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17/09/2025

Assalamu alaikum hamme se bahut sare log pareshan Hain Koi bimariyon se pareshan hai koi berojgari se pareshan hai koi Dushmani se pareshan Koi han hasido se pareshan Koi Na Koi pareshani mein ho chalayen Allah neHam meitna achcha tohfa Diya hamari jindagi ko bahut achcha Kalam Pak Diya usmein Sari pareshani ke HAL bhi bataen har Musalman ko rasta apnana hoga sari pareshaniyan chhoomantar #

14/09/2025

*सूअर क्यों पैदा किया गया?* Har Musalman se darkhast is video ko jarur dekhen samjhe aur parhez Karen # # #

*हर मुसलमान के लिए इसे पढ़ना बहुत ज़रूरी है।*

यूरोप सहित लगभग सभी अमेरिकी देशों में मांस के लिए मुख्य रूप से *सूअर* को प्राथमिकता दी जाती है। इन देशों में सूअर पालने के लिए हज़ारों फ़ार्म हैं। केवल फ्रांस में ही *सूअर फ़ार्म की संख्या 42,000 से अधिक है।*

सूअर में किसी भी अन्य जानवर की तुलना में बहुत अधिक मात्रा में *चर्बी (FAT)* होती है। लेकिन यूरोपीय और अमेरिकी लोग इस खतरनाक चर्बी से बचने की कोशिश करते हैं।

इस चर्बी को ठिकाने लगाना इन देशों के *खाद्य विभाग के लिए एक बड़ी समस्या थी।* इसे नष्ट करने के लिए पहले इसे जलाया जाता था। करीब *60 साल बाद* , उन्होंने इसे किसी तरह उपयोग करने और इससे *पैसा कमाने* के बारे में सोचना शुरू किया।

सबसे पहले उन्होंने इसे *साबुन बनाने* में इस्तेमाल किया और यह प्रयोग सफल रहा।

शुरुआत में सूअर की चर्बी से बनी चीज़ों पर लेबल पर *'Pig Fat'* साफ-साफ लिखा जाता था।
चूंकि इन उत्पादों के सबसे बड़े खरीदार *मुस्लिम देश* थे, इन देशों ने ऐसे उत्पादों पर *पाबंदी* लगा दी, जिससे कंपनियों को भारी व्यापारिक *नुकसान हुआ।*

साल *1857 में यूरोप में बनी राइफ़ल की गोलियों* को समुद्र के रास्ते भारत भेजा गया। समुद्र की नमी के कारण उनमें भरा गनपाउडर ख़राब हो गया और गोलियाँ बेकार हो गईं।

इसके बाद उन्होंने इन गोलियों पर *सूअर की चर्बी की परत* चढ़ानी शुरू की।
गोलियाँ चलाने से पहले सैनिकों को दांतों से इस परत को हटाना पड़ता था।

जब यह खबर फैली कि इन गोलियों में सूअर की चर्बी है, तो सैनिकों ने (जिनमें ज़्यादातर *मुसलमान और शाकाहारी हिन्दू थे) लड़ने से इंकार कर दिया* , जिससे विद्रोह हुआ।

इसके बाद यूरोपीयों ने इस बात को समझा और 'Pig Fat' की जगह 'FIM' लिखना शुरू कर दिया।

1970 के बाद से, यूरोप में सभी को पता है कि जब मुस्लिम देशों ने इन कंपनियों से पूछा कि क्या इन चीज़ों में जानवर की चर्बी इस्तेमाल की गई है, और अगर हाँ, तो कौन से जानवर की,
तो उन्हें बताया गया कि यह गाय और भेड़ की चर्बी है।

फिर सवाल उठाया गया:
"अगर यह गाय या भेड़ की है भी, तो क्या इन्हें इस्लामिक तरीक़े से हलाल ज़बह किया गया है?"
जवाब "नहीं" था।

इस कारण फिर से उन उत्पादों पर पाबंदी लगा दी गई, जिससे कंपनियों को दोबारा नुकसान हुआ।

आखिरकार, उन्होंने कोड भाषा इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया, ताकि केवल उनका खाद्य विभाग ही समझ सके कि उत्पादों में क्या इस्तेमाल हुआ है और आम जनता धोखे में रहे।

इस तरह उन्होंने E-कोड्स (E-Ingredients) का इस्तेमाल शुरू किया।

आज ये कोड्स दांतों के पेस्ट, बबल गम, चॉकलेट, मिठाइयाँ, बिस्किट, कार्नफ्लेक्स, टॉफियाँ, दवाइयाँ और मल्टीविटामिन्स जैसी हर चीज़ में इस्तेमाल हो रहे हैं, जो मुस्लिम देशों में धड़ल्ले से बिकती हैं।

सूअर की सामग्री के प्रयोग से हमारे समाज में:

बेशर्मी

निर्दयता

यौन शोषण
जैसी बुराइयों में तेज़ी से वृद्धि हो रही है।

इसलिए सभी मुसलमानों और सूअर से परहेज़ करने वालों से गुज़ारिश है कि वे रोज़मर्रा में इस्तेमाल होने वाली चीज़ें खरीदते समय उसके सामग्री (contents) ज़रूर देखें और उन्हें नीचे दी गई E-कोड्स की लिस्ट से मिलाएं।

अगर इनमें से कोई कोड लिखा हो, तो उस उत्पाद से बचें, क्योंकि इसमें किसी न किसी रूप में सूअर की चर्बी शामिल हो सकती है।

> ⚠️ सावधान रहें इन E-कोड्स से:
E100, E110, E120, E140, E141, E153, E210, E213, E214, E216, E234, E252, E270, E280, E325, E326, E327, E334, E335, E336, E337, E422, E430, E431, E432, E433, E434, E435, E436, E440, E470, E471, E472, E473, E474, E475, E476, E477, E478, E481, E482, E483, E491, E492, E493, E494, E542, E549, E572, E621, E631, E635, E905 # # #

✍️ डॉ. एम. अमजद खान
मेडिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट, यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका

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