
29/08/2025
धृतराष्ट्र ने तो अपने बेटे को युवराज न बना कर युधिष्ठिर को बनाया। फिर मंत्री कणिक की नीच सलाह से धृतराष्ट्र का दिमाग तो खराब होना ही था। दूसरी तरफ बेटा दुर्योधन पिता से कहता है कि इन कांटों को निकाल कर बाहर करो।
महाभारत आदि पर्व अध्याय 140 में कथा सुनने वाले ने समझ लिया पांडवों को जो लाक्षागृह में जलाए जाने का षडयंत्र मंत्री की सलाह का ही प्रणाम था। यू लिखा है:–
"क्रूर कणिक के उपदेश से किया हुआ कोरवों का यह कर्म अत्यन्त निर्दयतापूण था।"
दुर्योधन, शकुनि, दुशासन और कर्ण ने पांडवों को जला कर मारने की गुप्त योजना बनाई पर विदुर ने उनकी चेष्टाओं से समझ लिया और नाव बना कर बचाने की योजना बना ली।
आगे के अध्यायों में :–
पांडवों को धृतराष्ट्र ने वारणावत भेजने का प्रस्ताव दिया और युधिष्ठिर गुप्त मंतव्य समझ तो गए पर प्रस्ताव मान लिया। इधर दुर्योधन ने वहां ऐसा भवन बनाने का आदेश दिया जिसमें सभी ज्वलनशील प्रदार्थों का ही उपयोग हुआ हो।
इधर इस षडयंत्र को जानकारी विदुर ने युधिष्ठिर को दे दी। वहां पहुंच कर पांडव जब नए भवन में गए तो उन्होंने भी पहचान लिया कि इस भवन को ज्वलनशील पदार्थों से बनाया हुआ है।
पांडवों ने भी योजना बनाई कि वह जल कर मरने का दिखावा करते हुए बच कर निकल जाएं और गुप्त रूप से निवास करें।
सत्ता का लालच क्या से क्या करवा सकता है वह सिर्फ दुर्योधन से नहीं युधिष्ठिर से भी सीखो। अपनी जगह किन्हीं और 6 निर्दोष आदमियों और दुर्योधन के सेवक पुरोचन को जलाने की योजना युधिष्ठिर ने बनाई। ( 5 पांडव और एक उनकी माता कुंती )
दुर्योधन के कहने से पुरोचन ने ही भवन बनवाया था और आग भी उसी ने लगानी थी।
कुंती ने ब्राह्मण भोजन का आयोजन करवाया। बहुत से लोग आए और भोजन कर के वापिस गए पर एक भीलनी अपने 5 बेटों के साथ भोजन के लिए आई। भोजन के साथ शराब पी और वही सो गए। ( योजना को अंजाम देने के लिए जानबूझ कर उनको बुलाया गया होगा और अधिक शराब पिलाई होगी )
अब पांडवों ने खुद ही आग लगा दी ताकि पुरोचन को भी साथ ही जलाया जा सके।
पांडवों ने अपने लिए सुरंग बना रखी थी और निकल कर भाग गए। विदुर के द्वारा भेजी हुई नाव से गंगा पार कर गए।
आग बुझने के बाद लोगों ने एक औरत और 6 पुरुषों की जली हुई लाशें देखी