03/11/2025
अत्यंत विचारणीय....
दरअसल शिक्षक से शिक्षण कार्य न करवा कर एक बहुद्देशीय कर्मचारी बना दिया गया है।
आज देश के स्कूलों में एक #मौन_क्रांति चल रही है
शिक्षक थक चुके हैं, असहाय हैं और निराश हैं।
वे अपनी नौकरी छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं - कुछ चुपचाप तो कुछ भावनात्मक रूप से दूर होकर और तो और नई पीढ़ी तो अब शिक्षक बनना ही नहीं चाहती।
क्यों हो रहा है ऐसा?
1. #कागज़ी_झंझाल_में_फंसे_हैं_शिक्षक
अब पढ़ाना प्राथमिकता नहीं रहा।
रोज़ाना की दिनचर्या बन गई है —
"फ़ोटो भेजो", "प्रमाण दो", "रिपोर्ट अपलोड करो"।
कक्षा में उनकी उपस्थिति घट रही है,
स्क्रीन के सामने की उपस्थिति बढ़ रही है।
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2. #तकनी_पर_अत्यधिक_ज़ोर
हर विषय, हर उम्र, हर स्तर पर
जबरदस्ती डिजिटल टूल्स, ऐप्स और स्मार्ट बोर्ड
थोप दिए गए हैं।
शिक्षण एक #यंत्रवत_प्रक्रिया बन गई है —
जिसमें मानवीय संपर्क लगभग गायब ही होता जा रहा है।
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3. #इवें_मैनेजर_बनते_शिक्षक
हर दिन कोई न कोई दिवस मनाना अनिवार्य ही हो गया है —
योग दिवस, मातृभाषा दिवस, पर्यावरण दिवस.. वगैरा वगैरा..
शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के बजाय, प्रदर्शन का मापदंड बन गया है — कितने इवेंट करवाए।
प्रधानाचार्य और शिक्षक दोनों इस "शो" में फंसे हुए हैं।
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4. #ग्रामीण_शिक्षकों_की_हालत
दो या तीन शिक्षक, सैकड़ों बच्चों के लिए जिम्मेदार।
पढ़ाने के अलावा - मिड-डे मील, छात्रवृत्ति, यूनिफॉर्म, साइकिल और सरकारी रिपोर्टिंग भी उन्हीं की जिम्मेदारी।
अब शिक्षा नहीं, #डेटा_इकट्ठा_करना ही मुख्य काम बनकर रह गया है।
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5. #मानसिक_तनाव_और_आत्मसम्मान_में_गिरावट
हर कार्य पर निगरानी और “प्रमाण” की मांग ने भरोसा ही खत्म कर दिया है।
छात्रों के तनावपूर्ण व्यवहार को संभालना,
माता-पिता की अवास्तविक अपेक्षाएं
शिक्षकों को #भावनात्मक_रूप से थका देती हैं।
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6. #शिक्षा_का_मूल_उद्देश्य_खो_सा_गया_है
पाठ्यक्रम पूरा कराने का भारी दबाव है।
विषयों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
विद्यालय अब व्यक्तित्व निर्माण की जगह नहीं रहे।
आज की शिक्षा एक #प्रदर्शन_परियोजना बनकर रह गई है।
शिक्षक और छात्र का रिश्ता — जो कभी शिक्षा की आत्मा हुआ करता था—
अब संख्याओं और समय सीमाओं में खो सा गया है।
छात्र अब शिक्षक को #सेव_प्रदाता मानते हैं,
मार्गदर्शक या सम्माननीय व्यक्ति नहीं।
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विचार करने का समय है
शिक्षा का केंद्र #बच्चा_और_शिक्षक होना चाहिए —
ना कि रिपोर्ट और आंकड़े।
यदि शिक्षक को स्वतंत्रता, सम्मान और भरोसा नहीं मिला,
तो आने वाली पीढ़ी की शिक्षा निर्जीव ही हो जाएगी।
हमें शिक्षक पर दोबारा विश्वास करना होगा।
क्योंकि यदि शिक्षक चला गया —
विद्यालय तो रह जाएगा, पर शिक्षा नहीं।
C/p
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