
02/11/2024
मा अपने बच्चो के ताने भी सुन लेती है । दो दिन पहले मैं और भाई Dhrumil Thakkar बहुचराजी शक्तिपीठ गए थे, तब हमने पुरे रास्ते में कुछ नही खाया ताकि वहा के भोजनालय में प्रसादी मिल सके । जब वहा दर्शन करने के बाद पहुंचे तो वहा ऑनलाइन पेमेंट स्वीकार नहीं किया जा रहा था और हम दोनो के पास केश नही थी । फिर हम केश लेकर आए तो भोजनालय में पास वितरण बंध हो गया था और हमे बाहर खाना पड़ा ।
आज भी कुछ ऐसा ही हाल था । पिपलाव आशापुरी माता के मंदिर गए और दर्शन कर के जैसे ही प्रसादी के पास लेने गए तो वहा भी खिड़की बंद हो चुकी थी और मेरा मूड खराब । अचानक मुंह से निकल गया और भाई से बोल पड़ा कि, "भाई, लगता है इस बार हर माई ने हमे भूखे पेट और बिना प्रसादी के ही लौटाने का तय किया लगता है । उस दिन बहुचर ने प्रसादी नही खाने दी और आज आशापुरी ने । पता नही क्यों इन्हे आशापुरी कहते है जब प्रसादी की आशा तो पुरी कर नही पाई।" और अचानक से मौसाजी कही से प्रसादी के पास लेकर आए और एक धक्के में सीधे भोजनालय के अंदर, और थाली सीधा हाथ में । मैं कुछ बोल नहीं पाया, बस भगवती के मंदिर के शिखर की ध्वजा को देखता रह गया और कहा, "पता नही था कि तू प्रार्थना के साथ ताने भी सुनती है मेरे" और मा ने उसी वक्त अपनी बावन गज की धजा हमारे ऊपर फरहा दी, मानो जैसे कह रही हो, "अब समझ आया कि मुझे क्यों आशापुरी कहते है !?!" 😄। लड़डू, पूरी, आलू मटर की मसालेदार सब्जी, दाल और चावल की स्वादिष्ट प्रसादी खाने को मिली और संतुष्टि हुई वो अलग ।