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31/10/2024

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-पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘ वैसे तो बोकारो विधानसभा में भाजपा उम्मीदवार बिरंचि नारायण की जीत लगभग तय मानी जा रह....

31/10/2024
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28/10/2024

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सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’। चुनावी बयानबाजी सही, अभद्र टिप्पणी कर आप थोड़े दिन के लिए लाइमलाइट में त....

20/10/2024

वोट बैंक की भूख: इंडि गठबंधन का गैर-मुस्लिम त्योहारों पर हमला

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।

जैसा राजा वैसा निरंकुश क़ानून। इंडि गठबंधन सिर्फ मुस्लिमों का वोट बैंक साधना चाहती है , इसीलिए उसने फिर से गैर मुस्लिमों को दबाने उन पर उनके पर्व त्योहारों पर अंकुश लगाने की कोशिश की है। इंडि गठबंधन को लगता है ऐसा करने से सभी मुश्लिम वोट उसकी झोली में गिर जायेंगे। यह आश्चर्यजनक है कि उक्त गठबंधन के चुनावी योजनाकार यह कैसे भूल जाते है कि ऐसा करने से सभी गैर मुस्लिम उनके विपक्ष में एकजुट हो जायेंगे। इस तरह तो कहीं न कहीं इंडि गठबंधन एनडीए को चुनाव में सपोर्ट ही कर रहा है। कोई कटाक्ष करे तो कहेगा कि ये राहुल बाबा का आईडिया है! क्या सचमुच इंडि गठबंधन इस झारखण्ड विधान सभा में एनडीए को वॉकओवर दे रहा है ?

चुनाव के एन वक़्त झारखंड में इंडि गठबंधन ने जो निर्णय लिए हैं, वे साफ-साफ दर्शाते हैं कि उसका मुख्य उद्देश्य केवल मुस्लिम वोट बैंक को साधना है। यह समझना जरूरी है कि इस प्रकार की रणनीतियों से न केवल मुस्लिम समुदाय को साधा जा रहा है, बल्कि अन्य धर्मों के लोगों को भी प्रतिकूल स्थिति में डालने का प्रयास किया जा रहा है।

त्योहारों पर अंकुश: एक सोची-समझी रणनीति :

झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जेएसपीसीबी) द्वारा दिवाली, छठ पूजा, क्रिसमस और नववर्ष पर आतिशबाजी के लिए समय-सीमा तय करना निश्चित रूप से एक जरूरी कदम है। हालांकि, इसका उद्देश्य सिर्फ प्रदूषण को नियंत्रित करना नहीं, बल्कि किसी हद तक गैर-मुस्लिम समुदाय के त्योहारों पर अंकुश लगाना भी है। दीपावली और छठ पूजा के लिए विशेष समय निर्धारित करना, जहां मुस्लिम त्योहारों के लिए ऐसी कोई पाबंदी नहीं है, यह दर्शाता है कि इंडि गठबंधन जानबूझकर एक विशेष समुदाय के खिलाफ खड़ा हो रहा है।

इंडि गठबंधन के चुनावी योजनाकार यह सोच रहे हैं कि यदि वे गैर-मुस्लिमों के पर्व-त्योहारों पर अंकुश लगाते हैं, तो सभी मुस्लिम वोट उनकी झोली में गिर जाएंगे। यह एक बहुत ही खतरनाक सोच है, क्योंकि इस तरह के निर्णयों से सिर्फ गैर-मुस्लिम समुदाय में गहरी नाराजगी बढ़ेगी, बल्कि यह उन्हें एकजुट होने पर भी मजबूर कर देगा। जब समुदायों के बीच यह खाई बढ़ती है, तो यह स्पष्ट है कि इंडि गठबंधन एनडीए को चुनाव में समर्थन देने की राह पर है।

यह अत्यंत चिंता का विषय है, क्योंकि यदि ऐसा होता है, तो झारखंड की राजनीति में यह एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है, जिसमें गैर-मुस्लिम समुदाय को एक साथ लाने के बजाय, उनके अधिकारों पर बेजा अंकुश लगाने का प्रयास किया जा रहा है। झारखंड विधानसभा चुनाव में इस प्रकार के निर्णयों का क्या प्रभाव पड़ेगा, यह देखना होगा। यदि इंडि गठबंधन के नेता यह समझते हैं कि वे गैर-मुस्लिम समुदाय को दबाकर मुस्लिम वोट हासिल कर सकते हैं, तो वे एक बड़ी गलती कर रहे हैं। ऐसे निर्णय से गैर-मुस्लिम समुदाय में असंतोष बढ़ेगा, और इसका परिणाम चुनावी परिणामों में भी देखने को मिलेगा।

प्रदूषण के नाम पर ध्वनि की सीमाएं :

दीपावली और छठ पूजा के लिए रात 8 से 10 बजे तक का समय तय करना, यह संकेत देता है कि सरकार अपनी असलियत को छिपाने की कोशिश कर रही है। जब विभिन्न समुदायों के त्योहारों की बात आती है, तो यह स्पष्ट होता है कि सरकार की नीतियां कितनी पक्षपाती हैं। दीपावली जैसे प्रमुख हिंदू त्योहार पर ऐसे प्रतिबंध न केवल धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाते हैं, बल्कि इससे यह भी साबित होता है कि सरकार एक विशेष समुदाय को खुश करने के लिए दूसरे समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन कर रही है।

समय-सीमा के विपरीत प्रदूषण का वास्तविक कारण :

सरकार का यह तर्क कि वह प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए यह कदम उठा रही है, यह केवल एक ढाल है। वास्तविकता यह है कि प्रदूषण का मुख्य कारण शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, और स्वच्छता की कमी है। त्योहारों के दौरान आतिशबाजी को लेकर समय-सीमा तय करना इस समस्या का समाधान नहीं है। बल्कि, यह एक बहाना है, जिसके माध्यम से सरकार एक खास समुदाय को दबाने की कोशिश कर रही है।

125 डेसिबल से अधिक शोर वाले पटाखों पर प्रतिबंध :

प्रशासन द्वारा 125 डेसिबल से अधिक शोर वाले पटाखों पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय भी विचारणीय है। क्या यह सच में ध्वनि प्रदूषण को रोकने का प्रयास है, या केवल एक और कदम है जो गैर-मुस्लिम त्योहारों पर अंकुश लगाने का प्रयास करता है? क्या हम यह मान लें कि यह निर्णय केवल एक पक्ष की सुरक्षा का ध्यान रखता है, जबकि दूसरे पक्ष को अपनी परंपराओं और उत्सवों से वंचित किया जा रहा है?

इंडि गठबंधन का यह कदम न केवल झारखंड की राजनीति में बल्कि देशभर की राजनीति में गंभीर प्रभाव डाल सकता है। यदि वे यह सोचते हैं कि वे मुस्लिम समुदाय को खुश कर सकते हैं, तो वे गलत हैं। सभी गैर-मुस्लिम समुदायों को इस प्रकार के निर्णयों के खिलाफ एकजुट होना होगा। हमें यह समझने की जरूरत है कि हमारी एकता ही हमारी ताकत है। यदि हम अपनी धार्मिक परंपराओं और त्योहारों की रक्षा नहीं करेंगे, तो हम केवल एक खंडित समाज बनकर रह जाएंगे।

इंडि गठबंधन को यह समझना होगा कि वे एक वोट बैंक के लिए अपनी राजनीतिक नैतिकता और सच्चाई को नहीं बेच सकते। इसके लिए उन्हें सभी समुदायों की भावनाओं का सम्मान करना होगा, तभी वे सच में एक समृद्ध और विकसित समाज की स्थापना कर सकेंगे।

20/10/2024

चुनाव में बीजेपी की मजबूती: पहली सूची में दिग्गजों और युवा नेताओं का समावेश

– पूर्णेन्दु सिन्हा पुष्पेश

झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अपनी पहली सूची में 66 उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। इस सूची में बीजेपी ने रणनीतिक रूप से सभी वर्गों को साधने की कोशिश की है। पहली ही सूची में उम्मीदवारों की घोषणा से यह स्पष्ट है कि बीजेपी ने चुनावी मैदान में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए गंभीरता से योजना बनाई है।

बीजेपी ने इस बार 11 महिलाओं को भी टिकट दिया है, जो कि पार्टी के समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाता है। राज्य में बीजेपी कुल 68 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, और यह लिस्ट पार्टी की आगामी रणनीतियों का संकेत देती है। बीजेपी ने अपने बड़े नेताओं की नाराजगी से बचने के लिए उनके करीबी लोगों को टिकट देने का फैसला किया है। उदाहरण के लिए, चंपाई सोरेन और उनके बेटे बाबूलाल सोरेन को टिकट मिला है, साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास और अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को भी मैदान में उतारा गया है।

इस बार बीजेपी ने अपने युवा नेताओं को भी मौका दिया है, जो यह दर्शाता है कि पार्टी अपने भविष्य को लेकर गंभीर है। पार्टी ने जेएमएम छोड़कर आए तीन बड़े नेताओं को भी टिकट दिया है, जिसमें चंपाई सोरेन को सरायकेला से और सीता सोरेन को जामताड़ा से उम्मीदवार बनाया गया है।

विशेष रूप से, बाबूलाल मरांडी और सीता सोरेन को सामान्य सीटों पर उतारा गया है, जो पार्टी की रणनीतिक सोच को दर्शाता है। इन दोनों नेताओं को टफ टास्क सौंपा गया है और पार्टी को उनसे काफी उम्मीदें हैं। इसके अलावा, सुदर्शन भगत जैसे कई नेता, जो लोकसभा चुनाव में हार गए थे, उन्हें भी टिकट दिया गया है, जिससे यह साबित होता है कि पार्टी अपने पुराने अनुभवों का फायदा उठाने के लिए तत्पर है।

अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में से 24 पर उम्मीदवार घोषित किए गए हैं, जबकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर सात उम्मीदवारों का ऐलान किया गया है। यह स्पष्ट है कि बीजेपी ने चुनाव में सभी वर्गों को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति बनाई है, और यही पार्टी की मजबूत स्थिति का संकेत है।

बीजेपी की यह पहली सूची ना केवल पार्टी के समर्पण और गंभीरता को दर्शाती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि पार्टी झारखंड में अपनी राजनीतिक उपस्थिति को और मजबूत करने के लिए तैयार है। महागठबंधन में अभी भी सीटों को लेकर रार मची हुई है, जबकि बीजेपी चुनावी मैदान में अपनी स्थिति को मजबूत कर चुकी है। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनावों में बीजेपी की यह रणनीति कितनी सफल होती है।

उधर महागठबंधन में सीटों को लेकर खींचतान जारी है, जो बीजेपी के लिए एक और अवसर प्रस्तुत करता है। महागठबंधन की अस्थिरता और सीट बंटवारे में जटिलता, बीजेपी को चुनावी लाभ दिला सकती है। इस प्रकार, बीजेपी की पहली सूची केवल पार्टी की समर्पण और गंभीरता का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि वह झारखंड में अपनी राजनीतिक उपस्थिति को और मजबूत करने के लिए तैयार है।

झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए इंडि गठबंधन की सहयोगी पार्टियों के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में से 70 सीटों पर झामुमो (जेएमएम) और कांग्रेस चुनाव लड़ेंगी। बाकी 11 सीटों पर राजद (आरजेडी), सीपीएम (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और अन्य सहयोगी दल चुनावी मैदान में उतरेंगे।

हालांकि, मुख्यमंत्री ने यह स्पष्ट नहीं किया कि जेएमएम और कांग्रेस कितनी- कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कांग्रेस के झारखंड प्रभारी गुलाम अहमद मीर की उपस्थिति में सीट शेयरिंग का ऐलान किया। इस अवसर पर आरजेडी और वाम दल के प्रतिनिधि उपस्थित नहीं थे, लेकिन मुख्यमंत्री ने बताया कि सहयोगी दलों से बातचीत जारी है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का यह कहना कि उनकी सरकार सत्ता में वापस लौटेगी, हालाँकि, उनकी विकास कार्यों पर भरोसा जताता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि बीजेपी ने अपने दांव पहले से ही बिछा दिए हैं। झारखंड के आगामी चुनाव में बीजेपी की यह रणनीति ना केवल पार्टी के लिए बल्कि झारखंड की राजनीतिक धारा के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होने वाली है।

वास्तव में, यह चुनावी परिदृश्य झारखंड में एक नए राजनीतिक युग का संकेत देता है, जहाँ विभिन्न दलों के बीच गठबंधन और सीटों का वितरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। बीजेपी की मजबूत स्थिति और महागठबंधन की अस्थिरता, इसे एक ऐसा मोड़ देती है जहाँ बीजेपी सत्ता की ओर बढ़ती नजर आ रही है। अब देखना यह है कि बीजेपी की यह चुनावी रणनीति कितनी सफल होती है, लेकिन फिलहाल तो चुनावी माहौल में बीजेपी की जीत का आगाज़ स्पष्ट रूप से दिख रहा है।

20/10/2024

बोकारो में फिर एक बार विरंचि सरकार!
- पूर्णेंदू सिन्हा 'पुष्पेश '

मानिये न मानिये प्यार अँधा होता है। विरंचि बाबू फिर से बोकारो की उष्ण धरती को तारने के लिए भाजपा उम्मीदवार बना दिए गए हैं। अब अनुकम्पा के आधार पे भेजे गए हों या गुणवत्ता के आधार पर ; भेजे तो गए हैं भाजपा आलाकमानों की तरफ से ही। लेकिन यह तय है कि विरंचि बाबू को जनता के सामने फिर से अपनी योग्यता सिद्ध करनी होगी। यह भी सच्चाई है कि पिछले वर्षों में विरंचि बाबू ने कई बार जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं को निराश किया है। यही कारण है कि इस बार चुनाव में जनता और कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी साफ नजर आ रही है। लेकिन अगर आपको मोदी को जितना है तो उनके नुमाइंदों को ही वोट करना होगा। कहावत हैं न - "टेढ़ा है पर मेरा है ! "

खैर बीजेपी के प्यार में पागल बोकारो कि अधिकांश जनता झक मार के विरंचि बाबू को ही वोट करेगी। भले वह इतने वर्षों में जनता यहाँ तक कि भाजपाई कार्यकर्ताओं को कितना बार भी अपमान कर गए हों, बोकारो की जनता मोदी जी के नाम पर वोट देगी ही और भाजपा के समर्पित कार्यकर्त्ता भी मोदी जी के लिए कुछ न कुछ मेहनत करेंगे ही विरंचि बाबू को जीताने के लिए। हाँ अब उनमे उत्साह कितना रहेगा ? निराश सी जनता में उद्वेग कितना रहेगा यह तो विरंचि नारायण पर ही निर्भर करता है। यह चुनाव विरंचि बाबू के लिए परीक्षा की घड़ी है। अगर वे अपनी कथित ऊंचाई से नीचे आकर जनता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलेंगे, तो शायद वे लोगों का दिल फिर से जीत सकते हैं।

लहर के बहाव में कमी न आये इसके लिए प्रत्याशी को अपनी कथित उंचाई से जमीं पर उतरना ही होता है। ताव में रहने वालों के तो बड़े बड़े राज ढह गए ; विधायकी क्या चीज़ है ? ! बोकारो की जनता को विरंचि बाबू से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी तो है नहीं। बस सब उनके व्यवहार और निकम्मेपन से नाराज़ रहते हैं। बोकारो की जनता जिस जोश से भाजपा को वोट देती है तो उम्मीद्वार का भी फ़र्ज़ बनता है कि वह स्वयं को भाजपा के स्तर का बनाये। एक बार उम्मीदवार महोदय मोदी जैसे मेहनतकश दिख क्या गए देखिएगा बोकारो की जनता कैसे उन्हें हाथो हाथ उठा लेती है, सर कंधे पर बैठ लेती है।

बोकारो की जनता ने हमेशा भाजपा को जोरदार समर्थन दिया है, लेकिन यह समर्थन उम्मीदों से जुड़ा हुआ है। जनता चाहती है कि उनका उम्मीदवार मोदी जी की तरह मेहनतकश हो। अगर विरंचि बाबू ने यह दिखा दिया कि वे भी मेहनत करने को तैयार हैं, तो जनता उन्हें सिर-आंखों पर बिठा लेगी। लेकिन इस बार जनता का प्यार यूं ही नहीं मिलेगा, उन्हें इसे कमाना पड़ेगा।

ईश्वर करे कि विरंचि बाबू जनता का यह प्यार फिर से हासिल करें, वो फिर से चुनाव जीत जाएँ ! लेकिन इसके लिए उन्हें जनता के लिए समर्पण और सेवा का भाव दिखाना होगा। राष्ट्रहित के नाम पर जनता अपना कर्तव्य निभाएगी, लेकिन उम्मीदवारों का भी तो कुछ दायित्व बनता है। उन्हें भी आहुति देनी पड़ती है। विधायकी के लिए खड़ा प्रत्येक प्रबुद्ध जानता है कि उसकी जनता के लिए उसे अपनी किन चीज़ों की आहुति देनी होगी।

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19/10/2024

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– पूर्णेन्दु सिन्हा पुष्पेश झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अपनी पहली सूची में 66 उम्मीदवारों का ऐलान कर दि.....

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19/10/2024

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सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’। जैसा राजा वैसा निरंकुश क़ानून। इंडि गठबंधन सिर्फ मुस्लिमों का वोट बैंक स...

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18/10/2024

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– पूर्णेन्दु सिन्हा पुष्पेश . भारत में हर प्रमुख राजनीतिक दल में आंतरिक राजनीति के तीन प्रमुख गुट होते हैं: सत्ता म....

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18/10/2024

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– पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘ मानिये न मानिये प्यार अँधा होता है। विरंचि बाबू फिर से बोकारो की उष्ण धरती को तारने...

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09/10/2024

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सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’। EVM ने फिर धोखा दे दिया कांग्रेसियों को। अपनी पैदाईश से वह कांग्रेसियों क.....

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