06/09/2025
**"लोग देखके जलन होतई कि आखिर बिहार में भी एतना बड़ा आयोजन हो सकई।
कहल जाला कि बिहार पिछड़ल हई, बाकिर ई सच्चई न हई।
बिहार कब्बो पिछड़ल न रहल, बस शासन आ व्यवस्था गलत हाथ में चल गेल।
जखन बिहार आपन अस्तित्व में आइल, त ओकरे पास देश के धड़कन बनल ढेर उद्योग रहल।
चीनी मिल रहल — मोतीपुर, गोरौल, सीवान, लौरीया, मोतिहारी, समस्तीपुर से लेके दरभंगा तक।
सन 1940 तक बिहार में 33 चीनी मिल चल रहल रहल, जेकरे से हजारों परिवार के चूल्हा बलत रहल।
सीमेंट फैक्ट्री रहल — दालमियानगर आ बंजारी, जेकर नाम पूरा देश में चलत रहल।
कागज मिल रहल — दरभंगा, समस्तीपुर आ मोकामा में, जेकर कागज देश भर में जाईत रहल।
रेलवे के सबसे पुरान आ सबसे बड़ा जमालपुर वर्कशॉप बिहार में रहल, जइयां से लोकोमोटिव से लेके हथियार तक बनत रहल।
मोकामा आ मुजफ्फरपुर के भारत वैगन फैक्ट्री देश खातिर कोच आ वैगन बनईत रहल।
बरौनी रिफाइनरी आ ओकरा संगे उर्वरक कारखाना बिहार के औद्योगिक पहचान रहल, जेकरा से ऊर्जा आ रोजगार दुनु मिलत रहल।
भभुआ, औरंगाबाद आ रोहतास के सीमेंट इकाई बिहार के गौरव रहल।
भोजपुर आ दुमराँव से लेके गया आ भागलपुर तक हथकरघा आ तसर रेशम के गूंज रहल।
भागलपुर के रेशम "सिल्क सिटी" कहल गेल, आ जहानाबाद के मोहनपुर "मैनचेस्टर ऑफ बिहार"।
मखाना के खेती, लाख के उद्योग, चमड़ा आ लकड़ी के काम — ई सब बिहार के अर्थव्यवस्था के रीढ़ रहल।
सोचऽ, ई माटी में का न रहल!
बाकिर नेता लोग के स्वार्थी राजनीति आ लापरवाही से धीरे-धीरे सब उद्योग बंद होत गेल।
जे राज्य कब्बो उद्योग के राजधानी कहल जाला, ओहिजा के नवजवान रोजी-रोटी खातिर पलायन करे लगल।
आज जरूरत हई कि हम ओह खोईल पहचान के फेरु जगाई।
बिहार के फेरु चीनी मिल के मिठास, रेशमी कपड़ा के चमक, रिफाइनरी आ फैक्ट्री के धड़कन चाही।
तब्बे आवे वाला पीढ़ी गर्व से कह सकई —
हम बिहार के हई, आ बिहार कब्बो पिछड़ल न हई।"**