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किसी भी टीम के कप्तान को हमेशा चुनौतीपूर्ण फैसले लेने चाहिए तब जाकर वो असली लीडर कहलाता है।आज बात भारत के उस युग की जब ट...
12/10/2025

किसी भी टीम के कप्तान को हमेशा चुनौतीपूर्ण फैसले लेने चाहिए तब जाकर वो असली लीडर कहलाता है।

आज बात भारत के उस युग की जब टीम पर असफलताओं के काले साए का असर था। उस अध्याय से भारत को बाहर निकालने वाले आधुनिक युग के सबसे सफल कप्तान की जब दादा ने युवाओं की ऐसी फौज को तैयार किया था कि वो टीम को जरूरत पड़ने पर बल्लेबाजी , गेंदबाजी बल्कि विकेटकीपिंग भी करने को तैयार हो जाते थे। कप्तान भी अपने खिलाड़ियों के लिए चट्टान की तरह उनका ढाल बनकर खड़े रहते थे।

कहानी साल 2003-04 की है जब भारत की टीम ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जाने वाली थी।ऑस्ट्रेलिया उस वक़्त की सबसे खतरनाक टीम थी।

सेलेक्टर्स का साफ़ कहना था कि अब नए खिलाड़ियों का दौर है। “अनिल कुंबले अब पुराने हो गए हैं,
वो विदेशों में विकेट नहीं निकालते, ऑस्ट्रेलिया की पिचें उनके लायक नहीं।”
लेकिन सामने बैठे सौरव गांगुली ने कुर्सी पर सीधा झुक कर कहा
“मैं बिना कुंबले के ऑस्ट्रेलिया नहीं जाऊँगा।”
कमरा सन्नाटा छा चुका था।
सेलेक्टर्स आनाकानी करते रहे लेकिन दादा ने दादागिरी दिखाई और बात मनवा लिया।

चयनकर्ताओं ने कड़े शब्दों में कहा “अगर कुंबले विकेट नहीं लेंगे,और टीम असफल रही तो हमें नया कप्तान चाहिए होगा।

गांगुली ने सिर उठाया, थोड़ा मुस्कराए,
और बस इतना बोले —
“फिर नया कप्तान ढूंढ लेना,
लेकिन कुंबले जाएगा।”

कुंबले को टीम में जगह मिली…
और फिर शुरू हुआ ऑस्ट्रेलिया का वो दौरा,
जो आज तक भारतीय क्रिकेट की यादों में सुनहरी स्याही से लिखा है।

एडिलेड, मेलबर्न, सिडनी –
हर मैदान पर कुंबले ने गेंद से ऑस्ट्रेलिया को नाचना सिखा दिया।
सीरीज़ में उन्होंने 24 विकेट लिए,
भारत के सबसे कामयाब गेंदबाज़ बने,
और टीम ने इतिहास रच दिया ..
ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज़ 1-1 से ड्रॉ,
पहली बार इतने आत्मविश्वास के साथ लग रहा था कि हम ऑस्ट्रेलिया को कड़ी टक्कर दे सकते हैं।

वो जीत से भी बढ़कर थी —
वो थी “सम्मान की बराबरी।”

आज जब कोई पूछे —
“गांगुली क्यों ‘दादा’ कहलाते हैं?”
तो जवाब यही है..
क्योंकि उन्होंने सिर्फ़ मैच नहीं,
अपने खिलाड़ियों पर भरोसा जताया था।

यह होता है असली कप्तान !!
ऐसे ही 2003 के वर्ल्ड कप के लिए जवागल श्रीनाथ को रिटायरमेंट से वापस बुला कर अफ्रीका ले गए थे ।

और अनिल कुंबले ने दादा से यही सीख लेकर 2007/08 ऑस्ट्रेलिया दौरे पर वीरेंद सहवाग की टेस्ट टीम में वापसी करवाया। फिर उसके बाद एडिलेड टेस्ट में सहवाग शानदार शतक जड़ते हैं। वहां से वीरू की करियर पटरी पर आ गई।

वो फिर साबित कर गए —
जहाँ मेहनत, जुनून और कप्तान का विश्वास साथ हो…
वहाँ विदेशी पिच भी घर जैसी लगने लगती है।

✍️ ~ Nandan Mishra

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