स्त्रीrang

स्त्रीrang शब्द अनंत,
यात्रा जीवनपर्यंत
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“लिखना मेरे लिए सांस लेने की तरह है।”विनोद कुमार शुक्ल जी द्वारा लिखा गया यह वाक्य कोई साधारण वाक्य नहीं, बल्कि इसमें हर...
30/10/2025

“लिखना मेरे लिए सांस लेने की तरह है।”
विनोद कुमार शुक्ल जी द्वारा लिखा गया यह वाक्य कोई साधारण वाक्य नहीं, बल्कि इसमें हर लेखक के पूरे जीवन का सार छिपा है ।

वह बेचैनी, वह तड़प, सृजन की वह ज्वाला जो तब तक शांत नहीं होती जब तक शब्द रूप लेकर बाहर न आ जाएं।

और सच कहूं तो मेरे लिए भी लिखना ठीक वैसा ही है। मैं जब लिखती हूं, तो सिर्फ कागज़ पर शब्द नहीं उतरते , मेरा मन, मेरे अनुभव, मेरे घाव, मेरी खुशियाँ, मेरी चाहतें ,मेरा विश्वास, और विश्वासघात सब शब्दों में ढल जाते हैं। लेखन मेरे लिए आत्मसंवाद है, जहाँ मैं खुद से मिलती हूं, खुद को समझती हूं, और कई बार खुद को सांत्‍वना भी देती हूं।

जब मैं दुखी होती हूं, तो शब्द मेरा सहारा बनते हैं। जब मैं खुश होती हूं, तो वही शब्द मेरे साथ नाचते हैं। जब मैं टूटती हूं, तो लेखन मुझे जोड़ देता है।
लेखन मेरे भीतर का वह दीपक है जो हर अंधेरे में जलता रहता है, कभी धीमी लौ से, कभी तेज़ रोशनी से।

विनोद कुमार शुक्ल जी का लेखन इसी आंतरिक संसार का प्रमाण है। उनका हर शब्द आत्मा से निकला हुआ लगता है। उन्होंने यह दिखाया कि लिखना केवल विचार व्यक्त करना नहीं, बल्कि जीना है , हर उस भावना को जीना, जिसे हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं।

उनकी तरह, मेरे लिए भी लेखन कोई विकल्प नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है , जैसे बिना सांस के शरीर नहीं चल सकता, वैसे ही बिना लिखे मेरा मन अधूरा रह जाता है।

कई लोग अपने दुख, अपने सवाल, अपने रिश्तों को दूसरों से बाँटकर हल्का कर लेते हैं, लेकिन मैं उन्हें कागज़ पर उतारकर खुद को हल्का करती हूं।

मेरे शब्द मेरे मौन की आवाज़ हैं ।
वे उन भावनाओं को अभिव्यक्ति देते हैं जिन्हें मैं ज़ुबां से नहीं कह पाती।

जब प्रेम मन में उमड़ता है, तो शब्दों में मिठास घुल जाती है।
जब विरह का सागर उठता है, तो वही शब्द नम हो जाते हैं।
जब विश्वास टूटता है, तो शब्दों में तीखापन आ जाता है।
और जब कोई सच्चा अहसास जन्म लेता है, तो शब्द कविता बन जाते हैं।

मेरे लिए लेखन साधना है , एक ऐसी साधना जिसमें न कोई मंदिर है, न कोई आरती।
यहाँ कलम ही दीपक है, कागज़ ही वेदी है, और भावनाएँ ही आराधना हैं।
जब मैं लिखती हूं, तो समय जैसे ठहर जाता है। न बाहर की दुनिया रह जाती है, न भीतर की सीमाएँ। बस एक प्रवाह होता है , शब्दों का, विचारों का, और संवेदनाओं का।

मैंने पाया है कि लेखन मुझे बचाता है , उन क्षणों में जब मन टूटा होता है, जब रिश्ते खामोश होते हैं, जब भीतर बहुत कुछ कहना होता है पर कोई सुनने वाला नहीं होता।
ऐसे में लेखन मेरा सहारा बनता है, मेरा मित्र, मेरा दर्पण।

विनोद कुमार शुक्ल जी की यह पंक्ति इसलिए अमर है क्योंकि यह हर लेखक, हर सृजनशील आत्मा का अनुभव है।
और मेरी दृष्टि में भी लिखना केवल शब्दों को जोड़ना नहीं, बल्कि जीवन को अर्थ देना है।
क्योंकि जब शब्द बहते हैं, तो मन जीता है।
और जब मन जीता है, तो आत्मा सांस लेती है।

इसलिए मैं भी यही महसूस करती हूं कि
लिखना मेरे लिए सांस लेने की तरह है। अगर मैं न लिखूं, तो शायद मैं जीना ही भूल जाऊं और मर जाऊं।

और अंत में यह प्रार्थना भी करना चाहती हूं कि
विनोद कुमार शुक्ल जी शीघ्र स्वस्थ हों।
उनकी लेखनी और उनका विचार-संसार हमारे साहित्य की आत्मा है।
उनका स्वस्थ रहना, लेखन जगत का जीवित रहना है।

स्त्रीrang सुजाता
#विनोदकुमारशुक्ल
चित्र इंटरनेट @कविताएं

30/10/2025

मोहभंग का अंतिम दौर भी समाप्त हो चुका है और अब हर गुज़रता हुआ दिन मुझे पलायन के और नज़दीक ले जा रहा है ।

मेरा जी चाहता है कि मैं सब छोड़कर बिन बताए दूर किसी अनजान शहर में चली जाऊँ । मेरी ज़िंदगी में कोई ऐसा नहीं है जिसकी मैं फ़िक्र करूँ कि मेरे बाद इसका क्या होगा । अपने सब रिश्तों को अपने हाथों से मैं किन्हीं सुरक्षित हाथों के सुपुर्द कर चुकी हूँ । उन्हें मेरे बिना जीना आ गया है और मुझे उनके बिना ...

इस उम्र में ये भाव इतने हावी होंगे ये मैं नहीं जानती थी ।

टेलीपैथी पर किसी का कितना विश्वास है मैं नहीं जानती लेकिन हाँ मैं दावे से कहती हूँ कि ये काम करती है । जब आप लंबे समय तक किसी के बारें में सोचते हो और सिर्फ़ वो ही अधिकतर आपके मन , मस्तिष्क में रहता है तो आप कई किलोमीटर बैठकर भी उसके भाव को महसूस कर पाते हो । लेकिन ऐसा करने में जो आपकी ऊर्जा लगती है उसको क्या ही बयाँ करूँ । उसके एक दो दिन तक आपको लगता है कि किसी ने शरीर से प्राण निकाल लिए हो, बहुत प्यास लगती है । हाथ पैर सुन्न पड़ जाते हैं ऐसा लगता है कि पैदल चलकर आप किसी से हालचाल पूछ आयें हो।

अब धीरे धीरे वो चुंबकीय ऊर्जा का संवाद कमजोर पड़ता जा रहा है ।

मैं दुनियादारी से पहली ही उकता चुकी हूँ और इन दिनों तो ये भाव का ज्वार भाटा ऐसा है कि एक रात में सब तबाह हो जाए और सुबह होते ही मैं उजड़े हुए पोधों को सहारा दे रही होती हूँ ।
ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि मेरी आत्मा को शांति दे !
(मेरी डायरी से)
स्त्रीrang Anita Bhardwaj
#हिन्दीनामा

तुम मुझमें कुछ यूं बाकि रहनाजैसे अंतिम सांस लेतेरह जाती है किसी अपने से मुलाकात बाकि...तुम मुझमें यूं बाकि रहनाज्यों रहत...
29/10/2025

तुम मुझमें कुछ यूं बाकि रहना
जैसे अंतिम सांस लेते
रह जाती है
किसी अपने से मुलाकात बाकि...

तुम मुझमें यूं बाकि रहना
ज्यों रहता है प्रेम के 'प' में
'र' बाकि...

और यूं बाकि रहना जैसे
रह जाती है टूटे सपनों में
फिर से जुड़ने की आस बाकि..

चुकाने के बाद भी रह जाता है जैसे
जेब पर ब्याज बाकि...

मुस्कुराते हुए रह जाती है,
जैसे दिल में चुभी फाँस बाकि....

सुनो
तुम कुछ यूं भी बाकि रहना
जैसे बारिश के बाद रह जाती है
धरती की प्यास बाकि....

तितली के दिल में रह जाती है
ऊँचे आसमान से बात बाकि...

पत्थर के सीने में रह जाती है
अपने संगतराश की छाप बाकि....

कमीज़ पर टूटे बटन का रह जाता है जैसे एक निशान बाकि.

सुनो,
तुम मेरे सफेद बालों की चमक में बाकि रहना....

मेरी हथेली के उम्रदराज़ तिल में बाकि रहना....

मेरे चेहरे की झुर्रियों के हर आढ़े-तिरछे मोड़ में बाकि रहना....

और कभी मैं न भी रहूं तो
मुझसे किए उन तमाम वादों में बाकि रहना जो अधूरे रह गए...

क्योंकि प्रेम कभी पूरा नहीं होता...
जो संपूर्ण हो जाए वो प्रेम नहीं होता...
प्रेम में प्रेमी
और प्रेमी में प्रेम बाकि रहने ही चाहिए.....
स्त्रीrang -सुजाता Photo Tarun Chouhan sahityamanjari.com Hindinama Akb Sahitya Tak

True kartikay_90
26/10/2025

True kartikay_90

हे मेरे प्रिय तुम !कैसे हो ?क्या अब भी किसी फिल्मी हीरो जैसे हो ?क्या अब भी हरदिल अज़ीज़ हो क्या‌ अब भी घुमक्कड़ी के मुर...
26/10/2025

हे मेरे प्रिय तुम !
कैसे हो ?
क्या अब भी किसी फिल्मी हीरो जैसे हो ?
क्या अब भी हरदिल अज़ीज़ हो
क्या‌ अब भी घुमक्कड़ी के मुरीद हो ?

क्या लड़कियां तुम्हें देखकर
अब भी लगाती हैं तुम्हारे घर-आफिस के चक्कर ?
तुम्हारी छोटी छोटी बातें क्या आज भी देती हैं
बड़े बड़े सपनों को टक्कर ?

तुम्हारा जोश क्या
अब भी उतना ही हाई है ?
एक फोन पर दौड़ते रहे जिनके लिए तुम
क्या कभी उनका नंबर तुमने भी किया ट्राई है ?

पुराने दोस्तों संग जमाते हो
क्या अब भी महफिल?
तुम पर क्रश रखने वाली उस‌ लड़की से
क्या‌ आज भी हो गाफिल ?

वक्त के तुम भी तो सताए होंगे
दुनिया ने तुम्हें भी तो रंग दिखाए होंगें ?
लेकिन मुझे यकीन है तब तुम
जरा भी न घबराए होंगे !

मेरे लिए तुम्हारे शहर के नाम का ही
एक पर्यायवाची हो तुम ।
लगता है अपनो संग तुम आज भी वहीं हो गुम ।

एक उम्र बाद
अब दोबारा आई हूं इस शहर में
तो देखकर सड़क पर
तुम्हारे जैसी ही एक बाईक
अचानक कर गई है बिसरी बातें स्ट्राइक ...

सुनो,
वो झील क्या अब भी पानी से भरी है
उसके किनारे लगे पुराने पेड़ की शाख
क्या अब भी उतनी ही हरी है?

सुना है अपनों के लिए तुम्हारी जेब
अब भी पहले सी ही भरी है
फिर क्यों तुम्हारी आंख में जरा सी नमी है
कहो ,क्या किसी बात की तुम्हे कमी है ?

बताओ न प्रिय
कैसे हो ?
क्या अब भी लाड़ से पुकारते
अपने बाऊजी की
राधारानी जैसे हो ?

स्त्रीrang सुजाता
Image Vijesh Vishwan
Sahitya Tak Akb Entertainment Sahitya Akademi Hindinama

'ट्राम' में अपनी प्रेमिका को याद करते एक प्रेमी के हृदय को ज्ञानेंद्रपति जी ने अपनी कविता में जिस प्रकार निकाल कर रखा उसी से प्रेरित ये पंक्तियां किसी प्रेमिका द्वारा अपने प्रेम की स्मृतियों को सहेजने का प्रयास कर रही है।

उम्मीद के दरवाज़े बंद हो गए हैंताले पड़ गए है उनमें दूरियों केइंतज़ार की एक खिड़कीखुली है अब तकजहाँ से आती हैंधूपहवाबारिशऔर ...
24/10/2025

उम्मीद के दरवाज़े बंद हो गए हैं
ताले पड़ गए है उनमें दूरियों के
इंतज़ार की एक खिड़की
खुली है अब तक
जहाँ से आती हैं
धूप
हवा
बारिश
और तुम्हारी याद।

चित्रा सिंह

21/10/2025

समंदर की कई नदियां, नदी का एक समंदर है..
#अंकितासिंह

दीवाली यानि अखबारी कागज़ में जतन से दीए बांधती कुम्हारिन के हाथों पर लगा गेरूआ रंग...सुर्रसुर्र कर पानी पीते दीयों की सौ...
20/10/2025

दीवाली यानि
अखबारी कागज़ में
जतन से दीए बांधती
कुम्हारिन के हाथों पर लगा
गेरूआ रंग...

सुर्रसुर्र कर पानी पीते
दीयों की सौंधी गंध...

दुकान पर सजीे
लक्ष्मी-गणेश की
सबसे चटकीली जोड़ी...

द्वार पर खील-बताशे मांगने आई एक बूढ़ सुहागन कोढ़ी..

फुलझड़ी से चटचट कर
बिखरती रंगबिरंगी चिंगारियां...

धनतेरस पर बिट्टो के लिए आई एक जोड़ी कान की बालियां...

रसगुल्ले के बीच से निकला
इलायची का नटखट दाना...

दाल वाली कचौड़ी का कुरकुरा मसालेदार किनारा...

काजू कतली का आखिरी बचा टुकड़ा...
आखिरी बचे उपहार से झांकता सोनपपड़ी का मुखड़ा...

रंगोली के बीचों-बीच सजा
सबसे चटकीला फूल...
सफेद रसगुल्ले से टपकती
मीठी चाशनी कूल-कूल...

पान पर लगे चाँदी के सिक्के से शुभ माँगती श्योर्ती...
मीठे रोट का प्रसाद चखती
हनुमान जी की नन्ही सी मूर्ती....

दीए से प्रीत निभाती इठलाती बलखाती मुस्कुराती लौ...
त्यौहारी रौनक बीच
टीस जगाता बीते अपनों का बिछोह...

(दो वर्ष पहले लिखी कविता रिपोस्ट , संपादित )
स्त्रीrang -सुजाता Sahitya Akademi
Akb Entertainment Sahitya Tak Image anupriya
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।

रंगोली बनाती हुई स्त्रियां अधिक हैं रंग हुई स्त्रियां कम.त्यौहार मनाती हुई स्त्रियां अधिक हैं जश्न मनाती हुई स्त्रियां क...
20/10/2025

रंगोली बनाती हुई स्त्रियां अधिक हैं
रंग हुई स्त्रियां कम.

त्यौहार मनाती हुई स्त्रियां अधिक हैं
जश्न मनाती हुई स्त्रियां कम.

सबको आशीर्वाद देती हुई स्त्रियां अधिक हैं
सबका आशीष पाती हुई स्त्रियां कम.

चूल्हे जलाती‌ हुई स्त्रियां अधिक हैं
अपनी थाली सजाती हुई स्त्रियां कम.

घर संवारती हुई स्त्रियां अधिक हैं
अपना मन बुहारती हुई स्त्रियां कम.

श्रृंगार करती हुई स्त्रियां अधिक हैं
खुद बसंत हुई स्त्रियां कम.

किस्से सुनाती हुई स्त्रियां अधिक हैं
किताब हुई स्त्रियां कम.

प्रेम देती हुई स्त्रियां अधिक हैं
प्रेम पाती हुई स्त्रियां कम.

रिश्ते हुई स्त्रियां अधिक हैं
स्वयं की हुई स्त्रियां कम.

आंगन हुई स्त्रियां अधिक हैं
घर का पता हुई स्त्रियां कम.

स्वागत हुई स्त्रियां अधिक हैं
आभार हुई स्त्रियां कम.

आंचल हुई स्त्रियां अधिक हैं
विचार हुई स्त्रियां कम.

घड़ी हुई स्त्रियां अधिक हैं
समय हुई स्त्रियां कम.

प्रतीक्षा करती हुई स्त्रियां अधिक हैं
किसी की अंतिम मंजिल हुई स्त्रियां कम.

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