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 #किसभक्तिसेदुर्गाजीदेपूर्णलाभ
23/09/2025

#किसभक्तिसेदुर्गाजीदेपूर्णलाभ




दुखद समाचार
23/09/2025

दुखद समाचार

शूरसेन भगवान कृष्ण के दादा थे यानी वसुदेव के पिताजी। उन्होंने उग्रसेन के फुफेरे भाई कुंतिभोज से प्रतिज्ञा की थी वे अपनी ...
22/09/2025

शूरसेन भगवान कृष्ण के दादा थे यानी वसुदेव के पिताजी। उन्होंने उग्रसेन के फुफेरे भाई कुंतिभोज से प्रतिज्ञा की थी वे अपनी पहली संतान उन को दे देंगे। पहली संतान पृथा नाम की बेटी हुई जिसको कुंतिभोज को गोद दे दिया। ( आदि पर्व अध्याय 67 श्लोक 129 से 131 )। पृथा ही कुंती थी जिसका पुत्र अर्जुन था।

इस तरह अर्जुन के मामा के पुत्र थे भगवान कृष्ण ।

सुभद्रा वसुदेव की बेटी और भगवान कृष्ण की बहन थी। ( आदि पर्व अध्याय 218, श्लोक 17, 18 )

द्रोपदी को युधिष्ठिर के साथ अकेले में बैठें देख लेने के कारण नियमानुसार अर्जुन ने 12 वर्ष का बनवास लिया और इस दौरान उलूपी से इरावान और चित्रागंदा से वभ्रुवाहन पुत्र पैदा करने के बाद भगवान कृष्ण के पास गुजरात पहुंच गए। जब अर्जुन भगवान कृष्ण के पास थे तभी सखियों के साथ सुभद्रा को देख लिया और काम बाण से घायल हुए भगवान कृष्ण ने देख लिया। भगवान जी हंसते हुए बोले कि बनवासी का मन भी काम से मथा जा रहा है। कृष्ण भगवान और अर्जुन की बातचीत का विवरण इस विषय पर अध्याय 218 में इस प्रकार लिखा हुआ है :–

अर्जुन :– यह वसुदेव की पुत्री और आपकी बहन अनुपम रूप से सम्पन्न भला किस का मन नहीं मोह लेगी। अगर यह मेरी रानी हो जाएं तो मेरा समस्त कल्याण मय मनोरथ पूर्ण हो जाय ॥ इसे प्राप्त करने का क्या उपाय हो सकता है। यदि मनुष्य के द्वारा कर सकने योग्य होगा तो वह सारा प्रयत्न मैं अवश्य करूँगा ||

कृष्ण भगवान जी :– मैं अपने पिता से स्वयं बात कर सकता हूं पर क्षत्रियों में स्वयंवर ही शादी का एक प्रकार है पर इसका परिणाम संदिग्ध होता है। स्त्रियों का स्वभाव अनिश्चित हुआ करता है, पता नहीं वह किसका वरण कर ले। बलपूर्वक कन्या का हरण भी शूरवीर क्षत्रियों के लिये विवाह का उत्तम हेतु कहा गया है; ऐसा धर्मज्ञ पुरुषों का मत है || अतः अर्जुन ! मेरी राय तो यही है कि तुम मेरी कल्याणमयी बहिन को बलपूर्वक हर ले जाओ। कौन जानता है स्वयंवर में उसकी क्या चेष्टा होगी, वह किसे वरण करना चाहेगी।

जब पहले 2 स्त्रियों से 2 पुत्र पैदा किए तब तो अर्जुन ने अपने बड़े भाई युधिष्ठिर को नहीं पूछा पर सुभद्रा का अपहरण करने के लिए भाई की अनुमति के लिए आदमी भेजा और अनुमति मिलने पर अपहरण कर लिया।

बाद में भगवान कृष्ण दहेज का सामान ले कर इंद्रप्रस्थ गए थे।

पांचों पांडव और कुंती को जब पता लगा कि द्रुपद की बेटी द्रोपदी का स्वयंवर होने वाला है तो सब ने द्रुपद की राजधानी की तरफ ...
21/09/2025

पांचों पांडव और कुंती को जब पता लगा कि द्रुपद की बेटी द्रोपदी का स्वयंवर होने वाला है तो सब ने द्रुपद की राजधानी की तरफ कूच किया। व्यास ने भी रास्ते में सब को ( कुंती समेत ) बता दिया कि द्रोपदी ही तुम पांचों भाइयों की पत्नी बनेगी।

फिर रास्ते में ब्राह्मण मिले तो बताते है वे द्रुपद की बेटी का स्वयंवर देखने जा रहें हैं, उनको भी साथ चलने को कहा पर उन्होंने जा कर एक कुम्हार के घर डेरा बनाया और भिक्षा मांग कर जैसे पहले खाया करते थे ऐसे ही भिक्षा मांगना शुरू किया।

जाना तो स्वयंवर में ही था पर कैसे और कब गए, ये नहीं लिखा। खैर स्वयंवर में पहुंच गए। द्रोपदी को अर्जुन ने हासिल किया। पर पांचों में से किसी को याद नहीं कि उनके दादा व्यास ( व्यास ने ही विचित्रवीर्य की पत्नी से नियोग विधि से पांडु को उत्पन्न किया था। ) ने बताया था कि द्रोपदी पांचों की ही पत्नी बनेगी।

आदि पर्व अध्याय 189 श्लोक 43 से 45 से पता लगता है कि पांचों तो स्वयंवर में निश्चय कर के नहीं गए थे या गए तो सभी निश्चय कर के ही पर माता कुन्ती को यही बताया कि वे भिक्षा मांगने जा रहें हैं। लिखा है :–

"इधर भिक्षा का समय बीत जाने पर भी जब पुत्र नहीं लौटे तब उनकी माता कुन्ती देवी स्नेह वश अनेक प्रकार की चिन्ताओं में डूब कर उनके विनाश की आशा करने लगी--“कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि धृतराष्ट्र के पुत्रो ने कुरुश्रेष्ठ पाण्डवो की पहिचान कर उनकी हत्या कर डाली हो !"

कुंती को भी तो पता था कि वह द्रुपद के राज्य में द्रोपदी के स्वयंवर देखने और जीतने के लिए ही तो आएं है, पर उसको यह नहीं पता कि बेटे द्रोपदी के स्वयंवर में गए हैं।

जब पांचों वापिस आए तो उसने यही सोचा कि भिक्षा प्राप्त कर के आए है इसलिए कहा कि आपस में बांट लो। भिक्षा में प्राप्त अन्न को तो वह इस प्रकार बांटती थीं। सारी भिक्षा के आधे को सिर्फ भीम को और बाकी के आधे के 5 बराबर भाग, चार भाग चारों भाइयों का और एक भाग खुद का। आदि पर्व अध्याय 156 के श्लोक 5 और 6 में लिखा है :–

"प्रत्येक रात्रि को पांचों पांडव भिक्षा ले आकर माता कुन्ती को सौंप देते और वो जितना भी हिस्सा उनको देती थी उतना ही खा लेते थे। संपूर्ण भिक्षा का आधा भाग अकेले भीम को मिलता था और बाकी का आधा चारों और उनकी माता मिल कर खाते थे।"

अगर भिक्षा अन्न समझ कर ही कुंती ने बोला था बांटने के लिए और जो बोला उसी के अनुसार द्रोपदी को बांटना मजबूरी हो गई थी तो जैसे अन्न को बांटते थे उसी प्रकार तो बांटा नहीं। साल में 6 महीने भीम के पास और बाकी के 6 महीने बाकी भाइयों के पास।

द्रुपद की दिली इच्छा थी कि अर्जुन को अपना जवाई बनाऊं। स्वयंवर में जिस लक्ष्य भेद यंत्र बनवाया था वह भी अर्जुन को ध्यान म...
21/09/2025

द्रुपद की दिली इच्छा थी कि अर्जुन को अपना जवाई बनाऊं। स्वयंवर में जिस लक्ष्य भेद यंत्र बनवाया था वह भी अर्जुन को ध्यान में रख कर बनवाया था क्योंकि द्रुपद को विश्वाश था कि पांडव लाक्षाग्रह में जल कर मरे नहीं हैं।

स्वयंवर में जो राजा आए थे उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ द्रोपदी को सेक्स के लिए हासिल करना था। जीभ से लार टपक रही थी। महाभारत आदि पर्व अध्याय 186 के शब्दों में :–

उनके सभी अंगों में कामोन्माद व्याप्त हो रहा था। “कृष्णा तो मेरी ही होने वाली है, यह कहते हुए वे अपने राजोचित आसन से सहसा उठकर खड़े हो गये । कामदेव के बाणों की चोटसे उनके सभी अंगों में निरन्तर पीड़ा हो रही थी। उनका मन द्रौपदी में ही लगा हुआ था । द्रुपद कुमारी कों पाने के लिये रंग भूमि में उतरे हुए वे सभी नरेश वहाँ अपने सहृद राजाओँ से भी ईर्ष्या करने लगे। राजा, राजकुमार एवं राजाओं के पौत्र अपने नेत्रों मन और स्वमाव कों द्रौयदी की ओर लगाकर उसी को देख रहें थे. ( स्वयंवर में पुत्र के साथ तो कई राजा थे पर सिर्फ एक ही था जो अपने बेटे और पौत्र के साथ आया हुआ था और वह राजा नहीं था भगवान कृष्ण थे ) आए हुए राजाओं/राजकुमारों का परिचय द्रोपदी को द्रोपदी के भाई ने उद्घोष कर के दिया था )। नकुल-सहदेव सब-के-सब द्रोपदी को देख कर तुरंत कामदेव के बार्णों से घायल हो गये ॥

जब अर्जुन को द्रोपदी ने वरमाला पहना दी तब सभी राजा द्रुपद को मारने के लिए तैयार हो गए कि किसी ब्राह्मण को अपनी बेटी क्यों दे रहा है। द्रोपदी को जिंदा आग में डालना चाहते थे। ( अध्याय 187, 188, 189 ) भीम और अर्जुन ने उन राजाओं का ( कर्ण, शल्य समेत ) मुकाबला किया।

श्लोक 25 अध्याय 187 में लिखा है कि जैसे ही ब्राह्मण वेश में अर्जुन ने लक्ष्य को भेद दिया तभी द्रुपद ने अर्जुन को पहचान लिया। महाभारत के शब्दों में :–

"अजुन को देखकर शत्रु सूदन द्वुपद के हर्ष की सीमा न रही | उन्होंने अपनी सेना के साथ उनकी सहायता करने का निश्चय किया।"

फिर इसी द्रुपद ने ब्राह्मण रूपी अर्जुन का पीछा करवाया। द्रुपद को यह कहते हुए दिखाया है:–

“कहीं किसी शूद्र ने अथवा नीच जाति के पुरुष द्वारा ऊँची जाति की स्त्री से उत्पन्न मनुष्य ने या कर देने वाले वेश्य ने तो मेरी पुत्री कों प्राप्त नहीं कर लिया ! और इस प्रकार उन्होंने मेरे सिर पर अपना कीचड़ से सना पाँव तो नहीं रख दिया ? माला के समान सुकुमारी और ह्वृदयपर धारण करने योग्य मेरी लाडली पुत्री शमशान के समान अपवित्र किसी पुरुष के हाथ में तो नहीं पड़ गयी ! ( अध्याय 191 श्लोक 15 )

क्या महाभारत यहां व्यक्ति के कर्म देख रही है या उसको जन्म देने वाले माता पिता की जाती देख रही हैं?

व्यास ने द्रोपदी के पिता द्रुपद को अकेले में पांच इंदर द्वारा पांचों पांडव के रूप में जन्म और विधाता द्वारा देवलोक की लक...
21/09/2025

व्यास ने द्रोपदी के पिता द्रुपद को अकेले में पांच इंदर द्वारा पांचों पांडव के रूप में जन्म और विधाता द्वारा देवलोक की लक्ष्मी को उन पांचों की पत्नी के रूप में नियुक्त करने की कहानी सुनाई और दिव्य दृष्टि भी दी जिससे द्रुपद ने पांचों पांडवों को इंदर के रूप में और द्रोपदी को लक्ष्मी के रूप में देखा। और वो इस तरह से पांचों के साथ अपनी बेटी की शादी के लिए तैयार हो गया।

अब सवाल यह है कि बाकी सब कठपुतलियां है क्या जो एक स्त्री का पांचों के साथ विवाह को हजम कर लेंगे। व्यास ने कहानी सिर्फ एक को क्यों सुनाई, सब को क्यों नहीं? सब को दिव्य दृष्टि क्यों नहीं दी। और मैं क्यों विश्वाश करूं? मेरे पास कोई दिव्य दृष्टि नहीं है, न ही किसी ने मुझे दिव्य दृष्टि दी है।

फिर एक एक दिन क्रमवार पांचों की शादी हुईं। सबसे पहले युधिष्ठिर की, दूसरे दिन भीम की, तीसरे दिन अर्जुन की और बाकी दोनों में से पहले कौन ये कहीं नहीं लिखा हुआ। क्योंकि इन दोनो को पैदा करने वालों अश्वनीकुमारो का जन्म भी एक ही बार स्खलित वीर्य से हुआ था। वेदों और पुराणों के इन दोनो का नाम एक ही बार में लिया है। कोई अलग अलग नाम से नहीं। माद्री ने इन दोनो का आह्वान किया था और नकुल सहदेव को जन्म दिया था।

फिर लिखा है कि जब एक दिन एक के साथ शादी होती थी फिर दूसरे दिन दूसरे से शादी पर शादी से पहले कन्या भाव को प्राप्त हो जाती थी।

शंका :– मेरे मन से शंका हो रही है कि यह तय कैसे होता था कि कन्या भाव को प्राप्त हो चुकी है या नहीं। कैसे जांच लिया जाता था। कन्या भाव को प्राप्त करना क्या इसलिए जरूरी था कि शादीशुदा का दूसरी बार ब्याह नहीं हो सकता? स्वामी दयानंद सरस्वती ने क्षत योनि और अक्षत योनि शब्दों का इस्तेमाल किया था संभोग कर चुकी लड़की और न कर चुकी लड़की के लिए। कैसे पता लगेगा कि कोई लड़की क्षत योनि है या अक्षत योनि?

दहेज में निम्नलिखित दिया :–

चार चार घोड़ों वाले स्वर्णजड़ित 100 रथ
100 हाथी
100 नवयौवना दासियां आभूषणों से युक्त
पांचों को धन और वस्त्र आभूषण

पांडव लाक्षागृह में जल कर मरे नहीं थे और अब द्रोपदी से शादी हुई है यह खबर धृतराष्ट्र के पास भी पहुंची तो उन्होंने सब से ...
21/09/2025

पांडव लाक्षागृह में जल कर मरे नहीं थे और अब द्रोपदी से शादी हुई है यह खबर धृतराष्ट्र के पास भी पहुंची तो उन्होंने सब से सलाह करके विदुर जी को द्रुपद के पास पांडवों को लिवाने के लिए भेजा। द्रुपद ने विदुर से सहमत हो कर पांडवों को अपनी बेटी के साथ ( कुंती के साथ भी ) अपने राज्य में जाने को कहा। विदायगी में निम्नलिखित वस्तु भेट स्वरूप दिए :–

1. एक इजार सुन्दर हाथी जिनकी पीठ पर सोने के हौदे कसे हुए थे और गले में सोने के आभूषण थे। उनके अंकुश भी सोने के ही थे।

2. चार चार घोड़ों वाले 1000 रथ घोड़ों समेत।

3. पचास हजार घोड़े और भी।

4. एक हजार नौकर ( दास )

5. 1 करोड़ गाय, बर्तन, bedding भी।

इस के इलावा खास :–

10000 ( दस हजार ) सुंदर आभूषणों से विभूषित दासियां।

तो समझ लीजिए कि आदमी और औरतों को खरीद कर या मार पीट कर दास बनाया जाता था और इन दास दासियों को दहेज में या सप्रेम अपने चहेतों को भेट के रूप में दिए जाते थे। उस समय धर्म कायम था। अब कलयुग में धर्म खत्म हो चुका है। हमें यही धर्म स्थापित करना है। धर्म की रक्षा के लिए हिंसा भी जायज है। यही लक्ष्य है हिंदूवादियों का और आप सब को सहयोग करना है। यही है गजवा ए हिंद का सनातनी स्वरूप।

महाभारत ग्रन्थ में ही श्रीमद भगवत गीता ( गीता ) आती है। हिंदू धर्म की कल्पना भी इस ग्रन्थ के बगैर नहीं हो सकती। लेकिन मु...
21/09/2025

महाभारत ग्रन्थ में ही श्रीमद भगवत गीता ( गीता ) आती है। हिंदू धर्म की कल्पना भी इस ग्रन्थ के बगैर नहीं हो सकती। लेकिन मुझे लगता है कि इसमें जो लिखा है उसको निष्पक्ष तरीके से आज तक किसी ने बताया ही नहीं। गलत तरीके से हमारे दिमागों में भर दिया गया कि पांडव पक्ष निर्दोष था, न्याय इनके पक्ष में था और पूरी गलती धृतराष्ट्र की थी, वह अन्यायी था। पुत्र मोह में अंधा था यह बताया जाता है। अब दूसरा पक्ष जिस को जानबूझ कर छिपाया जाता है।

धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को आधा राज्य दे कर राज्याभिषेक किया और कहा कि "मेरे दुरात्मा पुत्र दर्प ओर अहंकारसे भरे हुए हैं। वे सदा मेरी आज्ञा का पालन नहीं करेंगे। कोई झगड़ा न हो इसलिए तुम खांडवप्रस्थ ( इंद्रप्रस्थ यानी दिल्ली ) में निवास करो। ( महाभारत आदि पर्व अध्याय 206 श्लोक 24 )

लेकिन धर्मराज पुत्र सत्यप्रिय युधिष्ठिर ने जुआ खेल कर अपना राज्य हारा, भाइयों को हारा, खुद को भी हारा और द्रोपदी को भी हारा।

पत्नी को दाव पर लगाने का और हारने का अर्थ किस को नहीं पता होगा? अगर आज भी कोई अपनी पत्नी को हार जाए तो जीतने वाला उस औरत के साथ क्या करेगा, किस को नहीं पता। आज का जमाना तो वो है जब हम कहते है कि औरत को आदमी के बराबर अधिकार प्राप्त हैं। द्रोपदी को हारने से पहले धर्म राज पुत्र युधिष्ठिर एक लाख दासियों को दाव पर लगा कर हारा था। उसकी तो कोई बात ही नहीं करता। ये तो वैसे ही हुआ कि मोदी की माता देश की माता और बाकी सभी स्त्रियों को गालियां देते रहो।

जिस को पुत्र मोह में अंधा बताया जाता है। उसने तो द्रोपदी को आजाद किया, पांचों भाइयों को आजाद किया और सब कुछ वापस कर दिया। ( महाभारत सभा पर्व अध्याय 71, 73 ) लेकिन धर्म राज पुत्र युधिष्ठिर ने दोबारा से जुआ खेला था। दोबारा से हारा था। और शर्त के अनुसार आखिरी एक वर्ष गुप्तवास में रहना था वह सफलता पूर्वक शर्त पूरी नहीं हुई थी। पहले ही पहचान लिए गए थे। और अगर यह सही था तो पांडवों को दोबारा से 13 वर्ष के लिए फिर से सफलता पूर्वक बनवास काटना था। ( अग्नि पुराण अध्याय 88 )

धर्मराज पुत्र युधिष्ठिर ने जुआ खेला।  राज्य को, संपतियों को, भाइयों को, खुद को और पत्नी को भी हार दिया। सब कुछ धृतराष्ट्...
21/09/2025

धर्मराज पुत्र युधिष्ठिर ने जुआ खेला। राज्य को, संपतियों को, भाइयों को, खुद को और पत्नी को भी हार दिया। सब कुछ धृतराष्ट्र ने वापिस दे दिया। पर धर्मराज पुत्र युधिष्ठिर ने फिर से जुआ खेला और फिर से राज्य को हार दिया। क्या ऐसा आदमी को राज्य का अधिकारी बनना या बनाना चाहिए?

युधिष्ठिर ने जुआ क्यों खेला, क्या कोई मजबूरी थी या कुछ और?

अगर दुर्योधन युधिष्ठिर के हिस्से का राज्य खुद पाना चाहता था तो युधिष्ठिर भी तो यही ही चाहता था कि जुए में जीत कर दुर्योधन के हिस्से का राज्य छीन लूं। ऐसा लिखा हुआ है। युधिष्ठिर से खुद उसके ही मुंह से यह कहलवाया गया है महाभारत वन पर्व अध्याय 34 श्लोक 3 में। देखिए क्या लिखा है :–

"उन दिनों धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन के हाथसे उसके राष्ट्र तथा राजपद का अपहरण करने की इच्छा रख कर ही मैं द्यूतक्रीड़ा मे प्रवृत्त हुआ था; किंतु उस समय धुर्त जुआरी शकुनि दुर्योधन के लिये उस की ओर से मेरे विपक्ष में आकर जूआ खेलने लगा।"

यहां भी धर्म राज पुत्र ने झूठ ही बोला। यह पहले से तय था कि शकुनि ही दुर्योधन की तरफ से खेलेगा। जब वह अपने घर खांडवप्रस्थ में ही था। जुआ खेलने के लिए युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र के राज्य हस्तिनापुर की तरफ प्रस्थान भी नहीं किया था तभी उसको बता दिया गया था। सभा पर्व अध्याय 58 श्लोक 16 में धर्म राज पुत्र युधिष्ठिर ने यह कहा था :–

"मेरे मन में जुआ खेलने की इच्छा नहीं है । यदि मुझे विजयशील राजा धृतराष्ट्र सभा में न बुलाते तो मैं शकुनि से कभी जुआ नहीं खेलता किंतु बुलाने पर मैं कभी पीछे नहीं हटूंगा | यह मेरा सदा का नियम है ॥"

जब द्रोपदी की शादी एक एक के सभी पांडवों से हो गई, द्रुपद से विदाई ले कर हस्तिनापुर धृतराष्ट्र के पास पहुंच गए तो वहां यु...
21/09/2025

जब द्रोपदी की शादी एक एक के सभी पांडवों से हो गई, द्रुपद से विदाई ले कर हस्तिनापुर धृतराष्ट्र के पास पहुंच गए तो वहां युधिष्ठिर का राज्याभिषेक किया गया और आधा राज्य दे कर खांडवप्रस्त ( इंद्रप्रस्थ – दिल्ली ) भेज दिया। नारद ने आ कर पांचों पांडवों से कहां की स्त्री को लेकर भाइयों दोस्तों में भयंकर वैर बंध जाता है इसलिए तुम खुद कुछ इस तरह का नियम बनाओ कि कभी भाइयों का झगड़ा न होवे।

भाइयों ने मिल कर नियम बनाया कि द्रोपदी एक एक वर्ष एक भाई के पास रहेगी और जब कोई भाई अकेले में द्रोपदी के पास हो तब अगर कोई उसको देखे तो उसको 12 वर्ष ब्रह्मचर्य पूर्वक बनवास में रहना होगा।
अब तो वह राजा भी थे तो पता नहीं क्यों भाइयों ने अपने अपने लिए अलग अलग घर क्यों नहीं बनवाए। जहां अर्जुन के अस्त्र शस्त्र पड़े थे वहीं युधिष्ठिर द्रोपदी के साथ अकेले में था। एक ब्राह्मण ने चीख पुकार मचाई कि चोर मेरे पशु चुरा कर ले जा रहें हैं, मेरी मदद करो। अर्जुन आवाज लगा कर युधिष्ठिर की आज्ञा से अंदर गया और अपने शस्त्र ले कर चोरों से पशु छुड़वा कर ब्राह्मण को दिए और खुद 12 वर्ष बनवास के लिए निकल पड़ा।

हिंदू मान्यताओं के अनुसार धरती के नीचे नागलोक है। अर्जुन जब गंगा में नहाने के उतरे तो नागराज कन्या उलूपी अर्जुन को खींच कर अपने महल में ले गई। पूछने पर उसने अपना परिचय यूं दिया :–

"ऐराबत नाग के कुल में कौरव्य नामक नाग उतन्न हुए हैं, मैं उन्हीं की पुत्री नागिन हूँ | मेरा नाम उलूपी है ॥" ( आदि पर्व अध्याय 213 श्लोक 18 ) फिर बोली कि मैं कामवेदना से पीड़ित हूं, मेरे से समागम करो।

नियम तो था कि बनवास में ब्रह्मचर्य से रहना है पर इसका अर्थ ये निकाल लिया कि द्रोपदी के बिना रहना है। बाकी किसी और के साथ चाहे कुछ भी करो। और इस तरह उलूपी से भोग कर के इरावान पुत्र पैदा किया। ( नागिन से कोई कैसे भोग करके मानव पुत्र पैदा कर सकता है ? )

फिर तो रास्ता खुल ही गया था तो मणिपुर के राजा चित्रवाहन से उसकी लड़की चित्रागंदा को मांग लिए क्योंकि काम सता रहा था। चित्रवाहन ने कहां की लड़की का शुल्क ( फीस ) ये है कि पुत्र पैदा करके मुझे देना होगा। तीन साल वहां रह कर अर्जुन आगे गए। समुद्र के एक तीरथ पर 5 अप्सराएं श्राप के तहत मगरमच्छ बन कर रह रही थी उनका उद्धार किया और फिर से वापस मणिपुर गए। पुत्र वभ्रुवाहन पैदा हो चुका था उसको उसके नाना चित्रवाहन को सौंपा और फिर पत्नी चित्रागंदा को वहीं रहने का आदेश दिया और कहां कि बाद में तुम्हे इंद्रप्रस्थ के कर जाऊंगा, अब बच्चे का पालन पोषण करो।

फिर द्वारका जा कर अपने मामा के लड़के कृष्ण भगवान जी से मिले और उनकी सलाह पर कृष्ण भगवान की बहन ( और खुद के मामा की लड़की ) सुभद्रा का अपहरण कर के पत्नी बनाया और अभिमन्यु को पैदा किया। इस पर विस्तार से पोस्ट कल को।
#महाभारत

17/09/2025

बाढ़ से पीड़ित गाँव बधावड़ (हिसार, हरियाणा) में संत रामपाल जी महाराज की रहमत पहुंची।SA News ChannelWitness the incredible true story of how a village on the ...

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