21/07/2025
भारतीय कुश्ती के अखाड़े में इन दिनों एक नया नाम गूंज रहा है कृतिका राजपूत, जो हाल ही में "हिमाचल केसरी 2025" के खिताब से सम्मानित हुई हैं। यह उपाधि न केवल उनकी व्यक्तिगत मेहनत और संघर्ष का प्रतीक है, बल्कि हिमाचल प्रदेश की बेटियों के आत्मबल और खेल प्रतिभा की चमकती मिसाल भी बन चुकी है।
एक छोटे से गांव से राष्ट्रीय अखाड़े तक
कृतिका राजपूत का संबंध हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गांव से है, जहाँ संसाधनों की कमी तो थी, लेकिन सपनों की उड़ान भरने की आज़ादी उन्हें बचपन से मिली। उनके पिता एक किसान हैं और मां गृहिणी। घर की स्थिति बहुत साधारण थी, लेकिन कृतिका के भीतर कुछ असाधारण करने का जज़्बा शुरू से ही था।
उन्होंने अपने शुरुआती प्रशिक्षण के लिए गाँव के ही एक स्थानीय अखाड़े में अभ्यास शुरू किया, जहाँ उन्हें मिट्टी में गिरना, फिर उठकर खड़ा होना और संघर्ष करना सिखाया गया। वही संघर्ष अब उन्हें देशभर में पहचान दिला रहा है।
"हिमाचल केसरी" का ताज
2025 में आयोजित राज्य स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में कृतिका ने लगातार पाँच मुकाबले जीतकर 'हिमाचल केसरी' का खिताब अपने नाम किया। इस प्रतियोगिता में उन्होंने अपने से अधिक अनुभवी और प्रशिक्षित पहलवानों को मात देकर यह साबित कर दिया कि लगन, अनुशासन और आत्मविश्वास से कोई भी शिखर छुआ जा सकता है।
यह उपलब्धि सिर्फ एक पदक या ताज नहीं है, बल्कि हिमाचल की बेटियों के लिए एक नई सोच और उम्मीद का प्रतीक बन गई है। कृतिका अब उस भीड़ की आवाज़ हैं, जो कहती हैं बेटियाँ सिर्फ घर की नहीं, अखाड़े की भी शान हैं।
परिवार और कोच की अहम भूमिका
कृतिका की इस यात्रा में उनके माता-पिता का सहयोग और कोच की मेहनत अतुलनीय रही है। उनके कोच ने बताया, "कृतिका में शुरू से ही एक अलग किस्म का जुनून था। वह रोज़ाना चार से पांच घंटे कड़ी ट्रेनिंग करती थी और कभी शिकायत नहीं की।"
परिवार ने आर्थिक चुनौतियों के बावजूद उनकी हर जरूरत को प्राथमिकता दी। स्कूल के बाद घंटों अभ्यास, कभी थकावट, कभी चोटें -लेकिन कभी हार नहीं मानी।
आने वाला कल
अब कृतिका का अगला लक्ष्य है राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करना। वह 2026 में आयोजित होने वाले जूनियर एशियन कुश्ती चैंपियनशिप की तैयारी में जुट चुकी हैं। उनका सपना है कि एक दिन ओलंपिक में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीतें।