18/06/2025
*😌संतो की मौज😌*
एक बार हुज़ूर बड़े महाराज जी अपने घर सिकंदरपुर गये हुए थे। उस समय बाहर वेहड़े में बैठे हुए थे कि एक मिरासी तुंबी पे गाना गाता हुआ उनके घर के सामने से निकला। आवाज़ अछी लगी तो हुज़ूर ने नौकर से उसको अंदर बुलावाया।
हुज़ूर ने कहा:- *_"भाई कोई सूफ़ी कलाम सुना सकते हो!"_* वो बोला:- *"जी सरदार जी, जो मर्ज़ी सुनो, सब गा बजा लेता हुँ पर अभी मुझे एक शादी में गाने के लिए जाना है, उन्होंने मुझे दस रुपए देने हैं, मैं बाद में आकर सुना दूंगा।*"
अब हुज़ूर तो मौज में आए हुए थे।बोले:- *_"अगर हम तुझे बीस रुपए दें तो।*_"
इसपर उसने कहा:- *"बीस रुपए में तो मैं सारा दिन गाना सुना दूँगा।"*गाने बजाने का दौर शुरू हुआ, लगभग एक घंटा सुनने के बाद हुज़ूर ने कहा:- *_"भाई बाहर के राग तो अच्छे से गाते हो, कभी अन्दर के राग भी सुने हैं क्या?"_*इस पर वो बोला:- *"सरदार जी अंदर के कौन से राग, मैंने कभी नहीं सुने।*"हुज़ूर की मौज चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी, बोले:- *_"सुनेगा तूँ अंदर के राग"!_*बोला:- *" जी सुना सकते हो तो सुन लूँगा।"*हुज़ूर ने कहा:- *_"आँखें बंद करके बैठ जा,और उसके सिर पे हाथ रखा और लगभग एक घण्टे के बाद उसको बाहर आने को कहा,आँखे खोल"_*आँखे खोलने पे मिरासी अपनी ऊँची आवाज़ और अन्दाज़ में बोला:- *"ओय सरदारा मैं ता सोच्या तूँ कोई सिधा सादा ज़मींदार जाट हैं, पर मैं ता अंदर वेख्या तूँ ते पूरा रब्ब हैं!!"*फिर उसने कहा:- *"मेरे घरवालों को भी ये राग सुनवाँ देओ"*इस पर हुज़ूर ने कहा:- *_"इसके लिए तुझे डेरा ब्यास आना पड़ेगा।"_**"सन्त अगर चाहें तो बिना नाम की कमाई के किसी भी जीव को अंदरूनी मंडलो की सैर करवा सकते हैं क्यूँकि वो ख़ुद उन मंडलो के मालिक होते हैं।"**"_सेवा, सत्संग, सुमिरन सब सतगुरु की खुश करने के लिए करें। जिस दिन मौला खुश हो गया, फिर क्या चौरासी क्या भवसागर सब पार"_*
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