25/07/2025
"छतें गिर रही हैं, मासूम मर रहे हैं — ये हत्या नहीं तो और क्या है?"
भ्रष्टाचार अब लापरवाही की सीमा पार कर सीधा जनसंहार बन गया है। झालावाड़ की हालिया घटना ने सरकारी शिक्षा व्यवस्था की सड़ांध को उजागर कर दिया है। यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की साजिशन चुप्पी और अपराधी चूक है।
अब वक्त आ गया है कि:
👉 कड़ी से कड़ी जोड़कर, सभी जिम्मेदारों पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाए।
👉 सरकार यह आदेश जारी करे कि हर सरकारी कर्मचारी के बच्चे अनिवार्य रूप से स्थानीय सरकारी स्कूल में पढ़ें।
क्या मासूमों की जान की कोई कीमत नहीं है?
जर्जर स्कूल भवन, गंदे शौचालय
पीने को दूषित पानी
मिड-डे मील में कीड़े
बिछाने को दरी नहीं, नंगे पांव आते बच्चे
न किताब, न बैग, न सुरक्षा
बिना शिक्षक के स्कूल या एकल शिक्षक जो डंडे के डर से "समय काट" रहे हैं
कई जगह स्कूल तक पहुंचने का रास्ता तक नहीं
अब स्कूल सिर्फ शिक्षा का मंदिर नहीं, खतरनाक जोन बन चुके हैं। छतें अब सिर्फ टपक नहीं रहीं — गिरकर जान ले रही हैं।
और यह हाल सिर्फ झालावाड़ तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे राजस्थान — खासकर बाड़मेर जैसे पिछड़े जिलों के सरकारी स्कूल भी इसी दुर्दशा का शिकार हैं।
क्या सरकार और प्रशासन किसी और बड़ी मौत का इंतज़ार कर रहा है?
अब वक्त आ गया है कि केवल ट्वीट या दौरे नहीं — सिस्टम हिले, जिम्मेदार सज़ा पाए, और ज़मीनी बदलाव दिखे।
✍️✍️ प्रेमाराम भादू
संपादक तेजल मीडिया