WO AUR UNKI Yaaden

WO AUR UNKI Yaaden "यह सिर्फ़ एक पेज नहीं, आपकी यादों का ठिकाना है...
जहाँ बीते पल मुस्कान बनकर लौट आते हैं,
और हम उन्हें सँजो कर आपके दिल तक पहुँचाते हैं।"
(1)

Life is a Two-way Highway,If the destination is unknown then you have to work hard to see limitless heaven.If the destin...
13/09/2025

Life is a Two-way Highway,
If the destination is unknown then you have to work hard to see limitless heaven.
If the destination is a milestone beside the highway then focus on the way you will reach there.

क्या होगा अगर ज़िंदगी फिर से बैलगाड़ी से चलने लगे?शायद कुछ खास न बदले—बस लोग अपने आस-पास तक ही घूम पाएँगे।पर एक फर्क जरू...
12/09/2025

क्या होगा अगर ज़िंदगी फिर से बैलगाड़ी से चलने लगे?
शायद कुछ खास न बदले—बस लोग अपने आस-पास तक ही घूम पाएँगे।
पर एक फर्क जरूर पड़ेगा: लोग बेमौत से बच जाएँगे।

आज बिहार—खासकर नालंदा, पटना और उभरते शहरों के युवा—
चकाचौंध और भागम-भाग वाली ज़िंदगी में खो गए हैं।
न वे अपनी सुनते हैं, न दिल की; बस भटकाव में वक्त गँवा देते हैं।

पर इस भटकाव की असली कीमत कौन चुका रहा है?
सड़क पर चलते मासूम लोग,
जिन्हें तेज रफ़्तार गाड़ियाँ रौंद डालती हैं।

किसी का पिता छिन जाता है,
किसी का माँ का साया—
पर समाज को फर्क नहीं पड़ता।
प्रशासन को भी परवाह नहीं।

सड़क दुर्घटनाएँ इतनी बढ़ चुकी हैं कि
लोगों में डर समा गया है सड़क पर चलने से।
फिर भी… किसी को फर्क नहीं पड़ता।

अब वक़्त है कि समाज और प्रशासन दोनों बैठकर सोचें—
क्या हमारी ज़िंदगी की रफ़्तार इतनी तेज़ हो गई है कि
हम इंसानियत को ही पीछे छोड़ बैठे हैं?

**"लहजा तो देखो उनका,जब अंधेरों में डूबे थे हम,वो मोमबत्ती बनकर साथ खड़े थे।अब उजालों में हैं हम,तो वो कहकहे छोड़कर,भीड़...
10/09/2025

**"लहजा तो देखो उनका,
जब अंधेरों में डूबे थे हम,
वो मोमबत्ती बनकर साथ खड़े थे।

अब उजालों में हैं हम,
तो वो कहकहे छोड़कर,
भीड़ में कहीं खो गए हैं।

क्या पूरे बिहार मिलकर एक इतना भव्य  रेलवे स्टेशन की मांग कर सकता है , कोई बताएंगे ये कौन सा रेलवे स्टेशन है, जो बताएंगे ...
07/09/2025

क्या पूरे बिहार मिलकर एक इतना भव्य रेलवे स्टेशन की मांग कर सकता है , कोई बताएंगे ये कौन सा रेलवे स्टेशन है, जो बताएंगे उनको WO AUR UNKI Yaaden आज उपहार में एक चॉकलेट देगा, रेलवे स्टेशन का नाम इस चित्र में हीं है,WO AUR UNKI Yaaden

**"लोग देखके जलन होतई कि आखिर बिहार में भी एतना बड़ा आयोजन हो सकई।कहल जाला कि बिहार पिछड़ल हई, बाकिर ई सच्चई न हई।बिहार ...
06/09/2025

**"लोग देखके जलन होतई कि आखिर बिहार में भी एतना बड़ा आयोजन हो सकई।
कहल जाला कि बिहार पिछड़ल हई, बाकिर ई सच्चई न हई।
बिहार कब्बो पिछड़ल न रहल, बस शासन आ व्यवस्था गलत हाथ में चल गेल।

जखन बिहार आपन अस्तित्व में आइल, त ओकरे पास देश के धड़कन बनल ढेर उद्योग रहल।
चीनी मिल रहल — मोतीपुर, गोरौल, सीवान, लौरीया, मोतिहारी, समस्तीपुर से लेके दरभंगा तक।
सन 1940 तक बिहार में 33 चीनी मिल चल रहल रहल, जेकरे से हजारों परिवार के चूल्हा बलत रहल।

सीमेंट फैक्ट्री रहल — दालमियानगर आ बंजारी, जेकर नाम पूरा देश में चलत रहल।
कागज मिल रहल — दरभंगा, समस्तीपुर आ मोकामा में, जेकर कागज देश भर में जाईत रहल।

रेलवे के सबसे पुरान आ सबसे बड़ा जमालपुर वर्कशॉप बिहार में रहल, जइयां से लोकोमोटिव से लेके हथियार तक बनत रहल।
मोकामा आ मुजफ्फरपुर के भारत वैगन फैक्ट्री देश खातिर कोच आ वैगन बनईत रहल।
बरौनी रिफाइनरी आ ओकरा संगे उर्वरक कारखाना बिहार के औद्योगिक पहचान रहल, जेकरा से ऊर्जा आ रोजगार दुनु मिलत रहल।

भभुआ, औरंगाबाद आ रोहतास के सीमेंट इकाई बिहार के गौरव रहल।
भोजपुर आ दुमराँव से लेके गया आ भागलपुर तक हथकरघा आ तसर रेशम के गूंज रहल।
भागलपुर के रेशम "सिल्क सिटी" कहल गेल, आ जहानाबाद के मोहनपुर "मैनचेस्टर ऑफ बिहार"।
मखाना के खेती, लाख के उद्योग, चमड़ा आ लकड़ी के काम — ई सब बिहार के अर्थव्यवस्था के रीढ़ रहल।

सोचऽ, ई माटी में का न रहल!
बाकिर नेता लोग के स्वार्थी राजनीति आ लापरवाही से धीरे-धीरे सब उद्योग बंद होत गेल।
जे राज्य कब्बो उद्योग के राजधानी कहल जाला, ओहिजा के नवजवान रोजी-रोटी खातिर पलायन करे लगल।

आज जरूरत हई कि हम ओह खोईल पहचान के फेरु जगाई।
बिहार के फेरु चीनी मिल के मिठास, रेशमी कपड़ा के चमक, रिफाइनरी आ फैक्ट्री के धड़कन चाही।
तब्बे आवे वाला पीढ़ी गर्व से कह सकई —
हम बिहार के हई, आ बिहार कब्बो पिछड़ल न हई।"**

05/09/2025

स्वर्गीय श्री जगदेव बाबू
(जन्म : 2 फरवरी 1922 — पुण्यतिथि : 5 सितंबर 1974)

जिंदा वही कहलाता है,
जिसने गरीबी और संघर्ष को करीब से महसूस किया हो,
और अपने जीवन को केवल अपने लिए नहीं,
बल्कि समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए समर्पित कर दिया हो।

जगदेव बाबू ने अपनी साधारण परिस्थितियों में भी असाधारण काम किए।
उन्होंने शिक्षा और मेहनत को जीवन का मूल मंत्र बनाया,
गरीब और वंचित तबके के बीच जागरूकता फैलाने में अपनी अहम भूमिका निभाई।

गांव-समाज की समस्याओं को अपनी समस्या मानकर
उनके समाधान के लिए दिन-रात मेहनत की।
उनका विश्वास था कि असली जिंदगी वही है,
जो समाज की भलाई में खर्च हो,
न कि केवल अपनी सुविधाओं और सुख के लिए।

आज, उनकी पुण्यतिथि पर, हम उन्हें स्मरण करते हुए महसूस करते हैं कि
वे भीड़ का हिस्सा नहीं,
बल्कि भीड़ को राह दिखाने वाले दीपक थे।

उनकी सादगी, ईमानदारी और समाजसेवा
हमेशा हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगी।

05/09/2025

शराब पीना किसे पसंद है शुरुआत में तो किसी को पसंद नहीं है, अगर एक बार लत लग गई फिर छूटेगा नहीं,
लेकिन कुछ अच्छे चीजों की लत क्यों नहीं लगती बताओ,
जैसे पढ़ाई और भी बहुत कुछ है ,

लगता इस गोला के जीव का कोई फिरकी ले रहा है,
या इस गोला पर कुछ गड़बड़ चल रहा है

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