काम में 'मास्टरपीस' बन गया। यहाँ मुम्बई में ऐसे हुनरवाले एक नहीं हज़ारों हैं ! वो लड़का जूतों के साथ ही छाते भी रिपेयर करता है, बैग की ज़िप खराब हो जाये,तो उसकी भी रिपेयरिंग करता है ! लाइन लगी रहती है उनकी गुमटी पर ! ख़ुशामद अलग से करवाता हैं अपनी, मर्सडीज़ से चलने वालों से भी !

💐कोई ख़ाना बनाने की कला सीख,'शेफ़' बन कर लाखों के पैकेज़ में 'फ़ाइव स्टार' होटल में नौकरी कर रहा है ! कोई हलवाई का काम सीख, 'कैटरिंग कांट्रेक्टर' बन कर बड़े-बड़े इवेंट में लाखों रुपये कमा रहा है !

🌷कोई भैंसें पाल कर,डेयरी खोले है और ताज़ा दूध,पनीर, सीजन पर खोया भी बेच कर लाखों कमा रहा है !

🌷कोई अँगूठा छाप है,पर 'कंस्ट्रक्शन' के बड़े-बड़े ठेके ले रहा है,क्योंकि हर कला का लेबर तो मार्केट में मिलता ही है,वो तो उन्हें एकत्र कर आपके यहाँ काम पर लगा देता है और अपना कमीशन सीधा करता है ! सारा काम मोबाइल से ही चलाता है वो ! बनवाने वाले यानी कि आपका अलग अलग कारीगर तलाशने का सिरदर्द समाप्त ! अभी पिछले साल घर की 'रिन्युवेशन' करवाते समय एक बिहारी प्रौढ़ योगेन्द्र,जो एक पैर से लँगड़ा कर चलता था, को देखा ये सब करते मैंने !

🌷कोई कबाड़े का माल खरीद, बेचकर लाखों कमा रहा है !जैसे मेरे घर आने वाला 'गुड्डू कबाड़ी', जो अभिनेता सोनू सूद का घरेलू 'असिटेंट' भी है व लगभग हर समय साथ रहता है !

🌷कोई सब्जी बेच कर भी 50,60 हजार महीने आराम से कमा रहा है !

🌷कोई चाय की रेहड़ी लगा कर ही 40-50 हज़ार महीने के कमा रहा है !

🌷कोई कचौरी, समोसे,पकोड़े,जलेबी बेच कर ही लाखों रुपये महीने कमा रहा है।

💐मतलब साफ़ है कि,कमा वो ही रहा है जिसने अपनी योग्यता और उस कार्य के प्रति अपनी रोचकता को हुनर में बदला और उस हुनर में 'मास्टरपीस' बन गया। जरुरी नहीं है कि आप अपने बच्चे को डॉक्टर और इंजीनियर ही बनायें ! आप कुछ भी बना सकते हैं ! आप अपने बच्चे में उस कार्य को करने का हुनर परखें बस !

💐अपने बच्चों को 'टैडीबीयर' नहीं बल्कि 'लौहपुरूष' बनाइये ! अपनी मर्जी की भट्टी में मत झोंकिये उसको। उसे पानी की तरह नियंत्रित करके दिशा दीजिये बस,वो अपना रास्ता ख़ुद बना लेगा !

💐हाँ....बच्चों पर नियंत्रण जरुर रखिये। अगर अनियंत्रित हुआ तो वही पानी आपके और ख़ुद अपने जीवन में बाढ़ का रूप ले सब तबाह कर देगा !

💐कहने का मतलब ये है कि सन्तान को 'नेचुरल' ही रहने दें !क्यों 'सिंथेटिक' बना कर उसका जीवन और अपनी खुशियों को बर्बाद करना चाह रहे हैं ?

जे पी सिंह जी के वाल से कॉपी किया गया है...

09/07/2023

एक बड़ी कंपनी के गेट के सामने एक प्रसिद्ध समोसे की दुकान थीl लंच टाइम मे अक्सर कंपनी के कर्मचारी वहाँ आकर समोसे खाया करते थे।

एक दिन कंपनी के एक मैनेजर समोसे खाते खाते समोसे वाले से मजाक के मूड मे आ गये।

मैनेजर साहब ने समोसेवाले से कहा, "यार गोपाल, तुम्हारी दुकान तुमने बहुत अच्छे से मेंटेन की है, लेकीन क्या तुम्हे नही लगता के तुम अपना समय और टैलेंट समोसे बेचकर बर्बाद कर रहे हो.?

सोचो अगर तुम मेरी तरह इस कंपनी मे काम कर रहे होते तो आज कहा होते? हो सकता है शायद तुम भी आज मैंनेजर होते मेरी तरह।"

इस बात पर समोसेवाले गोपाल ने बडा सोचा, और बोला, " सर ये मेरा काम आपके काम से कही बेहतर हैl

10 साल पहले जब मै टोकरी मे समोसे बेचता था तभी आपकी जाॅब लगी थी, तब मै महीना 1000 रुपये कमाता था और आपकी पगार थी 10000 रुपये।

इन 10 सालो मे हम दोनो ने खूब मेहनत कीl
आप सुपरवाइजर से मॅनेजर बन गयेl
और मै टोकरी से इस प्रसिद्ध दुकान तक पहुँच गयाl
आज आप महीना के 50000 कमाते हैंl
और मै महीना 200000 कमाता हूँ l

लेकिन इस बात के लिए मै मेरे काम को आपके काम से बेहतर नही कह रहा हूँ।ये तो मै बच्चों के कारण कह रहा हूँ।

जरा सोचिए सर मैने तो बहुत कम कमाई पर धंधा शुरू किया था, मगर मेरे बेटे को यह सब नही झेलना पड़ेगा।

मेरी दुकान मेरे बेटे को मिलेगी, मैने जिंदगी मे जो मेहनत की है, वो उसका लाभ मेरे बच्चे उठाएंगे। जबकी आपकी जिंदगी भर की मेहनत का लाभ आपके मालिक के बच्चे उठाएंगे।

अब आपके बेटे को आप डाइरेक्टली अपनी पोस्ट पर तो नही बिठा सकते ना उसे भी आपकी ही तरह जीरो से शुरूआत करनी पड़ेगी और अपने कार्यकाल के अंत मे वही पहुँच जाएगा जहाँ अभी आप हो।

जबकी मेरा बेटा बिजनेस को यहा से और आगे ले जाएगाlऔर अपने कार्यकाल मे हम सबसे बहुत आगे निकल जाएगाl

अब आप ही बताइये किसका समय और टैलेंट बर्बाद हो रहा है ?"

मैनेजर साहब ने समोसेवाले को 2 समोसे के 20 रुपये दिये और बिना कुछ बोले वहाँ से खिसक लियेl

मालती देवी जी और मुलायम सिंह जी की इकलौती सन्तान के रूप में उस आँगन में जन्म लिया,जिसने शोषित और पिछड़ों के संघर्ष को आगे...
01/07/2023

मालती देवी जी और मुलायम सिंह जी की इकलौती सन्तान के रूप में उस आँगन में जन्म लिया,जिसने शोषित और पिछड़ों के संघर्ष को आगे बढ़कर स्वीकार किया । ज़िन्दगी इतनी आसान नही थी इनकीं क्योंकि पिता के कंधे पर पूरे समाज को उठाने की ज़िम्मेदारी थी और बीमार मां के कंधों पर परिवार था । आज आप जिस यादव परिवार पर सवाल उठाते हैं, वह अपने सबसे कमज़ोर वक़्त में मुट्ठी बनकर इकट्ठा था,हर एक कि कमज़ोरी को दूसरा सदस्य मज़बूत करता था । अपनी भूख को बाँटकर यह एक दूसरे के पेट भरते थे । सब मिलकर एक दूसरे का सहारा बन रहे थे,ताकि मज़बूत परिवार खड़ा हो तो मज़बूत समाज बने,अपने समुदाय को सन्देश दे सकें कि एकता में ही सफ़लता है ।

आप नही महसूस कर सकते कि पूरे समुदाय के सम्मान और समृद्धि के लिए कितना बुनियादी संघर्ष किया गया है इनके आँगन में, ऐसा आँगन जिसके केंद्र में बड़ी औलाद पर मुख्यधारा से पिछड़ चुके पूरे एक समुदाय की ज़िम्मेदारी भी थी और तैयारी भी थी,वह केंद्र बनकर अखिलेश यादव खड़े थे।जिनके कंधे पर बाप का संघर्ष था और खुद इतना पढ़ना भी था कि उनके समाज को हौंसला और रास्ता नज़र आए । यह यक़ीन जानो आज अखिलेश यादव लाखों परिवारों के ऐसे रोलमॉडल हैं, जो अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर दुनिया में उनकी तरह नाम करने के ख्वाब देखते हैं ।

हमने बहुत बड़े शहरों के बहुत एलीट बुद्धिजीवी लोगों में अखिलेश यादव के मोहब्बत और झुक कर मिलने पर नज़रे हल्की करते हुए देखा है, उन्हें नही पता कि गाँव के साधारण स्कूल से ऑस्ट्रेलिया,लन्दन तक का सफ़र कितनी मुश्किल से तय होता है । वह कभी नही सोच पाएँगे की डिबिया-लालटेन में पढ़ा बच्चा अपने गाँव, शहर को दुनिया की मशहूर जगह के लैम्पोस्ट देकर कैसे खड़ा होता है । वह बच्चा सैफई के साधारण स्कूल में पढ़ने की शुरआत करता है और इटावा में आगे की पढ़ाई करता हुआ,मिलिट्री स्कूल धौलपुर पहुँचा । सिविल इनवायरमेंटल इंजीनियरिंग में मास्टर करने के बाद दूसरी मास्टर डिग्री यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी से इनवायरमेंटल इंजीनियरिंग में पूरी की और अपनी पढ़ाई को अपने कार्यकाल में ज़मीन पर उतारकर दिखाया ।

अखिलेश यादव कभी अपने संघर्ष के दिनों को याद करके रोते नही,कभी उन चीज़ों का ज़िक्र करके भावुक नही होते जो मुश्किल से मिलती थीं,कभी अपने मुश्किल सफ़र के कड़वे अनुभवों को सुनाकर लोगों की आंखे नम नही करते,बस हंसते हुए हमेशा आगे की बातें करते,हमेशा तरक्की के ख़्वाब दिखाते,कभी अपने कठिन दौर को उन्होंने वोट के बाज़ार में नही बेचा, तो लोगों को लगता है कि वह सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए थे । उन्होंने संघर्ष ही नही किया । हमे भी नही अच्छा लगता कि भावुक,कमज़ोर और दर्द के वक़्त को याद कर कर के वोट बटोरा जाए, इसे छोड़कर अपने विज़न को देखना ही सबसे बेहतर रास्ता है ।

हमारे बीच के लोग अक्सर कहते हैं कि अखिलेश में वह बात नही जो पुराने लीडर्स में थी,असल में यह लोग आज भी टूटी चप्पल पहनकर धूल फाँकते हुए इन्हें देखना चाहते हैं । वह यूपी में हज़ारों किलोमीटर साइकिल चलाकर अपनी पार्टी,अपने उद्देश्य,अपनी राजनीति को परवान चढ़ाने वाले अखिलेश यादव को नज़रंदाज़ करते हैं । यह वह लोग हैं, जिन्होंने मुलायम सिंह को उनकी जवानी में कभी पसन्द नही किया, अब खड़े होकर कहते हैं कि अखिलेश में मुलायम वाली बात नही,असल में वह इन दो पीढ़ी के बढ़ने,इसके संघर्ष और इसकी सफलता को पचा नही पाते । अखिलेश की सरलता को कमज़ोरी समझ लेते हैं और भूल जाते हैं कि अखिलेश यादव अपनी पिछली पीढ़ी का आधुनिक अपग्रेड वर्ज़न हैं ,उनके पास और बड़े सपने हैं और आगे की ज़िम्मेदारियाँ हैं ।

मैं आज के रोज़ महज 27 साल की उम्र में लोकसभा पहुँचने वाले अखिलेश यादव की राजनीति पर बहुत बात नही करना चाहता हूँ । मैं जब भी उनको देखता हूँ तो महसूस होता है कि उनकी आँखों की चमक में उनकी माँ की तस्वीर है । मैं उन्हें डिम्पल जी के साथ देखता हूँ तो लगता है एक शफ़्फ़ाक़ मोहब्बत कैसी होती है । जब बच्चों के साथ फुटबॉल खेलते देखता हूँ,तो कहता हूँ कि यही तो मिसिंग था,हमारे लीडर इतनी ही बेलौस मोहब्बत करने वाले होने चाहिए । इतना ही परिवार की अहमियत समझने वाले होने चाहिए ।

अखिलेश यादव ने विरसे में जो पाया है, वह है हर उसके साथ खड़ा होना,जो उनके साथ नीचे से संघर्ष करता आया है । विरसे में वह पाए हैं सूनी आंखों में ख़्वाब संजोना । हज़ारों युवाओं को गांव गली से लाकर लखनऊ की चमकदार गलियों में उन्होंने जगह दी है, साथ ही इस नसीहत के साथ कि जो तुम्हे अच्छा लगे,जो तुम्हें बेहतर लगे,उसे अपने गाँव लेकर जाओ, इन ख्वाबों को अपनी गलियों में रोप दो ताकि तुम्हारे पीछे रह गए लोग,इतना बढ़ने के ख्वाब देख सकें । उनके चेहरे पर बड़ी मासूमियत है, जो अक्सर लोगों को चुभ जाती है, उन्हें लगता है कि इन्हें तो क्रूर होना चाहिए । जबकि सबको पता है कि हर इंसान में रौद्र रूप और उसकी बातों में वीर रस होता ही है मगर समझदार इंसान वह है, जो सौम्यता से दिलों को जीते । हम जानते हैं कि अखिलेश यादव बेहद संवेदनशील हैं । हर एक जिसकी ज़रूरत उनतक पहुँची है, उसे पूरा होते देखा है ।

अखिलेश यादव को हमने बहुत से प्रयोग करते देखा है । अपनी पार्टी में डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर की तस्वीर हो या महात्मा गाँधी की बातें,उन्हें करते हुए देखा है । यह कम चमत्कार नही है कि अपने कैडर को बौद्धिकता की तरफ़ भी उन्होंने मोड़ा है । कुछ लोग तो चाहते हैं की इनका कैडर हमेशा लठैत रहे,लाठी खाए,खून बहाए,बर्बाद होए और वह लोग ऊपर से यह भी तमगे दें कि, अरे वह इतने बौद्धिक नही जितने दिल्ली की बड़ी पार्टियों के लोग हैं । इन लोगों से अलग हटकर अखिलेश यादव ने अपने कैडर को सम्मान,सम्रद्धि और संघर्ष के साथ खूब पढ़ने की भी हिदायतें दी हैं, एक दिन यह फसल भी लहलहाएगी।एक बार फिर अखिलेश जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई । उत्तर प्रदेश की सबसे प्रभावशाली आवाज़,जो इसे वापिस संवार दे और देश के महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों तक पहुँचने की दुआओं के साथ शुभकामनाएं💐🍁🍁

#हैशटैग

16/06/2023

कुछ माता-पिता बड़े समझदार होते हैं !

वे अपने बच्चों को किसी की भी मंगनी, विवाह, लगन, शवयात्रा, उठावना, तेरहवीं (पगड़ी) जैसे अवसरों पर नहीं भेजते,
इसलिए की उनकी पढ़ाई में बाधा न हो!

उनके बच्चे किसी रिश्तेदार के यहां आते-जाते नहीं, न ही किसी का घर आना-जाना पसंद करते हैं।

वे हर उस काम से उन्हें से बचाते हैं . .
जहां उनका समय नष्ट होता हो !"

उनके माता-पिता उनके करियर और व्यक्तित्व निर्माण को लेकर बहुत सजग रहते हैं !

वे बच्चे सख्त पाबंदी मे जीते हैं! दिन भर पढ़ाई करते हैं,

महंगी कोचिंग जाते हैं, अनहेल्दी फूड नहीं खाते,

नींद तोड़कर सुबह जल्दी साइकिलिंग या स्विमिंग को जाते हैं, महंगी कारें, गैजेट्स और क्लोदिंग सीख जाते हैं, क्योंकि देर-सवेर उन्हें अमीरों की लाइफ स्टाइल जीना है !

फिर वे बच्चे औसत प्रतिभा के हों या होशियार, उनका अच्छा करियर बन ही जाता है, क्योंकि स्कूल से निकलते ही उन्हें बड़े शहरों के महंगे कॉलेजों में भेज दिया जाता है, जहां जैसे-तैसे उनकी पढ़ाई भी हो जाती है और प्लेसमेंट भी।

अब वह बच्चे बड़े शहरों में रहते हैं और छोटे शहरों को हिकारत से देखते हैं !

मजदूरों, रिक्शा वालों, खोमचे वालों की गंध से बचते हैं ...

ये बच्चे छोटे शहरों के गली-कूचे, धूल, गंध देखकर नाक-भौं सिकोड़ते हैं। रिश्तेदारों की आवाजाही उन्हें बेकार की दखल लगती है। फिर वे अपना शहर छोड़कर किसी मेट्रो सिटी या फिर विदेश चले जाते हैं ..

वे बहुत खुदगर्ज और संकीर्ण जीवन जीने लगते हैं।

अब माता-पिता की तीमारदारी और खोज खबर लेना भी उन्हें बोझ लगने लगता है !

पुराना मकान, पुराना सामान, पैतृक संपत्ति को बचाए रखना उन्हें मूर्खता लगने लगती है !

वे पैतृक संपत्ति को जल्दी ही उसे बेचकर
'""राइट इन्वेस्टमेंट""' करना चाहते हैं !
माता-पिता से ..
"वीडियो चैट" में उनकी बातचीत का मसला अक्सर यही रहता है .

इधर दूसरी तरफ कुछ ऐसे बच्चे होते हैं जो सबके सुख-दुख में जाते हैं,

जो किराने की दुकान पर भी जाते हैं, बुआ, चाचा, दादा-दादी को अस्पताल भी ले जाते हैं,
तीज-त्यौहार, श्राद्ध, बरसी के सब कार्यक्रमों में हाथ बंटाते हैं,
क्योंकि उनके माता-पिता ने उन्हें यह मैनर्स सिखाया है !

कि सब के सुख-दुख में शामिल होना चाहिए और ..
किसी की तीमारदारी, सेवा और रोजमर्रा के कामों से जी नहीं चुराना चाहिए .

इन बच्चों के माता-पिता.... उन बच्चों के माता-पिता की तरह समझदार नहीं होते..

क्योंकि वे इन बच्चों का
"कीमती समय" अनावश्यक कामों में नष्ट करवा देते हैं !

फिर ये बच्चे छोटे शहर में ही रहे जाते हैं और दोस्ती यारी रिश्ते नाते जिंदगी भर निभाते हैं !

यह बच्चे, उन बच्चों की तरह "बड़ा करियर"
नहीं बना पाते, इसलिए उन्हें असफल और कम होशियार मान लिया जाता है !

समय गुजरता जाता है, फिर कभी कभार,
वे 'सफल बच्चे' अपनी बड़ी गाड़ियों या फ्लाइट से छोटे शहर आते हैं,

दिन भर एसी में रहते हैं, पुराने घर और गृहस्थी में सौ दोष देखते हैं।

फिर रात को, इन बाइक, स्कूटर से शहर की धूल-धूप में घूमने वाले
'असफल बच्चों' को ज्ञान देते हैं कि.... तुमने अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली आदि आदि !!

असफल बच्चे लज्जित और हीनभाव से सब सुन लेते हैं !
फिर वे 'सफल बच्चे' वापस जाते समय इन असफल बच्चों को,
पुराने मकान में रह रहे उनके मां-बाप, नानी, दादा-दादी का ध्यान रखने की हिदायतें देकर,
वापस बड़े शहरों या विदेशों को लौट जाते हैं।

फिर उन बड़े शहरों में रहने वाले बच्चों की, इन छोटे शहर में रह रहे मां, पिता, नानी के घर कोई सीपेज रिपेयरिंग का काम होता है तो यही 'असफल बच्चे' बुलाए जाते हैं।
सफल बच्चों के उन वृद्ध मां-बाप के हर छोटे बड़े काम के लिए .. यह 'असफल बच्चे' दौड़े चले आते हैं।
कभी पेंशन, कभी किराना, कभी घर की मरम्मत, कभी पूजा...डॉ . के यहां लाना ले जाना कभी कुछ कभी कुछ !

जब वे 'सफल बच्चे' मेट्रोज के किसी एयरकंडीशंड जिम में ट्रेडमिल कर रहे होते हैं....!

तब छोटे शहर के यह 'असफल बच्चे' उनके बूढ़े पिता का चश्मे का फ्रेम बनवाने,किसी दूकान के काउंटर पर खड़े होते हैं...
और तो और इनके माता पिता के मरने पर अग्नि देकर तेरहवीं तक सारे क्रियाकर्म भी करते हैं !

सफल यह भी हो सकते थे....!

इनकी प्रतिभा और परिश्रम में कोई कमी न थी....!

""मगर...
इन बच्चों और उनके माता-पिता में शायद 'जीवन दृष्टि अधिक' थी !"

कि उन्होंने धन-दौलत से अधिक, "मानवीय संबंधों और सामाजिक मेल-मिलाप को आवश्यक" माना .

सफल बच्चों से किसी को कोई अड़चन नहीं है..

मगर बड़े शहरों में रहने वाले, वे 'सफल बच्चे' अगर 'सोना' हैं, तो छोटे शहरों-गांवों में रहने वाले यह 'असफल बच्चे' किसी 'हीरे' से कम नहीं !

आपके हर छोटे-बड़े काम के लिए दौड़े आने वाले ,

उनका कैरियर सजग बच्चों से कहीं अधिक तवज्जो और सम्मान के हकदार है !

#अपने_बच्चों_को_संवेदनशील_बनाईए...

वे "धन कमाने की मशीन" नहीं हैं !
सही सकारात्मक एवं मानवीय दृष्टिकोण ही सही जीवन है !!
🙏🙏🙏

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