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24/01/2025
24/01/2025
24/01/2025
24/01/2025
24/01/2025
24/01/2025
24/01/2025
17/11/2023

गैर कहकर, रब्त ए शनाशाई बता गया
कैसे हुई महफील में,रुसवाई बता गया

हमने जिसे बचाने की,कोशिश नहीं की
वो डूबकर,दरिया की गहराई बता गया

जुनूने इश्क की, हद भी हुआ करती है
हँसके गुजर गए ,हमें सौदाई बता गया

उनके तव्वजो की तो दाद देनी चाहिए
मुजस्सम सामने रहे परछाई बता गया

किस तरह सुलगती है आरजू दिल की
कितनी बेताब रहती, तन्हाई बता गया

उम्र वैसे तो, तुरपाई में गुजर गई सारी
जिंदगी को मगर, करिश्माई बता गया

मकां रोशन, पर घर बहुत तन्हा तन्हा
बेशक्ल भीड़ शह्र ए रानाई बता गया

फरेब खाके दोस्तों से थे सवाल किए
मुस्कुराके,अंदाज़ ए दानाई बता गया
(विनोद प्रसाद)
****
रब्ते शनाशाई:सिलसिला जान पहचान का
रुसवाई:बदनामी
सौदाई:सनकी,पागल
तव्वजो:उपेक्षित न करने के लिए ध्यान देना
मुजस्सम:भौतिक उपस्थित
तुरपाई:धागों से सीने का काम
करिश्माई:चमत्कार
शह्र ए रानाई: शहर की चमक दमक
अंदाज़ ए दानाई:बुद्धिमता की शैली

17/11/2023

च़राग जलने दो अंधेरे का सफर बाकी है
पुराने ज़ख्मों का अब भी असर बाकी है

साँप अब बस्तियों में नजर आता नहीं है
आदमी ज़हरी है, अब भी ज़हर बाकी है

ख़ौफ खाए हुए दीवारों के ये सहमे चेहरे
वुज़ूद को संभाले बुनियाद मगर बाकी है

गुनाहगारों की मसीहाई का खेल जारी है
यह आप सोचिये,किसकी क़दर बाकी है

ख़ुद ही तकदीर अपनी बनाता है आदमी
हौसले थोड़ा सा भी उसमें अगर बाकी है

ढलेगी रात इस उम्मीद पे जिन्दगी गुजरी
लेकिन अभी दूर, बहुत दूर सहर बाकी है
(विनोद प्रसाद)

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