
15/01/2022
विधानसभा चुनाव 2022 : बागेश्वर विधानसभा सीट
1967 से अब तक 8 बार कॉंग्रेस तो 6 बार भाजपा फतह कर चुकी है बागेश्वर विधानसभा सीट
1967 में बारामण्डल ( अल्मोड़ा ) सीट से अलग होकर अस्तित्व में आई थी बागेश्वर ( सुरक्षित ) विधानसभा सीट
1967 से 2017 तक इस सीट पर 14 बार हो चुके हैं विधानसभा चुनाव
पृथक उत्तराखण्ड बनने के बाद 4 बार हुवे चुनावों में 3 बार भाजपा तो कॉंग्रेस केवल 1 बार ही जीत पाई है चुनाव
पहली बार काँग्रेस के गोपाल राम दास ने वर्ष 1980, 85 और 89 में लगातार जीत से बनाई थी जीत की हैट्रिक
दूसरी बार भाजपा के चन्दन राम दास वर्ष 2007, 12 और 17 में लगातार जीत से बना चुके हैं जीत की हैट्रिक
लगातार चौथी जीत के लिए 2022 में भी चुनावी समर में उतरेंगे चन्दन राम दास
उत्तराखण्ड में 2022 चुनाव की रणभेरी बज चुकी है और प्रदेश की हर विधानसभा सीट में सियासी शतरंज का खेल शुरू हो चुका है। इसी क्रम में बागेश्वर विधानसभा सीट में भी सियासी तपिश लगातार बढ़ती जा रही है। इस सीट से लगातार तीन बार जीत दर्ज कर अपनी राजनैतिक मजबूती का प्रदर्शन करते आ रहे हैट्रिकधारी भाजपा के चन्दन राम दास की लगातार चौथी जीत के प्रति भाजपा कार्यकर्ता और उनके समर्थक पूरी तरह आशान्वित दिख रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ कॉंग्रेस के नेता-कार्यकर्ताओं का दावा है कि इस बार भाजपा के चन्दन राम दास की जीत का रथ थम जाएगा और इस बार इस सीट पर कॉंग्रेस, 15 सालों के बाद एक बार फिर से जीत का परचम लहराएगी। दावों की सच्चाई तो चुनाव परिणाम के बाद सामने आ ही जाएगी, फिलहाल बागेश्वर विधानसभा सीट में चुनावी तपिश लगातार ढंग से बढ़ रही है।
बागेश्वर विधानसभा सीट के अब तक के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो ये साल 1967 से लेकर अब तक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित चली आ रही है। उत्तर प्रदेश के समय में साल 1967 में बागेश्वर विधानसभा सीट अस्तित्व में आई और इस सीट को तब अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रखा गया था। इससे पूर्व ये बारामण्डल ( अल्मोड़ा ) सीट के अंतर्गत आती थी। मतलब बागेश्वर का संपूर्ण हिस्सा बारामण्डल ( अल्मोड़ा ) सीट के अंतर्गत आता था। अलग बागेश्वर विधानसभा सीट की लगातार उठती मांगों के बीच साल 1967 में बारामण्डल से अलग करके, बागेश्वर विधानसभा सीट को अस्तित्व में लाया गया और साथ ही इस सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया।
उत्तर प्रदेश काल में साल 1967 में ही हुवे विधानसभा चुनाव में कॉंग्रेस प्रत्याशी के रूप में गोपाल राम दास ने जीत दर्ज कर इस सीट से पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्रवेश किया। सीधे और सरल-सहज व्यवहार वाले गोपाल राम दास की जीत की खुशी तब समूचे बागेश्वर विधानसभा में भव्य रूप से मनाई थी । गोपाल राम दास को कट्टर और समर्पित कॉंग्रेसी होने का ईनाम तब पार्टी हाइकमान ने टिकट के रूप में दिया था। परंतु साल 1969 में हुवे विधानसभा चुनाव में कॉंग्रेस ने गोपाल राम दास की जगह कॉंग्रेस नेत्री सरस्वती टम्टा को अपना प्रत्याशी बनाया और सरस्वती टम्टा ने जीत दर्ज की। इसके बाद साल साल 1974 में हुवे विधानसभा चुनाव में कॉंग्रेस ने एक बार फिर से सरस्वती टम्टा को कॉंग्रेस प्रत्याशी बनाया और लगातार दूसरी बार सरस्वती टम्टा चुनाव जीत कर उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंची।
परंतु काँग्रेस की जीत का ये सिलसिला 1977 के विधानसभा चुनाव में आकर रुक गया। आपातकाल के बाद साल 1977 में हुवे विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी के पूरन चंद्र ने जीत दर्ज कर उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्रवेश किया । तब बागेश्वर विधानसभा सीट की जनता ने जनता पार्टी के प्रत्याशी पूरन चंद्र को दिल खोलकर अपना समर्थन, वोट के रूप में दिया था।
साल 1980 में कॉंग्रेस ने बागेश्वर विधानसभा सीट पर एक बार फिर से वापसी की और लगातार 9 साल तक इस सीट पर कॉंग्रेस की विजय पताका फहरती रही। साल 1980 में कॉंग्रेस प्रत्याशी के रूप में गोपाल राम दास ने इस सीट पर जीत दर्ज की और पार्टी हाइकमान के विश्वास को कायम रखा। इसके बाद साल 1985 और 1989 में हुवे विधानसभा चुनाव में भी गोपाल राम दास ने ही इस सीट को फतह किया और उत्तर प्रदेश विधानसभा में, बागेश्वर का प्रतिनिधित्व किया। इस सीट में लगातार तीन जीत के साथ गोपाल राम दास ने जीत की अपनी हैट्रिक भी पूरी की।
9 साल के एकछत्र राज के बाद एक साल 1991 में एक बार फिर से काँग्रेस के हाथों से बागेश्वर विधानसभा सीट फिसल गई। साल 1991 में समूचे देश में रामलहर ने बड़े-बड़े राजनैतिक दलों और चुनावी रणनीतिकारों के चुनावी गणित को उलटकर रख दिया। इसी क्रम में बागेश्वर विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में पूरन चंद्र ने जीत दर्ज की। तब चुनाव के दौरान अन्य स्थानों के तरह बागेश्वर विधानसभा में भी रामलहर का खासा प्रभाव देखने को मिला था।
साल 1993 में कॉंग्रेस ने एक बार फिर से बागेश्वर विधानसभा सीट पर जीत का परचम लहराया। साल 1993 में हुवे विधानसभा चुनाव में कॉंग्रेस प्रत्याशी के रूप में राम प्रसाद टम्टा ने इस सीट पर जीत दर्ज की और राम प्रसाद टम्टा के रूप में कॉंग्रेस को एक नया चेहरा भी मिल गया।
कॉंग्रेस की जीत की ये खुशी ज्यादा समय तक नहीं टिक पाई और साल 1996 में ही दुबारा भाजपा ने कॉंग्रेस से ये सीट छीन ली। साल 1996 में हुवे विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में नारायण राम दास ने इस सीट पर विजय पताका फहराई ।
साल 2000 में उत्तर प्रदेश से पृथक होकर उत्तराखण्ड प्रदेश बन गया और उसके बाद साल 2002 में उत्तराखण्ड का पहला विधानसभा चुनाव संपन्न हुआ। साल 2002 में हुवे विधानसभा चुनाव में बागेश्वर विधानसभा सीट में कॉंग्रेस प्रत्याशी के रूप में रामप्रसाद टम्टा ने एक बार फिर से जीत का परचम लहराया। तब संवैधानिक बाध्यता के चलते कॉंग्रेस प्रदेश सरकार में कुछ मंत्रियों की छुट्टी कर दी गई थी, जिनमें रामप्रसाद टम्टा भी शामिल थे। तब उन्हें स्पेशल कम्पोनेंट प्लान का अध्यक्ष ( कैबिनेट मंत्री स्तर ) बनाया गया था।
5 साल बाद साल 2007 में हुवे विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में चन्दन राम दास ने बागेश्वर विधानसभा सीट को फतह किया और फिर उन्होने मुड़कर नहीं देखा। चन्दन राम दास ने 2007 के बाद 2012 और 2017 में भी अपनी जीत का सिलसिला जारी रखा। पार्टी हाइकमान के विश्वास पर खरा उतरते हुवे दास ने हर 5 साल में अपनी जीत का आंकड़ा लगातार ढंग से बढ़ाया। हालांकि इन जीतों के बाद भी दास को कैबिनेट मंत्री की कुर्सी नसीब नहीं हुई, लेकिन दूसरे कार्यकाल के दौरान उनको संसदीय सचिव ( कैबिनेट मंत्री स्तर ) अवश्य बनाया गया था।