15/09/2025
वनवास में चलने का क्रम
राम जी के वनवास काल में, घोर घने वन में चलते हुए, राम जी आगे चलते, सीता जी बीच में और लक्ष्मण जी सबसे पीछे चलते।
सीता जी राम जी के चरणचिन्हों पर पैर नहीं रखतीं, लक्ष्मण जी दोनों के ही चरणचिन्हों पर पैर नहीं धरते, थोड़ा हट कर चलते हैं, कि कहीं भगवान और माँ के चरणचिन्ह मिट न जाएँ।
जहाँ पगडंडी पतली आ जाए तो लक्ष्मण जी को पगडंडी से उतर कर झाड़ झंझाड़ में चलना पड़े, और उनके पैरों में काँटे चुभ जाएँ।
पर वे उफ ना करें, शिकायत ना करें। यों चलते चलते पैर में काँटे ही काँटे लग गए, पैर धरते हैं तो पैर भूमि को छूता ही नहीं, काँटे ही छूते हैं, उन्होंने तो नहीं कहा, पर दर्द असहनीय हो गया तो भगवान ने सहसा ही यात्रा रोक दी।
लक्ष्मण जी को गोद में उठाकर एक शिला पर बिठाया, स्वयं नीचे बैठकर पैरों से काँटे निकालने लगे, और अपने आँसुओं से धोकर पैरों को स्वस्थ कर दिया।
अब राम जी ने चलने का क्रम उलट दिया, लक्ष्मण जी को आगे कर दिया, सीता जी बीच में ही रहीं और राम जी पीछे पीछे चलने लगे।
समझे? अरे मुसाफिरों! कष्ट तो प्रारब्ध का है। भगवान के मार्ग पर चलो या ना चलो, आएगा ही। पर अगर भगवान के मार्ग पर चले, कष्ट सहते चले गए, उफ न की, रुके नहीं, लौटे नहीं, तो वह दिन आता है जब भगवान स्वयं आपके कष्ट दूर कर देते हैं।
और फिर आपको उनके पीछे नहीं चलना पड़ता, वे ही आपके पीछे पीछे चलने लगते हैं।