20/10/2025
हमें लगता है
जीवन की चुनौतियों ने
हमें जकड़ा है।
मोह और बंधनों ने
हमें कसकर पकड़ा है।
सच में ऐसा नही है,
यह सिर्फ हमें लगता है।
न हमें संसार बांधता है,
न कोई विचार पकड़ता है।
हम खुद ही उन्हें
कसकर पकडे हुए हैं।
और दोहरापन देखो हमारा,
हम ही अक्सर रोते हैं,
कि मुक्त नही हो रहे हैं।
हमारी फितरत ऐसी ही बन गई हैं,
मन की गहरी परतों में
यह आदत धंस गई है।
हम सब पर नियंत्रण
पाना चाहते है।
सब कुछ पकड़ना चाहते है,
जबकि सहज़ जीवन को
कौन पकड़ सका आज तक।
वो तो अपने प्रवाह में बस
बहता ही रहता है।
हवा को तरह बहने दें
जीवन के प्रवाह को।
पकड़ना,
समेटना,
संचय करना।
छोड़ देते हैं ज़ब,
हम मुक्त जीवन का आनंद
लेते हैं तब।
यही मुक्ति है
जहाँ सहज़ जीवन प्रवाह है,
जीवन रण से भागना मुक्ति नही।
©लक्ष्मी बिष्ट गड़िया
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