Dr.ambedkar youth

Dr.ambedkar youth जय भीम जय भारत

25/04/2025

जय भीम जय भारत जय संविधान

सरकार आतंकियों को पकड़ने की बजाए हमारे देश के संविधान को बदलने की बात के रही है
क्या ये होने देंगे आप लोग
अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे
जय भीम जय संविधान 🇪🇺

Guru Ravidas Jayanti Celebrations on 12 feb jai gurudev dhan gurudev jai bhim jai bhart
08/02/2025

Guru Ravidas Jayanti Celebrations on 12 feb jai gurudev dhan gurudev jai bhim jai bhart

यह ऑस्ट्रिया में "साल्जबर्ग" नाम की जगह पर सर्दी के वजह से बना एक बर्फ का गोला है, लोग यहां पिकनिक के लिये आतें हैं और व...
06/07/2024

यह ऑस्ट्रिया में "साल्जबर्ग" नाम की जगह पर सर्दी के वजह से बना एक बर्फ का गोला है, लोग यहां पिकनिक के लिये आतें हैं और वहाँ के लोग अपने बच्चों को इसके निर्माण के वैज्ञानिकता को समझाते हैं।
जबकि भारत में आप सभी जानते ही हैं क्या होता है ?

मेडिकल की सबसे ऊंची डिग्री DM के रिटेन एक्जाम में अनिल कुमार ऑल इंडिया टॉपर हैं. लेकिन इंटरव्यू में प्रोफेसरों ने उन्हें...
06/04/2024

मेडिकल की सबसे ऊंची डिग्री DM के रिटेन एक्जाम में अनिल कुमार ऑल इंडिया टॉपर हैं. लेकिन इंटरव्यू में प्रोफेसरों ने उन्हें सिर्फ 8 नंबर दिए. क्या आप बता सकते हैं ऐसा क्यों?

इसका राज अनिल कुमार का सरनेम है। वे गंगवार हैं। किसान कुर्मी। OBC.

तीन लोगों का सलेक्शन होना है. अनिल अब मेरिट लिस्ट में नीचे चले गए हैं. सलेक्शन नही होगा। फिर भी वे जनरल मेरिट में शॉर्ट लिस्ट हुए हैं.

इंटरव्यू में सबसे ज्यादा नंबर पाने वाले तीनों लोगों के सरनेम देखिए. मिश्रा, पाठक, धर. तीनों ब्राह्मण.

रिटेन में पीयूष पाठक से ज्यादा नंबर लाने वाले दो कैंडिडेट सलेक्ट नहीं हो पाए क्योंकि पीयूष को इंटरव्यू में मिले सबसे ज्यादा 18, जबकि बाकी दो कैंडिडेट को मिले 7 और 7.

Mr Dilip C Mandal

10/03/2024

ये कारण है हमारे कॉम की गुलाबी का

20/01/2024

#जातिवाद #मनुवाद

आइंस्टीन के जो ड्राइवर थे, उन्होंने एक दिन आइंस्टीन से कहा- " सर,आप हर सभा में जो भाषण देते हैं, वह मैंने याद कर लिया है...
10/12/2023

आइंस्टीन के जो ड्राइवर थे, उन्होंने एक दिन आइंस्टीन से कहा- " सर,आप हर सभा में जो भाषण देते हैं, वह मैंने याद कर लिया है।''

-आइंस्टीन हैरान रह गये!

फिर उन्होंने कहा, "ठीक है, मैं अगली बैठक में जहां जा रहा हूं, वे मुझे नहीं जानते, आप मेरे स्थान पर भाषण दीजिए और मैं ड्राइवर बनूंगा।"

- ऐसे ही हुआ अगले दिन बैठक में ड्राइवर मंच पर चढ़ गई और ड्राइवर ने हूबहू आइंस्टीन की भाषण देने लगा....

दर्शकों ने जमकर तालियां बजाईं. फिर वे यह सोचकर गाड़ी के पास आए कि ड्राइवर आइंस्टीन है।

- तभी एक प्रोफेसर ने ड्राइवर से पूछा, ''सर, रिश्तेदार ने क्या कहा, क्या आप एक बार फिर संक्षेप में बताएंगे?''

- असली आइंस्टीन ने देखा बड़ा खतरा !!

इस बार ड्राइवर पकड़ा जाएगा। लेकिन ड्राइवर का जवाब सुनकर वह हैरान रह गये....

ड्राइवर ने उत्तर दिया. -"क्या यह साधारण बात आपके दिमाग में नहीं आई?

मेरे ड्राइवर से पूछिए वह आपको समझाएंगे "

नोट : "यदि आप बुद्धिमान लोगों के साथ चलते हैं, तो आप भी बुद्धिमान बनेंगे और मूर्खों के साथ ही सदा उठेंगे-बैठेंगे तो आपका मानसिक तथा बुद्धिमता का स्तर और सोच भी उन्हीं की भांति हो जाएगी..!!

टोमस बाटा चमार कहानी TATA की नही, ना ही किसी BIRLA या BAJAJ की. कहानी है BATA की, हर भारतीयों के लगता है BATA भारतीय कंप...
17/10/2023

टोमस बाटा चमार
कहानी TATA की नही, ना ही किसी BIRLA या BAJAJ की. कहानी है BATA की, हर भारतीयों के लगता है BATA भारतीय कंपनी है. लेकिन कभी एहसास ही नही हुआ BATA विदेशी कंपनी है और इस भव्य कंपनी की स्थापना चमार जाति के TOMAS BATA ने 1894 में की थी.

◆◆◆
हैरान परेशान होने की जरूरत नही है. BATA परिवार चमार जाति से हैं. BATA परिवार 8 पीढ़ियों से जूते चप्पल और चमड़े बनाने के कारोबार से जुड़ा है. यानी BATA परिवार 300 वर्ष से महान और पवित्र कार्य चमड़ों के उत्पादन से जुड़े हैं.

TOMAS BATA का जन्म 1876 में CZECHOSLOVAKIA के एक छोटे शहर ZLIN में हुआ. पूरा परिवार मोची के कार्य से जुड़ा था. इस छोटे से शहर में BATA परिवार के अलावा बेहतरीन जूते चप्पल कोई नही बना सकता था. चमड़े के कार्य में BATA परिवार का मान सम्मान था.

CZECHOSLOVAKIA देश में चर्मकार को नीच या अछूत नही समझा जाता. उन्हें समाज में बराबरी का मान सम्मान था, बल्कि यूरोप अमेरिका में किसी भी श्रम उत्पादन कार्य जुड़े लोगों का पुजारी वर्ग से अधिक मान सम्मान है. घोड़ी पर चढ़ने और मूंछ रखने पर वहां हत्या नही होती.

◆◆◆
बराबरी के महान समाज में TOMAS BATA ने भी अपने परिवार का पेशा अपनाया और मोची बन गए. TOMAS बेहद सस्ते और अच्छे गुणवत्ता के जूते चप्पल बनाकर बेचते. बिक्री ज्यादा होती पर मुनाफा कम होता. TOMAS BATA ने जूते चप्पल निर्माण की कंपनी खोलनी चाहिए. कंपनी खोलने में आर्थिक सहायता का काम उनकी माँ ने किया और भाई बहन उनके सहयोगी बने.

अपने घर के एक कमरे में 1894 में BATA कंपनी की नींव डाली. अच्छे गुणवत्ता के जूते सस्ते दामों में बेचने के कारण TOMAS BATA को नुकसान हुआ. कंपनी चलाने का गुण सीखने के लिए लंदन में एक जूते की फैक्टरी में मजदूर बनकर काम किया.

मार्केटिंग, स्ट्रेटेजी, प्रोडक्शन, डिस्ट्रीब्यूशन और विज्ञापन का गुण सीखकर उन्होंने दुबारा अपने देश आकर BATA कंपनी में जान फूंक दी. अच्छे गुणवत्ता के जूते चप्पल सस्ते दामों में बेचना जारी रखा. ज्यादा सेल होने के कारण कंपनी को मुनाफा हुआ.

◆◆◆
उस वक़्त अच्छे गुणवत्ता के वस्तुओं का अर्थ था महंगे दामों में बिकने वाली वस्तु जो केवल अमीर आदमी खरीद सकते थे. चमार जाति के काबिल उद्योगपति TOMAS BATA ने इस धारणा को ध्वस्त कर नई धारणा गड़ी, अच्छे और बेहतरीन गुणवत्ता की वस्तुएं भी सस्ते दामों में मिल सकती है. और BATA के जूते चप्पल इनमें से एक थे.

आज से 100 साल पहले तक जूते हो या चप्पल इसे अमीरों की पहनने वाली वस्तु समझा जाता था. गरीब तो नंगे पांव ट्रैन में सफर कर बम्बई कलकत्ता में मजदूरी करने आते थे. TOMAS BATA का सपना है अमीर हो या गरीब BATA के जूते हर पैर में होने चाहिए. पूरे भारत में फैल कर कंपनी ने अफ्रीका में भी अपना विस्तार किया जहां कई कंपनियां जाने इसलिए कतराती थीं गरीब अफ्रीकी जिसके पास खाने को नही है वे जूते चप्पल कहां से खरीदेंगे ?

लेकिन TOMAS BATA ने अफ्रीका महाद्वीप के पूरे देश में सस्ते दामों में जूते चप्पल बेचकर हर गरीब के पांव में जूते चप्पल पहना दिया.

◆◆◆
1932 में TOMAS BATA की हवाई जहाज दुर्घटना में मृत्यु हो गई.उनके निधन के बाद उनके भाई और उनके पुत्र ने BATA कंपनी को हर देश में सबकी पसंदीदा कंपनी बना दिया.

BATA केवल जूते चप्पल का ब्रांड नही, भरोसे का भी ब्रांड है. चर्मकार TOMAS BATA ने कहा था मुनाफे के साथ वो उपभोक्ताओं का भरोसा भी कमाना चाहते हैं. BATA आज भी भरोसे का नाम है.

अंतिम पंक्ति : TOMAS BATA का जन्म अगर भारत में हुआ होता तो यहां भेदभाव करने वाला धर्म, जातीय वर्ण व्यवस्था वाला समाज TOMAS BATA को उद्योगपति नही केवल मोची बने रहने का अधिकार देता.

20/08/2023

chamar

06/08/2023
"मेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा था. उस दिन सफर से लौट कर मैं घर आय...
24/07/2023

"मेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा था. उस दिन सफर से लौट कर मैं घर आया तो पत्नी ने आ कर एक लिफाफा मुझे पकड़ा दिया. लिफाफा अनजाना था लेकिन प्रेषक का नाम देख कर मुझे एक आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा हुई.
‘अमर विश्वास’ एक ऐसा नाम जिसे मिले मुझे वर्षों बीत गए थे. मैं ने लिफाफा खोला तो उस में 1 लाख डालर का चेक और एक चिट्ठी थी. इतनी बड़ी राशि वह भी मेरे नाम पर. मैं ने जल्दी से चिट्ठी खोली और एक सांस में ही सारा पत्र पढ़ डाला. पत्र किसी परी कथा की तरह मुझे अचंभित कर गया. लिखा था :

आदरणीय सर, मैं एक छोटी सी भेंट आप को दे रहा हूं. मुझे नहीं लगता कि आप के एहसानों का कर्ज मैं कभी उतार पाऊंगा.
ये उपहार मेरी अनदेखी बहन के लिए है. घर पर सभी को मेरा प्रणाम.
आप का, अमर.

मेरी आंखों में वर्षों पुराने दिन सहसा किसी चलचित्र की तरह तैर गए.
एक दिन मैं चंडीगढ़ में टहलते हुए एक किताबों की दुकान पर अपनी मनपसंद पत्रिकाएं उलटपलट रहा था कि मेरी नजर बाहर पुस्तकों के एक छोटे से ढेर के पास खड़े एक लड़के पर पड़ी. वह पुस्तक की दुकान में घुसते हर संभ्रांत व्यक्ति से कुछ अनुनयविनय करता और कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर वापस अपनी जगह पर जा कर खड़ा हो जाता. मैं काफी देर तक मूकदर्शक की तरह यह नजारा देखता रहा. पहली नजर में यह फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों द्वारा की जाने वाली सामान्य सी व्यवस्था लगी, लेकिन उस लड़के के चेहरे की निराशा सामान्य नहीं थी. वह हर बार नई आशा के साथ अपनी कोशिश करता, फिर वही निराशा.
मैं काफी देर तक उसे देखने के बाद अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाया और उस लड़के के पास जा कर खड़ा हो गया. वह लड़का कुछ सामान्य सी विज्ञान की पुस्तकें बेच रहा था. मुझे देख कर उस में फिर उम्मीद का संचार हुआ और बड़ी ऊर्जा के साथ उस ने मुझे पुस्तकें दिखानी शुरू कीं. मैं ने उस लड़के को ध्यान से देखा. साफसुथरा, चेहरे पर आत्मविश्वास लेकिन पहनावा बहुत ही साधारण. ठंड का मौसम था और वह केवल एक हलका सा स्वेटर पहने हुए था. पुस्तकें मेरे किसी काम की नहीं थीं फिर भी मैं ने जैसे किसी सम्मोहन से बंध कर उस से पूछा, ‘बच्चे, ये सारी पुस्तकें कितने की हैं?’
‘आप कितना दे सकते हैं, सर?’
‘अरे, कुछ तुम ने सोचा तो होगा.’
‘आप जो दे देंगे,’ लड़का थोड़ा निराश हो कर बोला.
‘तुम्हें कितना चाहिए?’ उस लड़के ने अब यह समझना शुरू कर दिया कि मैं अपना समय उस के साथ गुजार रहा हूं.
‘5 हजार रुपए,’ वह लड़का कुछ कड़वाहट में बोला.
‘इन पुस्तकों का कोई 500 भी दे दे तो बहुत है,’ मैं उसे दुखी नहीं करना चाहता था फिर भी अनायास मुंह से निकल गया.
अब उस लड़के का चेहरा देखने लायक था. जैसे ढेर सारी निराशा किसी ने उस के चेहरे पर उड़ेल दी हो. मुझे अब अपने कहे पर पछतावा हुआ. मैं ने अपना एक हाथ उस के कंधे पर रखा और उस से सांत्वना भरे शब्दों में फिर पूछा, ‘देखो बेटे, मुझे तुम पुस्तक बेचने वाले तो नहीं लगते, क्या बात है. साफसाफ बताओ कि क्या जरूरत है?’
वह लड़का तब जैसे फूट पड़ा. शायद काफी समय निराशा का उतारचढ़ाव अब उस के बरदाश्त के बाहर था.
‘सर, मैं 10+2 कर चुका हूं. मेरे पिता एक छोटे से रेस्तरां में काम करते हैं. मेरा मेडिकल में चयन हो चुका है. अब उस में प्रवेश के लिए मुझे पैसे की जरूरत है. कुछ तो मेरे पिताजी देने के लिए तैयार हैं, कुछ का इंतजाम वह अभी नहीं कर सकते,’ लड़के ने एक ही सांस में बड़ी अच्छी अंगरेजी में कहा.
‘तुम्हारा नाम क्या है?’ मैं ने मंत्रमुग्ध हो कर पूछा.
‘अमर विश्वास.’
‘तुम विश्वास हो और दिल छोटा करते हो. कितना पैसा चाहिए?’
‘5 हजार,’ अब की बार उस के स्वर में दीनता थी.
‘अगर मैं तुम्हें यह रकम दे दूं तो क्या मुझे वापस कर पाओगे? इन पुस्तकों की इतनी कीमत तो है नहीं,’ इस बार मैं ने थोड़ा हंस कर पूछा.
‘सर, आप ने ही तो कहा कि मैं विश्वास हूं. आप मुझ पर विश्वास कर सकते हैं. मैं पिछले 4 दिन से यहां आता हूं, आप पहले आदमी हैं जिस ने इतना पूछा. अगर पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया तो मैं भी आप को किसी होटल में कपप्लेटें धोता हुआ मिलूंगा,’ उस के स्वर में अपने भविष्य के डूबने की आशंका थी.
उस के स्वर में जाने क्या बात थी जो मेरे जेहन में उस के लिए सहयोग की भावना तैरने लगी. मस्तिष्क उसे एक जालसाज से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं था, जबकि दिल में उस की बात को स्वीकार करने का स्वर उठने लगा था. आखिर में दिल जीत गया. मैं ने अपने पर्स से 5 हजार रुपए निकाले, जिन को मैं शेयर मार्किट में निवेश करने की सोच रहा था, उसे पकड़ा दिए. वैसे इतने रुपए तो मेरे लिए भी माने रखते थे, लेकिन न जाने किस मोह ने मुझ से वह पैसे निकलवा लिए.
‘देखो बेटे, मैं नहीं जानता कि तुम्हारी बातों में, तुम्हारी इच्छाशक्ति में कितना दम है, लेकिन मेरा दिल कहता है कि तुम्हारी मदद करनी चाहिए, इसीलिए कर रहा हूं. तुम से 4-5 साल छोटी मेरी बेटी भी है मिनी. सोचूंगा उस के लिए ही कोई खिलौना खरीद लिया,’ मैं ने पैसे अमर की तरफ बढ़ाते हुए कहा.
अमर हतप्रभ था. शायद उसे यकीन नहीं आ रहा था. उस की आंखों में आंसू तैर आए. उस ने मेरे पैर छुए तो आंखों से निकली दो बूंदें मेरे पैरों को चूम गईं.
‘ये पुस्तकें मैं आप की गाड़ी में रख दूं?’
‘कोई जरूरत नहीं. इन्हें तुम अपने पास रखो. यह मेरा कार्ड है, जब भी कोई जरूरत हो तो मुझे बताना.’
वह मूर्ति बन कर खड़ा रहा और मैं ने उस का कंधा थपथपाया, कार स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी.
कार को चलाते हुए वह घटना मेरे दिमाग में घूम रही थी और मैं अपने खेले जुए के बारे में सोच रहा था, जिस में अनिश्चितता ही ज्यादा थी. कोई दूसरा सुनेगा तो मुझे एक भावुक मूर्ख से ज्यादा कुछ नहीं समझेगा. अत: मैं ने यह घटना किसी को न बताने का फैसला किया.
दिन गुजरते गए. अमर ने अपने मेडिकल में दाखिले की सूचना मुझे एक पत्र के माध्यम से दी. मुझे अपनी मूर्खता में कुछ मानवता नजर आई. एक अनजान सी शक्ति में या कहें दिल में अंदर बैठे मानव ने मुझे प्रेरित किया कि मैं हजार 2 हजार रुपए उस के पते पर फिर भेज दूं. भावनाएं जीतीं और मैं ने अपनी मूर्खता फिर दोहराई. दिन हवा होते गए. उस का संक्षिप्त सा पत्र आता जिस में 4 लाइनें होतीं. 2 मेरे लिए, एक अपनी पढ़ाई पर और एक मिनी के लिए, जिसे वह अपनी बहन बोलता था. मैं अपनी मूर्खता दोहराता और उसे भूल जाता. मैं ने कभी चेष्टा भी नहीं की कि उस के पास जा कर अपने पैसे का उपयोग देखूं, न कभी वह मेरे घर आया. कुछ साल तक यही क्रम चलता रहा. एक दिन उस का पत्र आया कि वह उच्च शिक्षा के लिए आस्ट्रेलिया जा रहा है. छात्रवृत्तियों के बारे में भी बताया था और एक लाइन मिनी के लिए लिखना वह अब भी नहीं भूला.
मुझे अपनी उस मूर्खता पर दूसरी बार फख्र हुआ, बिना उस पत्र की सचाई जाने. समय पंख लगा कर उड़ता रहा. अमर ने अपनी शादी का कार्ड भेजा. वह शायद आस्ट्रेलिया में ही बसने के विचार में था. मिनी भी अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी. एक बड़े परिवार में उस का रिश्ता तय हुआ था. अब मुझे मिनी की शादी लड़के वालों की हैसियत के हिसाब से करनी थी. एक सरकारी उपक्रम का बड़ा अफसर कागजी शेर ही होता है. शादी के प्रबंध के लिए ढेर सारे पैसे का इंतजाम…उधेड़बुन…और अब वह चेक?
मैं वापस अपनी दुनिया में लौट आया. मैं ने अमर को एक बार फिर याद किया और मिनी की शादी का एक कार्ड अमर को भी भेज दिया.
शादी की गहमागहमी चल रही थी. मैं और मेरी पत्नी व्यवस्थाओं में व्यस्त थे और मिनी अपनी सहेलियों में. एक बड़ी सी गाड़ी पोर्च में आ कर रुकी. एक संभ्रांत से शख्स के लिए ड्राइवर ने गाड़ी का गेट खोला तो उस शख्स के साथ उस की पत्नी जिस की गोद में एक बच्चा था, भी गाड़ी से बाहर निकले.
मैं अपने दरवाजे पर जा कर खड़ा हुआ तो लगा कि इस व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है. उस ने आ कर मेरी पत्नी और मेरे पैर छुए.
‘‘सर, मैं अमर…’’ वह बड़ी श्रद्धा से बोला.
मेरी पत्नी अचंभित सी खड़ी थी. मैं ने बड़े गर्व से उसे सीने से लगा लिया. उस का बेटा मेरी पत्नी की गोद में घर सा अनुभव कर रहा था. मिनी अब भी संशय में थी. अमर अपने साथ ढेर सारे उपहार ले कर आया था. मिनी को उस ने बड़ी आत्मीयता से गले लगाया. मिनी भाई पा कर बड़ी खुश थी.
अमर शादी में एक बड़े भाई की रस्म हर तरह से निभाने में लगा रहा. उस ने न तो कोई बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर डाली और न ही मेरे चाहते हुए मुझे एक भी पैसा खर्च करने दिया. उस के भारत प्रवास के दिन जैसे पंख लगा कर उड़ गए.
इस बार अमर जब आस्ट्रेलिया वापस लौटा तो हवाई अड्डे पर उस को विदा करते हुए न केवल मेरी बल्कि मेरी पत्नी, मिनी सभी की आंखें नम थीं. हवाई जहाज ऊंचा और ऊंचा आकाश को छूने चल दिया और उसी के साथसाथ मेरा विश्वास भी आसमान छू रहा था.
मैं अपनी मूर्खता पर एक बार फिर गर्वित था और सोच रहा था कि इस नश्वर संसार को चलाने वाला कोई भगवान नहीं हमारा विश्वास ही है. "

एक कदम मानवता की और.....
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