स्त्रीrang

स्त्रीrang शब्द अनंत,
यात्रा जीवनपर्यंत
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किसी के बीत जाने के बादउसकी जन्मतिथि और पुण्यतिथि के बीच कीसभी तिथियां बिसरा दी जाती हैं।वे तिथियां, जो उसकी हंसी, आंसू,...
10/08/2025

किसी के बीत जाने के बाद
उसकी जन्मतिथि और पुण्यतिथि के बीच की
सभी तिथियां बिसरा दी जाती हैं।
वे तिथियां, जो उसकी
हंसी, आंसू, उम्मीदों और जीत की
गवाह रही थीं और अब उसके बाद मानो
उन तिथियों का कोई अस्तित्व ही न रहा हो।

लेकिन सच कहूं तो
जन्म और मृत्यु की तारीख़ों से भी
कई गुना खास होती हैं
वे सारी साधारण-सी लगने वाली
असाधारण तिथियां
जब जीवन अपने सारे रंग
हमारी हथेलियों पर उड़ेल देता है।

यदि दूसरी से पहली तिथि घटाओ,
तो दिख जाएंगी वे सभी तिथियां
जिनमें हम सबसे अधिक चहके थे।

सुनो ,
मेरे बाद केवल वह तिथि महकती रहेगी
जिस दिन तुम मिले थे !

स्त्रीrang - सुजाता
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जो छोटे भाई केडायपर बदलतीउसकी नाक पोंछतीनींद से भरी आँखों में भीउसके रोने की वजह ढूंढती,उसे गोद में उठाए,सारा मोहल्ला ना...
08/08/2025

जो छोटे भाई के
डायपर बदलती
उसकी नाक पोंछती
नींद से भरी आँखों में भी
उसके रोने की वजह ढूंढती,
उसे गोद में उठाए,
सारा मोहल्ला नापती,
कभी झूले पर, कभी साइकिल की
डगमग चाल में उसे गिरने से बचाती,
क्लास में हर पीरियड के बाद,
खिड़की से चुपचाप झाँकती
जहाँ से रोते हुए भाई की आँखें
बस अपनी बहन को ही ढूँढा करती,
आधी छुट्टी में
अपना टिफ़िन छोड़कर,
भाई को खाना खिलाने
दौड़ी चली आती ,
जो भाई को आँख दिखाता
उससे दो-दो हाथ कर आती
बहन छोटी भी सही,
लेकिन भाई के लिए
शेरनी बन जाती,
अपने हिस्से की मूंगफली,टाफी
बिना सोचे उसे थमाती
और खुद बिना शिकायत
मुस्कुरा कर रह जाती
वे सारी बहनें,
जो भाई के दुलार में
उम्र से बहुत पहले
माँ से भी अधिक मां बन जाती
ऐसे छोटे भाईयों की दुनिया मां से अधिक
उनके आँचल में ही पलती देखी जाती!

स्त्रीrang -सुजाता
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जब “miss you”धीरे से “take care” हो जाए,और वो लंबे-लंबे कॉल्स, मैसेज सिमटकर unseen या फिरseen without reply में ढल जाए त...
06/08/2025

जब “miss you”
धीरे से “take care” हो जाए,
और वो लंबे-लंबे कॉल्स, मैसेज
सिमटकर unseen या फिर
seen without reply में ढल जाए
तो समझ लेना,
रिश्ता वेंटिलेटर पर है
और किसी भी समय‌ हिचकिचाते हुए
सकुचाकर सिमटते आप खुद ही 'आई एम सारी ' कहकर
साईड हटकर उसकी औपचारिक विदाई कर देते हैं।

पहले
हर छोटी बात पर
“तुम बिन सब अधूरा है” कहने वाले
अब हर बात पर
“busy हूँ”, कहने लगते हैं
जैसे प्यार नहीं
कोई meeting schedule तय‌ करना हो।

पहले सुबह के सूरज से पहले
'गुड मार्निंग ' मैसेज देखने वाले की
आज जब सुबह होती है
तो आँखे तो फोन पर होती हैं
लेकिन उंगलियाँ उस चैट पर
क्लिक नहीं करती।
मानो जवाब देने से बेहतर हो कि
धीरे-धीरे मैसेज भेजने वाले की
मैसेजिंग की आदत छुड़वाना।

ये सब
केवल अनदेखे मैसेज नहीं हैं,
ये वो मौन संकेत हैं —
जो loudly whisper करते हैं
कि अब दिल में शायद वो
जगह नहीं रही।
और जब उन्हें किसी दिन
आप चुपचाप goodbye कह देंगें
तो वो पूछेंगें
“अरे ऐसा क्या हो गया…?”
पर सच तो यही है —
जब कोई रिश्ता मरने लगता है
तो सबसे पहले उसकी आदतें बदलती हैं!

स्त्रीrang -सुजाता Image Internet

मुझसे उकताई इस दुनिया में उसका मुझे "तुम खूबसूरत हो" कहना गुलज़ार की लिखी कविता पढ़कर पतझड़ के बसंत-बहार होने जाने जैसा ...
05/08/2025

मुझसे उकताई इस दुनिया में
उसका मुझे "तुम खूबसूरत हो" कहना
गुलज़ार की लिखी कविता पढ़कर
पतझड़ के बसंत-बहार होने जाने जैसा है।

मुझसे बेपरवाह इस दुनिया में उसका मुझे "अपना ख्याल रखो" कहना
बीते पिता का बरसों बाद फिर से अचानक
मेरे सिर पर हाथ होने जैसा है।

मुझसे रूठी इस दुनिया में उसका मुझे "थोड़ी देर और रुको न " कहना
मैट्रोपोलिटन सिटी की
भीड़-भाड़ वाली माल के अहाते में
गांव के नीम की ठंडी छांव होने जैसा है।

मुझसे बेज़ार इस दुनिया में
उसका मुझे "प्यार तुम्हें" कहना
बिन प्रार्थना मन्नत के ही
ईश्वर के साक्षात दर्शन कर
वरदान पाने जैसा है।

मुझसे अंजान इस दुनिया में
उसका मुझे ' हे मेरी प्रिय तुम ' कहना
किसी बीते जन्म का
अधूरा सपना जीकर
फिर से नए प्राण पाने जैसा है।

मुझसे उकताई इस दुनिया में
एक 'उसका' होना ही
मेरा भी अपने हक का
दुलार -सम्मान पाने जैसा है।

किसी दिन मुझसे प्रीत निभाते
अचानक उसका भी मुझसे उकता जाना
मेरी देह से प्राण जाने जैसा होगा...

स्त्रीrang -सुजाता #हिंदीसाहित्य #कविता साहित्य मंजरी - sahityamanjari.com Sahitya Tak Image Akb

एक नालायक दोस्त, जब जिंदगी की आपाधापी में खोया, अदृश्य रास्तों पे बेहिसाब भागता, अप्राप्य ऊंचाइयों को छूने की कोशिश में,...
04/08/2025

एक नालायक दोस्त,
जब जिंदगी की आपाधापी में खोया,
अदृश्य रास्तों पे बेहिसाब भागता,
अप्राप्य ऊंचाइयों को छूने की कोशिश में,
तुमसे अगर बात नहीं कर पाता तो,
ये मत सोचना की वो भूल गया या अब वो बात नहीं।
बल्कि समझना कि उसकी व्यस्तता छद्म है,
हर दिन उगे सूरज को खुशनुमा रात पे खत्म करने की कोशिश में,वो रोज थोड़ा खर्च हो रहा है!
रोज अच्छा दिन गुजारने की चाहत में,
वो इमोशनली सूख रहा है,

यादों की कसकुटा थोड़ी मुरझाने लगी है!
पर तुम्हे ये भी पता होना चाहिए,
कि कितनी जद्दोदहद हो, कितना खाली पन हो,
कितना सूखा पड़े,
उसके मन के मर्तबान,
तुम्हारे नामों से लबालब भरे पड़े है।
तीन अगस्त के रविवार को,
काफिया मिलाने वाले, पेंसिल स्केचो और,
बेमतलब की बातों पे हसने वाले को
मीटिंग वाले दिनों ने पूरा भर दिया है।
लेकिन चाहे कितना सूखा पड़े -
वो मुस्कुराएगा ।

'सौरभ'
स्त्रीrang से Sourabh K Guha ( Principal, Birla Public school, Kishangarh, Rajasthan)

अच्छा होता यदि दुनिया चौकोर ही होती रास्ते एकदम  सीधे होते तो शायद कोई दो दोस्त फिर कभी एक-दूसरे के रास्ते में ना आ पाते...
03/08/2025

अच्छा होता यदि दुनिया चौकोर ही होती
रास्ते एकदम सीधे होते तो शायद
कोई दो दोस्त फिर कभी एक-दूसरे के रास्ते में
ना आ पाते।
हर मोड़ की जगह एक किनारा होता
जहाँ तक साथ चलने के बाद दोस्त
जीवन की कच्ची पक्की पगडंडी से
उतरकर अपने रास्ते चले जाते।
कोनों वाली इस दुनिया में यादें तो रहतीं,
पर मिलने की कोई “गोल घुमावदार वजह” नहीं होती।
एक बार छूटे हाथ फिर चाहे कितना भी चाहते
वापस एक रास्ते पर नहीं आ पाते।

सच‌ में शायद अच्छा ही होता यदि
दुनिया चौकोर होती तो एक दिन
बिछड़े दोस्त दोबारा कभी मिल न पाते
और यूँ इत्तफाक की बंजर ज़मीन पर
फिर से उम्मीदों के बेरंग फूल न खिला पाते।

अक्सर लगता है कि दुनिया गोल होने के फायदे
अपनी जगह हैं और नुकसान अपनी जगह !

स्त्रीrang -सुजाता

प्यार दोस्ती है ? जरूरी नहीं कि प्रेम पलट कर देखे ही देखेन पलटने की ठानकर भी ताउम्र‌ कायम रहता है प्रेम...ज़रूरी नहीं कि...
03/08/2025

प्यार दोस्ती है ?
जरूरी नहीं कि प्रेम
पलट कर देखे ही देखे
न पलटने की ठानकर भी
ताउम्र‌ कायम रहता है प्रेम...

ज़रूरी नहीं कि पहली नज़र में ही हो जाए प्रेम
अंतिम विदा पर आँखों से छलकी नमी सोखकर भी
दिल की बंजर ज़मीन पर उग जाता है प्रेम।

जरूरी नहीं कि इज़हार से ही माना जाए प्रेम
इंकार के इ से बिंदु हटा
क के पास र सजाकर भी
अपने शब्द का अर्थ पा जाता है प्रेम।

ज़रूरी नहीं कि सोशल मीडिया पर
ब्लाक होकर मर जाता है प्रेम
अनब्लाक होने की सारी संभावनाएं
चुक जाने के बाद भी पासवर्ड बनकर
ज़हन में हिफाज़त से जिंदा रहता है प्रेम।

अक्सर 'दोस्ती' में वो 'कुछ कुछ' जब भी कभी भी कहीं भी किसी को भी महसूस होता है तब उसे पहचान कर उसके साथ जीवन बिताने का निर्णय ले पाने वाले‌‌ राहुल अंजली बहुत कम होते हैं।

और बहुत कम अंजलियों को नसीब होते हैं‌ राहुलों के‌ आनेस्ट‌ कन्फेशंस‌ कि हां वो कुछ कुछ लगा तो था लेकिन बस यार , समझ ही नहीं आया...तब...!

और जब समझ आया‌ तब तक फिल्म की तर्ज‌ पर अंजली के जीवन में अमन की एंट्री टाली जा सकने वाली घड़ी हाथ से निकल चुकी थी।

काश कि ये कुछ कुछ होता हुआ जितना स्ट्रांगली लड़कियों को महसूस होता है उतना लड़कों को भी हो पाता तो रिश्तों के स्टेशनों से अंजलियों की ट्रेनें उन्हें लेकर यूं छूट नहीं पाती।

न जाने क्यों
प्रेम को खोजने में व्यस्त हम
उसे पहचान पाने में असमर्थ होते हैं।

स्त्रीrang -सुजाता
Akb Entertainment Sahitya Tak

चलते -चलते यूं ही कोई मिल गया था ....एक कलाकार के लिए कला के प्रति संजीदगी और ठहराव क्या मायने रखता है यह अपने सहज एवं स...
01/08/2025

चलते -चलते यूं ही कोई मिल गया था ....
एक कलाकार के लिए कला के प्रति संजीदगी और ठहराव क्या मायने रखता है यह अपने सहज एवं सशक्त अभिनय से भारतीय सिनेमा को नई ऊँचाइयों पर ले जाने वाली ट्रैजेडी क्वीन मीना कुमारी जी से अधिक कौन समझा सकता है.

आज उन्ही के जन्मदिवस पर याद आ गया मेरा पसंदीदा गीत 'चलते चलते यूंही कोई मिल गया था.'

जीवन के इस लंबे सफर में चलते चलते हम सभी को कभी न कभी ,कोई न कोई एक ऐसा अजनबी ज़रूर मिलता है, जो बस मिलते ही, पहली ही नज़र में हमारी पूरी जिंदगी बन जाता है और बहुत बार फिर ऐसा भी होता है कि एक दिन ये अजनबी बिन कारण बताए, हमें छोड़कर अचानक हमारी दुनिया से चला जाता है और फिर हम उसके इंतजार मे हर पल बेचैन रहकर उसकी वापसी की राह देखते रहते हैं मन में विश्वास लिए कि वो शायद कभी तो फिर से वापिस अवश्य आ ही जाएगा.

अक्सर यहां पीड़ा एक दूसरी भी होती है कि उस अजनबी ने हमसे लौट आने का कोई वादा तो नहीं किया होता परंतु हम बस अपने दिल में बसे उसके प्रेम और उसपर विश्वास को आधार बनाकर उसका इंतजार करने लगते हैं.

ऐसे ही एक अजनबी के मोह में बंधी मीना कुमारी उसके इंतज़ार में इस गीत के ज़रिए अपनी उम्मीदों का दीया जलाए बैठी हैं.. जो हमें एक प्रेमिका के दिल में उठते इंतज़ार के दर्द और उम्मीद के बीच के द्वंद को बहुत खूबसूरती से बयां करता हैं.

'चलते चलते यूं ही कोई मिल गया था...' पाकीजा फिल्म का ये गीत आज भी लोगों के जुबान से नहीं उतरता. इस गीत को और भी खूबसूरत बनाया था बेपनाह हुस्न और बेहतरीन अदायगी की मलिका मीना कुमारी ने.

1971 की फ़िल्म पाकीजा का ये गीत ‘चलते-चलते’ ग़ुलाम मोहम्मद के संगीत पर कैफ़ी आज़मी ने लिखा है और इसे लता मंगेशकर ने अपने स्वर से सजाया है।
ये गीत हमेशा से ही मेरे पसंदीदा नग़्मों में से एक रहा है, और मैं अक्सर इसे गुनगुनाती रहती हूं.

इस गीत में मीना कुमारी की खूबसूरती और चेहरे के हाव-भाव हमारी देह से हमारा हृदय ही निकाल कर ले जाते हैं. मुजरे के स्टाइल में फ़िल्माया गया यह गीत जिसके बोल और पायल की झंकार पर मन बरबस ही झंकृत होने लगता है.

मीना कुमारी को नृत्य की देवी कहना ही उचित होगा क्योंकि शायद वही एक ऐसी अदाकारा हैं जिनके चेहरे का हर एक भाव तक नृत्य करता प्रतीत होता है .
'चलते चलते यूँ ही कोई मिल गया था
सरे राह चलते चलते
वहीँ थम के रह गयी है,
मेरी रात ढलते-ढलते.'

पहली नज़र का ये प्रेम जिस पर रात ही क्या दिल भी ठहर जाता है. कोई राह चलते यूं अचानक ऐसे मिल गया हो कि आज उसके इंतज़ार में प्रेमिका की ही तरह रात भी ढलने को कतई तैयार नहीं है क्योंकि दिल कहता है कि वो अजनबी प्रेमी दिल की पुकार सुन आएगा तो अवश्य ही !
पूरे गीत में प्रेमिका की नजरें दरवाजे पर ही लगी रहती हैं और दिल की धड़कन बाहर से आती हर आहट पर घटती-बढ़ती रहती है.

'जो कही गई ना मुझसे, वो ज़माना कह रहा है
के फ़साना बन गयी है, मेरी बात चलते चलते !'
प्रेमिका अपने प्यार की जिस बात को किसी से कहना नही चाह रही और सबसे छुपाना चाह रही है, वो बात उसका चेहरा देखकर हर कोई आसानी से पढ़ कर आपस में उसके चर्चे कर रहा है. क्योंकि ये कहा जाता हे कि प्रेम छिपाए नही छिपता और किसी भी प्यार करने वाले के चेहरे पर इसकी रौनक अलग ही दिखती है.

'शब-ए-इंतज़ार आखिर,
कभी होगी मुख़्तसर भी
ये चिराग बुझ रहे हैं,
मेरे साथ जलते जलते
यूँ ही कोई मिल…'
अपने अजनबी प्रेमी का इंतज़ार करती प्रेमिका को पूरा विश्वास है कि उसके इंतज़ार की लंबी रात ख़त्म जरूर होगी. और केवल ये चिराग ही नहीं बल्कि इंतज़ार करते करती प्रेमिका खुद भी भीतर से कहीं न कहीं अपने प्रेमी के विरह में तिल तिल कर जलती खत्म हो रही है.

वैसे इस गीत वाली प्रेमिका का इंतज़ार सुखद रहा था. अंत में उनका वो अजनबी उनके विश्वास पर खरा उतरा और चिराग बुझने से पहले अपने प्रेम का वादा निभाने चला आया. परंतु कुछ बदनसीब प्रेमी ऐसे भी हैं जिनके जीवन में आज भी एक अंतहीन, काली ,शबे-इंतजार पसरी हुई है.
ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसी इंतजार भरी रातें किसी भी प्रेमी के जीवन में बाकी न रहें !

पूरी उम्र परेशानियों से जूझती मीना कुमारी अपने अंतिम समय लीवर की गंभीर बीमारी से लड़ते 31 मार्च 1972 को मात्र 38 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गई।
शायद किसी और जन्म में
शायद कोई और कहीं
उनका इंतजार कर रहा होगा ,
चलते -चलते ।
स्त्रीrang Akb Entertainment

आज हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में शुमार मुशी प्रेमचंद जी की जयंती है । उनकी सभी रचनाएं हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर...
31/07/2025

आज हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में शुमार मुशी प्रेमचंद जी की जयंती है । उनकी सभी रचनाएं हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं।

मुझे लगता है कि हमारी वाली एक पूरी पीढ़ी है जिसका अपने ही भारतीय समाज से प्रथम परिचय शायद प्रेमचंद की लिखी कहानियों और लेखों द्वारा ही हुआ था.

क्योंकि तब न तो न्यूज़ चैनल्स थे और न ही सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स कि हम दुनिया को , देश को , गाँव को, शहर को और समाज को करीब से देख पाते , समझ पाते.

स्कूल लाईब्रेरी में सजी अलमारियों के काँच से झांकती किताबें जिन पर सेवासदन, प्रेमाश्रम , रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, गबन ,कर्मभूमि, गोदान आदि लिखा हुआ रहता था हमारे लिए तब इन शब्दों के मायने समझ पाना मुश्किल हुआ करता था .हम लाईब्रेरी से सप्ताह भर के लिए ईश्यू कराते और अगले हफ्ते के इंतजार में रहते कि कौन सी किताब निकलवाऐंगें. तब एक हफ्ते में केवल ही किताब मिला करती थी बच्चों को. बड़ी नेमत लगा करती थी तब यूं एक अच्छी किताब पढ़ना , क्योंकि आजकल की तरह ये मोबाईल के एक क्लिक पर मिली पीडीएफ जितनी सहज उपलब्ध नहीं हुआ करती थी. तब अपने परिवार से इतर समाज को जानने की हमारी उत्सुकता प्रेमचंद की किताबों ने ही पूरी की थी.

उपन्यासों और कहानियों के उन शब्दों के मायने बेशक काफी साल बाद समझ में आए हों लेकिन व्यक्तिगत तौर पर यह मानना है कि मेरी पीढी के लोगों के हृदय में यदि कहीं समाज के दबे-कुचले, शोषित , कुंठित वर्ग के लिए संवेदनाएं बची हुई हैं तो यह उनकी लिखी किताबें पढ़ने की ही देन है! उनकी कलम द्वारा रचे पात्र चाहे निर्मला हो, होरी हो , बूढी काकी हो या फिर ईदगाह का हामिद हो , सभी ने हमारे भीतर तक उतर कर हममें मानवीय संवेदनाओं का ऐसा संचार किया जो आज तक कायम है .
,
जाने अंजाने ही प्रेमचंद की कहानियों के किरदारों ने हम सभी को एक बेहतर इंसान बनने के लिए भी प्रेरित किया है.

और हां कमाल की बात यह भी है कि उस समय की लिखी गई कहानियों के सभी किरदार आज भी समाज में जहां के तहां खड़े हैं , उनकी आर्थिक, सामाजिक स्थिती में लेशमात्र भी कोई परिवर्तन नहीं आया है, वो अलग बात है कि उनको मोहरा बनाकर की गई राजनीति से राजनितिक दलों की स्वयं की आर्थिक, सामाजिक स्थिति पहले से काफी बेहतर हो गई है.

परिवर्तन यदि आया है तो बस इतना , कि आज हामिद की कहानी सुनने सुनाने से लोग बचते नजर आते हैं क्योंकि उन्हें इसमें मानवीय संवेदनाओं से अधिक धर्म मजहब दिखाई देता है. आज गोदान के होरी की स्थिति पर सवाल उठाने वालों को पहले उनके स्वयं के गिरेबान में झांकने की हिदायत दी जाती.

मुंशी प्रेमचंद , काश तुम देख पाते कि तुम्हारे सभी पात्र आज भी उसी रंगमंच पर खड़े तुम्हें याद कर रहे हैं जहां उनकी प्रासंगिकता आज भी वैसी ही है, जैसी तुम्हारी लेखनी से निकलके वक्त थी .

बाकि प्रेमचंद को जितना समझा है उसका सार कुल जमा इतना ही है कि यदि
किसी को चर्चा और शोध करना ही है तो महंगे विज्ञापनों के स्टार माडल्स की कोलगेट स्माईल पर नहीं बल्कि ताउम्र तंगहाल गृहस्थी की गाड़ी को खींचने की कवायद करते रहने पर भी मुस्कुराते प्रेमचंद की मुस्कुराहट पर करना चाहिए !

चर्चा और शोध करना ही है तो नाईकी और एडिडास के महंगे जूतों पर नहीं प्रेमचंद के पैरों में शान से सजे उन जूतों पर होना चाहिए जिनसे उनकी उंगलिया बाहर झांककर अपने पहनने वाले की नहीं बल्कि देश की आर्थिक और सामाजिक नीतियों को बनाने वालों को उनकी विफलताएं गिना कर आत्मावलोकन करने की चुनौती दे रही हैं!

चर्चा और शोध करना ही है तो सैलिब्रिटियों , नेताओं, अभिनेताओं , उद्योगपतियों एवं राजपरिवारों के प्रसिद्ध दंपतियों पर नहीं अपितु अभावों में आडंबरहित जीवन जीते प्रेमचंद और उनकी अर्द्धांगिनी शिवरानी पर करनी चाहिए कि जिनकी बाडी लैंग्वैज इस चित्र में कह रही है कि दोनों के बीच एक अद्भुत, अद्वितीय कमाल की कैमिस्ट्री है !

शोध करना ही है तो लाखों का पैकेज पाकर भी गृहस्थी में अपने स्पेस के लिए लड़ती नई पीढी पर नहीं बल्कि इस चित्र में प्रेमचंद और शिवरानी की कुर्सियां नज़दीक होने पर भी दोनों द्वारा एक दूसरे के बीच संकोचवश छोड़े गए इस 'स्पेस' पर करना चाहिए जो रिश्तों में स्पेस के महत्व को कितनी सादगी से बयां कर रहा है।

चर्चा और शोध करना ही है तो ब्रांडेड कपड़ो , हाई-फाई कंटैंट राईटर्स , करोड़ों की रायल्टी पाते आथर्स पर नहीं बल्कि समाज के सबसे कमज़ोर तबके की समस्याएं अपनी कलम के जरिए उठाने वाले प्रेमचंद पर करना चाहिए जिन्होंने हर हाल में जो देखा उसपर बिना किसी झूठ या लागलपेट का मुलम्मा चढ़ाए, निडर होकर निरंतर लेखन किया ,फिर चाहे आमदनी हो या न हो और चाहे नौकरी ही क्यों न चली जाए!

चर्चा और शोध करना ही हो तो कई-कई फिल्टर्स से लैस सेल्फियों के मायाजाल का नहीं अपितु इस महान लेखक के उस हौसले , आत्मविश्वास और स्वाभिमान पर करना चाहिए जो फटे जूतों, सिलवटों भरे सादा लिबास, बिना गहनों भी गर्व से साथ बैठी अर्द्धांगिनी के साथ फोटोग्राफर के स्माईल प्लीज कहने पर कैमरे की आँखों में आंखें डाले वास्तव में ही एक "सैल्फी" कही जाने वाली 'सैल्फी" खिंचवा लेता है जो केवल इमानदारी के फिल्टर से जगमगा रही है !

स्त्रीrang सुजाता #प्रेमचंद #प्रेमचंद
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जीवन की दौड़-भाग से यदि फुर्सत मिले तो याद‌ कर लेना उस लड़की को जिसने तुम्हारी हर  फोन काल पर घंटों हंसकर बतियाते कभी जत...
31/07/2025

जीवन की दौड़-भाग से यदि फुर्सत मिले
तो याद‌ कर लेना उस लड़की को
जिसने तुम्हारी हर फोन काल पर
घंटों हंसकर बतियाते कभी जताया ही नहीं
कि उसके पास किन परिस्थितियों के चलते
ब्रीथींग स्पेस तक नहीं है!

वो जो हर बार
अपनी थकान को
तुम्हारी बातें सुनकर
झट से तरोताजा होकर
चेहरे पर मीठी मुस्कान
सजा लेती और जो तुम्हारे
हर "कैसी हो ? " के प्रश्न पर
"ठीक हूं " का उत्तर देकर
कुछ भी ठीक न होने के दुःख को
चुटकी में बिसरा देती थी।

वो जो अपनी हर अधूरी नींद,
हर अधूरा ख्वाब
तुमसे साझा किए बिना
बस तुम्हें सुनती रही,
क्योंकि उसे सदा से ही
एक तुम्हारी आवाज़ इस दुनिया में
सबसे भरोसेमंद लगती थी।

अगर कभी
जीवन की उलझनों से परे
दिल को कुछ याद आए,
तो उस हँसती हुई आवाज़ के पीछे
छिपी हुई चुप्पी को भी याद करना
क्योंकि वो लड़की आज भी वहीं है,
मुस्कुराते हुए
खुद को हर दिन
ज़रा सा और भूलते हुए...
तुम्हें जरा सा और याद करते हुए...!

स्त्रीrang -सुजाता
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'जीवन ठहराव और गति के बीच का संतुलन है. ' ओशोकभी सर्कस में उस नट को देखा है जो इतनी ऊंचाई पर बंधी रस्सी के एक सिरे से दू...
30/07/2025

'जीवन ठहराव और गति के बीच का संतुलन है. ' ओशो

कभी सर्कस में उस नट को देखा है जो इतनी ऊंचाई पर बंधी रस्सी के एक सिरे से दूसरे सिरे पर कितने उत्साह, लगन और एकाग्रता से चलता चला जाता है और हम दर्शक उसके इस साहसिक करतब पर रोमांचित होकर तालियां बजाने लगते हैं. कभी सोचा है कि वो ये सब कैसे कर पाता है?

असल में इसके पीछे छिपा है एक खास मंत्र जिसे उस नट ने साध लिया है... और वो मंत्र है 'संतुलन'.

जी हां.. ये सधा हुआ संतुलन ही उसकी ताकत है जिसके बल पर वो ये कठिन सफर तय कर पाता है.

और आपने सुना भी होगा कि... ये दुनिया भी एक सर्कस है.

इस सर्कस में हमें भी जन्म से मृत्यु तक इस जीवन रूपी रस्सी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंचना है.

और खास बात यहां ये है कि हमारी इस जीवन यात्रा में भी वही मंत्र काम आता है....संतुलन

अगर हमें अपनी जीवन यात्रा को आनंदमय बनाने का तरीका समझना है तो बस हर अवस्था में हमें अपने आप को बैलेंस्ड यानी संतुलित रखने का गुर सीखना होगा . यानि कि हर चीज़ जितनी जरूरी है बस उतनी ही. नींद भी उतनी लें जितनी जरूरी है बस उतनी; भोजन भी उतना जितना जरूरी है; मेहनत भी उतनी कि बस जितनी जरूरी है; आराम भी उतना जितना जरूरी है.प्रेम और घृणा भी जितनी जरूरी बस उतनी ही .

इसी प्रकार हर रिश्ते में भी बदलते वक्त के साथ-साथ संतुलन साधना ज़रूरी हो जाता है.हम में से हर किसी को अपने-अपने संतुलन के उस टर्निंग प्वाइंट वाले बिंदु का पता लगाना ज़रूरी है.हर किसी का यह बिंदु अलग अलग होता है क्योंकि हर व्यक्ति एक दूसरे से एकदम भिन्न होता है.

यही कारण है कि समय के साथ-साथ हमें किसी व्यक्ति या वस्तु से जुडाव को भी इसी संतुलन के जरिए से देखने का प्रयास करना होगा कि कब कहां ठहरना है और कब आगे बढ़ना है वरना रिश्तों की चाल असंतुलित होने पर हम लड़खड़ाकर गिर पड़ेंगे और साथ ही मानसिक तबाही के कगार पर भी पहुंच सकते हैं.

इसी को एक अन्य उदाहरण के जरिए भी समझ सकते हैं जैसे कि हम अक्सर सुनते हैं कि कोई बूढा़ आदमी कहता है कि मुझे नींद नहीं आती ,बस मुश्किल से तीन-चार घंटे ही सो पाता हूं. पर सच्चाई ये है कि किसी बूढ़े व्यक्ति को तीन-चार घंटे सोना ही पर्याप्त है.

बच्चा जब पैदा होता है तो वो बीस घंटे सोता है.मरते वक्त भी क्या तुम्हें बीस घंटे सोने का इरादा है? जन्म के समय जरूरत है बीस घंटे की. क्योंकि बच्चे के शरीर में इतना काम चल रहा है कि अगर वह जागेगा तो काम में बाधा पड़ेगी. बच्चे के शरीर में हर घडी कुछ नया निर्माण हो रहा है, उसे सोया रहना उचित है क्योंकि वह अभी बढ़ रहा है .मां के गर्भ में तो वह चौबीसों घंटे सोता है और वहां अगर वह जरा सा भी जाग जाए तो मां का जीवन ही खतरे में आ जाएगा.

जब भी हमें थकान महसूस होती है, मतलब कि हमारा शरीर थका होता है और इसे किसी नई उर्जा के निर्माण की जरूरत होती है तब नींद फायदेमंद होती है. इसलिए तो डाक्टर भी अक्सर कहते हैंं कि अगर बीमारी हो और नींद न आए तो बीमारी से भी खतरनाक नींद का न आना है.पहले नींद आनी ज़रूरी है, बीमारी की फिक्र तो बाद में कर लेंगे क्योंकि आधी बीमारी तो सही नींद लेने से ही ठीक हो जाएगी.क्या आप जानते हैं कि जब हम जागे रहते हैं तो हम नई उर्जा के निर्माण में बाधा डालते हैं और जागते हुए हमारी ऊर्जा बाहर की तरफ बहती रहती है.और जब हम सो जाते हैं तो सारी ऊर्जा भीतर वर्तुलाकार घूमने लगती हैऔर नई उर्जा का निर्माण होता है. एक उम्र के बाद शरीर में निर्माण तो बंद हो जाता है और इस उम्र में कोई चीज़ दोबारा नहीं बनती इसी वजह से तो उसकी नींद कम हो गई है.यह एकदम स्वाभाविक है। अब उसको नींद की इच्छा नहीं करनी चाहिए, कि वह सोचे कि हम जवान जब थे तो आठ घंटे सोते थे.तो तब तुम जवान थे, तुम नहीं सोते थे आठ घंटे, जवानी आठ घंटे सोती थी। तुम बच्चे थे, बीस घंटे सोते थे. तुम नहीं सोते थे, बचपना बीस घंटे सोता था.

और फिर हर व्यक्ति के जीवन में रोज बदलाव आता है. तो व्यक्ति को धैर्यपूर्वक इस संतुलन को संभालना चाहिए. जड़ नियम जो बना लेता है वह हमेशा असंतुलित हो जाएगा. क्योंकि तुम रोज बदल रहे हो.बचपन में एक नियम बना लिया; जवान हो गए, अब क्या करोगे? जवानी में एक नियम बना लिया; अब बूढ़े हो गए, अब क्या करोगे? नहीं, आदमी को सजग रह कर रोज-रोज संतुलन खोजना पड़ता है.

संतुलन की यह अवस्था हमें अपने खान-पान, सुख-दुख, आचार-विचार में भी संभालनी होगी. किसी एक भाव की अधिकता या कमी हमें निराशा के दरवाजे पर पहुंचा देगा.

बस बिल्कुल उसी तरह जैसे कि उसी नट को देखा था रस्सी पर चलते. तो अब उसके साथ ऐसा तो होता नही कि एक बार जो संतुलन संभाल लिया और बस फिर चल पड़े; बस एक दफा पहले कदम पर संभालने के बाद फिर बेफिक्री से चलते रहे. नही! यहां हर कदम पर संभालना होता है. क्योंकि हर कदम नया कदम है; हर यात्रा नयी यात्रा है. हर पल नया है, तुम्हारे पुराने पल में जो तुमने तय किया था वह नये पल में काम नहीं आएगा। तो नट एक लकड़ी हाथ में लिए रहता है.अगर बाएं जरा ही ज्यादा झुकता है तो तत्क्षण दाएं लकड़ी को झुका देता है ताकि संतुलन हो जाए. दाएं जरा ही ज्यादा झुकने लगता है तो तत्क्षण बाएं झुक जाता है ताकि संतुलन हो जाए.बाएं और दाएं के बीच में प्रतिपल गत्यात्मक रूप से संतुलन को साधता है.

हर चीज की अतियों के बीच तुम्हें अपने भीतर संतुलन को साधना होगा.और जीवन एक नट की ही यात्रा है.वहां दोनों तरफ खड्डे और खाई हैं.इधर गिरो तो कुआं उधर गिरो तो खाई. और इन दोनों के ठीक बीच में तलवार की धार की तरह जो एकदम बारीक सा रास्ता है न, बस उसी पर संतुलन बना कर इस जीवन के दूसरे छोर के पार पहुंचना होगा.

स्त्रीrang -सुजाता
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चित्र साभार- गूगल
मेरी प्रेरणा - ओशो

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