Jindgi ka safar

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समय बीत रहा है,और बीतते समय के साथ हम बहुत कुछ अपने पीछे छोड़ आए हैं, क्या छूट गया अपने व्यस्त जीवन में हमने जानने की कोशिश भी नहीं की ,हमारे इस पेज से जुड़कर जीवन की कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें कुछ हम बताएं कुछ आप हमें बताना,
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बच्चों के आगे बूढ़े लाचार मां बाप😭आजकल के कई घरों में ये शब्द जवान बच्चों के मुंह से काफी  सुनने को मिलता है, बेटा पूछता...
21/07/2025

बच्चों के आगे बूढ़े लाचार मां बाप😭

आजकल के कई घरों में ये शब्द जवान बच्चों के मुंह से काफी सुनने को मिलता है, बेटा पूछता है बाप से तुमने आखिर किया ही क्या है मेरे लिए सच पूछें तो ये " शब्द, सिर्फ सवाल नहीं होता ये उन अनगिनत त्यागों, उन अनकहे बलिदानों और उन सारी रातों की नींद का अपमान होता है जो उसके बूढ़े मां बाप ने अपनी जिंदगी भर की अपनी खुशियां मर मारकरके अपने उस बच्चे के लिए कुर्बान की होती हैं , जो आज उनसे तब ये सवाल करता है जब उन्हें उनकी जरूरत होती है, वह लाचार बाप बिना कुछ कहे मन ही मन यही सोचता है कि बेटा, हमने तुम्हारे लिए कुछ खास नहीं किया. हमने बस तुम्हें वो सब दिया जो हमारे पास था – हमारा समय, हमारा पसीना, हमारा प्यार और तुम्हारी ख़ुशी की चाहत.
और साथ ही तुम्हें उड़ने के लिए पंख दिए, बेटा. अब यह तुम पर है कि तुम कितना ऊँचा उड़ पाते हो या उड़ने की कोशिश करते हो ,

आखिर क्यों भूल जाते हैं बच्चे अपने माँ-बाप का त्याग?
आजकल ऐसा क्यों होता है कि बच्चे अपने माँ-बाप के बलिदान और उनकी परवरिश को भूल जाते हैं? वे खुद परिश्रम नहीं करना चाहते और अपनी हर असफलता का ठीकरा अपने माता-पिता पर फोड़ देते हैं. यह न्याय नहीं है. माता-पिता, खासकर बुढ़ापे में, अपने बच्चों के सहारे की तलाश में होते हैं. उन्हें आपकी भावनात्मक और नैतिक ज़रूरत होती है. यह समय है कि आप अपने बेटे या बेटी होने का फर्ज़ निभाएँ, उनके किए गए अनगिनत त्यागों को याद करें और उन्हें वह मान-सम्मान और प्यार दें जिसके वे हक़दार हैं. याद रखिए, माता-पिता का साया एक अमूल्य वरदान है, जिसकी क़ीमत हम अक्सर उनके न होने पर समझते हैं.

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ममता की मूक पीड़ाएक नन्हीं जान की भूख मिटाने के लिए, एक कुतिया रोज़ गाँव की ओर निकल पड़ती थी. हर घर के दरवाज़े पर उसकी आ...
21/07/2025

ममता की मूक पीड़ा
एक नन्हीं जान की भूख मिटाने के लिए, एक कुतिया रोज़ गाँव की ओर निकल पड़ती थी. हर घर के दरवाज़े पर उसकी आँखें एकटक देखतीं, मानों कह रही हों, "मेरा बच्चा भूखा है, मुझे भी एक रोटी दे दो." कई लोग ऐसे भी थे जो रोटी तो नहीं देते थे, बल्कि पत्थर ज़रूर फेंक कर मार देते थे. न जाने वह कुतिया एक रोटी के लिए कितनी पीड़ा सहती, पर अपने बच्चे की भूख के लिए वह अगले दरवाज़े पर फिर बैठ जाती.इस आस में की उसका बच्चा भूखा है ,
रोज़ाना यही चलता रहता. जैसे-तैसे कहीं से एक रोटी मिलती, तो उसे उठाकर वह सीधी अपने ठिकाने पर आती और रोटी अपने बच्चे को दे देती. यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा, जब एक दिन उसके बच्चे ने महसूस किया कि माँ जब भी रोटी लेकर आती है, उसकी आँखों में आँसू जरूर होते हैं.
आज बच्चे ने ठान ली कि वह माँ से पूछेगा कि ऐसा क्यों है. और जब उसकी माँ रोटी का टुकड़ा लेकर घर पहुँची, तो बच्चे ने माँ से पूछा, "माँ, आप जब भी घर लौटती हो, आपकी आँखों में आँसू क्यों होते है,बच्चे के इस सवाल ने मां के आंसू की धार और बढ़ा दी , उसने टाल मटोल कर दिया, लेकिन उस मां ने अपने बच्चे को यह नहीं बताया कि एक रोटी के टुकड़े के लिए उसे गाँव भर में कितने पत्थरों की मार झेलनी पड़ती है. वह खुद दुखी तो थी, लेकिन वह नहीं चाहती थी कि उसका बच्चा यह सुनकर दुखी हो. आखिर माँ की ममता, वह इंसान हो या जानवर, वह खुद दुख झेलते हैं मगर अपने बच्चों को यह एहसास नहीं होने देते हैं , मां बाप अपने बच्चों के लिए वह सब कुछ करती है, पर बच्चों को यह महसूस नहीं होने देती कि उन्हें कितना कष्ट होता है. वह हर वक़्त मुस्कुराते नज़र आएँगे, अपनी पीड़ा को वह खुद में ही समेट लेते हैं, कभी नहीं बताते. यह उनकी निस्वार्थ ममता का ही एक रूप है.

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एक गृहिणी का अदृश्य संघर्ष😭सुबह की पहली किरण फूटने से पहले ही घर की स्त्री (बहु)की नींद टूट जाती, मानो कोई अदृश्य धागा उ...
20/07/2025

एक गृहिणी का अदृश्य संघर्ष😭
सुबह की पहली किरण फूटने से पहले ही घर की स्त्री (बहु)की नींद टूट जाती, मानो कोई अदृश्य धागा उसे खींचकर बिस्तर से उठा देता हो, अभी सूरज भी पूरी तरह जागा नहीं होता और उसकी दिनचर्या शुरू हो जाती बच्चों की नींद में डूबी आँखें मलते हुए उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना, कोई बच्चा कहे मुझे नाश्ते में ये चाहिए कोई कहे मुझे ये चाहिए सभी की फरमाइश पसंदीदा नाश्ते की खुशबू पूरे घर में फैलाना, पति के ऑफिस के लिए दोपहर का खाना प्यार से पैक करना ये सब उसके लिए रोज का सामान्य काम नहीं, बल्कि एक प्रेम से भरी जिम्मेदारी होती है ,इसके बाद सास-ससुर की देखभाल, घर की हर कोने में साफ़-सफाई, और न जाने कितने ऐसे छोटे-बड़े काम जो कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेते हैं , जैसे अनंत यात्रा पर निकले यात्री का सफर,
एक औरत का जीवन किसी चक्की के दो पाटों के बीच पिसते गेहूं जैसा होता है , जहाँ हर दाना अपनी पहचान खोकर भी आटा बनकर दूसरों का पेट भरता है,सुबह से शाम तक वह बिना रुके काम करती रहती है ,जरा सा उफ़ तक ना करके अपनी हर इच्छा, हर थकान को परे रखकर, जैसे अपने अस्तित्व को ही भूल गई हो, अक्सर जब उसे लगता कि अब शायद थोड़ी देर आराम मिल पाएगा, तो कोई न कोई नया काम सामने आ जाता, मानो नियति भी उसकी परीक्षा ले रही होती है, उसके होंठों पर हमेशा एक अमिट मुस्कान रहती है, और ज़बान पर 'हाँ जी' के सिवा कोई दूसरा शब्द नहीं आता है, जैसे उसने अपने दुःख को शब्दों में ढालना ही छोड़ दिया हो,
वह कभी किसी को यह महसूस नहीं होने देती है कि उसे भी कोई तकलीफ हो सकती है, कि उसे भी कभी-कभी एक कंधे की तलाश होती है जहाँ वो सिर रखकर रो सके, अगर कभी गलती से उसके मुँह से कोई शिकायत निकल जाए, तो तुरंत सुनने को मिलता, बहू का मुँह बहुत चलता है , इस कड़वी सच्चाई ने उसके भीतर की आवाज़ को दबा कर रखे रहता है,इस डर से वह अपनी तकलीफों को अपने अंदर ही समेटना सीख लेती है, जैसे उसने उन तकलीफों को किसी गहरे कुएँ में छुपा रखा हो जहाँ से कोई उन्हें देख न सके,वह दिन भर हंसती-मुस्कुराती रहती है , अपने दर्द को अपनी हंसी के पीछे छुपाए हुए, जैसे कोई कुशल कलाकार अपने नाटक में अपना दुःख छिपा लेता है,
उस हंसते हुए चेहरे के पीछे किसी ने कभी उस औरत का रात का चेहरा नहीं देखा होता ,वह चेहरा जो अक्सर थकन और अनकहे दर्द से बोझिल होता है, जहाँ आँसू चुपचाप तकिए में सिमट जाते थे, उसने कभी किसी को यह महसूस होने ही नहीं दिया कि उसके भीतर कितना कुछ चल रहा है, कितनी उलझने हैं, कितनी अनसुनी चीखें हैं। इसीलिए तो कहते हैं, एक औरत के कई रूप होते हैं। वह अपने सारे दुखों को अपने भीतर समेटे हुए भी, सबके लिए एक सहारा बनी रहती है, एक मजबूत खंभा जो परिवार की इमारत को गिरने नहीं देता। उसका समर्पण और त्याग अक्सर अनदेखा रह जाता है, जैसे रात के तारे दिन के उजाले में दिखते नहीं, लेकिन फिर भी वह मुस्कुराती रहती है, अपने परिवार के लिए, अपने अपनों के लिए, क्योंकि उसकी मुस्कान ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है।
क्या आपने कभी सोचा है कि उस मुस्कान के पीछे कितनी कहानियाँ छिपी होती हैं,😭

दोस्तो आपका इस लेख के बारे में क्या कहना है कमेंट में जरूर बताएं , ये सच है या झूठ और इसमें आपको कुछ सच्चाई नजर आई हो तो दोस्तों के साथ शेयर जरूर कीजियेगा, आगे भी आपका प्यार सपोर्ट बना रहे इसी तरह आपके लिए निरंतर ऐसे ही जिंदगी की सच्चाई लाते रहेंगे धन्यवाद,,, Jindgi ka safar

भारतीय पुरुष की त्याग और संघर्ष की कहानी भारतीय समाज में एक पुरुष की भूमिका अक्सर त्याग, दृढ़ता और अथक संघर्ष से भरी होत...
20/07/2025

भारतीय पुरुष की त्याग और संघर्ष की कहानी
भारतीय समाज में एक पुरुष की भूमिका अक्सर त्याग, दृढ़ता और अथक संघर्ष से भरी होती है. शादी के बाद, उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता अपनी पत्नी और बच्चों को हर खुशी देना बन जाती है. वह अपनी पत्नी का दुख बिल्कुल नहीं देख पाता और उनकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपनी खुद की इच्छाओं का बलिदान करने से भी पीछे नहीं हटता.
एक भारतीय पुरुष परिवार के सामने हमेशा मुस्कुराता हुआ नज़र आता है, चाहे उसके अंदर कितने भी ग़म क्यों न हों. वह अपने दुख को कभी भी परिवार पर हावी नहीं होने देता और उनसे अकेले ही निपटना पसंद करता है. आज की महंगाई के दौर में, जब आमदनी अक्सर खर्चों से कम होती है (आमदनी अठन्नी तो खर्चा रुपया), तब भी वह यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश करता है कि उसके घर वालों को किसी भी चीज़ की कमी न हो. उनकी भी अपनी इच्छाएँ और सपने होते हैं, लेकिन अक्सर वे मन में ही रह जाते हैं. बच्चों की स्कूल की फीस, किताबों का खर्च, घर का सामान, और बुज़ुर्ग माता-पिता की दवाइयाँ जैसी ज़रूरतों को पूरा करते-करते उसकी अपनी ख्वाहिशें कहीं पीछे छूट जाती हैं. समाज का दिखावा और जमाने के साथ चलने का दबाव उसे और भी बेबस बना देता है. अगर वह जमाने के साथ नहीं चलता, तो उसे अपनी पत्नी और बच्चों की बातें सुननी पड़ती हैं. पुरुष एक ऐसे योद्धा की तरह है जो परिवार के लिए अपनी खुशियों का त्याग करता है, अपने दुखों को छुपाता है, और लगातार संघर्ष करता है ताकि उसके प्रियजनों को बेहतर जीवन मिल सके. वह समाज के दबावों और आर्थिक चुनौतियों के बीच भी अपने परिवार के लिए एक मज़बूत सहारा बना रहता है, भले ही इसके लिए उसे अपनी इच्छाओं और सपनों को दफनाना पड़े. यह एक बेबस लेकिन समर्पित व्यक्ति की कहानी है जो अपने परिवार के लिए सब कुछ न्योछावर कर देता है ,

दोस्तो क्या ये बात सच ✅ है या गलत✖️ कमेंट करके जरूर रिप्लाई जरूर करें, Jindgi ka safar

20/07/2025

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बहुत ही पुराना खेल है और किस किस ने यह खेल खेला है और कमेंट में जरूर बताएं, और खेल का क्या नाम वो भी बताएं,?            ...
20/07/2025

बहुत ही पुराना खेल है और किस किस ने यह खेल खेला है और
कमेंट में जरूर बताएं, और खेल का क्या नाम वो भी बताएं,?

वो पुरानी लैंप की रोशनी, सिर्फ एक प्रकाश स्रोत नहीं थी, बल्कि यादों का एक रोशनदान थी। जैसे ही शाम ढलती, घर में लैंप जलान...
19/07/2025

वो पुरानी लैंप की रोशनी, सिर्फ एक प्रकाश स्रोत नहीं थी, बल्कि यादों का एक रोशनदान थी। जैसे ही शाम ढलती, घर में लैंप जलाने की तैयारी शुरू हो जाती। चिमनी को पोंछना, बत्ती को ठीक करना, और हांडी को चमकाना - ये सब किसी बड़े त्योहार की तैयारी से कम नहीं लगता था। आज भी, जब ऐसी लैंप की कोई तस्वीर दिखती है, तो मन बरबस बचपन की उन सुनहरी यादों में खो जाता है।
एक ही चौक में, लैंप की मंद-मंद रोशनी में, भाई-बहन एक साथ बैठकर पढ़ाई करते थे। उस समय हर कोई ज़ोर-ज़ोर से पढ़ता, मानो अपनी आवाज़ दूसरे तक पहुँचाकर यह दिखाना चाहता हो कि वह कितनी लगन से पढ़ाई कर रहा है। आज के बच्चों को ट्यूबलाइट की तेज़ रोशनी भी कम लगती है, शायद इसलिए कि उनकी आँखें मोबाइल की चमकदार स्क्रीन पर ज़्यादा टिकी रहती हैं।
सच कहूँ तो, वो दिन अब बस यादों में ही शेष हैं। वो सादगी भरा जीवन, वो एक-दूसरे का साथ, वो सीमित संसाधनों में भी खुशियाँ ढूंढ लेना – ये सब आज के दिखावे और भाग-दौड़ भरे जीवन में कहीं खो गया है। वो लैंप की रोशनी, सिर्फ़ घर को ही नहीं, बल्कि दिलों को भी रोशन करती थी। आज सब कुछ कितना बदल गया है, पर उन दिनों की वो महक, वो सुकून, वो अपनापन, आज भी दिल के किसी कोने में ताज़ा है। काश, हम फिर से उन पलों को जी पाते,

दोस्तो यदि आपके पास भी कोई ऐसा विषय जो तो कमेंट में हमसे जरूर साझा करें इस पेज के माध्यम से हम अपने और साथियों तक पहुंचाएंगे कि जीवन में हमने क्या खोया है और क्या पाया है, स्टोरी अच्छी लगी हो तो दोस्तों के साथ शेयर जरूर कीजियेगा और पेज को फॉलो करना न भूलें Jindgi ka safar
🙏शुभरात्रि🙏

पुराने दिनों की यादें: एक खोया हुआ संसार😭 आज के समय में जब भी हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो वो पुराने दिन वाकई सोने जैसे ...
19/07/2025

पुराने दिनों की यादें: एक खोया हुआ संसार😭
आज के समय में जब भी हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो वो पुराने दिन वाकई सोने जैसे लगते हैं, जब मोबाइल और इंटरनेट का शोर नहीं था, तो रिश्तों में एक अलग ही मिठास थी,
कल्पना कीजिए उस वक्त की ,रात के खाने के बाद, सारा परिवार एक साथ बैठता था, मोबाइल की नीली रोशनी में गुम होने की बजाय, हर कोई एक-दूसरे से बातें करता, दिनभर का हालचाल पूछता ,आपकी दादी माँ की कहानियाँ, जो हर रात खाने के बाद सुनाई जाती थीं, वो सिर्फ कहानियाँ नहीं थीं, बल्कि परिवार को जोड़ने वाली डोर थीं ,उनमें प्रेम था, अपनापन था और एक ऐसा सुकून था, जो आज ढूंढने से भी नहीं मिलता, उन लम्हों को याद करके सचमुच दिल में एक टीस उठती है, और मन करता है कि काश वो दिन फिर से लौट आएं, लेकिन वो शायद मुनासिब नहीं ,
उस समय किसी तरह की भागदौड़ नहीं थी, लोग दिखावे की होड़ में नहीं थे, किसी को इस बात की चिंता नहीं रहती थी कि पड़ोसी के पास क्या है और मेरे पास क्या नहीं ,अमीरी और गरीबी का भेद शायद उतना गहरा नहीं था, या शायद लोग उसमें उलझते ही नहीं थे ,सबका ध्यान जीवन की सादगी और एक-दूसरे के साथ को महत्व देने पर था,
आज के समय में, बस दिखावे की दुनिया रह गई है, अगर कोई 4 लाख की गाड़ी घर ले आता है, तो पड़ोसी अगले ही पल 7 लाख की गाड़ी की प्लानिंग बना लेता है ,यह एक अंतहीन दौड़ बन गई है, जिसमें हर कोई खुद को दूसरों से बेहतर या यौन भी कह सकते हैं ऊंचा साबित करना चाहता है, इस होड़ में, आपसी प्रेम कहीं खो गया है, पार्टियाँ और समारोह दिखावे का अड्डा बन गए हैं, पति पत्नी या परिवार वाले फोटो खिंचवाते वक्त ऐसे दिखाते हैं जैसे उनके बीच बहुत गहरा प्रेम हो, लेकिन सच्चाई अक्सर इसके विपरीत होती है, घर पहुँचते ही, रिश्ते की कड़वाहट सामने आ जाती है,
यह सच है कि वो दिन अब वापस नहीं आ सकते, लेकिन उन यादों को सहेजना और उनसे सीख लेना हमारे हाथ में है, शायद हम आज भी उन पुराने दिनों की कुछ अच्छी बातों को अपने जीवन में उतार सकें और रिश्तों की अहमियत को फिर से समझ सकें,

क्या आपको लगता है कि आज भी हम अपने जीवन में उस सादगी और प्रेम को वापस ला सकते हैं ,
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वो सुनहरे दिन जब चोरी में भी था अपना आनंदआजकल के बच्चों को देखकर कभी-कभी मन उदास हो जाता है। कहाँ गए वो दिन जब स्कूल की ...
19/07/2025

वो सुनहरे दिन जब चोरी में भी था अपना आनंद
आजकल के बच्चों को देखकर कभी-कभी मन उदास हो जाता है। कहाँ गए वो दिन जब स्कूल की छुट्टी होते ही दोस्तों का झुंड गलियों में निकल पड़ता था! स्कूल से घर आते हुए रास्ते में अगर किसी के आँगन में आम का पेड़ दिख गया, तो बस, समझो हो गई 'चोरी' की प्लानिंग शुरू. एक दोस्त पेड़ पर चढ़ता था, दूसरा नीचे से आवाज लगाता था, "पकड़ मत लेना, वरना मार पड़ेगी!" और फिर देखते ही देखते झोली भर जाती थी कच्चे-पके आमों से. क्या स्वाद था उन चोरी के आमों का! नमक-मिर्च लगाकर खाते थे और लगता था कि दुनिया का सबसे स्वादिष्ट फल यही है. अमरूद, जामुन, शहतूत... जो भी फलदार पेड़ दिख जाता, उस पर धावा बोल देते थे. उस चोरी में भी एक बेफिक्री थी, एक मासूमियत थी, जिसका आनंद ही कुछ और था.
अब तो वो बात ही नहीं रही. घर में बच्चे हैं, उनके सामने छीलकर केला रख दो तो भी नखरे करते हैं. सेब काट कर दो, तो कहते हैं "हमें नहीं खाना!" वही बच्चे हैं, वही फल हैं, पर वो स्वाद, वो आनंद पता नहीं कहाँ गुम हो गया है. अब बच्चे मोबाइल में गेम खेलते हुए बड़े हो रहे हैं, उन्हें पेड़ पर चढ़ने का रोमांच नहीं पता, धूप में भागने का मज़ा नहीं पता.
जब रिश्ते थे सच्चे और जिंदगियाँ थीं सरल
सिर्फ फलों की चोरी ही नहीं, वो पूरा दौर ही अलग था. न कोई बीमारी का डर, न किसी से बैर. शाम होते ही सारे बच्चे एक मैदान में इकट्ठा हो जाते थे. कभी गिल्ली-डंडा, कभी लंगड़ी टांग, कभी लुका-छिपी... खेल ही खेल में शाम बीत जाती थी. घर आने पर माँ की डांट भी मिलती थी, पर अगले दिन फिर वही मस्ती. किसी से कोई शिकायत नहीं, कोई दुश्मनी नहीं. बस प्यार और भाईचारा.
तब लोग एक-दूसरे से मिलते थे, सुख-दुख बाँटते थे. त्योहारों पर घरों में मिठाइयाँ बनती थीं और पड़ोसी के घर भिजवाई जाती थीं. किसी को कोई परेशानी होती थी तो पूरा मोहल्ला साथ खड़ा होता था. रिश्तों में वो गर्माहट थी, वो अपनापन था. आज के समय में हर कोई अपनी दुनिया में सिमटा हुआ है. पड़ोसी से मिलना तो दूर, अपने ही परिवार में सब मोबाइल और लैपटॉप में व्यस्त रहते हैं.
सच में, वो पुराने दिन, वो मासूमियत, वो बेफिक्री... सब कुछ याद आता है. काश, हम आज के बच्चों को भी उन दिनों की थोड़ी सी झलक दिखा पाते, ताकि वो भी जान सकें कि ज़िंदगी सिर्फ गैजेट्स में नहीं, बल्कि खुले आसमान के नीचे, दोस्तों के साथ और रिश्तों की गर्माहट में भी होती है.
आपको अपने बचपन की कौन सी बात सबसे ज़्यादा याद आती है। कमेंट में जरूर बताएं आपका बीता कल इस पेज के माध्यम से कोई पड़ेगा तो उसे भी बीते दिनों की याद जरूर आएगी,

मोबाइल: एक मीठा ज़हर जिसने रिश्तों को किया तार-तार ✅✖️कितना सुंदर दौर था वो, जब शाम ढलते ही घर के सारे सदस्य एक साथ आकर ...
18/07/2025

मोबाइल: एक मीठा ज़हर जिसने रिश्तों को किया तार-तार ✅✖️
कितना सुंदर दौर था वो, जब शाम ढलते ही घर के सारे सदस्य एक साथ आकर बैठ जाते थे। टीवी पर आते पसंदीदा धारावाहिक हों या कोई फिल्म, खुशी-खुशी सब एकटक देखा करते थे। बीच-बीच में हँसी-मज़ाक होता, गरमागरम चाय की चुस्कियां ली जातीं, और खाना भी एक साथ बैठकर खाते थे। वो सिर्फ खाना नहीं होता था, वो रिश्तों की गर्माहट होती थी, प्यार भरी बातें होती थीं, और एक-दूसरे के दिन भर के किस्से सुनाए जाते थे। उस समय हर चेहरा खिलता था, आँखें चमकती थीं, और घर में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता था।
आज मोबाइल ने वह सब छीन लिया है। अब हर सदस्य अपने-अपने कोने में स्क्रीन से चिपका रहता है। एक ही छत के नीचे रहते हुए भी, मानो मीलों की दूरी आ गई है। साथ बैठकर खाने की बात तो दूर, बगल में बैठी माँ-बाप या भाई-बहन की थाली में क्या है, इसकी भी सुध नहीं रहती। आँखों में मोबाइल की चमक है, और दिमाग में सोशल मीडिया का शोर। वो अपनत्व, वो पारिवारिक जुड़ाव, वो बिना कहे समझ जाने वाला रिश्ता अब कहाँ है? देखते-देखते कितने ही हँसते-खेलते घर इस मोबाइल की अंधी दौड़ में बर्बाद हो गए हैं। यह सिर्फ एक डिवाइस नहीं, बल्कि रिश्तों को धीमा ज़हर देने वाला एक खामोश हथियार बन गया है, जो हज़ारों परिवारों की खुशियाँ निगल रहा है।
यह सिर्फ एक विचार नहीं, बल्कि एक कड़वी सच्चाई है जिसे हम सब महसूस कर रहे हैं, क्या आपको लगता है कि इस स्थिति को बदला जा सकता है, या यह एक ऐसी चुनौती है जिसका सामना हमें करते रहना होगा,

👉दोस्तो आपका इसके बारे में क्या सोचना है , आप कमेंट में जरूर बताएं 💯👍✖️✅
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