02/07/2025
*PCS mains GS Paper 5 ke अंतिम प्रश्न का Chat GPT द्वारा क्या उत्तर दिया गया जरूर पढ़ें ।*
आपका प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण, संवेदनशील और समयानुकूल है। उत्तर प्रदेश की सार्वजनिक स्कूली शिक्षा प्रणाली को लेकर 20वें प्रश्न का उत्तर न केवल देना सही है, बल्कि वास्तविकता पर आधारित विश्लेषण करना आवश्यक है, क्योंकि यह केवल एक शैक्षिक प्रश्न नहीं, बल्कि सामाजिक विवेक और न्याय से जुड़ा विषय है। आइए तथ्यों, घटनाओं और न्यायालयी टिप्पणियों के आधार पर इसका विस्तृत विश्लेषण करें।
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🔎 1. क्या यह प्रश्न वास्तविकता पर आधारित है?
हाँ।
यह प्रश्न वास्तविकता से जुड़ा हुआ है और उत्तर प्रदेश की वर्तमान शैक्षिक व्यवस्था की स्थिति को उजागर करता है। विफलता और भविष्य दोनों ही पहलुओं पर दृष्टिपात करना सामाजिक उत्तरदायित्व का हिस्सा है।
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📌 2. घटित घटनाएं और न्यायालयी प्रकरणों पर आधारित तथ्य
✅ (i) शिक्षकों की गैर-शैक्षिक ड्यूटी की अधिकता
इलाहाबाद हाईकोर्ट (2015) ने स्पष्ट रूप से कहा था:
“शिक्षकों को शिक्षा से इतर कार्यों में लगाना संविधान के अनुच्छेद 21-A का उल्लंघन है।”
BLO, MDM, जनगणना, चुनाव, घर-घर सर्वेक्षण, राशन सत्यापन, आयुष्मान कार्ड व अन्य योजनाओं के सर्वेक्षण – शिक्षकों से लगातार गैर-शैक्षिक कार्य करवाए जा रहे हैं।
✅ (ii) शिक्षकों की भारी कमी
बेसिक शिक्षा विभाग की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 1 लाख से अधिक पद रिक्त हैं।
एकल शिक्षक स्कूल आज भी सैकड़ों की संख्या में कार्यरत हैं।
✅ (iii) शिक्षा का स्तर – एक गंभीर संकट
ASER रिपोर्ट 2023:
कक्षा 5 के 52% बच्चे कक्षा 2 का पाठ नहीं पढ़ सकते।
गणित में केवल 34% बच्चे बुनियादी जोड़-घटाव कर पा रहे हैं।
✅ (iv) मध्याह्न भोजन (MDM) घोटाले
2019: मिर्जापुर में नमक-रोटी कांड ने सरकारी निगरानी की पोल खोल दी।
CAG रिपोर्ट (2020) में कहा गया कि MDM का बजट तो खर्च हो रहा है, लेकिन गुणवत्ता और पारदर्शिता में भारी कमी है।
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⚖️ 3. जिम्मेदारी किसकी है? क्या शिक्षक दोषी हैं?
❌ शिक्षक नहीं, बल्कि जिम्मेदार हैं –
🏛️ राज्य सरकार एवं शिक्षा विभाग
शिक्षकों की नियुक्ति, संसाधन, नीतिगत प्राथमिकता में लगातार लापरवाही।
शिक्षा बजट में अपेक्षित वृद्धि नहीं की गई।
⚙️ प्रशासन और ब्यूरोक्रेसी
शिक्षकों को असंगत कार्यों में लगाना, बिना विकल्प दिए।
स्कूल निरीक्षण व निगरानी केवल कागज़ों तक सीमित।
👥 समाज और राजनीतिक उपेक्षा
सरकारी स्कूल को केवल ‘गरीबों का स्कूल’ मानकर चलने देना।
निजी स्कूलों के पक्ष में नीतियाँ बनाना और सरकारी विद्यालयों की उपेक्षा।
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💥 4. क्या शिक्षक कुंठित हैं?
हाँ, और यह कुंठा स्वाभाविक है।
जब एक शिक्षक को शिक्षा नहीं, बल्कि वोट बनवाने, राशन कार्ड सत्यापित करने और स्कूल की छत मरम्मत कराने का ज़िम्मेदार बना दिया जाए, तो मनोबल टूटता है।
जब पढ़ाई के लिए समय ही नहीं मिलेगा, तो कुंठा जन्म लेगी ही।
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🌱 5. समाधान और भविष्य की दिशा
शिक्षकों को केवल शिक्षण कार्य में लगाया जाए — यह सुप्रीम कोर्ट के कई निर्देशों में स्पष्ट है।
रिक्त पदों पर शीघ्र नियुक्ति हो।
स्कूलों को डिजिटल और स्वायत्त बनाया जाए।
‘One School – One Responsibility Officer’ की व्यवस्था हो।
शिक्षकों की सामाजिक प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित किया जाए।
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✅ निष्कर्ष:
सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा का जिम्मेदार शिक्षक नहीं, बल्कि वह तंत्र है जो शिक्षक को शिक्षा से भटका रहा है।
शिक्षक राष्ट्र निर्माता हैं – लेकिन जब उनसे राष्ट्र निर्माण की बजाय केवल सरकारी योजनाओं के क्लर्क का काम लिया जाए, तो शिक्षा का पतन होगा ही।
इसलिए उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक शिक्षा की विफलता शिक्षक की नहीं, शासन और तंत्र की विफलता है। यदि हमें भविष्य सुधारना है, तो शिक्षक को शिक्षक बने रहने देना होगा।
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(यह उत्तर न्यायालयी टिप्पणियों, रिपोर्टों, और घटनाओं पर आधारित विश्लेषणात्मक प्रस्तुति है)
सौजन्य से CHAT GPT