06/12/2022
06 दिसंबर इसलिए नहीं आता कि हम बाबरी मस्जिद पर आंसू बहाएं!
06 दिसंबर इसलिए नहीं आता कि हम बाबरी को याद कर के सिर्फ़ पोस्टें करते रहें!
यक़ीनन 06 दिसंबर 1992 को एक मस्जिद को तोड़ा गया और आज तक मुसलमानों की न जाने कितनी ही मस्जिदों पर गैर मुस्लिमों का कब्ज़ा है/होगा?
कितनी ही मस्जिदें हमारे, गांवों, शहरों, प्रांतों और देश के अलग अलग हिस्सों में वीरान पड़ी हैं, कितनी ही मस्जिदों में उपले थेपे जा रहे हैं और न जाने कितनी मस्जिदों में गाय, भैंस और बकरियां बांधी जा रही हैं और ना जाने कितनी मस्जिदें सिर्फ़ और सिर्फ़ नुमाइश गाह बन कर रह गई हैं और कितनी ही मस्जिदों में सैर व तफ़रीह के नाम पर नाजायज काम किए जाते हैं?
मगर यह सब क्यों? हेव यू एवर थॉट अबाउट दिस?
हम नहीं नहीं सोचते क्योंकि हमें सोचने की आदत ही नहीं हम जानना ही नहीं चाहते कि क्या सबब है इन सब का!
हम अपनी हकीकत से कोसों दूर सिर्फ एक दिखावटी दुनिया में रहना पसंद करते हैं!
जहां पर दुनिया के लोग हमारी वाहवाही करते रहें!
हमारे पास की मस्जिदें वीरान हैं मगर हम बाबरी की बातें करते हैं !
काश हम अपने पास की मस्जिदों को ही आबाद कर लें तो शायद यह इस से बेहतर होगा कि हम हर साल बाबरी मस्जिद पर आंसू बहाएं!
हमें ज़रूरत है अपने आमाल को बेहतर करने की!
हमें ज़रूरत है हकीकी इस्लाम को जानने की!
हमें ज़रूरत है हकीकी इस्लाम को समझने की!