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24/09/2025

Jai mata di

17/09/2025

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रावण के वध के बादअयोध्या पति श्री राम ने राजपाट संभाल लिया था और प्रजा राम राज्य से प्रसन्न थी. एक दिन भगवान महादेव की इ...
17/09/2025

रावण के वध के बाद

अयोध्या पति श्री राम ने राजपाट संभाल लिया था और प्रजा राम राज्य से प्रसन्न थी. एक दिन भगवान महादेव की इच्छा श्री राम से मिलने की हुई।

पार्वती जी को संग लेकर महादेव कैलाश पर्वत से अयोध्या नगरी के लिए चल पड़े. भगवान शिव और मां पार्वती को अयोध्या आया देखकर श्री सीता राम जी बहुत खुश हुए।

माता जानकी ने उनका उचित आदर सत्कार किया और स्वयं भोजन बनाने के लिए रसोई में चली गईं. भगवान शिव ने श्री राम से पूछा- हनुमान जी दिखाई नहीं पड़ रहे हैं, कहां हैं ?

श्री राम बोले- वह बगीचे में होंगे. शिव जी ने श्री राम जी से बगीचे में जाने की अनुमति मांगी और पार्वती जी के साथ बगीचे में आ गए. बगीचे की खूबसूरती देखकर उनका मन मोहित हो गया।

आम के एक घने वृक्ष के नीचे हनुमान जी दीन-दुनिया से बेखबर गहरी नींद में सोए थे और एक लय में खर्राटों से राम नाम की ध्वनि उठ रही थी. चकित होकर शिव जी और माता पार्वती एक दूसरे की ओर देखने लगे।

माता पार्वती मुस्करा उठी और वृक्ष की डालियों की ओर इशारा किया. राम नाम सुनकर पेड़ की डालियां भी झूम रही थीं. उनके बीच से भी राम नाम उच्चारित हो रहा था।

शिव जी इस राम नाम की धुन में मस्त मगन होकर खुद भी राम राम कहकर नाचने लगे. माता पार्वती जी ने भी अपने पति का अनुसरण किया. भक्ति में भरकर उनके पांव भी थिरकने लगे।

शिव जी और पार्वती जी के नृत्य से ऐसी झनकार उठी कि स्वर्गलोक के देवतागण भी आकर्षित होकर बगीचे में आ गए और राम नाम की धुन में सभी मस्त हो गए।

माता जानकी भोजन तैयार करके प्रतीक्षारत थीं परंतु संध्या घिरने तक भी अतिथि नहीं पधारे तब अपने देवर लक्ष्मण जी को बगीचे में भेजा।

लक्ष्मण जी ने तो अवतार ही लिया था श्री राम की सेवा के लिए. अतः बगीचे में आकर जब उन्होंने धरती पर स्वर्ग का नजारा देखा तो खुद भी राम नाम की धुन में झूम उठे।

महल में माता जानकी परेशान हो रही थीं कि अभी तक भोजन ग्रहण करने कोई भी क्यों नहीं आया. उन्होंने श्री राम से कहा भोजन ठंडा हो रहा है चलिए हम ही जाकर बगीचे में से सभी को बुला लाएं।

जब सीता राम जी बगीचे में गए तो वहां राम नाम की धूम मची हुई थी. हुनमान जी गहरी नींद में सोए हुए थे और उनके खर्राटों से अभी तक राम नाम निकल रहा था।

श्री सिया राम भाव विह्वल हो उठे. श्री राम जी ने हनुमान जी को नींद से जगाया और प्रेम से उनकी तरफ निहारने लगे. प्रभु को आया देख हनुमान जी शीघ्रता से उठ खड़े हुए. नृत्य का माहौल भंग हो गया।

शिव जी खुले कंठ से हनुमान जी की राम भक्ति की सराहना करने लगे. हनुमान जी सकुचाए लेकिन मन ही मन खुश हो रहे थे. श्री सीया राम जी ने भोजन करने का आग्रह भगवान शिव से किया।

सभी लोग महल में भोजन करने के लिए चल पड़े. माता जानकी भोजन परोसने लगीं. हुनमान जी को भी श्री राम जी ने पंक्ति में बैठने का आदेश दिया।

हनुमान जी बैठ तो गए परंतु आदत ऐसी थी की श्री राम के भोजन के उपरांत ही सभी भोजन करते थे।

आज श्री राम के आदेश से पहले भोजन करना पड़ रहा था. माता जानकी हनुमान जी को भोजन परोसती जा रही थी पर हनुमान का पेट ही नहीं भर रहा था. कुछ समय तक तो उन्हें भोजन परोसती रहीं फिर समझ गईं इस तरह से हनुमान जी का पेट नहीं भरने वाला।

उन्होंने तुलसी के एक पत्ते पर राम नाम लिखा और भोजन के साथ हनुमान जी को परोस दिया. तुलसी पत्र खाते ही हनुमान जी को संतुष्टि मिली और वह भोजन पूर्ण मानकर उठ खड़े हुए।

भगवान शिव शंकर ने प्रसन्न होकर हनुमान जी को आशीर्वाद दिया कि आप की राम भक्ति युगों-युगों तक याद की जाएगी और आप संकट मोचन कहलाएंगे।

वनवास में चलने का क्रमराम जी के वनवास काल में, घोर घने वन में चलते हुए, राम जी आगे चलते, सीता जी बीच में और लक्ष्मण जी स...
15/09/2025

वनवास में चलने का क्रम

राम जी के वनवास काल में, घोर घने वन में चलते हुए, राम जी आगे चलते, सीता जी बीच में और लक्ष्मण जी सबसे पीछे चलते।

सीता जी राम जी के चरणचिन्हों पर पैर नहीं रखतीं, लक्ष्मण जी दोनों के ही चरणचिन्हों पर पैर नहीं धरते, थोड़ा हट कर चलते हैं, कि कहीं भगवान और माँ के चरणचिन्ह मिट न जाएँ।

जहाँ पगडंडी पतली आ जाए तो लक्ष्मण जी को पगडंडी से उतर कर झाड़ झंझाड़ में चलना पड़े, और उनके पैरों में काँटे चुभ जाएँ।

पर वे उफ ना करें, शिकायत ना करें। यों चलते चलते पैर में काँटे ही काँटे लग गए, पैर धरते हैं तो पैर भूमि को छूता ही नहीं, काँटे ही छूते हैं, उन्होंने तो नहीं कहा, पर दर्द असहनीय हो गया तो भगवान ने सहसा ही यात्रा रोक दी।

लक्ष्मण जी को गोद में उठाकर एक शिला पर बिठाया, स्वयं नीचे बैठकर पैरों से काँटे निकालने लगे, और अपने आँसुओं से धोकर पैरों को स्वस्थ कर दिया।

अब राम जी ने चलने का क्रम उलट दिया, लक्ष्मण जी को आगे कर दिया, सीता जी बीच में ही रहीं और राम जी पीछे पीछे चलने लगे।

समझे? अरे मुसाफिरों! कष्ट तो प्रारब्ध का है। भगवान के मार्ग पर चलो या ना चलो, आएगा ही। पर अगर भगवान के मार्ग पर चले, कष्ट सहते चले गए, उफ न की, रुके नहीं, लौटे नहीं, तो वह दिन आता है जब भगवान स्वयं आपके कष्ट दूर कर देते हैं।

और फिर आपको उनके पीछे नहीं चलना पड़ता, वे ही आपके पीछे पीछे चलने लगते हैं।

15/09/2025
सुन्दरकांड में श्री हनुमानजी ने लंका का दहन किया परन्तु श्रीराम जी ने तो ऐसा कोई आदेश उन्हें नहीं दिया था।फिर भी श्री हन...
14/09/2025

सुन्दरकांड में श्री हनुमानजी ने लंका का दहन किया परन्तु श्रीराम जी ने तो ऐसा कोई आदेश उन्हें नहीं दिया था।

फिर भी श्री हनुमानजी ने लंका जला डाली। प्रभु ने तो श्री हनुमान जी को सीताजी के सम्मुख अपने बल और विरह का वर्णन सुनाने के लिए ही भेजा था।

श्री हनुमान जी हर कार्य को ह्रदय से विचार कर के किया करते थे जैसे श्री तुलसीदास जी ने बार बार लिखा कि...

इहाँ पवनसुत हृदयँ बिचारा
पुर रखवारे देखि बहु कपि कीन्ह बिचार
तरु पल्लव महुं रहा लुकाई।
करइ बिचार करों का भाई।।
कपि करि हृदयँ बिचार दीन्ह मुद्रिका डारि जब।।

परन्तु लंका दहन करते समय श्रीहनुमान जी ने तनिक भी विचार नहीं किया।

जब श्रीहनुमानजी लंका दहन करके प्रभु श्रीराम जी के पास लौट कर आये तो प्रभु ने पुछा कि आपने लंका जलाते समय विचार क्यों नहीं किया...

तो श्रीहनुमानजी बोले कि प्रभु लंका जलाई गयी है या जलवाई गयी है और अगर लंका जलवाई गयी है तो विचार भी जलवाने वाले ने किया होगा।

और सत्य यह है कि मेरे पास लंका जलाने की योजना थी ही नहीं। परन्तु आपने मुझसे यह लंका जलवाई। आओ समझे...

रावण ने अनजाने में ही त्रिजटा जो जन्म से राक्षसी थी परन्तु तुरीयावस्था को प्राप्त थी जो की हम माता सीता को कहते हैं, उसे माता सीताजी की सेवा में नियुक्त किया था।

तुरीयावस्था की परिभाषा करते हुए कहा जाता है जीवन में एक इच्छा पूर्ण होने के पश्चात् जब तक दूसरी इच्छा का उदय न हो, उसके बीच वाला काल ही तुरीय (समाधी) काल होता है।

अथार्त त्रिजटा एक पवित्र और उच्च अवस्था को प्राप्त कर चुकी थी।

जब सारी राक्षसियाँ श्रीसीता जी को डराने लगी, तो त्रिजटा ने कहा मैंने एक स्वप्न देखा है कि एक वानर आया हुआ है और वह लंका को जलाएगा।

त्रिजटा की यह बात सुनकर श्री हनुमानजी बड़े आश्चर्यचकित होकर सोचने लगे कि मै तो बहुत छिपकर आया था पर धन्य है यह त्रिजटा जिसने ये सपने में भी देख लिया।

परन्तु लंका दहन की बात सुनकर बड़ी दुविधा में पड़ गए। प्रभु ने तो इस पर कुछ नहीं कहा, और त्रिजटा के स्वप्न को अन्यथा भी नहीं ले सकते क्योंकि यह सत्य ही कह रही है कि एक वानर आया है।

और फिर इस समस्या का समाधान श्रीहनुमानजी ने बड़े सुंदर रूप में किया।

जब मेघनाद ने श्रीहनुमानजी पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया तो वह जानबूझकर गिर पड़े और मेघनाद के नागपाश से बाँधने पर वे बंध भी गए।

श्रीहनुमानजी ने सोचा कि मुझे लंका दहन का आदेश नहीं दिया गया था परन्तु फिर भी अगर प्रभु इस कार्य को करवाना चाहते हैं तो मै अपने सारे कर्म छोड़ देता हूँ। और बंधन में बन्ध जाता हूँ।

जिन कार्यो का आदेश आपने मुझे नहीं दिया था परन्तु उन्हें करने का स्पष्ट रूप से मुझे संकेत मिल रहे हैं, इसीलिए मैंने बंधन में पड़ना स्वीकार किया।

रावण की सभा में जब रावण के आदेशानुसार राक्षस तलवार लेकर मारने लगे तो श्रीहनुमानजी ने अपने को बचाने का किंचितमात्र भी उपाय नहीं किया और सोचा प्रभु मै तो बंधा हुआ हूँ अगर आपको बचाना है तो आप ही बचाए।

जब श्रीहनुमानजी यह सोच ही रहे थे, ठीक उसी समय विभीषण जी आ गए और उन्होंने कह दिया कि दूत को मारना नीति के विरुद्ध है।

फिर रावण ने पुन: आदेश दिया कि इसकी पूंछ में कपड़ा लपेट कर घी तेल डालकर आग लगा दो, तब श्रीहनुमानजी ने मन ही मन प्रभु को हाथ जोड़ के कहा...

“प्रभु”! अब तो निर्णय हो गया। मेरा भ्रम दूर हो गया और मै समझ गया कि आपने ही त्रिजटा के हाथों सन्देश भेजा था। नहीं तो भला लंका को जलाने के लिए मै कहाँ से घी तेल कपड़ा लाता, और कहाँ से आग लाता।

आपने तो अपनी इस योजना को पूरा करने का सारा प्रबंध रावण से ही करवा दिया तो फिर मै क्या विचार करता।

वस्तुत: जीव तो एक यंत्र के रूप में है, आप जिस तरह उससे काम लेना चाहेंगे, वह तो वही करेगा।

इसीलिए मै कहता हूँ कि लंका आपने ही जलवाई।...

"राष्ट्रहित सर्वोपरि" 💪💪

जय श्री राम 🙏

हर हर महादेव 🔱🙏🚩

जय श्री राम
11/09/2025

जय श्री राम

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