05/10/2023
अगर आप सच में संत महापुरुष खोजने जा रहे हैं तो सच्चे संत एवं महापुरुष अवश्य मिलेंगे परन्तु अगर आप सिर्फ पाखण्डी , लुटेरे और स्वघोषित संतों को खोजने निकले हैं तो वह आपको बहुतेरे मिलेंगे !
कुछ लोग पहले से ही धारणा बना कर चलते हैं कि वृन्दावन , अयोध्या , उज्जैन , हरिद्वार या किसी भी तीर्थस्थान पर केवल ढोंगी संत रहते हैं , तो उनको हर जगह उन्हीं से पाला पड़ता है !
जेहिं कर जेहिं पर सत्य सनेहू ।
सो तोहिं मिलहिं न कछु संदेहू ।।
सकल पदारथ है जग माहीं !
कर्महीन नर पावत नाहीं !!
आपको शुद्ध मिठाई चाहिए तो दुकान खोजिये , ऐसा नहीं कि सभी दुकानदारों को गाली देते हुए चल रहे हैं !
बाकी के दुकानदारों के स्तर के भी ग्राहक होते हैं ! बहुत से ग्राहक शुद्धता को तवज्जो नहीं देते , उन्हें केवल मिठाई से मतलब है !
तो ऐसे ही हर चीज संसार में उपलब्ध है , यह आप पर निर्भर करता है कि आप किसको खोज रहे हैं ! और जिसको खोज रहे हैं , क्या उसके लक्षण और characteristics से आप परिचित हैं या नहीं ??
अगर नहीं परिचित होंगे तो आप हर पीली चीज को सोना , हर तरल वस्तु को जल ( भले ही वह ज्वालामुखी का बहने वाला लावा ही क्यों न हो )
अक्सर ऐसा ही होता है ! हम लोग सोचते हैं संत का मतलब है : गेरुवा , पीले वस्त्र , बहुत सारी मालायें , बड़ा सा चन्दन , आसपास भीड़ इत्यादि !
बाकी का संतत्व के लक्षण हमें पता ही नहीं है !
यहीं सबसे बड़ा धोखा होता है ! क्या आपको पता है कुम्भ में बहुत से अपराधी , डकैत और हत्यारे भी आते हैं जिनको पोलिस वर्षों से खोज रही है ! वह गेरुवा वस्त्र पहन , दाढ़ी बढाकर , और तिलक लगाकर अपने रूप को छुपा लेते हैं !
लेकिन इसी कुम्भ में कई संत एवं महापुरुष भी आते हैं जिनके दर्शन मात्र से ही हृदय में वैराग्य और भगवान के प्रति प्रेम का प्राकट्य भी होता है !
बस शुद्ध हृदय से खोजने की देर है !
जिसको भगवद विषयक तत्व की प्यास होती है , जिज्ञासा होती है , उसे अवश्य श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ संत मिलते हैं !
और जिन्हें बस बेटा चाहिए , धन चाहिए , परिवार चाहिए , दौलत , समृद्धि , व्यापार इत्यादि चाहिए , तो उनको सांसारिक व्यक्तियों से ही पाला पड़ता है जिनको बाद में यही लोग चिल्लाये पाए जाते हैं कि अमुक व्यक्ति ढोंगी है पाखंडी है , इत्यादि !
अरे आप जिसे ढूंढ रहे थे , जिस निमित्त ढूंढ रहे थे , वही तो मिला है आपको ! आपको क्या चाहिए था ??? संसार न ??
तो सांसारिक व्यक्ति ही तो मिलेगा !
अगर अध्यात्म चाहिए होता तो अवश्य ही आध्यात्मिक व्यक्ति जिसे आप संत या महापुरुष कहते हैं , मिलता !
और जिसे सच्चे अर्थों में भगवान् की प्यास होती है , सत्य मार्ग की खोज होती है , मैं कौन हूँ ? मेरा कौन है ? मेरा लक्ष्य क्या है ? वह मुझे कैसे मिलेगा इत्यादि कि जिज्ञासा जिसे होती है , उसे स्वयं भगवान् ही अपने माध्यम ( संत , महापुरुष , गुरु ) से मिला देते हैं जो उसे उचित साधना करवाकर , abcd से लेकर पीएचडी level तक का ज्ञान कराकर लक्ष्य तक ले जाते हैं !
इसिलिये विभीषण बोल उठे :
अब मोहि भा भरोस हनुमंता !
बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता !!
इसीलिए इस बात पर विशेष ध्यान दीजिये कि आपको क्या चाहिए , बस वही और उससे सम्बंधित तत्व आपको मिलने लगते हैं !