12/06/2025
वो जो पल अब लौटकर नहीं आएंगे…
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कुछ लम्हे ऐसे होते हैं जो गुज़र तो जाते हैं, लेकिन दिल के किसी कोने में हमेशा के लिए ठहर जाते हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल ,यह नाम अब सिर्फ एक डिग्री या संस्थान नहीं, बल्कि यादों की एक किताब बन चुका है, जिसके हर पन्ने पर हमारी हँसी, संघर्ष, और साथ बिताए वो अनमोल पल दर्ज हैं।
MA ब्रॉडकास्ट जर्नलिज्म की शुरुआत किसी सपने की तरह थी — नए चेहरे, नई जगह, और ढेर सारी उम्मीदें। पहली बार जब क्लास में बैठते ही , शायद ही किसी ने सोचा होगा कि ये अजनबी चेहरे इतने अपने हो जाएंगे।
कभी असाइनमेंट की भागदौड़, तो कभी कैमरे के सामने घबराहट से कांपती आवाज़ । हमने हर चुनौती को साथ में जिया। क्लासरूम में बहसें सिर्फ अकादमिक नहीं होती थीं, उनमें जुनून भी होता था, अपने पेशे और सच्चाई को लेकर।
कॉरीडोर की बैठकों से लेकर कैंटीन की गुनगुनाहटों तक, हम एक-दूसरे की ज़िंदगी में धीरे-धीरे घर कर गए। कुछ सुबहें लेक्चर से पहले की चाय से जुड़ी हैं, तो कुछ शामें रिकॉर्डिंग से लौटते हुए थके कदमों के साथ की हँसी से।
और फिर, वक्त ने धीरे-धीरे अपनी रफ्तार दिखाई ।सेमेस्टर बदले, चेहरे कुछ गंभीर हुए, कैमरा संभालना सीखा, स्क्रिप्ट लिखते-लिखते आत्मा से जुड़ने लगे।
और एक दिन वो भी आया — आखिरी क्लास, आखिरी अटेंडेंस, और वो अंतिम बार जब सबने एक साथ कैंपस को देखा। दिल भारी था, आँखें नम, लेकिन चेहरे पर मुस्कान थी — जैसे किसी अधूरे गीत को अलविदा कहा हो।
अब जब ज़िंदगी अपने-अपने रास्तों पर आगे बढ़ रही है, तब भी वो क्लासरूम, वो बहसें, वो ग्रुप प्रोजेक्ट्स, और वो नादान हँसी — सब आज भी भीतर कहीं गूंजती है।
क्योंकि कुछ सफ़र मंज़िल पाने के लिए नहीं होते ।वो बस साथ चलने के लिए होते हैं। और माखनलाल का ये सफ़र… हमारे जीवन का सबसे खूबसूरत साथ था।
#यादों_का_सफर
#माखनलाल_की_यादें
िर_न_मिलें_शायद