02/12/2024
ओवैसी हो या मदनी, या फिर नोमानी... आलोचनाओं से मुक्त कोई नहीं...!
क्या तबलीग़ जमात के आलिम आलोचनाओं से मुक्त हैं? - नहीं!, क्या देवबंदी आलिम आलोचनाओं से मुक्त हैं? - नहीं!, क्या अहले हदीस से जुड़े आलिमों की आलोचना नहीं होती? - होती है!, क्या बरेलवी आलिमों की आलोचना नहीं होती? - होती है, जमकर होती है!, क्या जमात ए इस्लामी से जुड़े आलिमों को आलोचनाओं का सामना नहीं करना पड़ता? - पड़ता है...!
हर फ़िरके, हर फ़िक़ह के आलिमों की आलोचना होती है, ख़ूब होती है, जबकि ये तमाम लोग अपने हिसाब से दीन की तबलीग़ कर रहे हैं; तो फ़िर, राजनीति से जुड़े फ़ैसले लेने वाले, विवादित फ़ैसले लेने वाले आलिम आलोचनाओं के दायरे से बाहर कैसे रह सकते हैं???
कल Asaduddin Owaisi ने, औरंगाबाद के दो सीटों पर मजलिस उम्मीदवारों की मामूली वोटों से हुई हार को लेकर हज़रत और औरंगाबाद की उनकी 'टीम' की आलोचना की तो बवाल मच गया है। 'उलमाओं को कुछ न बोलो, उलमाओं को कुछ न बोलो' वाला शोर उठा है; लेकिन, बंटवारे के तुरंत बाद भारत के मुसलमानों को सियासत से दस्तबर्दार कर पिछले 75 सालों से फ़र्ज़ी सेक्यूलर दलों का समर्थन करते हुए मुसलमानों को हिंदुत्ववादी दलों के सामने दुश्मन बनाकर पेश करने वाले लोग आलोचनाओं के दायरे से कैसे बाहर हो सकते हैं???
अव्वल तो ये कि लोकसभा चुनाव नतीजों की तरह ही, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का प्रचार चल रहा था तो हज़रत को क्या ज़रूरत थी ज़ाहिरी 'समर्थनगिरी' कर हिन्दुत्ववादियों को 'वोट जिहाद' का मुद्दा थमाने की?? जिसके एक इशारे पर लाखों मराठा सड़कों पर उतर रहे थे, उस मनोज जरांगे पाटील ने रातोरात चुनाव का चक्कर छोड़कर गोल गोल संदेश दे दिया, तो महाराष्ट्र की राजनीति में आपकी कौड़ी की सक्रियता न होते हुए और कोई ज़मीनी समाजी संगठन के न होते हुए आपने क्यों यहां ज़ाहिरी दख़ल दी?? आपके ज़ाहिरी समर्थन के बावजूद MVA के किसी भी बड़े नेता ने न तो ख़ुशी जताई न आपका आभार जताया! यानी, तभी साफ़ हो गया कि हज़रत ने बेवक़्त की शहनाई बजा दी है...!
अच्छा, ग़ैर ज़रूरी समर्थन घोषित कर भी दिया तो उसमें कुछ सीटें काफ़ी विवादित थी। औरंगाबाद पूर्व से Imtiaz jaleel जैसा मज़बूत उम्मीदवार Aimim- All India Majlis-E-Ittehadul Muslimeen से चुनाव लड़ रहा था तो औरंगाबाद सेंट्रल से Naser Siddiqui मैदान में थे जो कि पिछले चुनाव में भी 2 नंबर रहे थे। दूसरी अहम बात ये कि चंद महीनों पहले हुए लोकसभा चुनाव में औरंगाबाद ईस्ट और सेंट्रल की सीट पर 'मजलिस' को बढ़त मिली थी। मतलब, इन दोनों सीटों की हद तक 'मजलिस' जीत गई थी। इसके बावजूद ईस्ट में समाजवादी पार्टी और सेंट्रल में सीधे ठाकरे सेना को समर्थन दे दिया गया! नतीजों में, हज़रत का समर्थन प्राप्त सपा उम्मीदवार महज़ 7 हज़ार वोट ले सका, लेकिन दूसरी तरफ़ यहां इम्तियाज़ जलील जैसा उम्मीदवार महज़ 2 हज़ार वोटों से हार गया! 'सेंट्रल' में भी महज़ 8 हज़ार वोटों से 'मजलिस' की हार हुई और इससे मुसलमानों के इससे ज़्यादा वोट दूसरी उम्मीदवारों तरफ़ गए...!
औरंगाबाद की सीटों के मामले में हज़रत को 'शक का फ़ायदा' भी नहीं दिया जा सकता क्योंकि इम्तियाज़ जलील ने 4.5 साल आमदार और 5 साल ख़ासदार रहते पूरे देश में अपनी पहचान बना ली है और हज़रत भी उन्हें अच्छे से जानते थे, सीधा जानते थे। इसलिए, कोई ये बात नहीं कह सकता कि औरंगाबाद में 'मजलिस' और उसके उम्मीदवारों की पोज़िशन हज़रत को पता नहीं थी। इसलिए, इन दोनों सीटों पर हुई हार को लेकर हज़रत आलोचना से बरी नहीं हो सकते। अगर, किसी और को समर्थन देना हज़रत का लोकतांत्रिक अधिकार है तो फ़िर उसने समर्थन के चलते अपने विधायक को खोने वाली पार्टी को भी अधिकार है कि वो अपने नुकसान का ज़ाहिरी ऑडिट करे...!
धुले शहर की सीट पर 'मजलिस' का सीटिंग MLA होने के बावजूद हज़रत ने यहां सपा के उम्मीदवार को समर्थन दिया, जबकि पिछली बार यहां 'मजलिस' की जीत ही लॉटरी की तरह हुई थी! हज़रत का उम्मीदवार यहां महज़ 1700 वोट पाया, जबकि 'मजलिस' को 74 हज़ार वोट मिले।
बांद्रा (पूर्व) सीट पर मरहूम Baba Siddique कई सालों से MLA थे और वर्तमान में उनके बेटे Zeeshan Siddique यहां से MLA थे। यहां भी बड़ी ही बेशर्मी से ठाकरे सेना का समर्थन किया गया। चुनाव से पहले अपना बाप खोने वाले ज़ीशान सिद्दीकी को विधायकी से हाथ धोना पड़ा, वह भी हज़रत के कारण!! हज़रत को आख़िर सिद्दीकी से क्या दुश्मनी थी या ठाकरे के उम्मीदवार से क्या दोस्तान था जो यहां ऐसी फ़ालतूगिरी की गई??
समाजवादी पार्टी को MVA में महज़ 2 सीटें मिली थी लेकिन हज़रत ने इन दो सीटों के साथ साथ एक्स्ट्रा 4 सीटों पर सपा का समर्थन किया, जिसमें औरंगाबाद ईस्ट और धुले की सीट शामिल थी। क्या सोचकर???
मजलिस महज़ 16 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी और उसमें भी बहुत कम सीटों पर पार्टी ने ज़ोर लगाया था। फिर वहां भी उंगली क्यों की गई??? जब आप ठाकरे सेना को समर्थन दे सकते हैं कि जिसके उम्मीदवारों में ऐसे ऐसे लोग शामिल थे जिनका अतीत घोर मुस्लिम विरोधी रहा है तो मुसलमानों के हर मुद्दे पर लड़ने वाली 'मजलिस' से हज़रत को क्या दिक्कत है?? पैदाइशी मुस्लिम विरोधियों से आपको मुहब्बत हो गई और जो मुसलमानों के लिए ही इन मुस्लिम विरोधियों से लड़ने वाली 'मजलिस' से कैसी दुश्मनी हज़रत???
हज़रत मौलाना Sajjad Nomani साहब, अपनी राजनीतिक भूमिका लेने के लिए आप आज़ाद हैं; लेकिन फिर इस भूमिका की वजह से हुए किसी के नुक़सान को लेकर आप आलोचनाओं से मुक्त नही हो सकते...!!
- #जावेद_पटेल