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पनियाला के वृक्ष विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके फलदार औषधीय पौध पनियाला के फल का स्वाद लोगों की जबान पर चढ़ कर बोलता ...
22/08/2025

पनियाला के वृक्ष विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके फलदार औषधीय पौध पनियाला के फल का स्वाद लोगों की जबान पर चढ़ कर बोलता है. कभी यह गोरखपुर, महराजगंज और कुशीनगर के जंगलों के अलावा सिद्धार्थनगर, बस्ती और संतकबीर नगर जिलों में बहुतायत में पाया जाता था. लेकिन बीते दशकों में पौधों की कटाई ने इसे विलुप्त होने के स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया है.
जामुन की तरह दिखने वाले और खट्टेमीठे स्वाद वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश में कभी इस फल के कई बगीचे हुआ करते थे, लेकिन समय के साथ बढ़ी आबादी ने अपने रहने के लिए घर बनवाने के चक्कर में पनियाला के पेड़ को काट दिया और वहां अपना घर बना लिया.
इसके वृक्ष अब केवल गोरखपुर क्षेत्र के जंगली इलाके में ही सिमट कर रह गए हैं.
पनियाला पर किए गए शोध में यह बात निकल कर आई कि इस के पत्तों, जड़, छाल, और फलों में एंटीबैक्टिरियल गुणों की प्रचुरता होती है, जिस से यह सेहत के लिहाज से काफी मुफीद माना जाता है.
गोरखपुर विश्वविद्यालय में साल 2011 से 2018 के बीच बौटनी विभाग में शोध करने पर पता चला कि पनियाला का फल गुणों से भरा हुआ है.
शोध के अनुसार, इस के पत्ते, छाल, जड़ों और फलों में बैक्टीरिया से लड़ने की प्रतिरोधात्मक क्षमता होती है. पेट से जुड़े रोगों में पनियाला काफी लाभकारी होता है, लेकिन आज गोरखपुर का यह पनियाला कम होता नजर आ रहा है.
इस के औषधीय गुणों को ले कर साल 2010 में अमेरिकन यूरेशियन जर्नल औफ साइंटिफिक रिसर्च में में एक शोध प्रकाशित हुआ था, जिस में यह बताया गया था कि पनियाला के पत्तों में बड़ी मात्रा में एंटीऔक्सिडेंट मौजूद है, जो बुढ़ापे की निशानी को कम करने के साथ ही तनाव को भी कम करता है.
एक और जर्नल औफ एथनोफारमाकोलोजी में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, पनियाला के पत्तों में मलेरिया रोधी तत्व पाए जाते हैं. साल 2011 में इंटरनेशनल जर्नल औफ ड्रग डेवलपमेंट एंड रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया कि पनियाला के पत्तों में सूक्ष्म जीवरोधी और बैक्टीरियारोधी गुण भी पाए जाते हैं.
अफ्रीकन जर्नल औफ बेसिक एंड अप्लाइड साइंसेस में प्रकाशित एक शोध पनियाला के दमारोधी होने की भी पुष्टि करता है.
इस के फल का उपयोग पेट के कई रोगों, दांतों एवं मसूढ़ों में दर्द, इन से खून आने, कफ, निमोनिया और खरास आदि से बचाव में भी किया जाता है. इस के फलों को लिवर के रोगों में भी उपयोगी पाया गया है. इस के फलों को जैम, जैली और जूस के रूप में संरक्षित कर लंबे समय तक रखा जा सकता है.
पनियाला के पौध विलुप्त होने कगार पर भले ही हों, लेकिन इस के पौधे आज भी गोरखपुर क्षेत्र से सटे पीपीगंज और उस के आसपास के जंगली इलाकों में स्थानीय लेवल पर ग्रामीणों ने संरक्षित कर रखा है.
ऐसे में अगर आप इस बेहद लजीज स्वाद वाले विलुप्तप्राय औषधीय पौधे को रोप कर अपनी बगिया की शोभा बढ़ाना चाहते हैं, तो आप गोरखपुर इलाके में स्थानीय लेवल पर संपर्क कर पौधे प्राप्त कर सकते हैं.
अक्तूबर में पकने वाले पनियाला के फल का दाम 60-90 रुपया प्रति किलोग्राम हुआ करता था, जो इस समय 200 से 300 रुपया प्रति किलोग्राम तक हो गया है.

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18/08/2025

मेरे साथ खड़ा युवा शख्स वह है जिसने विपरीत परिस्थितियों में हार नहीं मानी और पिता के सपनों को हकीकत में बदल दिया।
बस्ती जिले के गौर ब्लाक कोठवा बलुआ का रहने वाले देवांश पाण्डेय जब पढ़ाई कर रहे थे कि अचानक दो साल पहले इनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता के मृत्यु के बाद पढ़ाई के साथ खेती का भार उनके ऊपर आ गया। मृत्यु के दो माह पहले उनके पिता ने करीब ढाई हजार ड्रैगन फ्रूट के पौध की रोपाई की थी। 25 साल के देवांश ने हार नहीं मानी और उन्होंने न केवल पढ़ाई जारी रखी बल्कि उन्होंने यूट्यूब का सहारा लेकर ड्रैगन फ्रूट की खेती को आगे बढ़ाया। महज दो साल में उन्हें इतना उत्पादन मिल चुका है कि उनकी पूरी लागत निकल चुकी है। अभी करीब 18 साल लगातार वह इससे फलत लेंगे। उनके सफल ड्रैगन फ्रूट की खेती देखने दूर दूर से लोग आते है। देवांश ने मार्केटिंग के मुद्दे पर बताया कि फल बहुत अच्छे रेट पर आसानी से खेत से ही बिक जा रहे हैं। कई लोग तो उन्हें ड्रैगन फ्रूट किंग के नाम से पुकारना शुरू कर दिया है। हाल ही बस्ती दौरे पर आई उत्तर प्रदेश की राज्यपाल महोदया को उन्होंने ड्रैगन फ्रूट गिफ्ट किया था। इस मौके पर महामहिम राज्यपाल ने उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया। इसके अलावा 15 अगस्त को राज्यपाल महोदया ने राजभवन में भोज पर भी आमंत्रित किया। देवांश ने राजभवन में भी ड्रैगन फ्रूट की खेती में मिली सफलता की कहानी को बयां किया। बाकी उनके पूरे सफर पर विडियो कल जारी करूंगा। और विस्तृत लेख सितम्बर महीने में पढ़ने को मिलेगा

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यह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का मामला है। एक जिले में  अगर 6000 किसानों के साथ इतना बड़ा धोखा किया गया है तो राज्यभर कु...
14/08/2025

यह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का मामला है। एक जिले में अगर 6000 किसानों के साथ इतना बड़ा धोखा किया गया है तो राज्यभर कुल जिलों को मिला दिया जाए तो आंकड़ा लाखों में जाएगा।
आप भी सतर्क हो जाईए। आप किसी राज्य से हों किसी जिले से हों सहकारी समितियों और निजी दुकानदारों ई पॉस मशीन पर अंगूठा लगाने के बाद कितना बोरी खारिज किया वह केवल गोलमाल करने वाले ही जानते हैं। सवाल यह भी है कि भारी सब्सिडी पर मिलने वाले यूरिया का यह धंधेबाज करते क्या हैं। खाद से अवैध और जानलेवा प्रोडक्ट बनाया जा रहा है या नेपाल भेजा जा रहा है। यह खबर 13 अगस्त को दैनिक भास्कर के हनुमानगढ़ जिले के संस्करण में छपी है। सतर्क रहे , सजग रहे घपलेबाज धोखा आप के साथ ही कर सकते हैं या हो सकता है कर चुके हों।
#यूरियाखाद

कहां गए वो टर्र टर्र करने वाले मेढक बचपन से लेकर किशोरावस्था पूरा गांव में बीता। उस समय मानसून के सीजन में झमाझम बारिश ह...
12/08/2025

कहां गए वो टर्र टर्र करने वाले मेढक
बचपन से लेकर किशोरावस्था पूरा गांव में बीता। उस समय मानसून के सीजन में झमाझम बारिश होती थी। इधर बारिश हुई उधर सैकड़ों की संख्या में सुर्ख पीले व भूरे रंगमेढक इकट्ठा हो जाते। यह पीले मेढक जब एक साथ अपने थूथन को फुलाकर टर्र टर्र की आवाज निकालते तो ऐसा लगता था किसी ने इन मेंढकों के सामने माइक रख दिया है। पूरा सीजन इन मेंढकों जमावड़ा लगा था। वैसे हमारे बस्ती जिले में इस मेढक को गोपाला मेढक के नाम से पुकारते थे। लेकिन विज्ञान की भाषा में इसे "इंडियन बुलफ्रॉग" (Hoplobatrachus tigerinus) प्रजाति का माना जाता है। यह मेढक पूरे बरसात भर गायब रहते थे और इनका निवास था तालाबों गड्ढों के पास का बिल। क्यों कि यह मेढक नमी पसंद करता है। जब बारिश होती थी तो यह बाहर निकल आते थे। इस दौरान इनका रंग इस लिए पीला हो जाता था क्योंकि यह इनका प्रजनन का समय होता है। जबकि मादा का कलर भूरे रंग का होता है। अब न तो उस तरह की बारिश होती है और न ही पीले वाले गोपाला मेंढकों के टर्र टर्र की आवाज सुनाई देती है। आखिर कहां गए यह मेढक। अब क्यों नहीं दिखाई देते है। इनके गायब होने के पीछे जलवायु परिवर्तन कारक है या फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का उपयोग।
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11/08/2025

आप अपने बालकनी, गृह वाटिका या खाली छत पर इस तरह से सब्जियां उगा सकते हैं। यह फोटो मैने पटना बागवानी महोत्सव में क्लिक किया था। वैसे यह विदेशी सब्जी जुकिनी का फोटो है। इसे आम भाषा में चप्पन कद्दू के नाम से भी जाना जाता है।
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