28/09/2025
देश के कई राज्यों का दिन का औसतन तापमान 35 डिग्री के आस पास है , पिछले एक दो दिनों से लोग गर्मी से इस समय भी परेशान दिख रहे हैं , मानसून कई राज्यों से विदा हो चूका है , इस गर्मी से बेहाल लोग बारिश का इन्तजार कर रहे हैं , कुछ बोल रहे हैं सर्दी जल्दी आ जाए तो अच्छा है , पहले दशहरे के पहले सर्दी जा जाती थी, रामलीला देखने स्वेटर में जाते थे , ऐसा कुछ वर्षों से लगातार लोग बोल रहे हैं कि अब दशहरे पर तो सर्दी आती ही नहीं ,,,सच है ,, 1980 के दशक में और उसके पहले सर्दी में जमकर सर्दी पड़ती थी और दशहरे तक सर्दी आ जाती थी, मानसून सीजन में जमकर बारिश भी होती थी , गर्मी के सीजन में अब जैसी गर्मी नहीं पड़ती थी जबकि उस समय ऐसी , कूलर न के बराबर थे और बिजली बहुत कम जगहों पर थी , 80 के दशक में देश की जनसँख्या 70 करोड़ के आसपास थी और अब 140 करोड़ से ज्यादा, जमीन उतनी ही थी जितनी अब है लेकिन उस समय खलिहान , बाग़ बगीचे ज्यादा थे , पेड़ अब से ज्यादा थे, अब तमाम बाग़ बगीचे ख़त्म हो चुके हैं , बहुत सारे पेड़ काटे जा चुके हैं , बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन इसका प्रमुख कारण है , पेड़ों की कटाई अब भी जारी है , जितने पेड़ काटे जा रहे हैं उतने लगाए नहीं जा रहे , सिर्फ फोटो सोशल मीडिया पर डालने के लिए ही अधिकतर लोग पेड़ लगाते हैं ,,,तमाम बड़े -बड़े जंगल उजाड़ दिए गए ,, देश के एक उद्योगपति ने अपने फायदे के लिए कई जंगल समाप्त कर दिए , लगभग 60 लाख पेड़ कटवा दिए अपने फायदे के लिए ,, पारसा ईस्ट केंटे बासन (हसदेव अरण्य) (छत्तीसगढ़) में उस उद्योगपति ने 8-10 लाख पेड़ कटवाए, तलबिरा II & III (ओडिशा) में लगभग 3-5 लाख पेड़ , धीरौली (मध्य प्रदेश) में लगभग 8-10 लाख पेड़ , गारे पालमा II (छत्तीसगढ़) में लगभग 2-3 लाख पेड़ पिरपैंती थर्मल पावर प्लांट (बिहार) में लगभग -10 लाख पेड़ , ग्रेट निकोबार ट्रांसशिपमेंट पोर्ट (अंडमान) में लगभग 20 लाख पेड़ , इस तरह से एक अकेले ने 60 लाख पेड़ कटवा दिए ,,,नाम तो आप लोग जानते ही होंगे कि इस उद्योगपति का क्या नाम है ,,,हम बबूल बो रहे हैं ,, आम कहाँ से खाएंगे ,,,हमारी आने वाली पीढ़ी और ज्यादा गर्मी झेलने पर मजबूर होगी , हो सकता है 21 के दशक में हमारी पीढ़ी को जनवरी में ही थोड़ी बहुत सर्दी दिखे ,, दिसंबर तक OMG क्या गर्मी है ,,कहती दिखे हमारी पीढ़ी ,, देश की जनसँख्या के हिसाब से 80 के दशक से अब पेड़ दोगुने होने चाहिए थे , आधे भी नहीं रहे