Ramayan chaupai

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(1)

30/10/2025

चरन-कमल बन्दउँ तिन्ह केरे। पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे॥
कलि के कबिन्ह करउँ परनामा।
जिन्ह बरने रघुपति-गुन-ग्रामा॥

30/10/2025

एहि प्रकार बल मनहिँ देखाई।
करिहउँ रघुपति कथा सुहाई।।
व्यास-आदिकबि-पुङ्गव नाना।
जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना॥

30/10/2025

अति अपार जे सरित बर, जौँ नृप सेतु कराहिँ।
⁠चढ़ि पिपीलिकउ परम-लघु, बिनु स्रम पारहि जाहि॥

30/10/2025

तेहि बल मैं रघुपति गुन-गाथा। कहिहउँ नाइ राम-पद माथा।
मुनिन्ह प्रथम हरि-कीरति गाई। तेहि मग चलत सुगम मोहि भाई॥

30/10/2025

गई बहोर गरीब-नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू॥
बुध बरनहिँ हरिजस अस जानी। करहिं पुनीत सुफल निज-बानी॥

30/10/2025

सो केवल भगतन्ह हित लागी। परम कृपाल प्रनत-अनुरागी॥
जेहि जन पर ममता अति छोहू। जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू॥

30/10/2025

एक अनीह अरूप अनामा। अज सच्चिदानन्द परधामा॥
व्यापक बिस्व-रूप भगवाना। तेहि धरि देह चरित कृत नाना॥

30/10/2025

सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहे बिनु रहा न कोई॥
तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भाँति बहु भाखा॥

30/10/2025

पुनि जल दीख रूप निज पावा |

30/10/2025

होहु निसाचर जाइ तुम्ह कपटी पापी दोउ

30/10/2025

असि कहि दोउ भागे भय भारी |

29/10/2025

मुनि अति विकल मोह मति नन्दी ⁷b

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