21/09/2025
महाभारत ग्रन्थ में ही श्रीमद भगवत गीता ( गीता ) आती है। हिंदू धर्म की कल्पना भी इस ग्रन्थ के बगैर नहीं हो सकती। लेकिन मुझे लगता है कि इसमें जो लिखा है उसको निष्पक्ष तरीके से आज तक किसी ने बताया ही नहीं। गलत तरीके से हमारे दिमागों में भर दिया गया कि पांडव पक्ष निर्दोष था, न्याय इनके पक्ष में था और पूरी गलती धृतराष्ट्र की थी, वह अन्यायी था। पुत्र मोह में अंधा था यह बताया जाता है। अब दूसरा पक्ष जिस को जानबूझ कर छिपाया जाता है।
धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को आधा राज्य दे कर राज्याभिषेक किया और कहा कि "मेरे दुरात्मा पुत्र दर्प ओर अहंकारसे भरे हुए हैं। वे सदा मेरी आज्ञा का पालन नहीं करेंगे। कोई झगड़ा न हो इसलिए तुम खांडवप्रस्थ ( इंद्रप्रस्थ यानी दिल्ली ) में निवास करो। ( महाभारत आदि पर्व अध्याय 206 श्लोक 24 )
लेकिन धर्मराज पुत्र सत्यप्रिय युधिष्ठिर ने जुआ खेल कर अपना राज्य हारा, भाइयों को हारा, खुद को भी हारा और द्रोपदी को भी हारा।
पत्नी को दाव पर लगाने का और हारने का अर्थ किस को नहीं पता होगा? अगर आज भी कोई अपनी पत्नी को हार जाए तो जीतने वाला उस औरत के साथ क्या करेगा, किस को नहीं पता। आज का जमाना तो वो है जब हम कहते है कि औरत को आदमी के बराबर अधिकार प्राप्त हैं। द्रोपदी को हारने से पहले धर्म राज पुत्र युधिष्ठिर एक लाख दासियों को दाव पर लगा कर हारा था। उसकी तो कोई बात ही नहीं करता। ये तो वैसे ही हुआ कि मोदी की माता देश की माता और बाकी सभी स्त्रियों को गालियां देते रहो।
जिस को पुत्र मोह में अंधा बताया जाता है। उसने तो द्रोपदी को आजाद किया, पांचों भाइयों को आजाद किया और सब कुछ वापस कर दिया। ( महाभारत सभा पर्व अध्याय 71, 73 ) लेकिन धर्म राज पुत्र युधिष्ठिर ने दोबारा से जुआ खेला था। दोबारा से हारा था। और शर्त के अनुसार आखिरी एक वर्ष गुप्तवास में रहना था वह सफलता पूर्वक शर्त पूरी नहीं हुई थी। पहले ही पहचान लिए गए थे। और अगर यह सही था तो पांडवों को दोबारा से 13 वर्ष के लिए फिर से सफलता पूर्वक बनवास काटना था। ( अग्नि पुराण अध्याय 88 )