स्त्रीrang

स्त्रीrang शब्द अनंत,
यात्रा जीवनपर्यंत
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मैच्योर होने का अर्थ यदि उसे याद करतेउसका नाम पुकारते दिल कोकाबू में रखना है तो ऐसेदिल की धड़कन रुक जाए तो बेहतर।और कितन...
15/07/2025

मैच्योर होने का अर्थ
यदि उसे याद करते
उसका नाम पुकारते दिल को
काबू में रखना है तो ऐसे
दिल की धड़कन रुक जाए
तो बेहतर।

और कितनी मैच्योर हो जाऊं
कि उसकी याद आए तो आंखें नम न हों,
कि उसकी आवाज़ कानों में घुलें
और दिल की धड़कनों में शोर न हो।

और कितनी मैच्योर हो जाऊं
कि जब वो कहे "अभी व्यस्त हूं,
बच्चों की तरह जिद न किया करो",
तो मैं मुस्कुरा दूं
जैसे कोई समझदार सी लड़की
सब कुछ समझ गई हो...

पर क्या प्यार भी तर्क समझता है?
क्या दिल भी मजबूरियों की भाषा जानता है?
क्या कोई सिखा सकता है धड़कनों को
कि कब रुकना है, कब लौटना है?

मैं तो बस इतना जानती हूं
जब वो बात करता है,
तो सपनों का मेला लग जाता है,
जब वो चुप होता है,
तो मेरे भीतर सन्नाटा पसर जाता है।

मैच्योर होकर
मैंने सीखा है अब
रातों को बहलाना,
आंसुओं को छुपाना,
और अब उसकी व्यस्त जिंदगी में जैसे तैसे
अपनी जरा सी जगह बचा कर रखने की कोशिश में
मैं उसे इमैच्योर लगूं तो लगती रहूं ।

वैसे मैच्योर हो भी जाऊं लेकिन
भीतर कहीं एक अल्हड़ मासूम लड़की
आज भी उसकी हर "न" में "हाँ" ढूंढ़ती है,
हर मजबूरी में एक बहाना,
और हर दूरी में उसका इंतज़ार
करती है।

स्त्रीrang सुजाता

वो सुनती आई गीत कि भीगी भीगी रातों में मीठी मीठी बातों में ऐसी बरसातों में कैसा लगता है ?उसके लिए तो हमेशा हीअचानक बैठेब...
14/07/2025

वो सुनती आई गीत
कि भीगी भीगी रातों में
मीठी मीठी बातों में
ऐसी बरसातों में
कैसा लगता है ?
उसके लिए तो हमेशा ही
अचानक बैठेबिठाए बेमन के
अनगिनत काम निकले
बाहर जाने वालों के लिए
छतरी रेनकोट ढूंढ कर रखनी
छत की नाली से पत्ते हटाने
टपकते कोनों के नीचे
बाल्टियां लगानी
नाजुक पौधे भीतर रखने
सीले कपड़े बारबार
प्रैस कर सुखाने
गरमागरम भजिया को
सब्जियाँ काट बेसन घोलना।
ऐसा लगता है जैसे
सावन के बहाने पूरा घर
उसपर फरमाइशें बरसा रहा है....
और तुम पूछते हो
ऐसी बरसातों में
कैसा लगता है?

जब फरमाइशें बरसती हैं
तब वह चहकती है
और रसोई महकती है....

स्त्रीrang सुजाता
स्त्रीrang

काश!मन में डिलीट बटन होता,तो मिटा देती हर वो सुबह,जो तुम्हारे बिना उदास उगी थी,हर वो शाम, जो तुम्हारी यादों में भीगी थी।...
13/07/2025

काश!
मन में डिलीट बटन होता,
तो मिटा देती हर वो सुबह,
जो तुम्हारे बिना उदास उगी थी,
हर वो शाम,
जो तुम्हारी यादों में भीगी थी।

काश!
एक एडिट का आप्शन होता,
तो संवार देती अपने सारे शब्द,
जो कभी जाने-अनजाने में तुम्हें चुभ गए,
बदल देती वो खामोशियाँ,
जो बिना कुछ कहे तुम्हें नाराज़ कर गई।

काश!
कॉपी कर सकती तुम्हारी
वो मीठी प्यारभरी मुस्कान,
और हर उस पल पर चिपका देती
जब मुझसे मेरी ज़िंदगी
रूठी हुई सी लगी थी।

काश!
पेस्ट कर देती तुम्हारा नाम
अपने हर ख्वाब में,
ताकि हर सपना तुम्हारी दिनभर की
बातों, किस्सों और कहानियों से ही
हरा भरा रहता।

काश!
अनडू कर पाती वो फासले,
जो समय की जिद पर हमने चुन लिए,
और फिर से जी लेती वो पल
जब हम साथ चले थे बिना शर्तों के।

काश!
मन में एक सेव बटन होता,
जिसमें सुरक्षित रख लेती
तुम्हारे हर स्पर्श की गर्माहट,
हर 'आई लव यू' की मिठास,
हर मौन की गहराई
हर 'मिस यू' की परछाईं

और अंत में,
काश ,
कि एक
शटडाउन बटन भी होता
हमारी तमाम उलझनों का,
जिसे टच करते ही
अचानक सब ठहर जाता
और बाकि बचते केवल
तुम, मैं, और बस… हम।

काश 🌹
कि एक रिस्टोर बटन होता...

स्त्रीrang - सुजाता
चित्र इंटरनेट

मुझे आज की विदा का, मरकर भी रहता इंतज़ार...मेरे साजन हैं उस‌ पार ।कई बार जब कहीं कोई रेलगाड़ी,स्टीमर या हवाईजहाज़ छूट रह...
11/07/2025

मुझे आज की विदा का, मरकर भी रहता इंतज़ार...
मेरे साजन हैं उस‌ पार ।

कई बार जब कहीं कोई रेलगाड़ी,स्टीमर या हवाईजहाज़ छूट रहा होता है तो अक्सर उनमें सवार कई यात्रियों के बीच विदा के आदान प्रदान के साथ-साथ कुछ अटूट भावनात्मक रिश्ते भी आखिरी विदा ले रहे होते हैं ।
किसी के भी जीवन में वह एक बेहद दुखद क्षण होता है!

लेकिन कहते हैं न कि परिस्थितियों के चलते इंसान कई बार असहाय हो जाता है और ऐसी विदाएं लेने के सिवा कोई अन्य उपाय नज़र नहीं आता।

ऐसी ही किसी परिस्थिति में जब अपने प्रिय से बिछड़ना ही एकमात्र नियति बन जाए और विदा की बेला हर बीतते क्षण के साथ नज़दीक आती दिख रही हो तो दिल अथाह पीड़ा से कराह उठता है ।

और वह विदा भी कोई ऐसी वैसी न हो , बल्कि

विदा ऐसी हो कि जब दिल को पक्का विश्वास हो कि अब इस जीवन में तो क्या अपितु सदियों तक मिलना न हो सकेगा..

विदा ऐसी कि जब दो दिल टूट कर पहले भी कई बार बिखर चुके हों…

विदा ऐसी कि जिसे रोकना ईश्वर तक के बस में भी न हो…

विदा ऐसी कि जिसे देख कर धरती और अंबर के हृदय भी वेदना से फट पड़ें….. !

लेकिन आज मनिहारी घाट पर ,कल्याणी (नूतन) और विकास घोष (अशोक कुमार) के बीच हो रही यह विदा कुछ ऐसी थी कि जिसे रोकना केवल और केवल कल्याणी के बस में ही था ,जो खुद तय नहीं कर पा कही थी कि घोष बाबू से आखिरी बार मिलकर इस विदा को भोगना ही नियती बनने दे या फिर इस विदा को होने से रोक दे !

इन दो प्रेमियों की विदा की पीड़ा को व्यक्त करता 1963 में आई बिमल राय कृत हिंदी सिनेमा के इतिहास की एक खूबसूरत फिल्म बंदिनी का सबसे मार्मिक गीत, ‘मेरे साजन हैं उस पार’ है ,जिसके गायक थे सचिन देव बर्मन!
सचिन देव बर्मन एक अच्छे संगीतकार के साथ-साथ एक बेहद संवेदनशील गायक भी थे! उनकी आवाज़ में एक गहराई और उनके संगीत में शास्त्रीय लोकधुन और रबिन्द्र संगीत का काफी प्रभाव था।
इस गीत के गीतकार शैलेंद्र की कलम से निकले ये शब्द बिदा, गुन-अवगुन, बंदिनी,संगिनी,आँचल, पुकार और माझी हमारे भीतर तक उतरकर हृदय बेंध जाते हैं !
और सचिन दा का मार्मिक स्वर तो हमारे शरीर से मानो आत्मा ही निकालकर अपने साथ ले जाता है !

‘ओ रे माझी, मेरे साजन हैं उस पार ,
मैं मन मार हूं इस पार , ओ मेरे माझी
अबकी बार , ले चल पार !’

सचिन दा द्वारा गाया यह गीत एक भटियाली मांझी गीत है।
कहा जाता है कि इसे नाविक अक्सर भाटे(ज्वार भाटा) के तेज़ बहाव के समय गाया करते हैं, क्योकि भाटे में चप्पू चलाने की आवश्यक्ता ही नहीं पड़ती है इसलिए मांझी लोग उस समय भटियाली गीत गुनगुनाने लगते हैं और इसी भाटा संगीत को ‘भटियाली’ लोक संगीत कहते हैं।

बंदिनी फिल्म का यह क्लाइमेक्स गीत ही इस फिल्म की जान है और फिल्म के अंतिम दृश्य में यह गीत पूरी फिल्म का उपसंहार है, जहां अपने सुनहरे भविष्य की ओर कदम बढ़ाती कल्याणी अपने पीड़ादायी अतीत को अचानक अपने सामने पाकर खुद को जीवन की मंझधार में फंसा पाती है और मांझी, अर्थात् अपने दिल से ही अनुरोध करती है कि सही फैसला लेने में उसकी मदद कर उसे इस मंझधार से निकाल कर पार ले जाए !
यहां तब वह अपने जीवन के सुनहरे सवेरे से विदा लेकर अपने अतीत के अंधियारे को ही अपने प्रेम से रौशन करने का निर्णय लेती है बिना इस बात की परवाह किए कि इस रौशनी से अब उसका पूरा जीवन जलना तय है।

‘मत खेल जल जाएगी कहती है आग मेरे मन की
मैं बंदिनी पिया की मैं संगिनी हूं साजन की !
कि मेरा खींचती है आँचल , मनमीत तेरी हर पुकार ।
मेरे साजन हैं उस पार।'

ब्लैक एंड व्हाइट , बिना किसी आडंबर और बेहद सादा तरीके से किरदारों के भावपूर्ण अभिनय से रचा गया यह गीत आज की वी.एफ.एक्स. और एस.एफ.एक्स. तकनीक से बने गीतों की तुलना में हर लिहाज से भारी पड़ता है।

सचिन दा के वेदनामयी स्वर और शब्दों को यदि ‘नूतन’ जी ने अपनी हृदयस्पर्शी और भावपूर्ण अदाकारी से जीवंत न किया होता तो शायद इस गीत को वो मुकाम कभी न मिल पाता जिस मुकाम पर यह गीत आज है ।
वैसे तो बंदिनी फिल्म का यह किरदार ‘कल्याणी’ एक कलम से रच गया पात्र ही था लेकिन उस किरदार की आत्मा की तड़प और विवशता को जिस प्रकार से नूतन जी ने अपने भीतर उतारा तो देखने वालों को उसमें कोई आभासी गढ़ा हुआ किरदार नहीं बल्कि उस नारी का चेहरा नजर आया जो यह जानती थी कि यदि आज उसने अपने बढ़ते कदमों को रोक न लिया और अपने दिल की आवाज को अनसुना कर दिया तो वो फिर कभी अपने प्रियतम से नहीं मिल पायेगी ! जो भी है वो इसी पल में है और अभी ही उसको निर्णय लेकर अपनी जीवन नैया की पतवार को अपने मांझी के हाथों में सौंप देना चाहिए और जिस बेचैनी से दौड़कर वह अपने प्रियतम का दामन थामती है वह सब कुछ बेहद मार्मिक है।

गीत के अंत में कल्याणी का दौड़ते हुए पट बंद होने के ठीक पूर्व स्टीमर पर जाकर घोष बाबू का चरणस्पर्श करना और फिर उनका उसे गले लगाना, यह देखकर सभी की आंखें नम हो जाती है। सिर्फ ये गीत देखकर ही हर व्यक्ति नूतन जी के अभिनय की गहराई और उसकी ऊंचाई का अंदाजा लगा सकता है।

अंत में जब कल्याणी और घोष बाबू बिन कुछ कहे जिस प्रकार एक दूसरे को देखते हैं , ऐसा लगता है जैसे संवाद उनके चेहरों पर ही लिखे हों और हम उसे पढ़ रहे हों।
और इस प्रकार एक दुखद विदा एक सुखद मिलन में बदल जाती है ।

आगे फिर कुछ भी कहने या सुनने की भी कोई आवश्यकता नहीं रह जाती।

हां , बस कल्याणी को यूं घोष बाबू के साथ जाते देखकर मेरा मन बस यही कहता है कि , “कल्याणी , तुमने पूरा जीवन बहुत दुख पाया और अब , अपने दुखों की गठरी इसी तट पर छोड़ जाना!”

*वैसे इस गीत को बचपन से आज तक न जाने कितनी ही बार सुना लेकिन जब भी “अवगुन मेरे भुला देना” वाली पंक्तियां आती है तो मेरी आँखों से हर बार आँसू छलक उठते हैं मानो मैं खुद ही कोई बहुत बड़ी गुनाहगार हूं और ईश्वर से क्षमा-याचना करते हुए कह रही हूँ कि “गुन तो ना था कोई भी, अवगुन मेरे भुला देना !”

स्त्रीrang सुजाता

गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरागुरु साक्षात परम ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।आप सभी को गुरु पूर्णिमा की श...
10/07/2025

गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा
गुरु साक्षात परम ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।

आप सभी को गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं !
लाखों लोगों के ह्रदय में अपना स्थान बनाने वाले श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज जिन्हें लोकप्रिय रूप से प्रेमानंद महाराज के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय हिंदू आध्यात्मिक गुरु, संत, दार्शनिक और राधा कृष्ण के उपासक हैं।

इनका आश्रम श्री हित राधा केली कुंज वृंदावन में स्थित हैं एवं वृन्दावन के अतिरिक्त इनकी डिजिटल उपस्थिति इनके यूट्यूब , फेसबुक एवं इंस्टाग्राम के सोशल मीडिया अकाऊंट्स - भजन मार्ग, गुरुकृपा केवलम , श्री हित राधा कृपा, साधन पाठ, वृन्दावन रास महिमा, भजन सार आदि पर लगातार दर्ज हो रही है जिसके कारण राधा नाम का प्रचार और उनकी महिमा जन जन तक पहुंच कर राधावल्लभ संप्रदाय के अनुयाईयों की संख्या में निरंतर वृद्धि कर रही है।

वर्तमान युग में श्री‌ हित प्रेमानंदजी महाराज एकमात्र एक ऐसे लोकप्रिय संत हैं जिनके प्रवचन सुनकर उनके अनुयाई निरंतर बढ़ते ही चले जा रहे हैं।

इस युग में जब प्रैक्टिकल होते रिश्ते-नातों से मोहभंग होने का सिलसिला चल निकला है तो जीवन के दोराहे पर असमंजस में पड़कर हैरान परेशान खड़े लोगों के लिए उनका होना किसी दैवीय वरदान से कम नहीं है जो अपने प्रवचनों द्वारा ह्रदय को शीतलता प्रदान करते हुए सभी को सही राह चुनने की प्रेरणा दे रहे हैं।

1972 में सरसौल वासी श्री शंभू पांडे एवं श्रीमती रमा देवी के यहां जन्मे महाराज जी का बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था। मात्र तेरह बरस की अल्पायु में इनके मन में जब भगवत प्राप्ति की तीव्र इच्छा जगी तब वे गृह त्याग कर साधना पथ पर चल पड़े और सन्यास लेकर काशी के गंगा घाट पर शिव भक्ति में लीन रहकर अनेक शास्त्रों एवं धर्म ग्रंथों का निरंतर अध्ययन करते ब्रह्मबोध प्राप्ति के मार्ग पर चलते हुए विश्वनाथ भगवान से प्रेरणा पाकर वृन्दावन आए।

एक सुबह, वृन्दावन की परिक्रमा करते समय, महाराज जी एक सखी द्वारा गाए जा रहे इस श्लोक पर पूरी तरह से मोहित हो गए...

" श्रीप्रिया-वदन छबि-चन्द्र मनौं, प्रीतम-नयन्न-चकोर | प्रेम-सुधा-रस-माधुरी, पान करत निसि - भोर "

महाराज जी ने सखी से कहा कि वह जो पद गा रही है, उसका अर्थ समझाएं। सखी ने मुस्कुराते हुए कहा कि यदि वह इस पद का अर्थ समझना चाहते हैं तो पहले उन्हें राधावल्लभी बनना होगा।

महाराज जी तुरंत उत्साहपूर्वक राधावल्लभ मंदिर के तिलकायत अधिकारी पूज्य श्री हित मोहितमराल गोस्वामी जी से दीक्षा के लिए संपर्क करने पहुंच गए और उन्होंने महाराज जी को शरणागत मंत्र के साथ राधावल्लभ संप्रदाय में दीक्षित किया गया।

इसके कुछ दिनों पश्चात पूज्य श्री गोस्वामी जी के आग्रह पर महाराज जी अपने वर्तमान सद्गुरु देव से मिले, जो सहचरी भाव के सबसे प्रमुख और स्थापित संतों में से एक हैं - पूज्य श्री हित गौरांगी शरण जी महाराज, जिन्होंने उन्हें सहचरी भाव और नित्य विहार रस (निज मंत्र) में प्रेमानंद जी महाराज को दीक्षित किया।

विश्व में पहले भी कई संत महात्मा हुए हैं लेकिन जितनी सत्यता और प्रामाणिकता इनकी वाणी और प्रवचनों में महसूस होती है वह शायद ही पहले कभी किसी अन्य की वाणी में महसूस की गई हो।

उनकी भाषा शैली एकदम संतुलित एवं खरी है।
वे एक ओर जहां फूल पत्तियों से राधा रानी का श्रृंगार कर उनके भजन कीर्तन का रस लेते हैं वहीं दूर दूर से आए अपने शास्त्रों में वर्णित बातो पर अपनी असहमति जताते अनेक विद्वानों, साधू संतो, कथावाचकों आदि का संदेह निवारण करने के लिए अलग अलग वेद पुराणों से मंत्र, दोहे, किस्से, अध्यायों के उदाहरण देकर जिस प्रकार शास्त्रार्थ करते हैं उससे एक प्रकार से अब उनके ही ईश्वर होने का भ्रम पैदा होने लगा है।

श्रीहित प्रेमानंद जी महाराज की ब्रह्मवैवर्त, भागवत और पद्म पुराणों में गजब की सिद्धि है।

ये जब हाथ जोड़कर सभी से निवेदन करते हैं कि नाम जप करो , तुम्हें कहीं भागने की जरुरत नहीं और कि बस चौबीस घंटे में से केवल बीस मिनट राधा नाम जप लो तुम्हारा कल्याण हो जाएगा त‌ो सुनकर सहज ही मन में राधा नाम को लेकर भक्ति जाग्रत होकर आंखों से अश्रुधारा सहज ही निकल पड़ती है।

इनका कहना है कि मैं जो भी कुछ कह रहा हूं वह अपने अनुभव से बता रहा हूं न कि कहीं की सुनी सुनाई बता रहा हूं।

उनके बताए रास्ते पर चलने वाले राधारानी की सर्वोच्च सत्ता का अनुभव कर पा रहे हैं।

प्रेमानंद जी राधा रानी को बेहद ही ममतामई एवं प्यारभरे संबोधनों जैसे कि किशोरीज्यू , लाड़लीज्यू , श्यामा प्यारी आदि कहकर पुकारते हैं।

पीताम्बरधारी प्रेमानंद जी महाराज भाल पर राधाचन्दन और ब्रजरज का लेप लगाए राधा भक्ति में लीन नित्य रात्रि ढाई बजे अपने आवास से परिक्रमा मार्ग होते हुए जब राधा केली कुंज के लिए निकलते हैं तो वृन्दावन की गलियों और कूचों में इनके दर्शन करने वालों की भीड़ सर्दी, गर्मी और बरसात की परवाह न करते जिस प्रकार उमड़ पड़ती है वह अद्भुत होता है।

बीते बरसों में महाराज जी के प्रवचन सुनकर कई युवा उनके शिष्य बन गए। उनके कुछ शिष्य जिन्हें हम वीडियो में देखते रहते हैं उनमें प्रमुख हैं पठानकोट पंजाब के निवासी नवनागरी बाबा जी पहले आर्मी में नौकरी किया करते थे लेकिन 2017 में महाराज जी के प्रवचनों से प्रेरित होकर नौकरी छोड़कर महाराज जी की शरण में आ गए।

एक और हैं महामधुरी बाबा, जो हर वीडियो में दिखाई देते हैं । वे मूल रूप से पीलीभीत के रहने वाले हैं जो पहले असिस्टेंट प्रोफेसर थे. महाराज जी से सबसे पहले इनकी मुलाकात उनके भाई ने करवाई थी, जब वह अपने भाई के घर वृंदावन आए. तब महाराज जी का ऐसा आशीर्वाद प्राप्त हुआ कि प्रोफेसर की नौकरी छोड़ उन्होंने साधु वेष धारण किया और अब वृंदावन में महाराज जी के साथ ही रहते हैं.

एक हैं श्यामा शरण बाबा, यह महाराज जी के शिष्य होने के साथ ही महाराज जी के भाई के बेटे यानी उनके भतीजे हैं, जिनका जन्म भी कानपुर के अखीर गांव के उसी घर में हुआ जहां प्रेमानंद महाराज का जन्म हुआ. बचपन से ही इन्हें महाराज जी के क़िस्से घर में सुनने को मिलते थे कि कैसे उन्होंने कम उम्र में घर छोड़ा और संन्यासी बन गए.
बस यही सब सुनकर वे भी महाराज जी के शिष्य बन गए।

बीते वर्षों में प्रेमानंद जी के दर्शन करने के लिए विभिन्न संत-वैष्णव जन, गृहस्थ, स्कूल व कॉलेज के बच्चे आ रहे हैं वहीं की नामचीन हस्तियां जैसे– विराट कोहली (इंडियन क्रिकेटर), अनुष्का, प्रियम गर्ग (आईपीएल प्लेयर), इंडियन वूमेन क्रिकेट टीम की खिलाड़ी , दीपक निवास हुडा (भारतीय कबड्डी प्लेयर),स्वीटी बोहरा (इंटरनेशनल बॉक्सर), विनीत राय (भारतीय फुटबॉलर), द ग्रेट खली, वीर महान (डब्ल्यूडब्ल्यूईरेसलर), मोहन भागवत (RSS प्रमुख), सौरभ गौड़ (अध्यक्ष, धर्म रक्षा संघ), एम. एस. बिट्टा (अध्यक्ष,अखिल भारतीय आतंकवाद विरोधी मोर्चा), बॉलीवुड सिंगर– बी प्राक, मास्टर सलीम, ऋचा शर्मा, अमी मिश्रा, सिमरन भारद्वाज, रेवन्नी (आफ्रिकन सुपरस्टार), श्रीकांत राजशेखर उपाध्याय (रामायण सीरियल में जामवंत का किरदार), आदित्य वैद्य (मराठी एक्टर), रवि किशन (एक्टर एवं सांसद गोरखपुर), अंकित अरोड़ा ( टीवी अभिनेता), कैप्टन योगिन्द्र सिंह यादव (परमवीरचक्र), प्रमख कथा व्यास - देवकीनंदन ठाकुर, देवी चित्रलेखा, इंद्रेश उपाध्याय, श्यामसुन्दर परासर, चिन्मयानन्द बापू, सच्चिदानन्द स्वामी महाराज (इस्कॉन), आचार्य प्रद्युम्न (बाबा रामदेव के गुरु), गो सेवक गोपालमणी जी, रामानंदी, गौड़ीय, वारकरी, स्वामी नारायण, सिखआदि विभिन्न सम्प्रदायों के संत आचार्य, न्यायाधीश (हाई कोर्ट), सुप्रीम कोर्ट के वकील,सेना के जवान एवं अधिकारीगण, विभिन्न पुलिस प्रशासनिक अधिकारी, जेल सुप्रीडेंट, स्कूल-कॉलेज के स्टूडेंट्स एवं अन्य अनेकों प्रसिद्ध व्यक्ति आ रहे हैं।

प्रेमानंद जी एक देशभक्त होने के साथ साथ देश की युवा पीढ़ी को लेकर विशेष चिंता करते दिखाई देते हैं। वे युवा पीढ़ी के बच्चों को ब्रह्मचर्य से रहकर और विवाह से पहले पवित्रता से रहने का महत्व समझाते हैं।

गृहस्थी में रहकर भगवत प्राप्ति का मार्ग सुझाते हुए वे माता पिता की सेवा करने कए लिए भी कहते हैं।

आज की युवा पीढ़ी उनकए बताए मार्ग पर अग्रसर हो रही है। महाराज जी युवाओं से अपने चरित्र को उज्जवल रखने पर जोर देते हैं। उनके अनुसार यदि हमारे देश के युवाओं का आचरण और चरित्र निर्मल‌ और स्वच्छ होगा, और यदि वे अपने धर्म का पालन करते हुए संयम से चलेंगे तो कल को हमारा भारत पूरे विश्व में प्रतिष्ठित होगा।

कलयुग में जब सच्चा आध्यात्मिक मार्गदर्शन करने वाले गुरु मिलने अत्यंत दुर्लभ हो गए हैं तब प्रेमानंद महाराज जी लगातार शास्त्र , वेद -पुराण में वर्णित गूढ़ बातों को एकदम सरल और सहज बनाकर अपने सत्संग और एकांतिक वार्तालाप के माध्यम से लोगों का पथ प्रदर्शित कर रहे हैं।

प्रेमानंद जी महाराज सभी देशवासियों से आग्रह करते हैं कि है कि वे जुआ, मांस-मदिरा, हिंसा, व्यभिचार आदि त्यागकर अपने कर्तव्य कर्म का दृढ़तापूर्वक पालन करतए हुए अपने जीवन को भगवद् समर्पित करें।

महाराज जी को देख सुन कर हृदय को ऐसा अपनापन अनुभव होता है जैसे बरसों बाद थके-मांदे वापिस घर लौटने पर मातापिता के दुलार पर अनुभव होता है।

गत वर्षों में न जाने कितने ही धार्मिक गुरुओं ने धर्म का व्यवसायीकरण कर उससे सनातन धर्म का जो भी, जितना भी जैसा भी नुकसान किया था वो सारा नुकसान परम पूजनीय प्रेमानंद जी महाराज ने अपनी एक ही कृपादृष्टि से पूरा कर दिया है।

महाराज जी का संपूर्ण व्यक्तित्व उनकी कई बरसों की कठिन साधना की कहानी सुना रहा है।
उन्हें सुनते , देखते मन नहीं भरता और लगता है जैसे हम मंदिर में बैठकर साक्षात ईश्वर से ही बात कर रहे हों।
बीते कई महीनों से महाराज जी की प्रसिद्धि जिस प्रकार बढ़ी है वह हैरान करने वाली है।
लगता है हम भारतवासियों ने कोई तो ऐसे पुण्यकर्म किए होंगें जो हमें महाराज जी को सुनने देखने का सौभाग्य मिल रहा है।

महाराज जी को लेकर जो भी नकारात्मकता फैलाने वाले तत्व हैं उनपर टिप्पणी करने का कोई औचित्य है ही नहीं।
आप महाराज जी को बस एकबार देख सुन लीजिए ईश्वर पर स्वत: ही विश्वास पुख्ता हो जाएगा क्योंकि इनकी बातों में -
कोई लाग नहीं
कोई लपेट नहीं।
बस , सादा जीवन उच्च विचार।

परम पूजनीय गुरुदेव के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम करते उनकी बलैयां लेकर नज़र उतारते रहिए कि वे असाध्य किडनी रोग से ग्रसित होते हुए भी किसी योद्धा की भांति रोज़ लड़कर , स्वस्थ रहें और अपनी कृपा हम सभी पर यूंही बनाए रखियेगा।

स्त्रीrang -सुजाता
Bhajan Marg Vrindavan Ras Mahima

वो शाम ....राधा के कमरे के बंद दरवाजे के बाहर अरूण (राजेश खन्ना) पुकारता  रह जाता है कि "राधा ,बस एक बार मिलकर कह दो कि ...
09/07/2025

वो शाम ....
राधा के कमरे के बंद दरवाजे के बाहर अरूण (राजेश खन्ना) पुकारता रह जाता है कि "राधा ,बस एक बार मिलकर कह दो कि जो कुछ तुमने किया , वो झूठ था, फरेब था . एक बार कह दो कि तुम मुझसे प्यार करती हो , तुम खामोश क्यों हो राधा ?"

और उधर मानसिक चिकित्सालय के वार्ड की खामोशी को चीरते हुए, रोती-बिलखती हुई राधा (वहीदा रहमान) डाक्टर साहब से हाथ जोड़कर गुहार लगाती रह जाती है कि "मैं सच कहती हूं मैंने ऐक्टिंग नहीं की थी , मैं कभी एक्टिंग कर ही नहीं सकती !'

नर्स ,राधा और मनोरोगी ,अरूण के बीच पसरे मौन के सन्नाटे में उलझी एक प्रेम कहानी जो उन दोनों के ही जीवन में दूसरी बार दोहराई जा रही थी, दोनों ही बार परवान न चढ़ सकी !
और एक दिन इसी पीड़ा को खामोशी के साथ अपने दिल में दफन कर राधा भी मानो जीते जी सदा के लिए एक जिंदा लाश बन गई !
लेकिन इधर अरूण का दिल तो शायद अब भी न जाने किस उम्मीद में बस यही गुनगुना रहा था -

'वो शाम कुछ अजीब थी
ये शाम भी अजीब है!
वो कल भी पास पास थी
वो आज भी करीब है !'

यूं तो हर दिन और रात के सभी पहर खूबसूरत होते हैं , लकिन अक्सर प्रेम कहानियों में शाम का पहर सबसे खूबसूरत माना जाता है और यही शाम प्रेमियोंं के उन खास लम्हों को अपने सुरमई जादू से यादगार बना जाती है!

लेकिन हर शाम हसीन और खुशगवार हो ऐसा संभव नहीं . कई शामें ऐसी भी होती हैं जिनकी पीड़ा पूरे जीवन दिल से नहीं जाती.

असित सेन द्वारा निर्देशित फिल्म, खामोशी (1969) का हेमंत कुमार द्वारा संगीतबद्ध, गुलजार द्वारा लिखित और किशोर कुमार द्वारा गाया गीत 'वो शाम कुछ अजीब थी ये शाम भी अजीब है’, हल्की कहरवा ताल के साथ यमन राग में खुशी की अनुभूति के साथ-साथ एक गहरी उदासी का भी अहसास कराता है जो सुनने वाले के दिल को चीर कर रख देता है !

कलकत्ता के हावड़ा ब्रिज पर एक ऐसी ही शाम के आगोश में डूबे , अजीब सी दुविधा के बीच फंसे अरूण और राधा के , टूटे उदास दिल कहीं न कहीं फिर से जुड़ने की आस बांधे, नाव में हुगली नदी की लहरों पर डूबते-तैरते अपने-अपने ख्यालों की धुन में मगन बस बहे चले जा रहे थे !
गुलज़ार द्वारा रचित इस गीत का मिज़ाज नाउम्मीदी में भी उम्मीद की रोशनी जगाता है। गाने की शुरुआत लहरों की तेज़ आवाज से होती है। गीत पाँचवें स्वर के नोट पर शुरू होता है। तेज स्वर, तेज लहरें और नायक के मन की उमंगें जो कभी अतीत और कभी वर्तमान के चक्कर लगाती हैं .

'झुकी हुई निगाह में कहीं मेरा ख़याल था
दबी-दबी हँसी में इक हसीन सा गुलाल था
मैं सोचता था मेरा नाम गुनगुना रही है वो
न जाने क्यों लगा मुझे, के मुस्कुरा रही है वो
वो शाम कुछ अजीब थी...'

किशोर कुमार के गले में सरस्वती का वास था, यह इस गीत को सुनकर महसूस होता है !
किशोर , 'वो शाम ... ' जिस प्रकार कहते हैं मानो कुछ याद करते हुए सच में अतीत में चले जाते हैं और अगले ही पल अचानक 'ये शाम ..' कहते हुए वापिस वर्तमान में आ, अपनी प्रेयसी को याद करते हैं कि उन्हे तब प्रेम को लेकर किस प्रकार के गुमां हुए थे , जो न मालूम सच थे भी या नहीं .

पहले गीतों में किशोर हुआ करते थे और अब केवल शोर हुआ करते है!

वहीदा जी की आँखों की उदासी और लबों की खामोशी अतीत और वर्तमान के बीच पसरी पीड़ा को बहुत ही खूबसूरती से बयां कर जाती हैं !

पानी की बूंदे जब वहीदा जी के चेहरे पर पड़ती हैं तो वे अनजाने में ही वर्तमान से निकलकर अतीत में पहुंच जाती हैं.

'मैं सोचता था मेरा नाम , गुनगुना रही है वो
न जाने क्यों लगा मुझे कि मुस्कुरा रही है वो '
सुनने के बाद यदि मौत भी आ जाए तो मानो कोई रंज नहीं!
अतीत और वर्तमान के बीच की दुविधा को चित्रित करता यह गीत अपनी किस्म का शायद एकमात्र मास्टरपीस है !

इस गीत के द्वारा अरूण की व्यथा तो सभी के सामने आ जाती है लेकिन राधा के दिल की पीड़ा महसूस करनी हो तो खामोशी फिल्म देखनी ज़रूरी है.
यह ब्लैक एंड व्हाईट गीत जीवन की गहराई के हर रंग को बेहद खूबसूरती से समेटे हुए है.

भावनाओं को कभी भी कोरियोग्राफ नहीं किया जा सकता, उन्हें सच नें जीकर ही स्क्रीन पर उतारा जा सकता है , यह इस गीत में वहीदा जी को देखकर समझ में आ जाता है !
यह गीत प्रेम को नई आशाओं और उम्मीदों की राह पर ले जाता है और साथ ही यह भी समझा जाता है कि हमारे भीतर छिपा अनचाहा डर किस कदर हमें बर्बाद कर सकता है , जो अक्सर प्रेम की राह में सामने आकर रास्ता रोक लेता है !

असल में इस गीत के दो अंतरे दो विभिन्न परिस्थियों से दोचार करवाते हैं .दोनों में समानता यह है कि पहले की शाम में जो अतीत था वह अतीत आज एक नई खूबसूरत शाम में फिर से दोहराया जा रहा है !

'मेरा ख़याल है अभी झुकी हुई निगाह में
खिली हुई हँसी भी है, दबी हुई सी चाह में
मैं जानता हूँ मेरा नाम गुनगुना रही है वो
यही ख़याल है मुझे, के साथ आ रही है वो
वो शाम कुछ अजीब थी...'

अचानक अरूण हवाओं में अपनी प्रेमिका की उसी खुशबू को दोबारा से महसूस करने लगता है .उसे लगता है कि वह हंसी और चाह उसके जीवन में लौट आई है . और उसे लगने लगता है जैसे वह फिर से उसका नाम पुकार रही है.
अतीत की सभी कड़वी यादें जैसे मुरझाने लगती हैं।

कहीं न कहीं अरूण को तब यह भी लगता है कि राधा की झुकी आँखें और मुस्कुराते हुए होंठ क्या सचमुच उसके लिए ही है या फिर किसी और की यादें उसके भीतर दबी हैं?
साथ ही अरूण का दिल यह भी महसूस कर पाता है कि राधा उसे गले लगा तो रही है लेकिन इसमें प्यार नहीं है।
वह इस भ्रम में भी है कि यदि यह प्यार सच है तो क्या यह अब हमेशा के लिए रहेगा ?

उधर राधा भी मन ही मन जानती है कि यह सब करते हुए वह खुद किस कदर टूट रही है लेकिन अपने कर्तव्य से बंधी वह कुछ कर नहीं पाती !

अपने पहले प्यार में आहत अरूण और राधा एक दूसरे के साथ तो आ जाते हैं। लेकिन कहीं न कहीं दोनों एक-दूसरे के साथ होते हुए भी अपने कड़वे अतीत की छाया से बाहर नहीं निकल पाते.

दो दिलों के दोबारा मिलन की आस तब टूट कर एकदम बिखर जाती है जब अपने अतीत में प्रेम द्वारा छले गए दोनों ही दिल अपनी चाहत का इकरार करने का हौसला नहीं बांध पाते और अपनी मुहब्बत का गला घोंट, खामोशियों में ऐसे डूबे जाते हैं कि फिर एकदूजे को कभी पुकार नहीं पाते !

फिर चाहे अरूण ने खामोश हो चुकी राधा को एक बार पुकार कर कहा हो कि "तुम , पुकार लो ! तुम्हारा इंतज़ार है !"

लेकिन राधा ने अरूण को एक बार भी नहीं पुकारा और सदा के लिए खामोशी को गले लगा लिया.

जब कविता, संगीत,गायन और अभिनय के संगम का अनूठा मेल एक अपने सामान्य स्तर से अधिक ऊंचा उठ जाता है तब शायद ऐसे ही किसी गीत के रूप में एक महान कृति का जन्म हो जाता है जो सभी को अाश्चर्यचकित कर डालती है !

अतीत और वर्तमान की पीड़ा को बयां करता, यह बेहद खूबसूरत गीत, उदासी भरी शामों वाले गीतों के संसार में -
'हीरा है सदा के लिए !'

फिल्म की रिलीज़ के बाद एक पत्रकार ने इस गीत को लेकर इसके संगीतकार हेमंत कुमार जी से पूछा कि "आपने ,किशोर कुमार जी से यह गीत क्यों गवाया , खुद क्यों नहीं गाया ?
तब उन्होंने जवाब दिया कि "पहले गीत सुनिए , फिर कहिएगा कि अच्छा हुआ जो मैंने नहीं गाया, किशोर ने गाया !"

तो बस अब पर जाइए और खामोशी का यह गीत खामोशी से सुनिए!

स्त्रीrang -सुजाता

आज का समय ऐसा हो चला है जहाँ संबंधों की डोर अब भावनाओं से नहीं, स्वार्थ से बंधी होती है। जब तक किसी को आपकी ज़रूरत होती ...
07/07/2025

आज का समय ऐसा हो चला है जहाँ संबंधों की डोर अब भावनाओं से नहीं, स्वार्थ से बंधी होती है। जब तक किसी को आपकी ज़रूरत होती है, जब तक आप उनके लिए उपयोगी हैं, तब तक वे आपके आसपास रहते हैं मुस्कराते हैं, अपनापन जताते हैं, आपके हर सुख दुःख में आपकी हर बात में हिस्सेदार बनते हैं। लेकिन जैसे ही आपसे उनके स्वार्थ की पूर्ति हो जाती है, वही लोग अचानक किसी अजनबी की तरह यूं टर्न लेकर आपके जीवन से निकल जाते हैं।
ऐसे लोगों से सामना होने पर सबसे अधिक आघात उस व्यक्ति को लगता है जो सच्चे मन से संबंध निभा रहा होता है। वह व्यक्ति, जिसने बिना किसी अपेक्षा के, अपने समय, सहयोग और स्नेह से किसी का साथ दिया हो, जब अचानक उस ‘अपने’ ठगा हुआ पाता है, तो उसकी आत्मा तक थर्रा जाती है। आँखें प्रश्न पूछती हैं – "क्या मेरा अपनापन इतना सस्ता था?" और दिल एक ही जवाब देता है – "नहीं, तुम सच्चे थे, पर दुनिया नहीं।"

स्वार्थ का यह चेहरा सबसे खतरनाक होता है। यह न केवल लोगों के चेहरे बदलता है, बल्कि पीछे छूटे व्यक्ति का विश्वास भी तोड़ता है ,रिश्तों से, दुनिया से और कभी-कभी खुद से भी।

लेकिन क्या इसका यह अर्थ है कि सच्चे लोगों को भी बदल जाना चाहिए? बिल्कुल नहीं। अगर दुनिया में धोखे हैं तो सच्चाई भी है। अगर स्वार्थी लोग हैं तो नि:स्वार्थ भी हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि सच्चाई कम बोलती है, मगर देर तक टिकती है।

जो लोग केवल अपने स्वार्थ के लिए रिश्ते निभाते हैं, वे कभी भी किसी दिल में जगह नहीं बना सकते। वहीं जो लोग सच्चाई से जीते हैं, वे चाहे अकेले रह जाएँ, पर जब भी किसी को उनकी याद आती है, एक मुस्कान ज़रूर चेहरे पर उभरती है, और यही सबसे बड़ी जीत है।
अंततः, हमें यह समझने की ज़रूरत है कि हर व्यक्ति वैसा नहीं होता जैसा वह दिखता है। और हर व्यक्ति जो आपसे बहुत अधिक अपनापन जताता है , मुस्कराहट के पीछे कोई न कोई मक़सद छिपा हो यह भी ज़रूरी नहीं। लेकिन जब भी हम किसी के लिए कुछ करें, तो यह सोचकर करें कि अगर बदले में कुछ न मिले, तब भी हमें पछतावा न हो।

क्योंकि सच्चे लोग भले ही अकेले रह जाएँ, पर उनके मन की शांति और आत्मा की सच्चाई कभी उन्हें अकेला महसूस नहीं होने देती।

कभी कभी कुछ लोग हमारे जीवन में जीवन के सबसे जटिल पाठ पढाने के लिए आते हैं जिनसे सबक लेकर हमें आगे का मार्ग तय करना होता है।

स्त्रीrang -सुजाता

पिता के गले हम कम ही लगे,शायद आसमान पिघलते देखने काहममें हौसला न था।वे रोते कभी नहीं थे,लेकिन उनकी चुप्पी मेंएक मौन समंद...
06/07/2025

पिता के गले हम कम ही लगे,
शायद आसमान पिघलते देखने का
हममें हौसला न था।
वे रोते कभी नहीं थे,
लेकिन उनकी चुप्पी में
एक मौन समंदर बहता था।

जब हम गिरे साइकिल से,
उन्होंने उठाया नहीं,
बस दूर से देखा
मानो कह रहे हों,
"चलो, खुद संभलना सीखो।"
और हम रोते-रोते
चलना सीख गए।

कभी स्कूल की फीस,
कभी नये जूतों की ज़िद,
हर बार उन्होंने
कुछ न कुछ छोड़ा खुद का
नया कुर्ता,
या पुराने चश्मे का फ्रेम।
पर कभी जताया नहीं,
कि प्यार करते हैं हमसे
बेहद दुलार करते हैं हमसे।

वो जो हमेशा दरवाज़े पर
खड़े मिलते थे
"अब इतनी रात को आ रहे हो?"
गुस्से की ओट में
एक ममतामई चिंता थी,
जो धीमी आंच की तरह
धीरे-धीरे उन्हें जलाती रही।

हम बड़े हो गए,
शब्दों में माँ को पुकारा,
ज़रूरतों में पिता को ढूँढा।
पिता के बाद
अब समझ आया कि
चुप रहने वाले पिता भी
कितना कुछ कहना चाहते थे
वे भी मां की तरह हमें दौड़कर
कलेजे से लगाना चाहते थे।

काश!
कभी गले लगने का साहस किया होता,
तो जान पाते,
कि चट्टानें भी
भीतर से नम होती हैं…
बेहद नम।

स्त्रीrang -सुजाता

अ से  ' वो'अ से अनार ही सीखा था,अ से अंगूर की मिठास भी फिर अ से आया आंखों में सपना,और अ से अनकही सी बिसरी बात भी।अ से अज...
05/07/2025

अ से ' वो'

अ से अनार ही सीखा था,
अ से अंगूर की मिठास भी
फिर अ से आया आंखों में सपना,
और अ से अनकही सी बिसरी बात भी।

अ से अजनबी जो थे कभी,
अ से अचानक अपने हुए,
अ से आदत सी जब बन गए वो
अ से अश्कों संग हम हँसने लगे ।

अ से आहट थी उनके दिल की शायद,
अ से उम्मीद थी लौट आने की,
अ से अधूरी वो ख्वाहिशें सारी,
अ से अदाएं सुहानी हुई सारी

अ से असर अब ऐसा हुआ है,
अ से हम एकदूजे के हुए,
अ से अब और क्या माँगूँ रब से?
अ से अपनापन हर पल मिले।

अ से आज भी उससे नाता
अ से आशीर्वाद सा उसका साथ
अ से अनकहे जज्बात उमड़ते
अ से अंतहीन है उनका प्यार।

‌अ से ....

(आप भी इसी क्रम में कुछ लिख भेजिए 🥰)

स्त्रीrang - सुजाता
चित्र इंटरनेट

"इसमें नमक कम,उसमें ज़रा ज्यादा है..."कहकर तुम्हारा कहाउसकी आंखों मेंपल भर को ठहरता है,फिर चुपचापउसकी पलकों सेनीचे गिरने...
03/07/2025

"इसमें नमक कम,
उसमें ज़रा ज्यादा है..."
कहकर तुम्हारा कहा
उसकी आंखों में
पल भर को ठहरता है,
फिर चुपचाप
उसकी पलकों से
नीचे गिरने से
खुद को रोक लेता है।

"वो बेहद तीखा,
ये एकदम सादा है..."
तुम्हारे ये शब्द
उसके हथेलियों में रचे
स्वाद को उदास कर देते हैं
जैसे वह स्वाद नहीं,
अपनी पाक-कला पर तंज़ सुन रही हो।

तुम्हारे मुंह से "ये बहुत फीका,
वो कम मीठा है..."
सुनकर वो सोचती है
कितनी बार तो चखा था मीठा
अपनी उंगली के पोरों पर रखकर
पर शायद हाथों में ही
अब वो स्वाद नहीं रहा
जो तुम्हारी जुबां ढूंढती है...

"कल वाला कम पका,
आज ज़रा भुना ज़्यादा है..."
तो वो अपने ही
चूल्हे की आंच को
जिम्मेदार ठहराकर
तवे पर थपथपाती है
तुम्हारी थाली की उदासी।

"वो कम मुलायम,
ये करारा ज़्यादा है..."
कहते हुए
तुम नहीं देख पाते
कि वो चुपके से
अपनी हथेली से
पसीना पोछ रही होती है
या आंसू?

इन सारे 'विश्लेषणों' के बीच,
वो दिन-रात
तुम्हारे स्वाद के पीछे
अपने सारे स्वाद भुला देती है।
हर सब्ज़ी में
अपना मन मिलाकर,
हर रोटी में
अपने अरमान बेलकर,
हर दाल में
अपना धैर्य उबालकर
तुम्हारे मूड के हिसाब से
अपने खाना पकाने का
तरीका बदल देती है।

फिर भी,
वो कुछ नहीं कहती।
कभी शिकायत नहीं करती,
कभी रूठती नहीं,
कभी थाली नहीं छोड़ती...
क्योंकि मां जो है —
वो सिर्फ खाना नहीं बनाती,
वो रिश्ते परोसती है,
त्याग परोसती है,
और अंत में
अपने सारे स्वाद
तुम्हारी पसंद में घोल देती है।

मां की रसोई
स्वाद की नहीं,
भावनाओं की प्रयोगशाला है
जहां हर गलती के बाद भी
वो सिर्फ मुस्कुराती है,
और अगली बार
तुम्हारे बिना कहे
तुम्हारे मन का स्वाद
तैयार कर देती है।

स्त्रीrang -सुजाता
चित्र अनु प्रिया
Akb

पहली बार जब बच्चा स्कूल जाता है, तो मां के आँचल से बंधे उसके मन के धागे धीरे-धीरे खुलते हैं। कुछ बच्चे उत्साहित होते हैं...
02/07/2025

पहली बार जब बच्चा स्कूल जाता है, तो मां के आँचल से बंधे उसके मन के धागे धीरे-धीरे खुलते हैं। कुछ बच्चे उत्साहित होते हैं, कुछ जिज्ञासु, पर अधिकतर बच्चे आंखों में आंसू लिए मां से हाथ छुड़ाते हुए उस बिछोह के पहले अनुभव से गुजरते हैं। अगर हम इस दृश्य को थोड़ी देर ठहर कर देखें, तो पाएंगे कि रोने वालों में अधिकतर लड़के होते हैं ।

मां से अलग होने का दर्द जैसे उनकी रगों में बहता है।

बेटों का मां से यह भावुक जुड़ाव कोई संयोग नहीं, यह एक मौन रिश्ता है जो जन्म के क्षण से ही आकार लेने लगता है। जब बेटा चोट खाता है तो पिता की हिम्मत से ज़्यादा मां की गोद राहत देती है। जब उसे डर लगता है, तो मां की आवाज़ उसकी ढाल बन जाती है। मां के स्पर्श में जो सुरक्षा है, वह बेटों के लिए एक ऐसी आदत बन जाती है जिसे छोड़ना कठिन होता है।

लड़कियों को बचपन से यह सिखाया जाता है कि उन्हें एक दिन ससुराल जाना है । इसलिए मां-बेटी के रिश्ते में एक स्वाभाविक दूरी समय के साथ पनपती है। लेकिन बेटों को अक्सर मां से अलग होने का कोई अभ्यास नहीं दिया जाता शायद उनके लिए मां महज़ एक रिश्ता नहीं बल्कि उनका पूरा वजूद होती है।

कई बार यह कहा जाता है कि लड़कियां भावुक होती हैं, लेकिन मां से बिछड़ने पर रोते बेटे इस धारणा को तोड़ देते हैं। वे मां की आवाज़, मां के हाथ का खाना, मां की कहानियां और मां के बिना अधूरा पड़ता हर पल अपने भीतर समेटे रखते हैं। वे भले ही बड़े हो जाएं, पर जब भी बीमार पड़ते हैं या अकेले होते हैं, तो सबसे पहले मां को पुकारते हैं।

बेटा मां के लिए दुनिया की भीड़ में वह चेहरा होता है, जिसे देखते ही उसकी आंखें नम और मुस्कान साथ-साथ हो जाती है। वहीं बेटा, चाहे जितना भी कठोर और मजबूत क्यों न दिखे, मां की याद में सबसे ज्यादा पिघलता है।

शायद इसलिए जब पहली बार स्कूल जाता है, तो मां से बिछड़ते ही उसकी आंखें छलक जाती हैं — जैसे वह जानता हो कि अब जीवन में हर दिन मां के पास उतना नहीं रह पाएगा जितना अब तक रहा है।

क्योंकि बेटा चाहे कहीं भी चला जाए, उसकी आत्मा का एक कोना हमेशा मां के आंचल की गांठ में ही बंधा रह जाता है।

स्त्रीrang - सुजाता

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