शब्द मंदाकिनी- स्वरचित

शब्द मंदाकिनी- स्वरचित जीवन की हर चुनौती को कलात्मक बना देती हैं मेरी कलम।
शब्दों की यह मन्दाकिनी मेरी डायरी के पन्नो तक ही न सिमट जाए.. जो ईश्वर ने दिया है क्यों न उसे बांटा जाए..

हमें लगता है जीवन की चुनौतियों ने हमें जकड़ा है।मोह और बंधनों नेहमें कसकर पकड़ा है।सच में ऐसा नही है,यह सिर्फ हमें लगता है...
20/10/2025

हमें लगता है
जीवन की चुनौतियों ने
हमें जकड़ा है।
मोह और बंधनों ने
हमें कसकर पकड़ा है।
सच में ऐसा नही है,
यह सिर्फ हमें लगता है।
न हमें संसार बांधता है,
न कोई विचार पकड़ता है।
हम खुद ही उन्हें
कसकर पकडे हुए हैं।
और दोहरापन देखो हमारा,
हम ही अक्सर रोते हैं,
कि मुक्त नही हो रहे हैं।
हमारी फितरत ऐसी ही बन गई हैं,
मन की गहरी परतों में
यह आदत धंस गई है।
हम सब पर नियंत्रण
पाना चाहते है।
सब कुछ पकड़ना चाहते है,
जबकि सहज़ जीवन को
कौन पकड़ सका आज तक।
वो तो अपने प्रवाह में बस
बहता ही रहता है।
हवा को तरह बहने दें
जीवन के प्रवाह को।
पकड़ना,
समेटना,
संचय करना।
छोड़ देते हैं ज़ब,
हम मुक्त जीवन का आनंद
लेते हैं तब।
यही मुक्ति है
जहाँ सहज़ जीवन प्रवाह है,
जीवन रण से भागना मुक्ति नही।
©लक्ष्मी बिष्ट गड़िया
#मुक्ति #जीवनसंघर्ष #आनंद

प्रेम का विस्तार है हर त्योहार।****---=****--*****-प्रेम का विस्तार करती है प्रकृति,हमारे पूर्वजों ने यह बात अच्छे से सम...
20/10/2025

प्रेम का विस्तार है हर त्योहार।
****---=****--*****-
प्रेम का विस्तार करती है प्रकृति,
हमारे पूर्वजों ने यह बात अच्छे से समझी।
किया नित सूर्य नमस्कार,
चाँद की पूजा और दीदार।
मनाया ऋतुओं के अनुसार
ही हर त्योहार।
उद्देश्य था
हर दिशा में हो,
प्रेम का विस्तार।
पंछियो को डाला दाना,
श्वानों को दी रोटी।
चींटीयों को आटा डाला,
गायों को दिया नित चारा।
जानते थे पुराने विद्वान,
मनुष्य की स्वार्थी फितरत।
कह दिया सबकी सेवा से,
हर बुरे ग्रह को ठीक करेगी कुदरत।
हर ग्रह को जोड़ दिया
मनुष्य की कामनाओं से।
सब करने लगे निज हित हेतु परोपकार,
प्रकृति तो बस चाहती है
प्रेम का विस्तार।
बेशर्त भलाई करने वाले होते है विरले,
इसलिए बना दी गई मान्यतायें।
मान्यतायें वह उपकरण है
जो इंसान से कार्य करवा ही लेती है।
बन गया कामनाओं का व्यापार,
निस्वार्थ होना था जो परोपकार।
प्रकृति के ही प्रतिकूल हो
गए हैं आज त्योहार।
जबकि उद्देश्य था
प्रेम का विस्तार।
©लक्ष्मी बिष्ट गड़िया
#त्योहार #मान्यताए #आनंद #कुदरत

दीपों का उत्सव है दीपावली,मगर यह धमाकों का शोर कैसा?डर से दूर भागा हुआ कुत्ता है बहुत सहमा हुआ।घबराहट से किसी कोने मेंदु...
20/10/2025

दीपों का उत्सव है दीपावली,
मगर यह धमाकों का शोर कैसा?
डर से दूर भागा हुआ कुत्ता
है बहुत सहमा हुआ।
घबराहट से किसी कोने में
दुबक कर बैठी बिल्ली,
शोर के थमने का
बेसब्री से इंतज़ार कर रही।
नन्हे कीट से लेकर
विशाल हाथी तक परेशान है।
सिर्फ अपनी ही ख़ुशी मनाने में,
इंसान क्यों इतना बावला हुआ।
उन्मुक्त आसमान में उड़ने वाले पंछियों का
धुंधले गगन में उड़ना मुश्किल हुआ।
जो बेज़ुबान खाना ढूंढ़ते हैं जमीन पर,
हैरान हैं यह सोचकर,
मुँह में जाते ही धमाके के साथ
यह खाना क्यों फट रहा।
बेचैन से परेशान जीव,
सोचते हैं -यह डरावना सपना
क्यों खत्म नहीं हो रहा।
कुछ मासूम बहरे हो रहें हैं,
कुछ की आवाज़े चली गई।
घबराकर दिल के दौरे सिर्फ
इंसानों को ही नहीं पड़ते,
कई बेजुबानों की धड़कन
इस शोर के डर से थम गई।
बारूद का बुरादा
हर जगह बिखरा हुआ,
और इस धुएं से आसमान में
कुछ भी नही दिख रहा।
सबके जीवन में होनी
चाहिए खुशहाली,
पर इंसान बेज़ुबानों का
सुकून क्यों छीन रहा।
मना रहा हैं दीपावली,
इंसान अहंकार से कह रहा।
©लक्ष्मी बिष्ट गड़िया


हरि व्यापक सर्वत्र समाना... कहाँ ईश्वर नही है... सबमें ईश्वर है.. किन्तु सब ईश्वर नही....  #अपनापन  #ईश्वर  #सर्वत्र  #व...
24/09/2025

हरि व्यापक सर्वत्र समाना... कहाँ ईश्वर नही है... सबमें ईश्वर है.. किन्तु सब ईश्वर नही.... #अपनापन
#ईश्वर
#सर्वत्र
#व्यापक

 #अपनापन  #रिश्ते
23/09/2025

#अपनापन
#रिश्ते

अस्तित्व का जंगल विराना हर कोई अकेला यहाँ.     #अस्तित्व  #भावनाओं
22/09/2025

अस्तित्व का जंगल विराना
हर कोई अकेला यहाँ.


#अस्तित्व
#भावनाओं

जन्माष्टमी की शुभकामनायें..
16/08/2025

जन्माष्टमी की शुभकामनायें..

लीजिए प्रस्तुत है एक ओर कविता
शीर्षक -:श्री कृष्ण कहाँ हैं.

जहाँ श्रेष्ठ बुद्धि है,
नवीनता की स्वीकृति है.
जहाँ आत्म शुद्धि है,
समरसता मानव की प्रवृति है.
जीवन में दिव्यता है,
जहाँ सदा निर्भयता है.
जहाँ उच्च आत्मबल है,
वहाँ कृष्ण हर पल हैं.

जहाँ चहुँ ओर न्याय हैं,
जीवन गीता का अध्याय है.
जहाँ आनंद और शांति है,
गलत परम्पराओं के प्रति क्रांति है.
जहाँ कर्म निष्काम हैं,
नारी का सम्मान है.
जहाँ भक्ति प्रबल है,.
वहाँ कृष्ण हर पल हैं.

जहाँ हर दिन उत्सव है,
हर जीव का महत्व है.
भेदभाव से कोसों दूर,
हर इंसान समान है.
संभव हर मुश्किल के हल हैं
वहाँ कृष्ण हर पल हैं.
©लक्ष्मी बिष्ट
मौलिक एवं स्वरचित रचना

16/08/2025

ईश्वर को समर्पित एक रचना..

हर भेद से ऊपर है तू,
कोई भाव तुझे छिपा नही.
करुणा का अनन्त सागर,
कृपालु तुझसा कोई दिखा नही.
सद्भाव और समभाव दे,
दूर हर विकार कर.
हम तेरे बच्चे है भगवन,
हमारा उद्धार कर.
कर्म कुछ इस तरह करें,
कभी किसी का दिल न दुखे.
मन- बुद्धि और चित्त को,
तुझमें ही स्थिर करें.
अंतस में बस कर कृपानिधि तू,
ह्रदय का विस्तार कर.
छल- कपट से दूर रहें,
निर्मल और निर्भय रहें.
तुझको कर्ता जानकर,
मैं भाव को तजें.
नादान हमको जानकर,
दूर अहंकार कर.
आनंद बांटे चारों ओर,
नेह से सीचें हर छोर.
सीलन पड़ी है जहाँ
मस्तिष्क के तंतुओं में,
अपनी कृपा की धूप से
सरल मन के तार कर.
सबमे तू है तुझमें सब हैं,
एक अवनि एक नभ हैं.
माया के प्रपंचों में,
उलझी चित्त वृति है.
शुष्क और नीरस सम जीवन में,
भक्ति रस का संचार कर.
©laxmi Bisht
मौलिक एवं सर्वधिकार सुरक्षित रचना

06/08/2025
06/08/2025

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