Yadav Rajat

Yadav Rajat Good Content

02/05/2025

गडरिए और तहसीलदार की कहानी
करीब 96 वर्ष पहले, राजस्थान के अलवर के घने जंगलों और रेतीली पहाड़ियों के बीच, एक गडरिया अपनी भेड़-बकरियों को चराने निकला था। उसका नाम था मंगल। मंगल साधारण-सा इंसान था, सांवला रंग, धूप में तपा चेहरा, और आंखों में जिंदगी की सादगी। उसकी दुनिया उसकी भेड़-बकरियां, जंगल की हवा और गांव की चौपाल तक सीमित थी। उस दिन दोपहर का समय था, सूरज आसमान में आग उगल रहा था। मंगल अपनी बकरियों को एक पेड़ की छांव में ले गया और अपनी पोटली से रोटी निकालकर खाने बैठ गया।
अचानक, जंगल की शांति को भेदती हुई एक गंभीर आवाज गूंजी, "ऐ, गडरिए! यहाँ बकरियां चराना मना है!" मंगल ने चौंककर पेड़ों की ओर देखा। वहां एक घोड़े पर सवार, साफ-सुथरी पगड़ी और कुरता पहने एक शख्स खड़ा था। उसकी आंखों में रौब था, मगर चेहरा सख्त नहीं। मंगल ने तुरंत अपनी रोटी नीचे रखी और हाथ जोड़कर बोला, "हुजूर, माफ करना। मुझे नहीं पता था कि ये इलाका मना है। मैं अभी बकरियों को लेके जाता हूं।"
वह शख्स घोड़े से उतरा और पास आया। "कोई बात नहीं," उसने कहा, "मैं इस इलाके का तहसीलदार हूं। नाम है रामस्वरूप। ये जंगल रियासत का है, लेकिन तू लगता तो नेक इंसान है। कहां का रहने वाला है?" मंगल ने अपना गांव बताया, अपनी सादी जिंदगी का जिक्र किया। बातों-बातों में दोनों की बात जम गई। रामस्वरूप ने अपनी थैली से पानी की मशक निकाली और मंगल को भी पिलाया। धीरे-धीरे बातें गहरी होने लगीं।
रामस्वरूप ने एक लंबी सांस ली और बोला, "मंगल, तू खुशकिस्मत है। सादा जीवन, कोई चिंता नहीं। मेरे पास सब कुछ है—रुतबा, पैसा, जमीन। मगर एक कमी है, जो मुझे रात-दिन खाए जाती है।" मंगल ने सवालिया नजरों से देखा। रामस्वरूप ने धीमे स्वर में कहा, "मेरी शादी को बारह साल हो गए, मगर ऊपरवाले ने हमें औलाद नहीं दी। हर मंदिर, हर पीर-फकीर के पास गया, मन्नतें मांगी, दान दिया, मगर कुछ नहीं हुआ।"
मंगल चुपचाप सुनता रहा। उसकी अपनी जिंदगी में ऐसी तकलीफ नहीं थी। उसकी पत्नी राधा और दो छोटे बच्चे गांव में खुशी-खुशी रहते थे। मगर मंगल का दिल दूसरों के दुख को समझता था। उसने थोड़ा सोचा और बोला, "हुजूर, मैं कोई बड़ा आदमी नहीं, मगर मेरी मां कहती थी कि जो ऊपरवाला देता है, वो सही समय पर देता है। शायद आपके लिए भी कोई रास्ता हो। हमारे गांव में एक बूढ़ी दाई मां रहती हैं। लोग कहते हैं, उनके पास जड़ी-बूटियों का ज्ञान है और उनका आशीर्वाद कभी खाली नहीं जाता।"
रामस्वरूप की आंखों में एक चमक सी आई। "क्या बात कर रहा है, मंगल? ऐसी कोई दाई मां है? कहां मिलेंगी वो?" मंगल ने गांव का रास्ता बताया और कहा, "हुजूर, आप मेरे साथ चलें। मैं आपको उनसे मिलवाऊंगा।" रामस्वरूप को जैसे एक उम्मीद की किरण दिखी। उसने तुरंत अपने नौकर को बुलाया, घोड़ा तैयार करवाया और मंगल के साथ गांव की ओर चल पड़ा।
गांव पहुंचते-पहुंचते सूरज ढल चुका था। मंगल रामस्वरूप को एक पुरानी झोपड़ी के पास ले गया, जहां दाई मां रहती थीं। दाई मां की उम्र अस्सी के पार थी, मगर उनकी आंखें ऐसी थीं, मानो सारी दुनिया का दुख-दर्द पढ़ लें। रामस्वरूप ने अपना हाल बताया। दाई मां ने चुपचाप सुना, फिर मुस्कुराकर बोलीं, "बेटा, ऊपरवाले की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। मगर मैं तुम्हें एक जड़ी दूंगी। इसे अपनी पत्नी को रोज सुबह खाली पेट खिलाना। और हां, अपने मन से सारी कड़वाहट निकाल दे। जो देना है, वो ऊपरवाला देगा।"
दाई मां ने एक छोटी सी पुड़िया दी, जिसमें कुछ सूखी जड़ें थीं। रामस्वरूप ने उसे श्रद्धा से लिया और मंगल को धन्यवाद दिया। उसने मंगल को कुछ रुपये देना चाहा, मगर मंगल ने मना कर दिया। "हुजूर, आपकी खुशी ही मेरे लिए काफी है," उसने कहा।
समय बीता। एक साल बाद, मंगल अपनी बकरियों को चराते हुए उसी जंगल में था। अचानक उसे घोड़े की टापों की आवाज सुनाई दी। उसने देखा, रामस्वरूप फिर से उसी रौबदार अंदाज में आ रहे थे, मगर इस बार उनके चेहरे पर एक अलग सी रौनक थी। रामस्वरूप ने घोड़े से उतरते ही मंगल को गले लगा लिया। "मंगल, तू मेरे लिए फरिश्ता बनकर आया था! दाई मां की जड़ी और आशीर्वाद ने कमाल कर दिया। मेरे घर में बेटे ने जन्म लिया है। मैंने उसका नाम मंगल रखा, तेरे नाम पर!"
मंगल की आंखें भर आईं। उसने हाथ जोड़कर कहा, "हुजूर, ये सब ऊपरवाले की माया है। मैं तो बस निमित्त था।" रामस्वरूप ने मंगल को अपने घर बुलाया और उसका खूब आदर-सत्कार किया। उस दिन के बाद, मंगल और रामस्वरूप की दोस्ती गांव में मिसाल बन गई। लोग कहते, "दिल से दिल का रास्ता बनता है, चाहे कोई गडरिया हो या तहसीलदार।"
समाप्त

10 दिन हो गये, पिछले 10 दिनों से पानी नहीं आ रहा है और 10 बाई 10 का टंकी भी खाली हो गया है। थारै गांव मांय पाणी री कांई ...
02/05/2025

10 दिन हो गये, पिछले 10 दिनों से पानी नहीं आ रहा है और 10 बाई 10 का टंकी भी खाली हो गया है। थारै गांव मांय पाणी री कांई हालत है?

02/05/2025

My page isn't going viral and my video views are frozen. Facebook for Creators

कुछ समझ में आया तो कमेंट जरुर करना
02/05/2025

कुछ समझ में आया तो कमेंट जरुर करना

🤔👍🏻
26/04/2025

🤔👍🏻

25/04/2025

पाकिस्तान का परमाणु बम तो बस धमकी है, असली विस्फोट तो भारत के अंदर बिकाऊ 'कीटाणु बम' कर रहे हैं! ये वो गद्दार टाइप हैं—जो दिन में 'जय हिंद' चिल्लाते हैं और रात में दुश्मन के साथ चाय पीते हैं। चाहे वो भ्रष्ट नेता हों, जो देश की दौलत लूटकर सीमा पार भेजते हैं, या वो 'बुद्धिजीवी' जो आतंकियों के लिए आंसू बहाते हैं! इन चमचों के बिना कोई आतंकी हमला तो क्या, एक मच्छर भी बॉर्डर क्रॉस नहीं कर सकता! अब इन सांपों को उनके बिल में घुसकर कुचलने का टाइम है, वरना ये देश को जहर से भर देंगे! "


एक छोटे से गांव में, जहाँ पहाड़ियाँ आसमान को छूती थीं और नदी का पानी शांति की धार लिए बहता था, वहाँ एक बुढ़ी मां रहती थी...
25/04/2025

एक छोटे से गांव में, जहाँ पहाड़ियाँ आसमान को छूती थीं और नदी का पानी शांति की धार लिए बहता था, वहाँ एक बुढ़ी मां रहती थी। उनका नाम राधा देवी था। राधा देवी के चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान खिली रहती थी, भले ही उनके जीवन में कितनी भी मुसीबतें क्यों न पड़ी हों। उनके पति का देहांत उन्हें बहुत जवान उम्र में ही हो गया था, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों के लिए जीवन भर संघर्ष किया।

राधा देवी के 5 बेटे और 1 बेटी थे। उनके बेटों के नाम थे - राम, श्याम, गोपाल, कृष्ण और अर्जुन, और उनकी इकलौती बेटी का नाम था - सुधा। परिवार बहुत गरीब था। राधा देवी को हर रोज़ कठिन मेहनत करनी पड़ती थी - खेतों में काम करना, घर-घर जाकर रोटियाँ बेचना, और अपने बच्चों को पेट भरकर खिलाने के लिए संघर्ष करना।

अंधेरे में उजाला
उनके बच्चे छोटे थे और उन्हें पढ़ाई करने का बहुत शौक था, लेकिन पैसों की कमी के कारण वे स्कूल जाने में असमर्थ थे। राधा देवी ने अपने बच्चों को यह वादा किया कि वे उन्हें जरूर पढ़ाएंगी, चाहे उन्हें अपना खाना छोड़ना पड़े। उन्होंने गांव के पुराने स्कूल में जाकर शिक्षकों से विनती की कि उनके बच्चों को फीस नहीं देनी पड़े। शिक्षकों ने उनकी ईमानदारी और संघर्ष को देखकर उनके बच्चों को फ्री शिक्षा देने का फैसला किया।

रात को, जब बच्चे सो जाते थे, तब राधा देवी अपनी बुझी हुई दीये की रोशनी में बैठकर सिलाई करती थी। उनके हाथों में झुर्रियाँ पड़ चुकी थीं, लेकिन उनकी आँखों में उम्मीद की चमक बनी रहती थी।

सफलता का मार्ग
सालों के संघर्ष के बाद, बच्चों ने अपनी पढ़ाई पूरी की। राम ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, श्याम ने डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया, गोपाल और कृष्ण ने व्यापार में सफलता हासिल की, अर्जुन ने खेल के मैदान में नाम कमाया, और सुधा ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना नाम रोशन किया।

राधा देवी के सभी बच्चे अब खुशहाल थे। उन्होंने अपनी मां को घर ले आया और उन्हें सब कुछ दिया जो वे कभी सपनों में भी नहीं सोच सकती थीं। उनका छोटा-सा घर अब एक बड़े बंगले में बदल चुका था, लेकिन राधा देवी की आदतें नहीं बदलीं। वे अभी भी सुबह के वक्त गांव के लोगों को रोटियाँ बाँटती रहती थीं और उन्हें जीवन की सीख देती रहती थीं।

उम्मीद का संदेश
एक दिन, गांव के बच्चों को संबोधित करते हुए, राधा देवी ने कहा, "जीवन में कभी हार मत मानो। अगर तुम्हारे पास उम्मीद है, तो कोई भी मुसीबत तुम्हें रोक नहीं सकती। मेरा जीवन इसका ही उदाहरण है।"

राधा देवी की कहानी गांव-गांव में फैल गई। उन्हें लोगों ने 'उम्मीद की माँ' कहकर पुकारना शुरू कर दिया। उनके बच्चों ने गांव में एक स्कूल बनवाया, जिसका नाम था - "उम्मीद का आशियाना" । यह स्कूल उन सभी बच्चों के लिए था जो अपनी मेहनत से जीवन बदलना चाहते थे।

अंतिम संदेश
राधा देवी का जीवन एक प्रेरणा था। उन्होंने सिखाया कि जीवन में कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है, बस उसमें विश्वास रखना चाहिए। उनकी मुस्कान और उम्मीद आज भी लाखों लोगों के दिलों में बसी हुई है
😘😘जीवन में उम्मीद और मेहनत की शक्ति से हर मुश्किल पर काबू पाया जा सकता है। एक मां की स्नेह और बलिदान बच्चों के जीवन को बदल सकते हैं💯💯🔥🔥


Address

Bikaner

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Yadav Rajat posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share

Category