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कोई इंसान खुद खामोश नहीं होता वक्त और हालात उसे बना देते हैं...❤️🌻
03/12/2025

कोई इंसान खुद खामोश नहीं होता
वक्त और हालात उसे बना देते हैं...❤️🌻

सुप्रभात मित्रों! फाल्गुन मास की एक खूबसूरत तस्वीर, जिसमे एक किसान सुबह सुबह ठेला लेके , खूबसूरत पगडंडी से गुजरते हुए अप...
29/11/2025

सुप्रभात मित्रों! फाल्गुन मास की एक खूबसूरत तस्वीर, जिसमे एक किसान सुबह सुबह ठेला लेके , खूबसूरत पगडंडी से गुजरते हुए अपने खेतो की तरफ जा रहा है । इस समय खेतो में सरसों पक चुकी है । किसान के कान पे लपेटा हुआ वो गमछा बता रहा है कि ठंडी अभी भी कुछ न कुछ शेष रह गई है। पेड़ो पर चमकती रोशनी इस बात का सबूत है कि सूर्योदय बस अभी हो ही रहा है। यह दृश्य बेहद लुभावना है जो आपको अपने घर और गांव की याद दिला देगा। हर गांव में लगभग ऐसा ही सौंदर्य है इस समय। आशा है पोस्ट आपको पसंद आएगी । धन्यवाद !

ढलती शाम की लालिमा में दिन भी थककर सो जाता,हवा में घुली ख़ामोशी मन को गहरा छू जाती।
26/11/2025

ढलती शाम की लालिमा में दिन भी थककर सो जाता,
हवा में घुली ख़ामोशी मन को गहरा छू जाती।

मिथिला भूमि विद्या और ज्ञान की जननी के साथ देवी-देवताओं की अनंत कृपा से पवित्र और आध्यात्मिक भूमि भी है। यहाँ के हर गाँव...
26/11/2025

मिथिला भूमि विद्या और ज्ञान की जननी के साथ देवी-देवताओं की अनंत कृपा से पवित्र और आध्यात्मिक भूमि भी है। यहाँ के हर गाँव, हर जिले दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, सीतामढ़ी, सुपौल, मधेपुरा, खगड़िया, समस्तीपुर क्षेत्र में ऐसे असंख्य देवस्थल हैं जहाँ लोक-आस्था की अद्भुत झलक मिलती है।

अगर गाँव में रोज़ी-रोटी का जुगाड़ हो जाए…तो सच मानिए, गाँव से बड़ा कोई स्वर्ग नहीं। ❤️
26/11/2025

अगर गाँव में रोज़ी-रोटी का जुगाड़ हो जाए…
तो सच मानिए, गाँव से बड़ा कोई स्वर्ग नहीं। ❤️

कोसलपुरी सुहावनी सरि सरजूके तीर।भूपावली-मुकुटमनि नृपति जहाँ रघुबीर॥जय सिया राम! 🙏
25/11/2025

कोसलपुरी सुहावनी सरि सरजूके तीर।
भूपावली-मुकुटमनि नृपति जहाँ रघुबीर॥

जय सिया राम! 🙏

इसे जानते है? या फर्राटा पंखा मिल गया तो भूल गए। ये धान, गेहूं जैसे अनाज को साफ करने का देशी तरीका था। इसे परौता मारना क...
25/11/2025

इसे जानते है? या फर्राटा पंखा मिल गया तो भूल गए।
ये धान, गेहूं जैसे अनाज को साफ करने का देशी तरीका था। इसे परौता मारना कहते है। दो लोग एक चादर लेकर हवा करते है और एक व्यक्ति तसले में अनाज लेकर उस हवा के सामने गिराता है। चादर से निकली हवा की वजह से अनाज आगे गिर जाता है और कचरा दूर उड़ जाता है और हल्के अनाज भी आगे की तरफ हो जाते है।
एक लोग भर भर कर अनाज पकड़ाते रहते है। जो बैठकर तसले में अनाज भर कर पकड़ाता हो वो अनाज में जो कचरे गिर कर रह जाते है उन्हें हटाता रहता है।
इस प्रक्रिया से अनाज साफ करने को पारौता मार कर ओसाना कहते है।
इसी तरह पुराने समय में दो लोग मिलकर तालाब से पानी उलच कर सिंचाई किया करते थे। बीच में एक उथला सा बर्तन बांधते थे और दोनों तरफ रस्सी लगी रहती थी। दो लोग उस रस्सी को पकड़ कर रखते थे। बर्तन को ढीला करके पानी भरते थे फिर रस्सी की मदद से उस बर्तन पर जोर लगाकर उस पानी को दूर फेंक दिया करते थे। इस तरह से सिंचाई होती थी इसे दोगला चलाना कहते थे।
अब तो मशीनीकारण ने काफ़ी चीजों को आसान कर दिया है।
आप सबको पोस्ट अच्छी लगी हो तो लाइक करें शेयर करें और प्रतिक्रिया अवश्य दे। ताकि मेरा उत्साह बढ़े और मै यू ही तमाम तरह की पोस्ट लिखू आप सबको भूली बिसरी बातें याद दिलाऊ।
अरूणिमा सिंह

कागजी कार्रवाई को अलविदा कहें! 🎓 हमारे अत्याधुनिक ईआरपी के साथ अपने स्कूल में क्रांति लाएं, जिसमें शामिल हैं:✅ बिजली की ...
24/11/2025

कागजी कार्रवाई को अलविदा कहें! 🎓
हमारे अत्याधुनिक ईआरपी के साथ अपने स्कूल में क्रांति लाएं, जिसमें शामिल हैं:
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पुआल के गट्ठरों का ढेर जिसे हमारी अवधी भाषा में गजहर कहा जाता है, उसके ऊपर बैठना बचपन के अनेक आनंद में से एक था। ढेरी पर...
22/11/2025

पुआल के गट्ठरों का ढेर जिसे हमारी अवधी भाषा में गजहर कहा जाता है, उसके ऊपर बैठना बचपन के अनेक आनंद में से एक था। ढेरी पर बैठकर अमरूद और शकरकंद खाना अगहन की विलासिता थी।

अगहन आते ही उन गट्ठरों की गंध ढूंढता हूं, वह गंध जो मेरी स्मृतियों के अंदर महक रही है। उस आग की गंध जिसका स्वाद गुड़ जैसा था, पानी में लिपटे गेहूं के खेत की गंध, ओस से भीगे हुए मेड़ की गंध, पुआल की ढेर की गंध, ताल के आस पास छाए कुहरे की गंध, मंदिर के पास लगे गेंदे और कनेल की गंध, छप्पर पर लौकी के फूलों की गंध मन मिरगा को पागल करते हैं।

मैं ढूंढता हूं उस दुलार की गंध जो गाय अपने बछड़े में पाती है। वह वत्स भाव की गंध मैं संबंधों में ढूंढता हूं। अगहन आते ही स्वेटर में अम्मा के हाथों की महक ढूंढता हूं, उस धूप की गंध ढूंढता हूं जिसके स्पर्श में मां जैसा ही वात्सल्य छिपा होता था, कुएं के टटके पानी की गंध ढूंढता हूं जिससे छूकर ही नहावन मान लिया जाता था।

अगहन आते पकते हुए लाल दूध और उबलती राब की गंध आस पास किसी तितली जैसे फिरने लगती है। रसियाउर में सने ललके चाउर की गंध, चरखी से निकले ऊख के रस में मिले दही और भुने शकरकंद की गंध ढूंढता हूं। शाम को चलने वाली बौराही पछिया हवाओं की गंध जिसमें बरफ घुली होती थी, अगहन आते ही ढूंढने लगता हूं।

भूंजे चावल, चिवड़े और मक्के के दाने में अगहन महकता है। हरी धनिया और ताजे आलू के साथ हरी मिर्च को चटनी अगहन को अमृत बनाता था।

अगहन आते ही लोहित श्वेत मटर के फूले से भरे खेत की गंध, अगहनी अरहर के पीत पुष्पों और छीमियों की गंध के पीछे भागता हूं। अपनी गांठों में वासंती शिशु को पाल रहे पेड़ों के गंभीर स्वरों में बसे भाव गंध को पहचानने की कोशिश करता हूं। बाग में बहती अमरूदों की गंध दुआर पर लगे पालक बथुए और सरसों से मिलकर कितनी गाढ़ी हो जाती है। अगहन आते ही बासी भात, सगपहिता, निमोना और छाछ वाली थाली की गंध मुझे पागल करती है।

मन अगहनी गंध के वशीभूत है।
Pawan Vijay भैया जी की कलम से

तेजस हादसे से ठीक 3 सेकंड पहले ली गई तस्वीर ने पूरे देश को भीतर तक हिला दिया है। यह वही पल था जब हमारा बहादुर वायुसेना प...
21/11/2025

तेजस हादसे से ठीक 3 सेकंड पहले ली गई तस्वीर ने पूरे देश को भीतर तक हिला दिया है। यह वही पल था जब हमारा बहादुर वायुसेना पायलट आसमान में भारत की ताकत और क्षमता का प्रदर्शन कर रहा था, लेकिन अगले ही क्षण एक दुखद दुर्घटना ने उसे हमसे छीन लिया। यह दिन भारतीय वायुसेना और पूरे देश के लिए बेहद दर्दनाक रहा है।

हमारा तेजस फाइटर जेट भारत की तकनीकी प्रगति और आत्मनिर्भर रक्षा प्रणाली का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में इस हादसे ने सभी को गहरे सदमे में डाल दिया है। वायुसेना ने दुर्घटना की जांच के लिए कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी के आदेश दे दिए हैं, ताकि सच सामने आ सके और ऐसे हादसे दोबारा न हों।

लेकिन सबसे बड़ा दर्द उस वीर पायलट की शहादत है, जिसने अपना जीवन राष्ट्र की सेवा में समर्पित कर दिया। उसकी बहादुरी और बलिदान को देश कभी नहीं भूलेगा।

Disclaimer: यह पोस्ट केवल उपलब्ध समाचार आधारित जानकारी पर आधारित है।

🌾✨ शीर्षक – “दादी की हिम्मत, गांव की सुबह” ✨🌾**“सुप्रभात मित्रों…कोहरे की चादर ओढ़े यह पगडंडी आज फिर एक कहानी कह रही है…...
21/11/2025

🌾✨ शीर्षक – “दादी की हिम्मत, गांव की सुबह” ✨🌾

**“सुप्रभात मित्रों…
कोहरे की चादर ओढ़े यह पगडंडी आज फिर एक कहानी कह रही है…
नंगे पांव, हाथ में लाठी, बदन पर ओढ़ी साल…
पर कदमों में वो जज़्बा, जिसे देखकर ठंड भी शर्म खा जाए।

मेरी दादी…
उम्र के सफ़र में घुटने भले थक गए हों,
पर हौसलों की मिट्टी अभी भी खेतों जैसी उपजाऊ है।
सुबह की इस धुंध में उनकी परछाईं बता रही है—
गांव की औरतें कभी हारना नहीं जानतीं,
वे हर दिन मेहनत में अपनी ही जीत उगाती हैं।

आज की इस ठंडी सुबह में,
दादी सिर्फ खेतों की ओर नहीं जा रही…
वह एक संदेश छोड़ रही हैं—
मेहनत कभी उम्र नहीं देखती।”**

🌞🙏 सुप्रभात!
आज का दिन दादी की तरह मजबूत, शांत और कर्मशील हो।

गाँव की सुबह का असली सौंदर्य—ओस की चमक और ठंडी हवा मन को सुकून देती है 😍😊
20/11/2025

गाँव की सुबह का असली सौंदर्य—ओस की चमक और ठंडी हवा मन को सुकून देती है 😍😊

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