
10/09/2025
हाथ जोड़ कर रिक्वेस्ट है इस कहानी को पूरा पढ़िएगा और अगर पसंद आए तो एक लाइक जरूर कर दीजियेगा..
चंद्रपुर नगर में एक प्रसिद्ध सुनार रहता था, उसका नाम था तिलकराज।
वह सोने के गहने बनाकर बेचता था और उसकी सबसे बड़ी पहचान थी – ईमानदारी।
बाजार में उसकी जैसी कई दुकाने थीं, मगर भीड़ हमेशा तिलकराज की दुकान पर उमड़ी रहती थी।
क्योंकि लोग जानते थे – उसके गहनों में कभी मिलावट नहीं होती।
बाकी सुनार इससे परेशान थे।
वे चोरी-छुपे सोने में तांबा-पीतल मिलाकर मोटा मुनाफा कमाते और चाहते कि तिलकराज भी उसी राह पर चले।
एक रात, दुकान बंद करने के बाद जब तिलकराज घर लौट रहा था,
तो कुछ सुनारों ने उसे रोक लिया।
वे बोले –
“भाई, तुम कब तक इस ईमानदारी का बोझ उठाओगे?
थोड़ी मिलावट कर लो, पैसा चार गुना बढ़ेगा।
इतनी सच्चाई से तुम्हें हासिल ही क्या हो रहा है?”
उनकी बातें तिलकराज के दिल में कील की तरह चुभ गईं।
वह सोच में डूबा घर पहुँचा।
जैसे ही उसने दरवाजा खोला, उसकी पाँच साल की बेटी दौड़कर गले से लिपट गई।
बेटी की मासूम हँसी ने उसका मन हल्का कर दिया।
तभी पत्नी कावेरी भोजन लेकर आई।
आम दिनों में तिलकराज हर निवाले की तारीफ करता था,
मगर आज चुपचाप थाली में घूरता रहा।
कावेरी ने हैरानी से पूछा –
“क्या आज खाना अच्छा नहीं बना?”
तिलकराज चौंक कर बोला –
“नहीं… खाना तो हमेशा की तरह उत्तम है।
बस मेरा मन कहीं और अटका है।”
वह धीरे से बोला –
“कावेरी, हम सालों से ईमानदारी से जी रहे हैं।
लेकिन अब लगता है कि इसी कारण हम ठहरे रह गए हैं।
बाकी सुनार तो अमीर हो चुके हैं,
क्योंकि वे सोने में मिलावट कर बेहिसाब कमाई करते हैं।
आज उन्होंने मुझे भी समझाया कि थोड़ी मिलावट कर लूँ।
सोच रहा हूँ… अगर ऐसा करूँ तो हमारी बेटी का भविष्य संवर जाएगा।”
कावेरी यह सुनते ही अवाक रह गई।
उसने कड़े स्वर में कहा –
“क्या आप चाहते हैं कि अपनी संतान का भविष्य चोरी के पैसों से गढ़ें?
लोग आप पर भरोसा करते हैं,
उस विश्वास के साथ आप गद्दारी करेंगे?”
तिलकराज झुँझलाकर बोला –
“तुम समझती क्यों नहीं?
कुछ साल ऐसा कर लूँगा,
फिर छोड़ दूँगा।
इससे हमारे पास संपत्ति आ जाएगी।”
कावेरी की आँखों में आँसू भर आए।
उसने कहा –
“संपत्ति तो आ जाएगी,
लेकिन इज्जत?
ईमान?
ये सब खो दोगे तो बचा ही क्या रहेगा?”
लेकिन तिलकराज पर लालच का पर्दा चढ़ चुका था।
वह चुप रहकर खाना खाता गया और सोने चला गया।
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अगली सुबह उसने कारीगर को बुलाकर आदेश दिया –
“आज से गहनों में थोड़ी तांबे की मिलावट करना।”
कारीगर अनमने मन से मान गया।
पहला ही ऑर्डर एक बड़े सेठ का था।
उन्होंने बेटे की शादी के लिए भारी-भरकम गहने बनवाए थे।
जेवर तैयार हुए।
तिलकराज ने मुस्कराते हुए ग्राहक को सौंप दिए और पैसा थैले में रख लिया।
शाम को कारीगर ने बचा हुआ सोना लाकर दिया।
तिलकराज के मन में बिजली सी कौंधी –
“अगर रोज इतना सोना बचता रहा तो कुछ ही सालों में मैं नगर का सबसे धनी आदमी बन जाऊँगा।”
उस रात वह पैसों और सपनों में खोया रहा।
पर कावेरी जब सच्चाई जान गई तो उसकी नींद उड़ गई।
उसने पति को समझाया,
मगर तिलकराज ने उसे ‘मूर्ख औरत’ कहकर टाल दिया।
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उस रात तिलकराज को एक भयावह सपना आया।
उसने देखा –
उसकी बेटी बड़ी हो गई है, विवाह का दिन है।
दूल्हे के परिवार ने गहनों की मिलावट पकड़ ली और बारात वापस लौट गई।
बेटी के आँसुओं में डूबकर पूरा घर उजड़ गया।
तिलकराज पसीने-पसीने होकर जागा।
उसने सपना कावेरी को बताया।
कावेरी बोली –
“देखा, यही होता है बेईमानी का अंजाम।
हमारी असली दौलत हमारी ईमानदारी है।
तुम ये रास्ता तुरंत छोड़ दो।”
तिलकराज ने थरथराती आवाज़ में कहा –
“तुम सही कहती हो।
अब मैं कभी ये गलती नहीं करूँगा।
लेकिन यह बचा हुआ सोना… इसका क्या करूँ?
अगर लौटाने जाऊँ तो सेठ मुझे झूठा समझेगा।”
कावेरी ने समझाया –
“कोई बहाना बनाकर सही समय पर सोना लौटा देना।
गलती मान लोगे तो भगवान भी माफ कर देंगे।”
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अगले दिन तिलकराज दुकान पर बैठा,
मगर बेचैनी ने चैन छीन रखा था।
शाम को दुकान बंद कर घर लौटते समय
वह एक शादी के जुलूस के पास रुक गया।
भीड़ में शोर था।
दुल्हन का पिता चिल्ला रहा था –
“आप नकली गहने लेकर मेरी बेटी का अपमान करने आए हैं?
ये रिश्ता अब नहीं होगा!”
तिलकराज ने जब पास जाकर देखा तो उसका दिल धक से रह गया।
वह वही सेठ था, जिसने उससे गहने बनवाए थे।
गहने वहीं रखे थे और लोग उनकी जाँच कर रहे थे।
सुनार बुलाया गया।
उसने कहा –
“इनमें तांबे की मिलावट है।”
सेठ गुस्से से गरज उठा –
“यह धोखा तिलकराज ने दिया है।
मैं कल ही उसकी दुकान बंद करवा दूँगा और जेल भिजवाऊँगा।”
तभी तिलकराज काँपते हुए आगे बढ़ा और बोला –
“सेठ जी, मुझे माफ कीजिए।
जेवर की मजबूती के बहाने थोड़ी मिलावट कर दी थी।
लेकिन ये रहा उतना ही सोना,
मैं आपको लौटाना चाहता था।
आपका पता नहीं जानता था,
यही वजह है कि देर हो गई।”
उसने थैले से सोना निकाला।
सुनार ने तौला तो उतना ही निकला जितनी मिलावट थी।
सेठ गुस्से में भी नरम हो गया और बोला –
“अच्छा हुआ समय पर आ गए,
वरना मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाती।”
समधी को सच्चाई पता चली तो उन्होंने शादी की रस्में जारी रखीं।
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उस रात तिलकराज घर लौटा।
उसका मन हल्का और आत्मा साफ थी।
उसने पूरी घटना कावेरी को सुनाई।
कावेरी बोली –
“देखा, ज़रा सी बेईमानी से किसी की बेटी की शादी टूट सकती थी,
किसी की जान भी जा सकती थी।
याद रखना, सच्चाई ही सबसे बड़ी दौलत है।”
तिलकराज ने सिर झुकाकर कहा –
“हाँ कावेरी, अब मैं जीवनभर कभी बेईमानी नहीं करूँगा।”
अगले दिन से तिलकराज फिर वही पुराना सुनार बन गया –
ईमानदार, विश्वसनीय और सम्मानित।
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