Sanatni Ratan

Sanatni Ratan पंचवेदी

धृतराष्ट्र ने तो अपने बेटे को युवराज न बना कर युधिष्ठिर को बनाया। फिर मंत्री कणिक की नीच सलाह से धृतराष्ट्र का दिमाग तो ...
29/08/2025

धृतराष्ट्र ने तो अपने बेटे को युवराज न बना कर युधिष्ठिर को बनाया। फिर मंत्री कणिक की नीच सलाह से धृतराष्ट्र का दिमाग तो खराब होना ही था। दूसरी तरफ बेटा दुर्योधन पिता से कहता है कि इन कांटों को निकाल कर बाहर करो।

महाभारत आदि पर्व अध्याय 140 में कथा सुनने वाले ने समझ लिया पांडवों को जो लाक्षागृह में जलाए जाने का षडयंत्र मंत्री की सलाह का ही प्रणाम था। यू लिखा है:–

"क्रूर कणिक के उपदेश से किया हुआ कोरवों का यह कर्म अत्यन्त निर्दयतापूण था।"

दुर्योधन, शकुनि, दुशासन और कर्ण ने पांडवों को जला कर मारने की गुप्त योजना बनाई पर विदुर ने उनकी चेष्टाओं से समझ लिया और नाव बना कर बचाने की योजना बना ली।

आगे के अध्यायों में :–

पांडवों को धृतराष्ट्र ने वारणावत भेजने का प्रस्ताव दिया और युधिष्ठिर गुप्त मंतव्य समझ तो गए पर प्रस्ताव मान लिया। इधर दुर्योधन ने वहां ऐसा भवन बनाने का आदेश दिया जिसमें सभी ज्वलनशील प्रदार्थों का ही उपयोग हुआ हो।

इधर इस षडयंत्र को जानकारी विदुर ने युधिष्ठिर को दे दी। वहां पहुंच कर पांडव जब नए भवन में गए तो उन्होंने भी पहचान लिया कि इस भवन को ज्वलनशील पदार्थों से बनाया हुआ है।

पांडवों ने भी योजना बनाई कि वह जल कर मरने का दिखावा करते हुए बच कर निकल जाएं और गुप्त रूप से निवास करें।

सत्ता का लालच क्या से क्या करवा सकता है वह सिर्फ दुर्योधन से नहीं युधिष्ठिर से भी सीखो। अपनी जगह किन्हीं और 6 निर्दोष आदमियों और दुर्योधन के सेवक पुरोचन को जलाने की योजना युधिष्ठिर ने बनाई। ( 5 पांडव और एक उनकी माता कुंती )

दुर्योधन के कहने से पुरोचन ने ही भवन बनवाया था और आग भी उसी ने लगानी थी।

कुंती ने ब्राह्मण भोजन का आयोजन करवाया। बहुत से लोग आए और भोजन कर के वापिस गए पर एक भीलनी अपने 5 बेटों के साथ भोजन के लिए आई। भोजन के साथ शराब पी और वही सो गए। ( योजना को अंजाम देने के लिए जानबूझ कर उनको बुलाया गया होगा और अधिक शराब पिलाई होगी )

अब पांडवों ने खुद ही आग लगा दी ताकि पुरोचन को भी साथ ही जलाया जा सके।

पांडवों ने अपने लिए सुरंग बना रखी थी और निकल कर भाग गए। विदुर के द्वारा भेजी हुई नाव से गंगा पार कर गए।

आग बुझने के बाद लोगों ने एक औरत और 6 पुरुषों की जली हुई लाशें देखी

हिडिंबा ने जब कुंती को बताया कि वह उसके पुत्र भीम को चाहती है तो उसने खुद फैसला लिया कि भीम को इसके साथ भेजना चाहिए पर ऐ...
29/08/2025

हिडिंबा ने जब कुंती को बताया कि वह उसके पुत्र भीम को चाहती है तो उसने खुद फैसला लिया कि भीम को इसके साथ भेजना चाहिए पर ऐसा लगता है कि वह खुद सक्षम नहीं थी अपने फैसले लागू करवाने में। उसने अपने बड़े पुत्र युधिष्ठिर से इस प्रकार कहा :–

"यदि तुम्हारी सम्मति हो तो यह संतान के लिये कुछ काल तक मेरे वीर पुत्र पाण्डुनन्दन भीमसेन की सेवा में रहे ॥" ( आदि पर्व अध्याय 154 श्लोक 16 )

इसी को आगे पढ़ने पर पता लगता है कि युधिष्ठिर ने कुंती को कोई जवाब नहीं दिया पर सीधे सीधे सीधे हिडिंबा को संबोधन कर के कहा :–

"दिन भर तो तुम इनके साथ अपनी इच्छा के अनुसार विहार करो; परंतु रात को सदा ही तुम्हें भीमसेन को ( हमारे पास ) पहुँचा देना होगा ॥ ( श्लोक 18 )

भीम को तो किसी ने पूछा ही नहीं।

इस के बाद कुंती ने भीम को यूं आदेश दिया :–

"मेरी आज्ञा है कि तुम उसे धर्म के लिये एक पुत्र प्रदान करो । वह हमारे लिये कल्याणकारी होगा| मैं इस विषय में तुम्हारा कोई प्रतिवाद नहीं सुनना चाहती |"

हिडिंबा बच्चा पैदा कर के चली गईऔर बच्चा भी चला गया। जिस ब्राह्मण के घर रह रहे थे उनकी बारी आई थी कि नगर के मालिक या रक्षक राक्षस बक को एक दिन का भोजन पहुंचाने की। खाने में चावल का भात तो बैलगाड़ी में जाएगा। 2 जानवर जो बैलगाड़ी को खींचेगा और जो आदमी जायेगा वे भी राक्षस का भोजन ही होंगे।

कुंती ने फैसला कर लिया कि भीम खाना ले कर जायेगा और राक्षस को मार देगा। पर कुंती ने गलती कर दी कि फैसला युधिष्ठिर से बिना पूछे कर दिया। जैसे ही युधिष्ठिर को पता लगा तो उसने अपनी माता को यूं कहा :–

उस बलवान् पुत्र के त्याग का निश्चय आपने किस बुद्धि से किया है! क्या आप अनेक दुःखों के कारण अपनी चेतना खो बैठी हैं ! आपकी बुद्धि ल॒प्त हो गयी है॥ ( आदि पर्व अध्याय 161 श्लोकं 10, 11 )

जब हमें लिखी हुई बातें बहुत अच्छी लगती है तो अनायास की कह उठते हैं कि देखो हमारे आराध्य ने कितनी भावपूर्ण गहरी बात की थी। लेकिन जब बात अच्छी नहीं लगती तो हम कहते है कि यह तो लेखक ने ऐसा लिख दिया या किसी ने मिलावट कर दिया वगैरह वगैरह।

ब्राह्मण वेश में रहते हुए पांडवों ने द्रोपदी को स्वयंवर से प्राप्त करने की कहानी आती है।पर कभी स्वयंवर पर विचार करते हुए...
29/08/2025

ब्राह्मण वेश में रहते हुए पांडवों ने द्रोपदी को स्वयंवर से प्राप्त करने की कहानी आती है।

पर कभी स्वयंवर पर विचार करते हुए विचार आया था कि स्वयंवर का अर्थ होता है कि लड़की अपने वर का वरण खुद ( स्वय ) करेगी। पर जो कुछ हम सीता का स्वयंवर, द्रोपदी का स्वयंवर के बारे में पढ़ते है वह स्वयंवर कैसे हुआ? लड़की के पिता ने शर्त तय कर दी कि जो ये करेगा उसको मेरी बेटी चुनेगी। पिता ने तो यह भी नही कहा कि अगर 1 से ज्यादा पुरुष ये शर्त पूरी करेंगे उन में से मेरी बेटी चयन करेगी।

शर्त का निर्धारण लड़की नहीं करती तो स्वयंवर किसी भी अर्थ में नहीं हैं।

काशी नरेश ने अपनी तीन बेटियों का स्वयंवर का आयोजन किया तो भीष्म तीनों का अपहरण करके भाग गया। जो दूसरे राजा स्वयंवर में आए थे उन्होंने भीष्म से युद्ध किया पर कुछ नहीं कर सकें। राजाओं ने युद्ध क्यों किया? लड़कियों को प्राप्त करने के लिए ही। अंबा, अंबिका, अंबालिका मे से अंबा ने भीष्म को कहा कि मैं अपने मन से शाल्वराज को अपना वर चुन चुकी थी तो भीष्म ने उसको छोड़ दिया पर शाल्वराज ने उसको अपनाने से इनकार किया।

गीता प्रेस गोरखपुर की बाल्मीकि रामायण बाल कांड सर्ग 66 श्लोक 18 से 26 में जनक जी बता रहें है कि मैने यह शर्त रखी कि जो इस धनुष को चढ़ा देगा उसी को अपनी बेटी दूंगा। जब सभी राजा धनुष को उठाने हिलाने में ही असफल हुए सीता को न पा सके तो उन्होंने अपनी बेइज्जती समझते हुए अपनी सेना को लेकर मेरे राज्य को चारों और से एक वर्ष तक घेरे रखा। मैने तपस्या करके देवताओं से चतुरंगिणी सेना प्राप्त की तब उनको भगाया।

सीता की उम्र शादी के समय 6 वर्ष थी। बाल्मीकि रामायण के अनुसार ऐसा सीता ने अपहरण करने आए रावण को खुद बताया था। उसने बताया था कि शादी के बाद 12 वर्ष अयोध्या महलों में रही और बनवास के समय मेरी आयु 18 वर्ष थी। ( बाल्मीकि रामायण अरण्य कांड सर्ग 47 श्लोक 4 और 10 )

इतनी छोटी कन्या को ले जाने के लिए राजा लोग सेना के साथ घेरा डाले हुए थे। यह था त्रेता युग जब धर्म अपने तीन पैरों पर स्थिर था। अब तो धर्म का लोप हो चुका है।

काशी राज की कन्या अंबा चाहती तो शाल्वराज को है पर पिता ने स्वयंवर के नाम पर दूल्हों की भीड़ इकट्ठी कर के वीरता दिखाने की शर्त रख दी। इस पर अंबा ने क्या कहा, देखिए:–

"मेरे मन्दबुद्धि पिता को धिक्कार है; जिन्होंने पराक्रम का शुल्क नियत करके मुझे बाजारू स्त्री की भाँति जनसमृह में निकलने की आज्ञा दी ॥"( महाभारत उद्योगपर्व अध्याय 175 श्लोक 30, 31 )

पन्ने लगा रहा हूं।

ब्राह्मण वेश में भिक्षा मांग कर खाने वाले पांडवों के घर एक और ब्राह्मण मेहमान बन कर आया और द्रोपदी के स्वयंवर के बारे मे...
29/08/2025

ब्राह्मण वेश में भिक्षा मांग कर खाने वाले पांडवों के घर एक और ब्राह्मण मेहमान बन कर आया और द्रोपदी के स्वयंवर के बारे में बता कर फिर द्रोपदी और उसके भाई धृष्टद्युम्न के जन्म का वृतांत बताया जो इस प्रकार महाभारत के आदि पर्व अध्याय 166 में दर्ज है।

इस कहानी के अनुसार इनके जन्म के लिए न तो किसी पुरुष के वीर्य की जरूरत पड़ी और न ही किसी स्त्री के गर्भ की।

यज्ञ करवाने वाले ब्राह्मणों से द्रुपद फरियाद किया करता था कि यज्ञ करके मुझे द्रोण को मारने वाला पुत्र दिलवाओ। ना ना करने के बाद एक ब्राह्मण तैयार हुआ जिसको द्रुपद ने 10 करोड़ ( एक अर्बुद ) गाय देने का लालच दिया था।

यज्ञ के हवन की समाप्ति के बाद याजक ( यज्ञ करवाने वाला ब्राह्मण ) ने रानी को बुलवाया कि हविष्य ग्रहण करके खाओ तो एक पुत्र और पुत्री प्राप्त होगी पर रानी बोली कि मेरे मुंह में तांबूल ( पान ) है इसलिए अभी हविष्य नहीं ले सकती।

ब्राह्मण बोला कि तुम आओ या न आओ, मेरे हविष्य से यजमान की इच्छा अवश्य पूरी होगी और यह कह कर हविष्य कि अग्नि में आहुति दी। देते ही यज्ञ की अग्नि से सुंदर बलशाली धनुष बाण और तलवार धारण किए हुए युवक प्रगट हुआ और श्रेष्ठ रथ पर चढ़ गया। यही था द्रुपद का पुत्र धृष्टद्युम्न। आकाशवाणी ने बता दिया यही है द्रोण का वध करने के लिए उत्पन्न द्रुपद का पुत्र।

फिर इसके बाद कन्या प्रगट हुई।उसका एक एक अंग देखने योग्य था। आँखें बड़ी बड़ी काली थी। महाभारत के शब्दों में :–

उसके शरोरकी कान्ति श्याम थी। नेत्र ऐसे जान पड़ते मानो खिले हुए कमलके दल हों | केश काले-काले और घुंघराले थे । नख उभरे हुए और लाल रंग के थे.। भौंह बड़ी सुन्दर थीं | दोनों उरोज स्थूल ( स्तन बड़े बड़े ) और मनोहर थे | (अध्याय 166 श्लोक 45)

देवता; दानव और यक्ष भी उस देवोपम कन्या कों पानेके लिये लालायित थे। ( श्लोक 47 )

फिर से आकाशवाणी हुई– इस का नाम कृष्णा है धरती की समस्त लड़कियों से सुंदर है। धरती के क्षत्रियों के संहार के लिए उत्पन्न हुई है।

फिर रानी यज्ञ वाले ब्राह्मण से बोली कि ये दोनों सिर्फ मुझे ही माता समझें, कुछ ऐसा करो। ब्राह्मण ने वैसा ही कर दिया।

द्रुपद को जब पता लगा कि पांडव जल कर मर गए तब उसने कहा कि मैने कन्या मांगी इसलिए थी कि अर्जुन की पटरानी बन सके। यानी लड़की अभी पैदा भी नहीं हुई पर दामाद पहले ही चुन लिया। पर द्रुपद को भी कहां पता था कि उसको कन्या भी ऐसे मिलेगी जिसके स्तन बड़े बड़े और मनोहारी होंगे यानी बड़ी उम्र वाली।

द्रुपद के गुरु ने कहा कि मुझे विश्वाश है कि पांडव जिंदा हैं। आप स्वयंवर की घोषणा करवाओ तो पांडव अवश्य आयेंगे।

गर्व कीजिए कि हमारे पूर्वजों के पास इतनी बड़ी बड़ी तकनीक थी जो आज भी विश्व में किसी और के पास नहीं है। लेकिन यह तकनीक लुप्त कैसे हुई?🤣

शेष अगली किश्त में। पन्ने लगा रहा हूं।

लिंग पुराण के 40वें अध्याय, श्लोक 3 में इन्द्रदेव ने स्पष्ट कहा है कि कलियुग में लोग वेदों की प्रामाणिकता को स्वीकार नही...
28/08/2025

लिंग पुराण के 40वें अध्याय, श्लोक 3 में इन्द्रदेव ने स्पष्ट कहा है कि कलियुग में लोग वेदों की प्रामाणिकता को स्वीकार नहीं करेंगे। आज वही स्थिति देखने को मिल रही है। संत रामपाल जी महाराज पिछले पच्चीस वर्षों से निरंतर अंतरराष्ट्रीय चैनलों के माध्यम से वेदों का साक्ष्य दिखाकर वास्तविक अध्यात्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं, किंतु अंधभक्त लोग उस सत्य को स्वीकार करने के बजाय उल्टा उनका विरोध कर रहे हैं।

लंका सा कोट समुद्र सी खाई । तिह रावन घर खबरि न पाई ॥👉 रावण ने स्वर्ण की लंका बनाई, चारों ओर समुद्र जैसा गहरा संरक्षण रखा...
28/08/2025

लंका सा कोट समुद्र सी खाई । तिह रावन घर खबरि न पाई ॥
👉 रावण ने स्वर्ण की लंका बनाई, चारों ओर समुद्र जैसा गहरा संरक्षण रखा, परंतु मृत्यु के समय यह सब बेकार सिद्ध हुआ।

क्या माँगै किछू थिर न रहाई । देखत नयन चल्यो जग जाई ॥
👉 संसार में चाहे कितना भी वैभव, धन या सुख माँगो—सब अस्थायी है। सब आँखों के सामने ही नश्वर हो जाता है।

इक लख पूत सवा लख नाती । तिह रावन घर दिया न बाती ॥
👉 रावण के घर लाखों पुत्र और सवा लाख से अधिक पौत्र थे, परंतु उसके मरने पर कोई दिया तक जलाने वाला न बचा।

चंद सूर जाके तपत रसोई । बैसंतर जाके कपरे धोई ॥
👉 उसके घर में चाँद और सूर्य जैसे तेजस्वी लोग भोजन पकाते थे, और अग्निदेव तक उसके वस्त्र धोते थे; इतना वैभव भी उसे स्थिर सुख न दे सका।

गुरुमति रामै नाम बसाई । अस्थिर रहै कतहू जाई ॥
👉 केवल गुरु की दी हुई राम-नाम की कमाई ही स्थिर रहती है, बाकी सब कहीं भी टिकता नहीं।

कहत कबीर सुनहु रे लोई । राम नाम बिन मुकुति न होई ॥
👉 कबीर साहिब स्पष्ट कहते हैं—हे लोगों! सुन लो, राम-नाम (सतपुरुष का वास्तविक नाम) के बिना मोक्ष नहीं हो सकता।

 #गोबर_गणेश_छोड़ो_आदिगणेश_पूजो📖 ऋग्वेद 2.23.1 - गणपति सुक्तम् 📜 #ग॒णनां_त्वा_ग॒नप॑तिं_हवामहे #क॒विं_कवि॒नामु॑पप॒मश्र॑वस्...
27/08/2025

#गोबर_गणेश_छोड़ो_आदिगणेश_पूजो

📖 ऋग्वेद 2.23.1 - गणपति सुक्तम् 📜

#ग॒णनां_त्वा_ग॒नप॑तिं_हवामहे
#क॒विं_कवि॒नामु॑पप॒मश्र॑वस्तमम्।

ग॒नाना॑म् । त्वा॒ । ग॒णऽप॑तिम् । ह॒वा॒म॒हे॒ ।
क॒विम् । कवि॒नाम । उ॒प॒मश्र॑वः । ऽतमम् ।
शब्दार्थ:
गणानाम् – सर्व गणों के
त्वा – आप
गणपति – गणनायक (सभी गणों के स्वामी)
हवामहे – हम अपनी आहुति देते हैं
#गणनायक_देवन_देवा_आदि_अंत_करू_सेवा
(हे सर्व देवों के देव अर्थात् आप कुल के मालिक हैं, मैं आपकी पूजा जीवन के प्रारम्भ से मृत्यु पर्यन्त करूँ।)................... सूक्ष्मवेद

कविं – कविर्देव (कबीर साहेब)
कविनाम् – सभी कवियों में से
उपम – सबसे ऊपर
श्रवः – महिमावान
ऽतमम् – उच्चतम
्तन_सिर_ताज_है_सतगुरु_अदली_कबीर
(सर्व संतों में संत शिरोमणि कबीर जी हैं, वे वास्तव में न्यायकारी हैं।)............ सूक्ष्मवेद _ गुरुदेव का अंग

हे प्रभु... इन नियोगियों को क्या हुआ ?यह तो केवल की वेद पर ज्ञान देते थे  वेद में ऐसा लिखा है,वैसा लिखा है लगता है पतंजल...
27/08/2025

हे प्रभु...
इन नियोगियों को क्या हुआ ?
यह तो केवल की वेद पर ज्ञान देते थे वेद में ऐसा लिखा है,वैसा लिखा है
लगता है पतंजलि का प्रचार और तेजी से करना चाह रहे हैं जिस कारण से वेद विपरीत कार्य कर रहे हैं
यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 9
अ॒न्धन्तमः॒ प्र वि॑शन्ति॒ येऽस॑म्भूतिमु॒पास॑ते। ततो॒ भूय॑ऽइव॒ ते तमो॒ यऽउ॒ सम्भू॑त्या र॒ताः ॥९ ॥
पदार्थान्वयभाषाः -(ये) जो लोग परमेश्वर को छोड़कर (असम्भूतिम्) अनादि अनुत्पन्न सत्व, रज और तमोगुणमय प्रकृतिरूप जड़ वस्तु को (उपासते) उपास्यभाव से जानते हैं, वे (अन्धम्, तमः) आवरण करनेवाले अन्धकार को (प्रविशन्ति) अच्छे प्रकार प्राप्त होते और (ये) जो (सम्भूत्याम्) महत्तत्त्वादि स्वरूप से परिणाम को प्राप्त हुई सृष्टि में (रताः) रमण करते हैं (ते) वे (उ) वितर्क के साथ (ततः) उससे (भूय इव) अधिक जैसे वैसे (तमः) अविद्यारूप अन्धकार को प्राप्त होते हैं ॥९ ॥

शंकराचार्य और उनकी पीठें केवल कुलीन वर्ग की बनाई हुई व्यवस्था हैं। यह लोककल्याण के लिए नहीं, बल्कि सत्ता और वैभव के लिए ...
27/08/2025

शंकराचार्य और उनकी पीठें केवल कुलीन वर्ग की बनाई हुई व्यवस्था हैं। यह लोककल्याण के लिए नहीं, बल्कि सत्ता और वैभव के लिए थीं। आम जनता – किसान, मजदूर, बुनकर, कारीगर – के पास इन गुरुओं तक पहुँचने का न समय था, न साधन। यही कारण है कि शंकराचार्यों की बातें बहुसंख्यक समाज तक नहीं पहुँचीं। वेद और शास्त्रों की आड़ लेकर लोगों को जाति–वर्ण में बाँट दिया गया और बहुसंख्यक समाज को शूद्र और अछूत कहकर नीचा दिखाया गया।

इसके विपरीत पूर्ण ब्रह्म कबीर साहिब तथा उनके शिष्य रैदास जी, गुरु नानक जी, मीराजी, दादूजी जैसे संतों ने सीधी, सरल भाषा में परमात्मा का सच्चा ज्ञान दिया। उन्होंने बताया कि असली गुरु वही है जो वेदों और गीता के अनुसार एकमात्र परब्रह्म की भक्ति बताए। असली गुरु केवल वही है जो पूर्ण परमात्मा का सच्चा मार्ग दिखाए और जीव को जन्म–मरण से छुड़ाए।

📅 वराह जयंती 2025 (पुणे सहित सम्पूर्ण भारत में पंचांगानुसार)तिथि: सोमवार, 25 अगस्त 2025पर्व: भगवान विष्णु का तृतीय अवतार...
25/08/2025

📅 वराह जयंती 2025 (पुणे सहित सम्पूर्ण भारत में पंचांगानुसार)
तिथि: सोमवार, 25 अगस्त 2025
पर्व: भगवान विष्णु का तृतीय अवतार — वराह अवतार स्मरण दिवस
📖 वराह अवतार कथा (प्रमाण सहित)
कथा का प्रसंग
जब हिरण्याक्ष नामक दैत्य ने पृथ्वी को पाताल लोक (रसातल) में डुबो दिया, तब देवता और ऋषि भयभीत होकर भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे।
भगवान विष्णु ने वराह (सूअर / शूकर) का रूप धारण किया।
यह रूप अत्यन्त विशाल था, तीनों लोकों को अपने स्वरूप में धारण करने वाला।
भगवान ने समुद्र में प्रवेश किया और अपनी दाढ़ों (दांतों) पर पृथ्वी को उठाकर बाहर निकाला।
पृथ्वी माता (भूदेवी) को पुनः जल से ऊपर स्थापित किया।
पृथ्वी को उठाते समय हिरण्याक्ष ने भगवान विष्णु को युद्ध के लिए ललकारा।
एक दीर्घकालीन युद्ध के बाद, भगवान वराह ने उस दैत्य का वध किया।
📜 प्रमाण
(A) श्रीमद्भागवत महापुराण
भागवत पुराण, स्कंध 3, अध्याय 13-19 में विस्तार से वराह अवतार का वर्णन है।
3.13.30 :
“तं दृष्ट्वा घोररूपेण वराहं दैत्य-सूदनम्।
दन्ताग्र-निहितां भूमिं उद्धृतां स त्रिलोचनः॥”
→ देवताओं ने देखा कि भगवान वराह ने अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को उठाया है।
3.18.2-7 : हिरण्याक्ष और वराह भगवान के बीच युद्ध का वर्णन।
3.19.25 :
“एवं हतो दैत्यपतिः हिरण्याक्षो महासुरः।
वराहेण प्रभोरेष जगद्व्याप्तं महद् यशः॥”
→ इस प्रकार वराह रूपी ने दैत्य हिरण्याक्ष का वध करके जगत में महान यश फैलाया।
(B) विष्णु पुराण
विष्णु पुराण, प्रथम अंश, अध्याय 4-5 में भी वराह अवतार का विस्तार से उल्लेख है।
यहाँ वर्णन है कि भगवान वराह ने पृथ्वी को जल से ऊपर उठाकर उसकी पुनः स्थापना की।
(C) महाभारत
शांति पर्व (339.44) में भी वराह का उल्लेख मिलता है
“वराहो भगवान् विष्णुः सर्वलोक-हितः स्मृतः।”
कबीर परमेश्वर कहते हैं
कबीर,दस अवतार की कथा बताई, जग को कीन्हा अंध।
मछ, कच्छ, सूअर कहे, परमेश्वर कहि फंद॥”

👉 कबीर जी स्पष्ट कहते हैं कि मछली, कच्छप (कछुआ), सूअर आदि रूपों को परमात्मा बताना यह अंधभक्ति है ब्राह्मण ने परमेश्वर को इस प्रकार फँसा कर दिखाया गया है।

कबीर,सूकर रूप धर्यो जबी, यह कथा सब झूठ।
सच्चा सतपुरुष कभी, न आवै जन्मे पूत॥
👉 कबीर साहेब कहते हैं कि परमात्मा को सूअर बनाना महा-अपमान है। असली परमेश्वर कभी जन्म नहीं लेता।

“काया भीतर ब्रह्म बसा है, उसे न पहचाना कोई।
बाहिर सूअर ढूँढे सब, मूर्ख कहें ‘वह होई’॥”

👉 सच्चा उद्धारक परमेश्वर है जो सतलोक में है और संत के रूप में मार्गदर्शन करता है। लेकिन लोग सूअर जैसे अवतार की कथा मान बैठे।

शास्त्रों में कहा जाता है कि विष्णु भगवान ने सूअर रूप में आकर पृथ्वी को समुद्र से निकाला।

प्रश्न यह उठता है:
1. क्या सर्वशक्तिमान भगवान को सूअर बनना पड़ा?
2. क्या परमात्मा अपने ही बनाए जल से पृथ्वी को सीधे नहीं निकाल सकते थे?
3. अगर भगवान को युद्ध करना पड़े और संघर्ष में खून बहाना पड़े, तो वह सर्वशक्तिमान कैसे कहलाएगा?
रामपाल जी महाराज के प्रवचनों में बताते हैं कि
“दशावतार की कथाएँ केवल काल (काला पुरुष) और उसकी माया की लीला है।
सच्चा परमात्मा कभी भी जन्म नहीं लेता, न ही मछली, कछुआ या सूअर बनता है।
यह सब अवतार काल ब्रह्म (काला पुरुष) के द्वारा करवाए जाते हैं ताकि जीव परमात्मा की सच्चाई तक न पहुँच पाए।”

रामपाल जी महाराज कबीर सागर से यह वाणी प्रमाण रूप में बताते हैं:
“दस अवतार की कथा बनाई, जग को कीन्हा अंध।
मछ, कच्छ, सूअर कहे, परमेश्वर कहि फंद॥”
👉 मतलब: दशावतार की कथाएँ बनाकर लोगों को भ्रमित किया गया। मछली, कछुआ और सूअर जैसे रूप परमेश्वर नहीं हो सकते।
5. वास्तविक उद्धारक
असली उद्धारक परमात्मा कबीर साहेब हैं, जो सतलोक से आए और संत रूप में उपदेश देकर मुक्ति का मार्ग बताते हैं।
संत रामपाल जी महाराज कहते हैं कि धरती-आकाश को संभालने के लिए सूअर बनने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि यह सृष्टि पहले से ही परमात्मा की विधि से चल रही है।

#सूअरअवतार

अथ षण्डः पतितोऽङ्गविकलः स्त्रैणो बधिरोऽर्भको मूकः पाषण्डश्चक्री लिङ्गी कुष्ठी वैखानस हरद्विजौ भृतकाध्यापकः शिपिविष्टोऽनग...
25/08/2025

अथ षण्डः पतितोऽङ्गविकलः स्त्रैणो बधिरोऽर्भको मूकः पाषण्डश्चक्री लिङ्गी कुष्ठी वैखानस हरद्विजौ भृतकाध्यापकः शिपिविष्टोऽनग्निको नास्तिको वैराग्यवन्तोऽप्येते न संन्यासार्हाः। संन्यस्ता यद्यपि महावाक्योपदेशे नाधिकारिणः ॥4॥

#अर्थात : "नपुंसक, पतित, विकलांग, स्त्री जैसे स्वभाववाला, बधिर(बहरा), बालक, बकवास करने वाला, पाखण्डी, कुचक्र (कौभाण्ड) करने वाला, कोढ़ी, वैखानस और भ्रष्ट ब्राह्मण, वेतनभोगी अध्यापक, अजितेन्द्रिय, अग्निहोत्र से वंचित और नास्तिक- ये लोग विरक्त हो गए हों, तो भी संन्यास दीक्षा के लिए योग्य नहीं हैं। यदि उन्हें संन्यास कदाचित् दिया भी जाए, तो भी वे महावाक्यों के उपदेश के लिए तो अधिकारी है ही नहीं।

(सन्यासोपनिषद)

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