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          Sonu Yadav ki video
11/06/2025

Sonu Yadav ki video

        Sonu Yadav ki video
11/06/2025

Sonu Yadav ki video

कड़वा है पर सच है
09/06/2025

कड़वा है पर सच है

इस बात से कौन-कौन सहमत है कमेंट में बताएं
09/06/2025

इस बात से कौन-कौन सहमत है कमेंट में बताएं

"108 मोतियों की माला जपते समय मन भटकता है और 500 के नोटों की गिनती करते समय मन एकाग्र रहता है। विचार कीजिए, गड़बड़ कहाँ ...
09/06/2025

"108 मोतियों की माला जपते समय मन भटकता है और 500 के नोटों की गिनती करते समय मन एकाग्र रहता है। विचार कीजिए, गड़बड़ कहाँ है..!"

Sonu yadav ki video

प्रिया और रिंकू की सगाई की कहानी: एक दिल छू लेने वाला सफरकल की रात सिर्फ एक सगाई नहीं थी — वो दो दिलों का मिलन था, दो पर...
09/06/2025

प्रिया और रिंकू की सगाई की कहानी: एक दिल छू लेने वाला सफर

कल की रात सिर्फ एक सगाई नहीं थी — वो दो दिलों का मिलन था, दो परिवारों का संगम और एक ऐसे रिश्ते की शुरुआत, जिसकी नींव भरोसे, प्यार और समर्पण पर टिकी है।

प्रिया सरोज, एक सजीव, आत्मनिर्भर और संस्कारी लड़की, जिसने अपने सपनों को भी परिवार की तरह संभाला था। और रिंकू, एक शांत स्वभाव वाला, सच्चा दिल रखने वाला लड़का, जो हर चीज में सच्चाई और इमोशन को सबसे ऊपर रखता है।

उनकी पहली मुलाकात एक पारिवारिक फंक्शन में हुई थी। नज़रे मिलीं, और जैसे वक़्त वहीं ठहर गया। धीरे-धीरे बातचीत बढ़ी, हँसी-मज़ाक में रिश्तों की डोर बुनती गई और फिर कल, उन दोनों ने अपने प्यार को नाम देने का फैसला कर लिया।

कल की शाम जब रिंकू ने प्रिया की उंगलियों में अंगूठी पहनाई, तो सिर्फ सोने का एक घेरा नहीं था वो — वो तो सात वचनों का वादा था, हर सुख-दुख में साथ निभाने का इरादा था।

फूलों की सजावट, अपनों की दुआएं, और आँखों में चमक लिए प्रिया और रिंकू ने सबके सामने अपने रिश्ते को स्वीकारा — और हर किसी की आँखें नम थीं, मगर खुशी से।

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राहुल एक सीधा-सादा, संस्कारी लड़का था। पिता के निधन के बाद घर की ज़िम्मेदारी बहुत कम उम्र में उसके कंधों पर आ गई थी। माँ...
09/06/2025

राहुल एक सीधा-सादा, संस्कारी लड़का था। पिता के निधन के बाद घर की ज़िम्मेदारी बहुत कम उम्र में उसके कंधों पर आ गई थी। माँ और छोटी बहन ही उसका पूरा परिवार था। उसकी शादी नेहा से हुई जो दिल्ली से थी, पढ़ी-लिखी और तेज़ स्वभाव वाली लड़की थी।

नेहा को शादी के कुछ ही दिनों में ससुराल का माहौल अखरने लगा। छोटे घर, गाँव जैसे नियम-कायदे, और सास की बातों में दखल – ये सब उसे नागवार गुजरने लगे।

राहुल सब कुछ समझता था, पर वो कभी नेहा को पलटकर कुछ नहीं कहता। वह जानता था कि माँ का दिल भी टूटा हुआ है और नेहा को भी समय चाहिए।

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भाग 2: चुप्पी की पहली कीमत

नेहा रोज़ कुछ न कुछ शिकायत करती –
"आपकी माँ हर बात में टोकती हैं!"
"ये घर तो किसी जेल से कम नहीं!"
"मुझे अकेले में रहना है, अपने तरीके से!"

राहुल सुनता, सिर हिलाता, लेकिन कुछ नहीं कहता।

रात को माँ को समझाता,
"माँ, नेहा को थोड़ा समय दो, वो अलग माहौल से आई है।"
माँ आंसू पोंछतीं और कहतीं, "तू जैसा कहे बेटा।"

राहुल ऑफिस जाता, घर संभालता, माँ के इलाज का खर्च उठाता, बहन की फीस भरता और नेहा की हर ज़रूरत पूरी करता – लेकिन कुछ भी कहे बिना।

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भाग 3: नेहा की मांग – "अलग घर चाहिए!"

एक दिन नेहा ने साफ-साफ कह दिया:
"या तो मैं, या तुम्हारी माँ। मुझे अलग रहना है!"

राहुल चुप रहा।
उसी रात वह माँ के पास गया और बोला,
"माँ, मैं नेहा को लेकर कुछ दिनों के लिए अलग फ्लैट में रहूंगा। आप परेशान मत होना। मैं हर रोज़ आकर मिलूंगा, दवा दूंगा।"

माँ फूट-फूटकर रो पड़ी, लेकिन बेटे की आँखों की चुप्पी में एक ज्वाला देखी — त्याग की ज्वाला।

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भाग 4: दो घर, एक बेटा

राहुल अब दो घरों की ज़िम्मेदारी उठा रहा था —
सुबह ऑफिस जाता, शाम को माँ के पास आता, दवा देता, खाना बनवाता और फिर नेहा के पास फ्लैट लौट जाता।

नेहा को धीरे-धीरे एहसास हुआ कि राहुल की चुप्पी में कोई कमजोरी नहीं थी – वो तो एक पुल बना रहा था, दो किनारों के बीच।

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भाग 5: नेहा का परिवर्तन

एक दिन नेहा राहुल के साथ ससुराल गई। माँ ने खाना बनाया। प्याली ने चाय दी। नेहा सब कुछ देखती रही।

माँ ने कहा,
"बहू, मैं कुछ भी नहीं कहूँगी अब, तू जैसा चाहे वैसा कर। बेटा तो तेरा है, तू खुश रह, वही मेरी खुशी है।"

नेहा की आंखों से आंसू निकल आए। उसने पहली बार सास के पांव छुए और बोली:
"माँ, मैंने आपको कभी समझने की कोशिश ही नहीं की। और राहुल... आपने जो कुछ कहा नहीं, वो सब आज समझ आ गया।"

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अंतिम भाव:

राहुल की चुप्पी उसकी कमजोरी नहीं, उसका बलिदान था।
उसने अपने शब्दों की बजाय अपने कर्मों से सबको जोड़ा।
आज वो परिवार एक है, एकजुट है — क्योंकि एक संस्कारी बेटे ने कुछ न कहकर सब कुछ कर दिया।

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सीख:

हर लड़ाई आवाज़ से नहीं लड़ी जाती, कुछ चुप्पियाँ रिश्ते बचा लेती हैं।

संस्कार केवल दिखावा नहीं होते, वो जीकर दिखाए जाते हैं।

जो बेटा अपने दर्द को पीकर दो औरतों के बीच पुल बन जाए, वही असली पुरुष होता है।

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1. जब वो रोता है, तो कहा जाता है - "मर्द बन, रोता क्यों है?"इज्जत उसके आंसुओं में नहीं, उसकी चुप्पी में ढूंढी जाती है।उस...
07/06/2025

1. जब वो रोता है, तो कहा जाता है - "मर्द बन, रोता क्यों है?"

इज्जत उसके आंसुओं में नहीं, उसकी चुप्पी में ढूंढी जाती है।
उसे दर्द सहना आता है, लेकिन जताना मना है।

2. जब वो थक कर गिर पड़ता है, तो कहा जाता है - "इतना कमजोर कैसे हो सकता है तू?"

इज्जत तब मानी जाती है जब वो खुद को मार के भी घर चला ले।

3. जब वो घर के लिए सपने छोड़ देता है, तो कोई नहीं कहता - 'कितनी कुर्बानी दी लड़के ने'

क्योंकि उससे उम्मीद की जाती है — कमाओ, खिलाओ, निभाओ — सवाल मत करो।

4. अगर वो घर की बातों से दुखी हो जाए, तो कहा जाता है — "तू मर्द है या नहीं?"

उसे ना तो अपमान का हक है, ना शिकायत का।

5. अगर कोई उसे थप्पड़ मार दे — चाहे मां, पिता, या बीवी — तो भी उसे सहना होता है।

क्योंकि लड़का है, 'तू कुछ नहीं बोलेगा।'

6. अगर घर में कुछ गलत हो रहा हो — तो सबसे पहले जिम्मेदार वही होता है।

क्योंकि "लड़का है, उसे तो समझदार होना चाहिए था।"

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हां, घर में एक लड़के की भी इज्जत होती है...

जब वो रातों को जागकर सबकी जरूरतें पूरी करता है।

जब वो खुद की इच्छाएं मारकर घर के बच्चों के सपनों को पंख देता है।

जब वो हर दिन टूट कर भी मुस्कुराता है, ताकि मां-बाप को चिंता ना हो।

जब वो बहन की शादी में सबकुछ लुटा देता है, मगर खुद की शादी में दो जोड़ी कपड़ों से ही काम चलाता है।

जब वो पिता की तरह मजबूत, भाई की तरह सहारा और बेटे की तरह आज्ञाकारी बनता है — तब उसकी इज्जत नहीं, बस जिम्मेदारियां गिनी जाती हैं।

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सवाल ये नहीं कि लड़के की इज्जत क्या होती है...

सवाल ये है कि क्या हम उसे कभी इज्जत देना सीख पाए?
क्या हम उसे भी इंसान समझ पाए?
क्या हमने उसके दर्द को, उसकी चुप्पी को, उसकी कुर्बानी को सम्मान देना सीखा?

कॉलेज की वो पहली सुबह थी जब सूरज की हल्की किरणें खिड़की से झांक रही थीं। नए सफेद शर्ट में, गले में आईडी कार्ड, पैंट की ज...
24/05/2025

कॉलेज की वो पहली सुबह थी जब सूरज की हल्की किरणें खिड़की से झांक रही थीं। नए सफेद शर्ट में, गले में आईडी कार्ड, पैंट की जेब में दोनों हाथ डाले, वो लड़का कॉलेज के गेट पर खड़ा था — चेहरे पर थोड़ा संकोच, थोड़ा आत्मविश्वास।

नाम था अर्जुन। एक छोटे शहर से आया था, लेकिन ख्वाब बहुत बड़े थे। हर किसी को लगता कि वो एक आम लड़का है — लेकिन उसकी आँखों में कुछ खास था। शायद एक जुनून, या कोई छुपा हुआ दर्द।

पहला दिन जैसे ही शुरू हुआ, अर्जुन ने अपने क्लास में कदम रखा। क्लासमेट्स नए थे, चेहरे अनजान। लेकिन धीरे-धीरे उसकी मुस्कान लोगों का दिल जीतने लगी। वो सबसे विनम्र था, लेकिन जब बहस की बारी आती, तो ऐसा तर्क रखता कि पूरा क्लास सन्न हो जाता।

एक दिन कैंटीन में बैठा था वो — अकेले। तभी एक लड़की आई, नाम था स्नेहा। बोली, “तुम हर वक्त आईडी कार्ड क्यों पहनते हो? क्लास में भी, कैंटीन में भी।” अर्जुन मुस्कराया और बोला, “क्योंकि इस कार्ड ने मुझे उस कॉलेज का हिस्सा बनाया, जिसका सपना मैंने बचपन से देखा था। ये सिर्फ कार्ड नहीं, मेरी पहचान है।”

स्नेहा की आँखें भर आईं। उसे समझ आ गया कि ये लड़का बाहर से सादा, लेकिन अंदर से समंदर है।

दिन बीते, सेमेस्टर बदले, दोस्ती गहरी होती गई। स्नेहा और अर्जुन की जोड़ी अब पूरे कॉलेज में मशहूर थी। लेकिन एक दिन अर्जुन अचानक कॉलेज आना बंद कर देता है। सब हैरान। तब पता चला — उसके पापा की तबीयत बहुत खराब है और अर्जुन को घर संभालना पड़ा।

तीन महीने बाद, वही आईडी कार्ड वाला लड़का फिर कॉलेज के गेट पर खड़ा था — वही शर्ट, वही मुस्कान, लेकिन आँखों में अब और भी ज्यादा गहराई थी।

स्नेहा दौड़कर आई, आँखों में आँसू। अर्जुन बोला, “मैं वापस आया हूँ, अधूरी पढ़ाई पूरी करने... और वो सपने पूरे करने जो इस आईडी कार्ड से शुरू हुए थे।”

कहानी यहीं खत्म नहीं होती। अर्जुन आज एक सफल इंजीनियर है, लेकिन आज भी अपने कमरे की दीवार पर वही आईडी कार्ड टंगा है — एक याद, एक पहचान, एक प्रेरणा।

19/05/2025

चुप रह गई मां | Emotional Saas Bahu Story | दिल छू लेने वाली हिंदी कहानी

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