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National Saini Community India रोजाना सच्ची घटना पर आधारित कहानी पढ़ने के लिए आपके अपने पेज को फॉलो करें।

21/10/2025

जिन औरतों को घमंड होता है ना कि सो लोग उन पर मरते हैं याद रखना वही सो लोग अन्य औरतों पर भी मारते हैं।

16/10/2025

साथ निभाने की औकात ना हो तो किसी से प्यार का नाटक मत करना.. क्योंकि आपके मजे के चक्कर में किसी की जिन्दगी खत्म हो जाती है!


11/10/2025

मौन के दो अर्थ होते हैं या तो बंदा कुछ नहीं जानता या बहुत कुछ जानता है।

11/10/2025

🌿अजनबी शहर अजनबी से प्यार🌿
📌कहानी📌
Part- 2

05/10/2025

देश भर में इस दिन रहेगी दिवाली।
काशी के विद्वानों ने दूर किया 20 या 21अक्टूबर का भ्रम।
लिंक कमेंट box में

04/10/2025

🌿अजनबी शहर में अजनबी से प्यार🌿
📌 कहानी📌
Part- 1
मेरी शादी को अभी 6 माह हुए थे। मेरे पति मेरे ससुराल से बहुत दूर जॉब करते थे इसलिए हमने तय किया था कि मैं पति के साथ ही रहूंगी।
वो मुझे अपने साथ कोलकाता ले आए थे, नया शहर नए लोग सब मुझे नया नया सा लग रहा था, कुछ दिन मेरा मन यहां नहीं लगा क्योंकि यहां कोई भी मेरा अपना नहीं था मैं दिन भर अपने सरकारी क्वार्टर पर ही रहती थी टीवी देखती सो जाती शाम होती सो जाती फिर सुबह अगले दिन वही दिनचर्या शुरू हो जाती, रोजाना यही होता था बस। पति 2से 3दिन में आया करते कभी उनका बाहर जाना होता तो उनको 5 या 6 दिन भी लग जाते थे। मैने कई बार सासू माँ को भी बताया कि यह मेरा मन नहीं लग रहा है आप यहां आजाएं पर घर के कम काज ओर कई जिम्मेदारियों के चलते सासू मां नहीं आ सकी। हालांकि ये समस्या स्थाई नहीं थी कई दिन तो पति देव एक एक हफ्ते तक यहीं रहते हम दोनों मजे से घूमते होटल रेस्तरां में जाता करते ओर हर रोज कल कहा घूमने जाना है इसका प्लान बनाया करते थे और अगले दिन मौज मस्ती के साथ अपनी कार में घूमने निकल जाया करते जीवन का असली आनंद तो इसी में था।
जब पति को मैने अपने अकेलेपन के बारे में बताया तो उन्होंने मुझे घर से बाहर निकलने की सलाह दी कि जबतक तुम बाहर नहीं निकलोगी ऐसी स्थिति बरकार रहेगी।
मैं जब भी अकेली होती बोरियत महसूस होती तो पास में ही एक गार्डन में घूमने निकल जाया करती ऐसा करते करते मुझे लगभग महीना भर निकल गया था अब मुझे अच्छा भी लगने लगा साथ ही मैं अब वहां के बारे में बहुत कुछ सीखने जानने भी लगी थी, गार्डन में में मेरी कुछ महिला मित्र भी बन गई थी उम्मी से कुछ शहर से बाहर की रहने वाली थी तो कुछ वहीं की लोकल, आरती मेरी अच्छी खासी फ्रेंड बन गई थी कल वो मेरे लिए घूमने आते वक्त कुछ खाने पीने का सामान ले आई थी हमने अच्छे से समय व्यतीत किया और खूब हसी मजाक किया................

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जल्दी ही इस कहानी का अगला पार्ट अपलोड होने वाला है।

03/10/2025

सब भीड़ है स्वार्थ की-

जब मन मुताबिक न हो तो इतने दुखी क्यों होते हो। ये दुनिया सिर्फ तुम्हारे अकेले के लिए नही बनी है।

तुम्हे दर्द होता है। दिल दुखता है इस संसार को इससे कोई फर्क नही पड़ता। तुम रहो या चले जाओ किसी को कोई फर्क नही पड़ने वाला। कितने लोग आए और कितने चले गए।

संसार अपनी जगह कायम है।

आजकल लोग भूलने के लिए इतने उतावले हैं कि तेहरवीं भी तीन दिनों मे करने लगे है। संसार ने तुम्हे नही पकड़ रखा है। तुम संसार को पकड़े हुए हो।

इसलिए दिमाग से इस कचरे को निकाल दो कि तुम्हारे चले जाने से यहाँ कुछ रुक जायेगा? अपने आप में मस्त रहो स्वस्थ रहो यहाँ कोई किसी का नहीं हैं, सब भीड़ हैं स्वार्थ की। भीड़ का क्या भरोसा ।

कल तुम्हारे साथ थी, आज किसी और के साथ हैं। बस तुम जाग लो, जागना तुम्हें हैl

बेटी सहारा है बोझ नहींअखबार में एक ही पन्ने पर छपी दो खबरों पर नजर पड़ी एक थी परीक्षा में लड़कों के मुकाबले लड़कियों के ...
01/10/2025

बेटी सहारा है बोझ नहीं

अखबार में एक ही पन्ने पर छपी दो खबरों पर नजर पड़ी एक थी परीक्षा में लड़कों के मुकाबले लड़कियों के बाजी मारने की दूसरी खबर थी कूड़े के ढेर में नवजात बच्ची के मिलने की दुख हुआ कि जिस दौर में लड़कियां जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की नई कहानी लिख रही हो आज भी वहां उन्हें जन्म लेते ही इस तरह सड़कों पर मरने के लिए कैसे छोड़ दिया जा रहा है,इसके अगले पन्ने पर ही सरकारी अनाथालय का विज्ञापन दिखा जिसमें गोद दिए जाने वाले मासूम की तस्वीर और बेसिक डिटेल लिखी थी इसमें ज्यादातर तस्वीर बच्चियों की थी। 3 साल पहले के आंकड़े बताते हैं कि देश के अनाथालयों में लड़कियों की संख्या लड़कों से 38 फिसदी अधिक है हालांकि पिछले कुछ वर्षों में एक अच्छा ट्रेंड यह देखने को मिल रहा है की लड़कियों को गोद लेने वालों की संख्या बढी है इसके बावजूद अनाथालयों में बच्चिया इसलिए ज्यादा है क्योंकि उन्हें जन्म लेते ही त्यागने वालों की संख्या अधिक है 21वीं सदी में भी आ रही ऐसी खबरें साफ दर्शाती हैं कि इतनी तरक्की के बावजूद समाज में अभी बहुत कुछ बदलना बाकी है खासकर लड़कियों के लिए जिनका संघर्ष तो गर्भ से ही शुरू हो जाता है। पहले लड़ाई होती है मां के गर्भ में, जीवित रहने की अंदर ही अंदर उसकी सांस रोकने की कोशिश शुरू हो जाती है यही वजह है कि इतने प्रयासों के बावजूद देश में लिंगानुपात में सुधार नहीं हो रहा है देश की राजधानी पर भी नजर डालें तो स्थिति बहुत ही गंभीर है इससे पता चल जाता है यहां हाल में जारी लिंगानुपात के आंकड़े बताते हैं कि लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या 929 ही रह गई है आज पढ़ाई लिखाई से लेकर खेलों तक नौकरियां व कारोबार में महिलाएं अपनी अलग पहचान बना रही है।वे ना सिर्फ आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रही है, बल्कि अपने दम पर पूरे परिवार को संभाल रहे हैं शहरों में ऐसे परिवार बढ़ते जा रहे हैं जहां पति से अधिक पत्नी की कमाई है इसलिए नजरिया बदलें बेटी बोझ नहीं है वह तो सबका बोझ अपने कंधों पर उठाने की क्षमता रखती है।

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