
03/04/2025
लोकसभा में बुधवार को वक्फ संशोधन बिल पारित गया। इस पर करीब 12 घंटे की चर्चा के बाद रात 2 बजे हुई वोटिंग में 520 सांसदों ने हिस्सा लिया। इस दौरान 288 ने पक्ष में जबकि 232 ने विपक्ष में वोट डाले। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने इसे उम्मीद (यूनीफाइड वक्फ मैनेजमेंट इम्पावरमेंट, इफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट) नाम दिया है। आज यह बिल राज्यसभा में पेश होगा। राज्यसभा से पारित होता है तो इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद यह बिल कानून के रूप में देश में वक्फ संपत्तियों पर लागू हो जाएगा।
वक्फ (संशोधन) विधेयक पारित होने से पहले और बाद में वक्फ बोर्ड की संरचना, अधिकार और कार्यप्रणाली में कई महत्वपूर्ण बदलाव होंगे।
पहले (संशोधन से पहले)
1. वक्फ बोर्ड की संरचना
वक्फ बोर्ड में केवल मुस्लिम समुदाय के सदस्य होते थे।
अध्यक्ष और अन्य सदस्य मुस्लिम समाज से चुने जाते थे।
2. संपत्तियों का सर्वेक्षण
वक्फ संपत्तियों की पहचान और सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार एक सर्वेक्षण आयुक्त नियुक्त करती थी।
विवादों का निपटारा मुख्य रूप से वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा किया जाता था।
3. सरकारी संपत्तियों पर दावा
वक्फ बोर्ड द्वारा यदि कोई संपत्ति वक्फ घोषित कर दी जाती थी, तो कानूनी प्रक्रिया के तहत उस पर दावा किया जा सकता था।
4. विवाद समाधान प्रक्रिया
वक्फ ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ अपील के विकल्प सीमित थे।
ट्रिब्यूनल के फैसले अंतिम माने जाते थे और इसे चुनौती देना कठिन होता था।
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बाद में (संशोधन के बाद)
1. वक्फ बोर्ड की संरचना में बदलाव
अब वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को भी शामिल किया जा सकता है।
इससे बोर्ड में प्रशासनिक पारदर्शिता बढ़ेगी और यह पूरी तरह धार्मिक संस्था नहीं रहेगा।
2. संपत्तियों का सर्वेक्षण और प्रबंधन
अब वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण करने का अधिकार जिला कलेक्टर को दे दिया गया है।
सर्वेक्षण आयुक्त की भूमिका समाप्त कर दी गई है।
3. सरकारी संपत्तियों पर वक्फ का दावा समाप्त
सरकारी संपत्तियों को वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा, भले ही पहले वक्फ बोर्ड ने उन पर दावा किया हो।
स्वामित्व तय करने का अधिकार अब कलेक्टर के पास होगा।
4. ट्रिब्यूनल के फैसलों पर अपील का प्रावधान
अब वक्फ ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ 90 दिनों के भीतर हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है।
इससे न्यायिक प्रक्रिया अधिक पारदर्शी होगी और विवादों का समाधान उच्च न्यायालयों में किया जा सकेगा।