Subah Savere

Subah Savere A Daily News Magazine... Subah Savere is not a run-of-the-mill newspaper; it is a daily newsmagazine. Umesh Trivedi, Mr. Arun Patel, Mr. Girish Upadhyay, Mr.

It is an attempt to bring thought and analysis back into the news and break the clutter of mere news-reporting. For some decades now, journalism has taken a turn in the wrong direction; the 'market' has reduced the profession to a profit-making business. And this has stripped journalism of the social concern and responsibility that it should assume. Subah Savere is a solemn resolve to give journal

ism a positive direction. This venture has been undertaken by a team of experienced journalists like Mr. Ajay Bokil, Mr. Pankaj Shukla and Mr. Hemant Pal. A line-up of eminent journalists and thinkers has been assembled from across the country to contribute to the daily and initiate a dialogue with the reader and society at large. It is the endeavour of the ‘Subah Savere’ team to reintroduce values of authenticity, credibility and dialogue into the daily news-cycle; to provide a space for all aspects on issues that matter to all of us. A number of renowned columnists from the state as well as from the national stage will provide in-depth analysis to peel the layers of meaning from within the daily dose of routine reportage.

‘Subah Savere’ is a campaign to reinvigorate the public dialogue every single morning! So go pick a copy and join the campaign!

‘सिंदूर’ का संदेश: देश का भावनात्मक-एकाकार राष्ट्र-नीति बने-उमेश त्रिवेदी-लेखक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक हैं-सम्पर्क: ...
12/05/2025

‘सिंदूर’ का संदेश: देश का भावनात्मक-एकाकार राष्ट्र-नीति बने

-उमेश त्रिवेदी
-लेखक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक हैं
-सम्पर्क: 9893032101
-यह आलेख दैनिक समाचार पत्र सुबह सवेरे के 12 May 2025 अंक में प्रकाशित हुआ है

कोई 90 घंटे तक पाकिस्तान के खिलाफ चले सघन ‘ऑपरेशन-सिंदूर’ के धमाकों के बाद घोषित युद्ध-विराम की समीक्षाओं का सिलसिला शुरू हो चुका है। समीक्षाओं के इस दौर में देश के अवाम और सियासी पार्टियों से भारत को उसी समझदारी की दरकार है, जो उन्होंने सीमा पर युद्ध की परिस्थितियों में दिखायी है। अभी सिर्फ युद्ध रूका है, तकाजे बाकी हैं। मूर्त-अमूर्त तकाजों को देश के संस्कारों और सरोकारों से जोड़ना सबसे बड़ी चुनौती है। ‘ऑपरेशन-सिंदूर’ के जरिए भारत ने अभूतपूर्व गौरवान्वित क्षणों को हासिल किया है।
इन गौरवान्वित क्षणों में सिर्फ पाकिस्तान पर भारतीय सेना प्रभुता और प्रभुत्व के कारनामे ही दर्ज नहीं हैं। सेना के साथ मोदी-सरकार की कूटनीतिक आयोजना, सियासी दलों के राष्ट्रीय-सरोकार और आम जनता का भावनात्मक एकाकार भी इन पलछिनों में गौरव का इंद्रधनुष खींचते नजर आते हैं। इन क्षणों की भावनात्मक ऐतिहासिकता को मुख्य धारा का स्थायी भाव बनाने के लिए देश की राजनीतिक दिशाओं में कई चुनौतियां मौजूद हैं। भारतीय सेना ने सरहदों पर भारत के प्रभुत्व की जो इबारत लिखी है, उसको अंजाम तक पहुंचाने का बड़ा काम अभी बाकी है।
बहरहाल, पाकिस्तान के खिलाफ भारत की लड़ाई के ताजा कथानक के कई पहलू हैं, लेकिन दो पहलू राजनीति और कूटनीति की किताबों में ‘राष्ट्र-नीति’ के रूप में ‘ऑपरेशन-सिंदूर’ के हस्ताक्षर के रूप में दर्ज होंगे। ऑपरेशन-सिंदूर का पहला हस्ताक्षर है आतंकवाद के खिलाफ मोदी-सरकार का वह नीतिगत उद्घोष, जिसमें अब पाकिस्तान की कोई भी आतंकवादी कार्रवाई भारत के खिलाफ युद्ध मानी जाएगी। और, दूसरा हस्ताक्षर है भारतीय राजनीति और जनता का वह भावनात्मक एकाकार, जिसने राष्ट्रीय संकट के क्षणों में देश की एकात्मकता को बरकरार रखा। देश को टूटने नहीं दिया। इस भाववात्मक एकाकार को बनाये रखने और आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अब सरकार और उनके समर्थकों की है।
राष्ट्रीय नीतियां, कानून और सामाजिक नियमावली की इबारत देश, काल और परिस्थितियां की पृष्ठभूमि में लिखी जाती है। सत्ता और समाज के संचालन की नियमावली भी ऐसे ही तैयार होती है। इनमें बदलाव भी होता रहता है। नियमों का यही अनुशासन सत्ता का संविधान कहलाता है और समाज का विधान बनता है। राजनीतिक और कूटनीतिक प्रवृत्तियों का प्रादुर्भाव भी सत्ता और संविधान के अनुरूप होना चाहिए। कई मर्तबा ये प्रवृत्तियां निरंकुश भी हो जाती हैं। लोकतंत्र की मर्यादाएं हाशिए पर सरक जाती हैं। राष्ट्रीय संकट और उससे जुड़े घटनाक्रम सत्ताधीशों और उनके समर्थकों का सोच भी बदलते हैं। निरंकुशता और अहंकार की कठोरताओं को नरम करते हैं। लोकतंत्र में ये परिवर्तन अपवाद नही हैं।
‘ऑपरेशन-सिंदूर’ से उदभूत दोनो राष्ट्र-नीति का रोडमैप लोकतंत्र की जमीन को पुख्ता करने वाला है। ऑपरेशन-सिंदूर के ताजे घटनाक्रम ने वर्तमान हालात में देश की तनावग्रस्त सियासी प्रवृतियों को पुनर्विचार का अवसर दिया है। आतंकवाद और राष्ट्रीय एकता की भावभूमि पर खड़ी दोनो राष्ट्र-नीतियों के तकाजे लोकतंत्र में सत्ता की राजनीति के परिचालन को देश की संवैधानिकता और लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुरूप संचालित करने के लिए उत्प्रेरित करते हैं। ऑपरेशन-सिंदूर के दरम्यान प्रदर्शित राजनीतिक और सांप्रदायिक एकता और एकजुटता की ताकत ने पाकिस्तान के सारे मंसूबों को जिस तरीके से नेस्तनाबूद किया है, वो अभूतपूर्व है।
पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय मुसलमानों की एकजुटता ने पूरी दुनिया के सामने उन ताकतों को निरुत्तर कर दिया है, जो धर्म के नाम पर अंगारे उड़ाने का काम करते रहे हैं। धारा 370 के विलोपित करने के वक्त भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार को मुद्दा बनाकर पाकिस्तान ने दुनिया में मुस्लिम मुल्कों के सामने खूब कुहराम मचाया था। खुद पाकिस्तान ने इस मामले में मुंह की खाई है। ‘ऑपरेशन-सिंदूर’ के कैनवास पर उभरे सांप्रदायिक एकता के परिदृश्य के रंगों की सुर्खियों को बरकरार रखना सबसे बड़ी चुनौती है। इसी तारतम्य में सियासी सदभाव का लोकतांत्रिक मूल्यांकन भी जरूरी है। तमाम मतभेदों और तनाव के बावजूद केन्द्र सरकार के पीछे अल्पसंख्यकों और विपक्षी दलों की एकता ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की बड़ी उपलब्धि है। ये उपलब्धियां ही भारत की नई राष्ट्र-नीति का उदघोष हैं।
लेकिन युद्ध-विराम के बाद भी देश की एकाकार राजनीति का भावनात्मक साथ जरूरी है। हमारी सेना और हम लोग आज भी लाम पर हैं। सेना की चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं। फिलहाल सिर्फ बारूद के धमाके और धुंए के बादल रूके हैं। आक्रोश की आग धधक रही है। पाकिस्तान के खिलाफ भारत के ‘सीमित-युद्ध’ की तरह ही फिलवक्त ‘युद्ध-विराम’ के दायरे भी सीमित है। पाक पर सैन्य-प्रभुत्व कायम करने के साथ ही भारत ने आतंक के खिलाफ अपनी नई सैद्धांतिक ‘राष्ट्र-नीति’ का उदघोष भी कर दिया है। नीति यह है कि ‘भविष्य में पाकिस्तान की किसी भी आतंकी कार्रवाई को भारत के खिलाफ युद्ध माना जाएगा।’
एक तरह से भारत ने आतंकवाद के मुद्दे पर ‘ऑपरेशन’ के ‘सिंदूर’ से एक सैद्धांतिक लक्ष्मण-रेखा खींच दी है। इसके आगे पाकिस्तान का एक कदम भी भारत को कबूल नहीं होगा। सिंदूरी ‘लक्ष्मण-रेखा’ के उदघोष की शब्दावली ही युद्ध-विराम पर दोनो देशों के बीच 12 मई को होने वाली बातचीत का ढांचा होगी। आतंक के संबंध में नई दिल्ली के सैद्धांतिक-बदलाव को औपचारिक रूप से अमेरिका ने भी स्वीकार कर लिया है। जाहिर है कि युद्ध-विराम की शर्तों का रोड-मैप इसी सैद्धांतिक सहमति की धुरी पर तैयार होगा, जिसे अमेरिका सहित कई अन्य देशों ने भी माना है।
जाहिर है मैदानी युद्ध-विराम के बाद कूटनीतिक क्षेत्र में संग्राम शुरु होने वाला है। कूटनीति की टेबल पर मुद्दे सुलझाना सबसे दुरूह काम है। पाकिस्तान को निष्प्रभावी करने के लिए कूटनीतिक जरूरतों में भारत को कई स्तर पर प्रयास करना होगें। पाकिस्तान की हमेशा यह कोशिश रही है कि वह हर स्तर पर खुद भारत से बढ़ कर दिखाने की कोशिश करता है। भारत मे युद्ध-विराम के दाएं-बाएं सवालों का सुलगना शुरू हो चुका है। लोगो में इस बात को लेकर हैरत है कि इतनी बढ़त बनाने के बाद भारतीय सेना को युद्ध-विराम क्यों हो रहा है? ऑपरेशन-सिंदूर के दरम्यान भारतीय सेना के पराक्रम से गौरवान्वित पलछिनों की सुनहरी इबारत में युद्ध विराम के धुंधलके जोड़ने का सबब क्या है? इस निर्णय के औचित्य को लेकर भी लोगो में मतभेद हैं।
कुछ लोग चाहते थे कि इस मर्तबा पाकिस्तान का समग्र इलाज कर दिया जाए और भारतीय सेना यह करने मे समर्थ भी है। राजनीतिक इच्छा-शक्ति की दावे भी सामने आते रहे हैं। बहरहाल यह समझना जरूरी है कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए यह दंडात्मक पहल जरूरी थी। उसे भारत ने सफलता पूर्वक अंजाम दिया है। यह समझना भी जरूरी है कि आज की दुनिया में युद्ध के विस्फोटक हथियारों के दौर में कोई भी देश स्पष्ट सैन्य जीत का दावा करने मे समर्थ नही हैं। रूस जैसा देश यूक्रेन जैसे देश में यह नही कर पा रहा है। कोई भी संघर्ष शुरू करना आसान है, उसे समाप्त करना बहुत मुश्किल होता है। इसे कूटनीति प्रयासों की सफलता माना जाना चाहिए कि पाकिस्तान को सबक सिखा कर भारतीय सेना न्यूनतम नुकसान के साथ गौरवपूर्ण स्थितियों में तैयार खड़ी है।

29/01/2024

Address

Madhya Pradesh

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Subah Savere posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to Subah Savere:

Share

Our Story

अखबार नहीं, डेली न्यूज मैग्जीन… या कहें तो देश का पहला व्यूजपेपर।

खबरों के थपेड़ों में विचारों का सुकून भरा झोंका। एक किरण जो आपके मन और मस्तिष्क को झंकृत कर दे। हर हलचल, घटना और गतिविधि को अलग अंदाज और नजरिए से देखने का आग्रह। कुछ दशकों से पत्रकारिता ने ऐसा मोड़ ले लिया है, जिसमें अमूमन खबर, घटना और इंसान केवल एक तंत्र या रैकेट में बदल गए हैं। दुराग्रहों ने पत्रकारिता को पीछे ठेल कर उसे धंधे में बदलने पर विवश किया है। ‘सुबह सवेरे’ इस दुराग्रह को एक सकारात्मक आग्रह में बदलने का संकल्पित प्रयास है। एक ऐसा फलक, जिस पर मन को मथने वाले कई विचारवान हस्ताक्षर हैं। प्रदेश के जाने माने पत्रकार उमेश त्रिवेदी की बेबाक कलम के साथ कई स्थापित पत्रकारों और चिंतकों की लेखनी से रोशन ‘सुबह सवेरे’ हर दिन एक नई दस्तक देगा। इसी में शुमार होंगे पत्रकारिता के कई स्थापित नाम जैसे अरूण पटेल, गिरीश उपाध्याय, अजय बोकिल, पंकज शुक्ला, हेमंत पाल आदि। ‘सुबह सवेरे’ टीम की कोशिश है कि जीवन में प्रामाणिकता, विश्वसनीयता और संवाद की फिर से प्रतिष्ठा हो। घटना के हर पहलू का अनावरण हो और वस्तुनिष्ठ भाव से उसका आकलन हो। इस विचार यज्ञ में देश और प्रदेश के कई नामचीन चेहरे अपनी सार्थक लेखनी के साथ आहुति दे रहे हैं। खबरों में दबी खबर को उधेड़ने के साथ विचारोत्तेजक और रोचक स्तम्भों के माध्यम से आपकी जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास कर रहे हैं।

’सुबह सवेरे’ केवल दिनचर्या का आरंभ नहीं, दिन को बूझने और जानने का अनूठा आग्रह है…

तो फिर देर किस बात की…