09/04/2023
हर्जक्लिफ हैपी बैली मसूरी
दिनांक : 21-6-52
रघुवंश भैया,
चिट्ठी पाइ के औ इ खबरि सुनि के परसन्न भइलीं कि 'भोजपुरी" पतिरिका निकरे के बा । जब ले मतारी के दूध के साथ पीयल भाखा के मान-सम्मान न बढ़ी तबले गरीब जनता के उधार ना होई । येहि बात में कौनो अनेसा नइखे। इ बहुत अचरज और अफसोस के बात इहो जो दुई करोड़ भोजपुरिहा बेटा बेटी के रहती हमनी के भाखा के कतहूँ पुछार नइखे, ऊ टावर टूवर लेखा बाट के भिखारी बनल बिया । भोजपुरी के कवन रूप होखे के चाहीं, ओमे कविता में कथा कइसे लिखे के चाहीं, सबदन में इस्तिरी मैं पुरूखा के बिचार कइसे होखे चाहीं, एहि सब बातन के फेर में अबहिन पड़े के काम नइखे । अबहीं त निमन निमन चीज कविता में हो, चाहे बतकही में, लिख के आवे के चाहीं । हमनी के भाखा में छपरा, आरा, और बनारस आजमगढ़ में फरक बाटे और फरक तो दस-दस कोस में देखल जाला । एके अबहिन फिकिर करे के काम नइखे । जेकर बोली जौना इलाका के होखे, ई अपने बोली में लिखो, आगे चलके अपन रहता निकरि आई । भोजपुरिहा जवान अपनी बोली में जे किछु थोड़ा-बहुत लिखत बाड़े, ओसे पता लगता जे भोजपुरी भाखा के आगे उजियार बा । हमे इहै चाहत बानी कि मिरजापुर, बनारस, जौनपुर, आजमगढ़, गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर, देवरिया, छपरा, चम्पारन औ आरा के सब भोजपुरिहा भाई अपना बुद्धि, बल, पौरुख, बिरताई अपनी भाखा के मदत से उठिके खड़ा होई जाव। "भोजपुरी" चिरंजीवी रहे, इहे हमार मनसा बा । समूचा देश के फैदा करावे खातिर
अपने के
राहुल
(भोजपुरी, वर्ष-1, अंक-1, जुलाई 1952 )
पत्रावली / 523 के
स्रोत ~ आखर
भोजपुरी के ले के राहुल सांकृत्यायन जी के स्पष्ट सोच
“भोजपुरी भाषा खातिर, भोजपुरी भाषा में, एगो भोजपुरिया के लिखल, एगो भोजपुरी पत्रिका खातिर, भोजपुरिया के नावे एगो पाती"
जनमदिवस 9 अपरील 1893