24/10/2025
वोट का वादा, विकास का नारा,
फिर से सत्ता की खातिर है सारा।
जब तक चुनाव है, तब तक बात है,
फिर वही अंधेरी रात है।'कुर्सियों का यह कैसा खेल है,
सुबह कुछ और, शाम कुछ और मेल है।
जनता बस देखती रह जाती है,
क्योंकि हर मौसम में नया चेहरा जेल है।'
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