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बलिया की मिट्टी से उठी एक दर्दनाक सच्चाई – भ्रष्ट तंत्र का काला चेहराबलिया की धरती हमेशा अपने स्वाभिमान और संघर्षों के ल...
04/09/2025

बलिया की मिट्टी से उठी एक दर्दनाक सच्चाई – भ्रष्ट तंत्र का काला चेहरा
बलिया की धरती हमेशा अपने स्वाभिमान और संघर्षों के लिए जानी जाती रही है, लेकिन आज इसी धरती से एक ऐसा वीडियो सामने आया है जिसने पूरे समाज और सिस्टम की पोल खोल दी है।
एक निर्दोष युवक ने कहा –
"पैसे दे दूंगा, लेकिन चरित्र का दाग कैसे मिटेगा?"
यह सवाल केवल उस युवक का नहीं है, बल्कि हर उस आम आदमी का है जो आज भ्रष्ट सिस्टम की जकड़ में फंसा हुआ है।
कैसे होता है शोषण
बेगुनाह लोगों को झूठे मुकदमों में फँसाकर ब्लैकमेल किया जाता है।
SC-ST एक्ट जैसे कानून, जो कमजोरों की रक्षा के लिए बने थे, उन्हीं का गलत इस्तेमाल कर निर्दोष युवाओं को फँसाया जाता है।
न्याय की रक्षा करने वाला तंत्र ही जब पैसे की बोली लगाने लगे, तो इंसाफ कहाँ मिलेगा?
2 लाख की कीमत – इंसाफ या सौदा?
इस मामले में युवक से SC-ST केस वापस लेने के बदले 2 लाख रुपये की मांग की गई। सवाल ये है कि आखिर कानून, पुलिस और प्रशासन कब तक ऐसे "सौदागर" बने रहेंगे? क्या इंसाफ अब सिर्फ पैसों की ताकत से मिलेगा?
बलिया की आवाज़
बलिया हमेशा से क्रांति और न्याय की धरती रही है। लेकिन आज हालात ये हैं कि यहाँ के युवा बदनाम किए जा रहे हैं, चरित्र पर दाग लगाए जा रहे हैं, और न्याय को पैसों की थैली में तौला जा रहा है।
भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ खड़ा होना होगा
अब वक्त आ गया है कि जनता अपनी आवाज़ बुलंद करे।
ऐसे मामलों में निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए।
झूठे केस करने वालों पर कड़ी कार्रवाई हो।
हर आम आदमी को ये भरोसा होना चाहिए कि न्याय बिकाऊ नहीं है।
निष्कर्ष
बलिया की मिट्टी में क्रांति की गूँज रही है। आज फिर जरूरत है कि हम सब मिलकर इस भ्रष्ट सिस्टम को आईना दिखाएँ। क्योंकि जब तक "पैसा ही इंसाफ" तय करता रहेगा, तब तक न तो बेगुनाहों को न्याय मिलेगा और न ही समाज में विश्वास बचेगा।
👉 इस आर्टिकल को डालते समय आप हैशटैग भी लगा सकते हैं:

🚨 बाढ़ ने बढ़ाई मुश्किलें – बलिया में गंगा का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर 🚨बलिया ज़िले में गंगा नदी का जलस्तर लगातार बढ़...
02/09/2025

🚨 बाढ़ ने बढ़ाई मुश्किलें – बलिया में गंगा का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर 🚨

बलिया ज़िले में गंगा नदी का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है और हालात दिन-ब-दिन भयावह होते जा रहे हैं। 🌊

📍 मुख्य बातें:

गंगा का जलस्तर खतरे के निशान से डेढ़ मीटर ऊपर

लगभग 60 गांव बाढ़ की चपेट में

करीब 75 हज़ार आबादी प्रभावित

37 मकान नदी में समा चुके

श्मशान घाट पूरी तरह डूबा, सड़क किनारे हो रहे अंतिम संस्कार

🏘️ शहर के निचले इलाकों – निहोरा नगर, महावीर घाट, कृष्णा नगर, बेदुआ, गायत्री कॉलोनी और मुहम्मदपुर जैसे क्षेत्रों में पानी घरों तक घुस चुका है। लोग नाव और ट्रैक्टर के सहारे आवाजाही करने को मजबूर हैं।

⚰️ महावीर घाट स्थित श्मशान घाट जलमग्न हो चुका है, जिसके कारण अंतिम संस्कार सड़क किनारे करना पड़ रहा है।

🚤 चक्की नोरंगा गांव सबसे ज्यादा प्रभावित है, यहां नाव ही एकमात्र सहारा है। सिर्फ इस गांव में पिछले 3 दिनों में 37 घर गंगा में समा गए।

🙏 प्रशासन और सरकार से अपील है कि प्रभावित परिवारों की मदद के लिए राहत और बचाव कार्य तेज़ किया जाए।

👉 आप सब से निवेदन है कि इस पोस्ट को शेयर करके ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक जानकारी पहुँचाएँ और ज़रूरतमंदों की मदद के लिए आगे आएं।

🔥 बैरीया की जनता के लिए बड़ी खुशखबरी 🔥अब अपनी बिजली से जुड़ी छोटी-बड़ी समस्याओं के लिए 40 किमी दूर बलिया नहीं जाना पड़ेग...
02/09/2025

🔥 बैरीया की जनता के लिए बड़ी खुशखबरी 🔥

अब अपनी बिजली से जुड़ी छोटी-बड़ी समस्याओं के लिए 40 किमी दूर बलिया नहीं जाना पड़ेगा।
👉 मधुबनी (बैरीया) में विद्युत वितरण खंड कार्यालय खुल गया है।

➡️ अब यहाँ सीधे उपभोक्ताओं की शिकायतों का निस्तारण किया जाएगा।
➡️ कार्यालय सुरेमनपुर रेलवे स्टेशन–रानीगंज मार्ग के किनारे खोला गया है।
➡️ उद्घाटन अधिशासी अभियंता मूलचंद शर्मा व अन्य अधिकारियों की मौजूदगी में हुआ।

📌 पहले लोग मीटर, बिलिंग, ट्रांसफार्मर, खराब लाइन जैसी दिक़्क़तों को लेकर बलिया भागते थे। अब वही काम यहीं मधुबनी से होगा।
📌 बैरिया डिवीजन में कुल 9 केंद्र हैं – बैरिया तहसील, बैरिया ग्रामीण, रेवती, जेपी नगर, सहतवार, दीदार, लोकधाम ठेकहा और दुबहर समेत।

⚡ अब उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान पहले एसडीओ स्तर पर और ज़रूरत पड़ने पर अधिशासी अभियंता स्तर पर किया जाएगा।

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👉 सवाल ये है कि जब कार्यालय तो खुल गया, क्या अब लाइनमैन की मनमानी, रिश्वतखोरी और फालतू की लेट-लतीफ़ी भी खत्म होगी?
👉 क्या जनता को अब वाक़ई बिना घूस दिए समय पर कनेक्शन और ट्रांसफार्मर मिलेगा?

❓आपके हिसाब से इस कदम से बैरिया और आसपास के गांवों की बिजली व्यवस्था सुधरेगी या फिर सब पहले जैसा ही चलेगा?

✍️ अपनी राय ज़रूर लिखें ✍️

बलिया ज़िले की बदहाल सड़कों और गंदगी से जूझता श्रीनगर गाँवबलिया ज़िले की सड़कों की हालत दिन-ब-दिन और भी खराब होती जा रही...
02/09/2025

बलिया ज़िले की बदहाल सड़कों और गंदगी से जूझता श्रीनगर गाँव

बलिया ज़िले की सड़कों की हालत दिन-ब-दिन और भी खराब होती जा रही है। बलिया से रेवती तक के रास्तों पर स्ट्रीट लाइट्स का अभाव है, जिसके चलते रात में सफर करना खतरनाक साबित होता है। अंधेरे में आए दिन लोग गिरकर चोटिल हो जाते हैं या हादसों का शिकार बनते हैं।

अगर बात छोटे गाँवों की करें तो स्थिति और भी गंभीर है। बैरिया ब्लॉक के अंतर्गत आने वाला श्रीनगर गाँव इसका जीता-जागता उदाहरण है। यहाँ न तो सड़कें ठीक हैं, न ही बिजली व्यवस्था, और न ही सफाई की कोई व्यवस्था नज़र आती है। जगह-जगह गड्ढ़ों और कीचड़ से भरी सड़कें लोगों की परेशानी का कारण बनी हुई हैं।

गाँव की इस बदहाली के पीछे प्रशासनिक लापरवाही और ग्राम पंचायत की उदासीनता साफ़ झलकती है। वर्तमान प्रधान रीता देवी और उनके प्रतिनिधि (पति) राजेश यादव, जो स्वयं दो बार प्रधान रह चुके हैं, गाँव के विकास पर ध्यान देने के बजाय केवल अपनी जेबें भरने में लगे हैं। सरकारी योजनाओं से आने वाला पैसा विकास कार्यों में न लगाकर निजी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

गाँव के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं—जैसे पक्की सड़क, स्ट्रीट लाइट, साफ़-सफाई, और स्वच्छ जल—के लिए तरस रहे हैं। हालात इतने खराब हैं कि बच्चों और बुज़ुर्गों को थोड़ी-सी बारिश में ही घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है।

बलिया जैसे ज़िले, जो गंगा-जमुनी तहज़ीब और संघर्ष की धरती के रूप में जाना जाता है, वहाँ के गाँव आज भी इस तरह की दयनीय स्थिति में हैं, यह बेहद शर्मनाक है।

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जनता के सवाल

1. गाँव की सड़कों और सफाई व्यवस्था सुधारने के लिए पैसा आखिर जाता कहाँ है?

2. सरकारी योजनाओं का लाभ गाँव तक क्यों नहीं पहुँच पा रहा है?

3. प्रधान और उनके प्रतिनिधि जनता से किया हुआ वादा कब पूरा करेंगे?

4. क्या प्रशासन को इस हालात की कोई खबर नहीं है, या फिर जानबूझकर अनदेखी की जा रही है?

5. क्या गाँव के लोग सिर्फ वोट देने तक ही सीमित रहेंगे, या अपनी हक़ की लड़ाई भी लड़ेंगे?
UP Tak Chief Minister Office Uttar Pradesh

01/09/2025

बलिया : एक साल में घोटालों और विवादों की पूरी लिस्ट

पिछले एक साल में बलिया ज़िले ने कई बार सुर्खियाँ बटोरीं। आइए नज़र डालते हैं उन प्रमुख घटनाओं और घोटालों पर, जिन्होंने पूरे जिले को हिला कर रख दिया ⬇️

🗓️ अक्टूबर 2023 – राशन घोटाला

बलिया की कई राशन दुकानों पर जांच में फर्जी कार्ड और कालाबाज़ारी का मामला सामने आया।

आरोप था कि गरीबों का राशन कागज़ों पर बाँट कर काले बाज़ार में बेचा जा रहा था।

🗓️ जनवरी 2024 – मनरेगा घोटाला

जिले की कई पंचायतों में जांच में पाया गया कि मजदूरों के नाम पर लाखों रुपये का फर्जी भुगतान किया गया।

वास्तविक काम बहुत कम हुआ, लेकिन बिल और पेमेंट पूरे उठाए गए।

🗓️ मार्च 2024 – शिक्षा विभाग में फर्जीवाड़ा

बेसिक शिक्षा विभाग में फर्जी नियुक्तियों और पेमेंट का मामला सामने आया।

जाँच में कई कर्मचारियों के दस्तावेज संदिग्ध पाए गए।

🗓️ जून 2024 – स्वास्थ्य विभाग घोटाला

दवाइयों और मेडिकल उपकरणों की खरीद में धांधली की खबरें सामने आईं।

कई जगह घटिया दवाइयाँ सप्लाई की गईं और बिल मोटे काटे गए।

🗓️ जुलाई 2024 – पुलिस भर्ती पेपर लीक विवाद

बलिया समेत कई जिलों में भर्ती परीक्षा का पेपर लीक हुआ।

अभ्यर्थियों ने विरोध-प्रदर्शन किया और कई जगह एफआईआर दर्ज हुई।

🗓️ अगस्त 2024 – बिजली विभाग की वसूली और फर्जी बिलिंग

उपभोक्ताओं से ज्यादा वसूली और फर्जी बिलिंग का मामला उजागर हुआ।

शिकायतों के बाद जांच बैठाई गई।

🗓️ अगस्त 2024 – BJP कार्यकर्ता विवाद

बलिया में BJP कार्यकर्ता मुन्‍ना बहादुर द्वारा दलित इंजीनियर को कार्यालय में जूते से पीटे जाने की घटना ने सुर्खियाँ बटोरीं।

मामले ने जातीय और राजनीतिक बहस को और गर्म कर दिया।

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⚖️ निष्कर्ष :
बलिया में एक साल के भीतर इतने घोटाले और विवाद सामने आना आम जनता के लिए चिंता की बात है। सवाल यही है कि –
👉 क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी?
👉 क्या सिस्टम सुधरेगा?
👉 या फिर ये मामले सिर्फ अखबारों की सुर्खियों तक सीमित रह जाएंगे?

✍️ आपका क्या कहना है बलिया के इन घोटालों पर?

Chief Minister Office Uttar Pradesh Hindustan Dayashankar Singh UP Tak

🛕 बलिया के प्रमुख मंदिर और उनकी धार्मिक महत्ताबलिया ज़िला न केवल स्वतंत्रता संग्राम और वीरों की धरती के नाम से प्रसिद्ध ...
01/09/2025

🛕 बलिया के प्रमुख मंदिर और उनकी धार्मिक महत्ता

बलिया ज़िला न केवल स्वतंत्रता संग्राम और वीरों की धरती के नाम से प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की धार्मिक आस्था और मंदिर भी इसकी पहचान हैं। गंगा-सरयू के पावन तट पर बसे इस ज़िले में अनेक प्राचीन मंदिर हैं, जिनकी ख्याति दूर-दूर तक है।

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1️⃣ महर्षि भृगु मंदिर (बलिया शहर)

बलिया की सबसे प्राचीन और प्रमुख पहचान।

यहाँ महर्षि भृगु ने तपस्या की और भृगु संहिता की रचना की।

यह मंदिर बलिया की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है।

हर वर्ष हजारों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।

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2️⃣ बजरंगबली मंदिर (हनुमानगढ़ी, बलिया शहर)

शहर के बीच स्थित यह मंदिर हनुमान भक्तों का सबसे बड़ा केंद्र है।

मंगलवार और शनिवार को भारी भीड़ होती है।

स्थानीय लोगों की आस्था का मुख्य प्रतीक।

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3️⃣ बड़का शिव मंदिर (नगरा)

प्राचीन और स्वयंभू शिवलिंग वाला मंदिर।

सावन और महाशिवरात्रि पर विशाल मेले का आयोजन होता है।

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4️⃣ रामजानकी मंदिर (बेल्थरारोड)

श्रीराम और माता सीता को समर्पित।

विवाह, अनुष्ठान और धार्मिक आयोजनों के लिए प्रसिद्ध।

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5️⃣ दुर्गा मंदिर (भीमपुरा और अन्य क्षेत्र)

नवरात्र में यहाँ भक्तों का सैलाब उमड़ता है।

बलिया के गाँव-गाँव में माता दुर्गा के छोटे-बड़े मंदिर आस्था का केंद्र हैं।

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6️⃣ गंगा तट मंदिर (बैरिया, रेवती)

गंगा किनारे शिव और विष्णु के अनेक मंदिर।

धार्मिक स्नान, पर्व और मेलों में यहाँ खास भीड़ लगती है।

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7️⃣ श्रीरामपुर धाम (मनियर)

धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष स्थान।

यहाँ सालभर रामायण पाठ और भक्ति कार्यक्रम चलते रहते हैं।

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8️⃣ भदावरनाथ मंदिर (सोहांव)

शिव मंदिर, जहाँ सावन में बड़ी श्रद्धा से लोग जलाभिषेक करते हैं।

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9️⃣ गुप्तेश्वरनाथ मंदिर (नरहीं)

प्राचीन गुफानुमा शिव मंदिर।

स्थानीय लोगों की आस्था और आकर्षण का केंद्र।

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🔟 काली माता मंदिर (सिकंदरपुर व बलिया शहर)

काली माँ का प्राचीन मंदिर।

दीपावली और नवरात्र में यहाँ विशेष भीड़ उमड़ती है।

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✨ बलिया की धार्मिक पहचान

बलिया के ये मंदिर केवल पूजा के स्थल नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और परंपरा के जीवंत प्रतीक हैं।
इनमें सबसे ऊपर महर्षि भृगु मंदिर है, जो बलिया की पहचान और गौरव का आधार माना जाता है।

01/09/2025

बलिया घटना : भाजपा कार्यकर्ता पर दलित इंजीनियर की पिटाई का आरोप, राजनीति गरमाई

बलिया।
जिले में एक गंभीर मामला सामने आया है, जहाँ भाजपा कार्यकर्ता मुन्‍ना बहादुर सिंह पर आरोप है कि उन्होंने एक दलित समुदाय से आने वाले इंजीनियर को कार्यालय में जूते से पीटा और जातिगत टिप्पणियाँ भी कीं। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया, जिसके बाद पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए कार्रवाई की और आरोपी को जेल भेज दिया।

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🔹 घटना और आरोप

पीड़ित इंजीनियर का कहना है कि कार्यालय में किसी कामकाज को लेकर विवाद हुआ, जिसके बाद मुन्‍ना बहादुर सिंह ने उन्हें न केवल मारा-पीटा, बल्कि जातिगत गालियाँ भी दीं। इस मामले ने अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन) और SC/ST एक्ट की गंभीरता को एक बार फिर सामने ला दिया है।

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🔹 राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ

समाजवादी पार्टी ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि भाजपा राज में दलित-पिछड़े सुरक्षित नहीं हैं। पार्टी ने पीड़ित इंजीनियर का समर्थन करते हुए इसे जातीय उत्पीड़न करार दिया।

वहीं, भाजपा ने आधिकारिक स्तर पर बयान देते हुए कहा कि “कानून अपना काम करेगा” और पार्टी ने आरोपी नेता से दूरी बना ली।

विपक्ष लगातार यह सवाल उठा रहा है कि क्या सत्ताधारी दल अपने कार्यकर्ताओं पर लगने वाले आरोपों से पल्ला झाड़ रहा है।

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🔹 बड़ा सवाल : जातिवाद कब तक?

बलिया की यह घटना केवल एक आपराधिक कृत्य नहीं, बल्कि सामाजिक ताने-बाने पर भी प्रश्नचिह्न है।

क्या केवल जाति के आधार पर किसी को अपमानित करना और हिंसा करना लोकतंत्र में स्वीकार्य है?

क्या राजनीति में जातिवाद को हथियार बनाकर समाज को और बाँटा जा रहा है?

उत्तर प्रदेश में बार-बार होने वाली ऐसी घटनाएँ यह संकेत देती हैं कि जातीय तनाव अब भी गहराई से मौजूद है।

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📌 निष्कर्ष

न्यायालय में सत्य सामने आएगा और दोषी को सज़ा मिलेगी, किन्तु समाज और राजनीति को यह आत्ममंथन अवश्य करना होगा कि जाति के नाम पर कब तक नफरत और हिंसा चलती रहेगी?

बलिया की यह घटना न केवल प्रशासन और राजनीति, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है कि यदि जातिवाद की जड़ें नहीं काटी गईं तो आने वाली पीढ़ियाँ भी इसकी कीमत चुकाएँगी। # Ballia Fame to

🗳️ बागी बलिया और आज की राजनीतिबलिया की धरती हमेशा से ही राजनीति और लोकतंत्र की प्रयोगशाला रही है। यहाँ की पहचान सिर्फ 19...
01/09/2025

🗳️ बागी बलिया और आज की राजनीति

बलिया की धरती हमेशा से ही राजनीति और लोकतंत्र की प्रयोगशाला रही है। यहाँ की पहचान सिर्फ 1942 के आंदोलन या स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ज़मीन हमेशा से जनता की आवाज़ उठाने का मंच रही है।

आज जब हम राजनीति की ओर देखते हैं, तो तस्वीर बदल चुकी है।

पहले राजनीति आदर्श और त्याग पर आधारित थी,

आज राजनीति प्रतिस्पर्धा और रणनीति पर टिक गई है।

बलिया की जनता आज भी सजग है – यहाँ का युवा नेता से सवाल पूछता है, किसान अपनी मांग रखता है, और ग़रीब भी अब अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाने से नहीं डरता।

लेकिन एक सवाल ज़रूरी है – क्या आज की राजनीति जनता के विश्वास पर खरी उतर रही है?
👉 पहले नेताओं का नाम “आंदोलन” और “संघर्ष” से जुड़ता था,
👉 आज ज़्यादातर नाम “सोशल मीडिया ट्रेंड” और “दल बदल” से।

बलिया की राजनीति का असली सौंदर्य तभी लौटेगा, जब यहाँ का जनप्रतिनिधि फिर से जनता के बीच जाकर, उनकी समस्याओं को समझकर, उसे समाधान तक पहुँचाने का काम करेगा।

🙏 बलिया को हमेशा “लोकतंत्र की जन्मभूमि” कहा गया है – अब ज़रूरत है कि हम इस पहचान को और मजबूत करें, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ कह सकें कि बलिया ने सिर्फ आज़ादी की लड़ाई ही नहीं लड़ी, बल्कि लोकतंत्र को भी जिंदा रखा।

Ballia Fame परिवार

🌸 Ballia Fame – बागी बलिया की पहचान और उसका गौरव 🌸बलिया सिर्फ़ एक ज़िला नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और संघर्ष की भूमि ह...
31/08/2025

🌸 Ballia Fame – बागी बलिया की पहचान और उसका गौरव 🌸

बलिया सिर्फ़ एक ज़िला नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और संघर्ष की भूमि है। यह वह धरती है जिसे लोग गर्व से “बागी बलिया” कहते हैं। इस नाम के पीछे कारण है – 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बलिया ने अंग्रेज़ों की हुकूमत को ठुकराकर स्वतंत्रता की घोषणा की थी। यानि बलिया वो मिट्टी है जिसने देश को दिखाया कि असली आज़ादी कैसी होती है।

🔸 बलिया का इतिहास

बलिया का नामकरण दो मान्यताओं से जुड़ा है – एक कि यहाँ कभी महर्षि वाल्मीकि का आश्रम रहा, और दूसरी कि ‘बलुआ’ (रेत) शब्द से इसका नाम पड़ा।
यहाँ प्राचीन काल में कोशल राज्य का शासन था।
मध्यकाल में यह इलाका राजपूतों का गढ़ बना, और अंग्रेज़ों के समय 1879 में बलिया को ग़ाज़ीपुर से अलग करके ज़िला बनाया गया।

लेकिन सबसे अहम पहचान बलिया को मिली स्वतंत्रता संग्राम से।
👉 19 अगस्त 1942 को बलिया ने बगावत कर अंग्रेज़ी राज को उखाड़ फेंका और खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया। इस दिन को आज भी लोग गर्व से याद करते हैं।

🔸 संस्कृति और धरोहर

बलिया सिर्फ़ बगावत के लिए ही नहीं, बल्कि संस्कृति और अध्यात्म के लिए भी मशहूर है।

यहाँ स्थित भृगु आश्रम संत भृगु की तपस्थली मानी जाती है।

ददरी मेला – भारत का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है, जिसकी परंपरा हज़ारों साल पुरानी है।

सुरहा ताल – प्राकृतिक झील और पक्षी अभयारण्य है, जो यहाँ की सुंदरता और जैव विविधता का प्रतीक है।

🔸 राजनीति और लोकतंत्र

बलिया को लोकतंत्र की धरोहर भी कहा जाता है।
👉 इसी ज़िले की धरती ने भारत को पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह दिया।
👉 जननायक जनेश्वर मिश्रा जैसे नेता भी यहीं से निकले।
यहाँ के लोगों की राजनीति में गहरी भागीदारी है, इसलिए बलिया को अक्सर लोकतंत्र का गढ़ कहा जाता है।

🔸 शिक्षा और युवावर्ग

बलिया शिक्षा के क्षेत्र में भी आगे बढ़ रहा है।

जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय (JNCU) आज हज़ारों छात्रों को उच्च शिक्षा दे रहा है।

अनेक इंटर कॉलेज और डिग्री कॉलेज यहाँ के युवाओं का भविष्य गढ़ रहे हैं।

हालाँकि ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी शिक्षा की चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

🔸 स्वास्थ्य और आम जनता

बलिया की ज़िंदगी का असली आधार है किसान और मज़दूर वर्ग।
👉 लोग कृषि पर सबसे ज़्यादा निर्भर हैं।
👉 यहाँ अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्र मौजूद हैं, लेकिन अभी भी आधुनिक सुविधाओं और बड़े मेडिकल कॉलेज की आवश्यकता है।

गरीब से लेकर छात्र तक—हर वर्ग का संघर्ष यहाँ की असलियत है, लेकिन यही संघर्ष बलिया को मज़बूत भी बनाता है।

🔸 विकास और उम्मीदें

आज बलिया बदल रहा है।

कृषि के साथ छोटे-छोटे उद्योग भी बढ़ रहे हैं।

एयरपोर्ट की माँग से लेकर बेहतर अस्पताल तक, जनता की आवाज़ें अब तेज़ी से उठ रही हैं।

सरकार और जनता दोनों ही मिलकर बलिया को आगे ले जाने के प्रयास कर रहे हैं।

✨ Ballia Fame का उद्देश्य ✨
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लगभग पाँच साल पहले इस पेज की शुरुआत की गई थी, ताकि बलिया के इतिहास, संस्कृति, राजनीति और जनता की आवाज़ को दुनिया तक पहुँचाया जा सके।

आज एक नए संकल्प के साथ Ballia Fame को फिर से शुरू किया जा रहा है, ताकि बलिया की पहचान, इतिहास और जनता की आवाज़ सही मायनों में सामने आ सके।

🙏 आप सभी बलिया वासियों से निवेदन है कि इस सफ़र में हमारा साथ दें और इस पेज को वही प्यार और सहयोग दें, जो आपने पहले दिया था।
क्योंकि Ballia Fame सिर्फ़ एक पेज नहीं, बल्कि बलिया की आत्मा की आवाज़ है। ❤️


– Ballia Fame परिवार

🌿 Ballia Fame – एक बार फिर आपकी सेवा में 🌿लगभग 5 साल पहले Ballia Fame पेज को शुरू करने का उद्देश्य था –👉 बलिया के गौरवशा...
31/08/2025

🌿 Ballia Fame – एक बार फिर आपकी सेवा में 🌿

लगभग 5 साल पहले Ballia Fame पेज को शुरू करने का उद्देश्य था –
👉 बलिया के गौरवशाली इतिहास को संजोना,
👉 यहाँ की जनता तक महत्वपूर्ण जानकारियाँ और समाचार पहुँचाना।

इस सफ़र को शुरू करने में सुशान्त श्रेष पाण्डेय Rakesh Ojha , पुष्पेन्द्र सिंह, का बहुत बड़ा योगदान रहा।

लेकिन ज़िंदगी की व्यस्तताओं के कारण हम इस पेज को वह समय और ध्यान नहीं दे पाए, जिसकी इसे आवश्यकता थी।

अब एक बार फिर से संकल्प है कि Ballia Fame को उसी जुनून और भावना के साथ आगे बढ़ाया जाए, जिसके लिए इसे बनाया गया था।

आप सभी बलिया वासियों से अपील है कि इस सफ़र में हमारा साथ दें और इस पेज को फिर से वही प्यार और सहयोग दें, जैसा आपने पहले दिया था। ❤️

– Ballia Fame परिवार

 #ददरी_मेला 📍जो बलिया शहर से 5 किमी (3.1 मील) दूर, NH 31 के पास और बलिया शहर के बस स्टेशन से 3 किमी (1.9 मील) की दूरी पर...
12/08/2024

#ददरी_मेला 📍
जो बलिया शहर से 5 किमी (3.1 मील) दूर, NH 31 के पास और बलिया शहर के बस स्टेशन से 3 किमी (1.9 मील) की दूरी पर आयोजित किया जाता है। बलिया का ददरी मेला हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा से आरम्भ होता है। इसमें मुख्यतः पशुओं का ,दैनिक उपयोग की वस्तुओं का क्रय-विक्रय किया जाता है। इस मेले की ऐतिहासिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीनी यात्री #फाह्यान तक ने इस मेले का अपनी पुस्तक में जिक्र किया है। यह मेला महर्षि भृगु के शिष्य दर्दर मुनी के सम्मान में सालाना आयोजित किया जाता है। यह एक महीने का मेला दो चरणों में आयोजित किया जाता है। पहला चरण कार्तिक पूर्णिमा की शुरुआत से दस दिन पहले शुरू होता है, जिसके दौरान व्यापारी बिक्री / खरीद के लिए पूरे भारत से मवेशियों की कुछ उत्कृष्ट नस्लें लाते हैं.
ददरी मेला बलिया जिले की पहचान जैसा है. तकरीबन महीने भर चलने वाले इस लाजवाब और अनूठे मेले की शुरुआत कार्तिक पूर्णिमा से हो जाती है. ये दिन हिंदू श्रद्धालुओं के बहुत खास होता हैं. गंगा में स्नान, दान और पूजन के साथ बलिया के आस पास के लोग महर्षि भृगु के मंदिर में जा कर उन्हें जल चढ़ाते हैं. ये भी रिवायत है कि पूर्णिमा के दिन इन कार्यक्रमों के बाद लोग सपरिवार गुड़ की जिलेबी या अपनी रुचि से दूसरी मिठाइयां खाते हैं. बहुत से लोगों के लिए ‘जिलेबी’ खाने का ये कार्यक्रम ददरी मेले में ही होता है. इस इलाके में प्रचलित भोजपुरी में इसे जिलेबी ही कहते हैं. भृगु ही वे ऋषि हैं जिन्होंने विष्णु की छाती पर लात मारी थी. इससे जुड़ी बहुत सी कथाएं लोक में प्रचलित हैं, लेकिन एक बात जो समझ में आती है वो ये कि धार्मिक मान्यता के मुताबिक जगत्पालक विष्णु व्यवस्था के प्रतीक हैं और उन पर चरण प्रहार का ऋषि का फैसला विद्रोह का. लगता है कि इसी मिथकीय विद्रोह ने बलिया के पानी को बगावत की धार दे दी. यही वजह है कि बलिया वालों को बागी बलिया कहना सुनना अच्छा लगता है. जन सामान्य के लिए ददरी के मेला का आकर्षण यहां आने वाला सर्कस, जादू के खेल, नौटंकी और मीना बाज़ार को लेकर होता है. साथ ही अलग अलग क्षेत्रों में बनाए जाने वाले कपड़ों की दुकाने भी बड़ी संख्या में यहां आती है. वैसे तो किसी भी मेले की तरह ही यहां भी जरूरत की हर छोटी बड़ी चीजें लोगों को एक जगह अपेक्षाकृत रियायती दाम पर मिल जाती हैं. कभी बिहार के आरा, छपरा, बक्सर से लेकर ग़ाज़ीपुर, आज़मगढ़ बनारस जैसी जगहों से भी लोग ददरी मेले में आ कर खरीददारी और मेले का लुत्फ उठाया करते रहे हैं.

पारंपरिक मिठाइयों का जलवा कायम
अब तो दूसरी जगहों के मेलों की ही तरह ददरी में भी तरह तरह के फूड स्टॉल लगने लगे हैं. लेकिन यहां पारंपरिक तौर पर गुड़ से बनी ‘जिलेबी’ का ही राज रहा है. जिन लोगों ने अपने छटेपन में इसका रसीला जायका चखा है, उनके लिए मेले का जायका वही जिलेबी ही है. इसके अलावा बलिया में खास तौर से बनने वाली चीनी की मिठास में पगी, मैदे और खोए से गोल गोल टिकरी का स्वाद भी लोगों को लुभाता है. आकार में ये मिठाई न तो बहुत बड़ी होती है और न छोटी. किसी किसी को ये चपटा किए गए गुलाब जामुन की तरह लग सकती है. बड़ी ही आसानी से इसके रसिया दो से तीन टिकरी खा कर ही कम या ज्यादा मिठाई खाने के बारे में सोचते हैं.

मीना बाजार
महिलाओं के लिए खास आकर्षण मेले का मीना बाजार होता है. नाम के मुताबिक ही इसमे उनकी रूचि का सब कुछ मिलता है. चूड़िया, बिंदी, तेल, इत्र और सजने सवंरने का सारा सामान इसमें मिलता है. शादियों का मौसम शुरु होने के ठीक पहले लगने वाले इस मेले में बहुत सारे लोग पहले के समय में अपने बेटे- बेटियों की शादी के लिए भी सामान खरीद कर रख लिया करते थे.

मेले का एक बड़ा हिस्सा मनोरंज का होता है. इसमें मनोरंजन की पारंपरिक विधाएं पूरे दमखम के साथ दिखती है. आम तौर पर सरकस यहां आता ही है. इसके अलावा नौटंकी, जादू का खेल और मौत का कुआं वगैरह खूब शानदार ढंग से चलता है. गंगा की गोदी में चलने वाले इस मेले में अब भी अदब और अदीबों की परंपरा कायम है. यहां कवि सम्मेलन और मुशायरे में देश के दिग्गज कवि और शायर शामिल होते हैं. ध्यान रखने वाली बात है कि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने मेले में हिंदी को लेकर ऐतिहासिक भाषण दिया था जिसे आज भी पढ़ाया बताया जाता है. आज भी सांस्कृतिक आयोजन भारतेंदु मंच के तहत ही किए जाते हैं.

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11/04/2024

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