Vikash singh Bhumihar

Vikash singh Bhumihar ईमानदारी सबसे अच्छी नीति हैं

03/06/2025

Sanatan dharma

03/06/2025
मां सिद्धिदात्री पूजा मंत्र-सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।स्तुति मंत्रया...
23/10/2023

मां सिद्धिदात्री पूजा मंत्र-

सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।

स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

मां सिद्धिदात्री की आरती

जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता।
तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥

तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।
जब भी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥

तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।
तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥

रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥

तू सब काज उसके करती है पूरे।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥

सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥

जय माता दी 🙏

07/10/2023

खुद पर भरोसा करो लोगों का क्या है

उनके किरदार तो बदलते रहते हैं...*✍️💔

07/10/2023

क्या पति पत्नी का साथ सात जन्मों का होता हैं

कितने ही बड़े कथावाचक और वेदों के पण्डित क्यों न बन जायें , पर उनके अंदर अविद्या माया फिर भी अपना प्रभाव जमाये रखती है । ...
07/10/2023

कितने ही बड़े कथावाचक और वेदों के पण्डित क्यों न बन जायें , पर उनके अंदर अविद्या माया फिर भी अपना प्रभाव जमाये रखती है ।
ये लोग शास्त्रों और वेदों के मर्म अब भी नहीं समझ पाते और पाखण्ड , अंध विश्वास आदि को बढ़ावा देने में लगे रहते हैं ।
ये लोग यह भी नहीं बताते कि जो कर्म या अंध विश्वास ये बता रहे हैं परंपरा के नाम पर उसके पीछे का मर्म , मूलभूत तत्व , कारण , परिस्थिति आदि क्या है ??
बस जो लिखा है उसके शब्दों को पढ़कर बिना उसकी प्रतीति किये हुए उसको ढोये जा रहे हैं ।

व्यास गद्दी पर बैठा हुआ व्यक्ति या कथा वाचक को लोग बड़े श्रद्धा के भाव से देखते हैं और उनकी हर बात को वह शास्त्र वाणी ही मानते हैं और उसका अनुसरण करते हैं।
ऐसे लोग ही सनातन धर्म के मूल तत्व का ह्रास करके लोगों को हँसने का मौका देते हैं और अतार्किक कहलवाते हैं ।

लोग यह भी नहीं देखते विचारते कि शास्त्रों या वेदों में कोई भी कथ्य या कर्म नियम, काल , परिस्थिति और व्यक्ति विशेष होता है ।

जैसे कोई डॉक्टर है , वह किसी high bp वाले patient को देख रहा था , तो उसने उस मरीज को कुछ आहार विहार बताया और कुछ लाल रंग की गोलियाँ खाने को दी ।
बाहर बैठा दूसरा व्यक्ति यह सब देख रहा था । उसने सोचा कि डॉक्टर ग़लत नहीं हो सकते और उसने भी वही गोलियाँ लेनी शुरू कर दी और सबको बता दिया। उसी तरह का आहार विहार करना शुरू कर दिया ।

हालात बद से बदतर हो गए क्योंकि वह low bp का patient था ।

यही हालात हमारे कथावाचकों और इन स्वघोषित संतों की है । एक ही दवाई सबको बाँट रहे हैं , यह बोलकर कि यह शास्त्रों में लिखा है ।

इनके लिए सभी लाल रंग की गोली समान है , कोई अंतर नहीं ।

अरे बृहस्पति सरस्वती के अवतारों , हमारे शास्त्रों में सबके लिए अलग अलग विधान , कर्म या दवाई बताई गई है । कौन योगी है , कौन संसारी है , कौन विकर्मी , कौन अधर्मी , कौन भक्त , कौन ज्ञानी , कौन वैरागी , कौन विप्र , कौन ब्राह्मण , कौन पंडित , कौन तपस्वी , कौन क्षत्रिय , कौन वैश्य , कौन शुद्र , कौन सात्विक , कौन तामसिक विभिन्न तरह के स्तर के अनुसार शास्त्रों में कर्मों का निरूपण है ।
इसमें भी तरह के स्तर हैं और फिर उसके भी स्तर हैं ।

यह कोई सामान्य या साधारण विज्ञान नहीं है । पूरी आध्यात्मिक मेडिकल साइंस है ।

सबकी अलग अलग बीमारी है , एक को वही कर्म करना आवश्यक होगा और दूसरे को वही कर्म करना निषिद्ध होगा ।
एक को वही कार्य करने पर भगवान दंडित कर रहे हैं और दूसरी जगह उसी कार्य को करने के लिए भगवान उस व्यक्ति को पुरस्कृत कर रहे हैं ।

इसीलिए कृपया सभी कथावाचकों से अनुरोध है कि इतना गुण गोबर मत करें या फैलाएं कि शास्त्रों पर उँगली उठने लगे , शास्त्रों की विषयवस्तु एवं उसकी शुचिता कलंकित होने लगे और भगवद प्राप्त संतों को अथाह मेहनत करनी पड़े इन सब विद्रूपताओं को साफ करने के लिए ।

श्रीरामचरितमानस के चमत्कार ।*1. जिस घर में 1 माह में मात्र पूर्णिमा को प्रति माह रामायण का पाठ होता है उस घर में अकाल मृ...
07/10/2023

श्रीरामचरितमानस के चमत्कार ।

*1. जिस घर में 1 माह में मात्र पूर्णिमा को प्रति माह रामायण का पाठ होता है उस घर में अकाल मृत्यु नहीं होती है।*

*2.. जिस घर में श्री रामचरितमानस रखी होती है वहां कभी भूत, पिशाच, प्रेतों का वास नहीं होता है।*

*3. जिस घर में रामायण के पास शाम के समय दीपक जलाया जाता है उस घर में अन्न की कमी कभी नहीं होती है।*

*4. जिस घर में श्री रामचरितमानस के पास सुबह शाम दीपक प्रतिदिन जलाया जाता है उस घर में आरोग्य बढ़ता है। बीमारियां कम होती हैं।*

*5. जिस घर में यदि श्री रामचरितमानस की शाम के समय दीपक जलाकर श्री रामचरितमानस की आरती प्रतिदिन होती है उस घर पर श्रीराम जी की कृपा सदैव रहती है और घर में शांति का वातावरण रहता है। प्रभु की कृपा रहती है।*

*6. जिस घर में प्रति सप्ताह रामायण का पाठ होता है उस घर पर श्रीराम जी व माता सीता जी की कृपा सदैव रहती है। उस घर में बच्चों की वृद्धि होती है।*

*7. जिस घर में प्रतिदिन रामायण का पाठ होता है। उस घर पर भगवान शिव, श्रीराम जी, सीता जी, श्री हनुमानजी, शनिदेव, नव ग्रह, 33 कोटि देवी देवताओं की सदैव कृपा रहती है।*

*8. उस घर से दरिद्रता भाग जाती है, उस परिवार का यश बढ़ने लगता है, उस घर पर साक्षात माँ लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है। बच्चों को कभी भय नहीे लगता है। भूत, प्रेत, पिशाच वहां प्रवेश नहीं कर सकते हैं । वह घर सुख, शान्ति, समृद्धि, धन, अन्न, संतान, मित्र, पड़ोसी, रिश्तेदारों आदि से परिपूर्ण होता है।*

*9. रामायण की एक एक चौपाई लाखों मंत्रो के बराबर है और हर चौपाई कुछ न कुछ देने वाली है। हर भारतीय के घर में रामायण होनी चाहिये।

*पारिवारिक मैनेजमेंट रामायण हमें सिखाती है।*
*रामायण हमें संसार में जीना सिखाती है।

06/10/2023

जिंदगी की कमाई दौलत से नही नापी जाती,
अंतिम यात्रा की भीड़ बताती है कमाई कैसी थी…

06/10/2023

्यूतिया

संतति प्राप्ति और संतति की कुशलता की कामना हेतु

#जीवत्पुत्रिका का कठिन व्रत और उसकी महिमा

गाँवों में कोई आकस्मिक प्राणघातक संकट से बच जाता तो देखने सुनने वाले एक बार उसकी माता को अवश्य स्मरण कर लेते -
'एकर माई खर ज्यूतिया भुख्खल रहल होई'

(इसकी माता ने निर्जल जीवत्पुत्रिका व्रत* का पालन किया होगा)

संतति की कामना और यदि संतति है तो उसकी कुशलता क्षेम हेतु माताएं यह व्रत रखती हैं,

आश्विन कृष्ण अष्टमी को !

जो बड़ी बूढ़ी सासादि होतीं वे पुलिंग या स्त्रीलिंग नाम वाले फलों का व्रत प्रसाद व पारण में प्रयोग उपयोग करा देतीं, मनोवांछित प्राप्ति के लिए,

सामूहिक रूप से यह व्रत एक समय तक दीपावली वाली छठ की टक्कर का हुआ करता,

काशी लक्ष्मी कुण्ड का सोरहिया मेला (सोलह दिन का होने के कारण) वर्तमान साक्षी है,

मिट्टी के खिलौने और लक्ष्मी की मुकुट के नाम पर तीन तीली निकली मुंड मूर्तियाँ, गणपति की वक्रतुंड मूर्तियाँ आज भी बाल सुलभ मन को खींच लेते हैं ।
..

खुशियाँ बांटने से बढती है। __गणेशजी के मन्दिर में  सवा मन का लड्डू चढ़ा कर लौटते हुए एक भक्त से उसके बेटे ने गुब्बारे दिल...
06/10/2023

खुशियाँ बांटने से बढती है।
__

गणेशजी के मन्दिर में सवा मन का लड्डू चढ़ा कर लौटते हुए एक भक्त से उसके बेटे ने गुब्बारे दिलवाने की जिद की।

बच्चा पिट गया।

वजह शायद बच्चे की जिद रही होगी या सवा मन लड्डू के पुण्य का दम्भ इतना बढ़ गया होगा कि भक्त सिर्फ उसी में बौराया था और उसका बच्चे की माँग से तारतम्य टूट गया हो।

गुब्बारे वाले के पास बहुत भीड थी, और भीड़ में से भी उसकी नजर पिटते बच्चे पर जा पड़ी।
बच्चा रो रहा था और भक्त पिता बच्चे को डांटे जा रहा था।

गुब्बारे वाला उस बच्चे की ओर आया और एक गुब्बारा बच्चे के हाथ में पकड़ा दिया।

भक्त गुस्से में तो था ही वह गुब्बारे वाले से उलझ पड़ा ।

“तुम मौके की ताड मे रहा करो बस, कोई बच्चा तुम्हे जिद करता दिख जाए बस। झट से पीछे लग जाते हो। नही लेना गुब्बारा।”

इस तरह भक्त ने गुब्बारे वाले को बुरी तरह झिड़क दिया।

गुब्बारे वाला बच्चे के हाथ में गुब्बारा पकड़ाते हुए बोला-
मैं यहाँ गुब्बारे बेचने नही आता, बाँटने आता हूँ कारण किसी दिन मुझे किसी ने बोध करवाया कि ईश्वर तो बच्चों मे है।

इसलिये ही मैं हर मंगलवार सौ रूपये के गुब्बारे लाता हूँ। इनमे खुद ही हवा भरता हूँ। एक गुब्बारा मंदिर मे बाँध आता हूँ और बाकि सब यहाँ बच्चों मे बाँट देता हूँ। मेरा तो यही प्रसाद हैं। गणेशजी स्वीकार करते होंगे ना।

सवा मन लड्डू का बड़ा पुण्य भक्त को एकाएक छोटा लगने लगा....❤...

05/10/2023

अगर आप सच में संत महापुरुष खोजने जा रहे हैं तो सच्चे संत एवं महापुरुष अवश्य मिलेंगे परन्तु अगर आप सिर्फ पाखण्डी , लुटेरे और स्वघोषित संतों को खोजने निकले हैं तो वह आपको बहुतेरे मिलेंगे !

कुछ लोग पहले से ही धारणा बना कर चलते हैं कि वृन्दावन , अयोध्या , उज्जैन , हरिद्वार या किसी भी तीर्थस्थान पर केवल ढोंगी संत रहते हैं , तो उनको हर जगह उन्हीं से पाला पड़ता है !

जेहिं कर जेहिं पर सत्य सनेहू ।
सो तोहिं मिलहिं न कछु संदेहू ।।

सकल पदारथ है जग माहीं !
कर्महीन नर पावत नाहीं !!

आपको शुद्ध मिठाई चाहिए तो दुकान खोजिये , ऐसा नहीं कि सभी दुकानदारों को गाली देते हुए चल रहे हैं !

बाकी के दुकानदारों के स्तर के भी ग्राहक होते हैं ! बहुत से ग्राहक शुद्धता को तवज्जो नहीं देते , उन्हें केवल मिठाई से मतलब है !

तो ऐसे ही हर चीज संसार में उपलब्ध है , यह आप पर निर्भर करता है कि आप किसको खोज रहे हैं ! और जिसको खोज रहे हैं , क्या उसके लक्षण और characteristics से आप परिचित हैं या नहीं ??

अगर नहीं परिचित होंगे तो आप हर पीली चीज को सोना , हर तरल वस्तु को जल ( भले ही वह ज्वालामुखी का बहने वाला लावा ही क्यों न हो )

अक्सर ऐसा ही होता है ! हम लोग सोचते हैं संत का मतलब है : गेरुवा , पीले वस्त्र , बहुत सारी मालायें , बड़ा सा चन्दन , आसपास भीड़ इत्यादि !

बाकी का संतत्व के लक्षण हमें पता ही नहीं है !

यहीं सबसे बड़ा धोखा होता है ! क्या आपको पता है कुम्भ में बहुत से अपराधी , डकैत और हत्यारे भी आते हैं जिनको पोलिस वर्षों से खोज रही है ! वह गेरुवा वस्त्र पहन , दाढ़ी बढाकर , और तिलक लगाकर अपने रूप को छुपा लेते हैं !
लेकिन इसी कुम्भ में कई संत एवं महापुरुष भी आते हैं जिनके दर्शन मात्र से ही हृदय में वैराग्य और भगवान के प्रति प्रेम का प्राकट्य भी होता है !
बस शुद्ध हृदय से खोजने की देर है !

जिसको भगवद विषयक तत्व की प्यास होती है , जिज्ञासा होती है , उसे अवश्य श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ संत मिलते हैं !

और जिन्हें बस बेटा चाहिए , धन चाहिए , परिवार चाहिए , दौलत , समृद्धि , व्यापार इत्यादि चाहिए , तो उनको सांसारिक व्यक्तियों से ही पाला पड़ता है जिनको बाद में यही लोग चिल्लाये पाए जाते हैं कि अमुक व्यक्ति ढोंगी है पाखंडी है , इत्यादि !

अरे आप जिसे ढूंढ रहे थे , जिस निमित्त ढूंढ रहे थे , वही तो मिला है आपको ! आपको क्या चाहिए था ??? संसार न ??
तो सांसारिक व्यक्ति ही तो मिलेगा !

अगर अध्यात्म चाहिए होता तो अवश्य ही आध्यात्मिक व्यक्ति जिसे आप संत या महापुरुष कहते हैं , मिलता !

और जिसे सच्चे अर्थों में भगवान् की प्यास होती है , सत्य मार्ग की खोज होती है , मैं कौन हूँ ? मेरा कौन है ? मेरा लक्ष्य क्या है ? वह मुझे कैसे मिलेगा इत्यादि कि जिज्ञासा जिसे होती है , उसे स्वयं भगवान् ही अपने माध्यम ( संत , महापुरुष , गुरु ) से मिला देते हैं जो उसे उचित साधना करवाकर , abcd से लेकर पीएचडी level तक का ज्ञान कराकर लक्ष्य तक ले जाते हैं !

इसिलिये विभीषण बोल उठे :

अब मोहि भा भरोस हनुमंता !
बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता !!

इसीलिए इस बात पर विशेष ध्यान दीजिये कि आपको क्या चाहिए , बस वही और उससे सम्बंधित तत्व आपको मिलने लगते हैं !

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