22/04/2023
ज्यों ज्यों हम प्रकृति से दूर होते गये , त्यों त्यों अशांति , तरह तरह की व्याधियों के चपेट में आते गये ! मन के साथ साथ तन भी अशांत होता चला गया !
ज्यों ज्यों आधुनिक होते गये त्यों त्यों हम प्रकृति की निश्चल ममता से दूर होते गये !
आधुनिकता की कालिमा ने प्रकृति की नैसर्गिक सुन्दरता का हरण कर लिया ! सब प्रदूषित कर दिया हम लोगों ने इसी आधुनिकता के नंगे नाच कर कर के !
आज प्रकृति से तो हम लोगों ने नाता जैसे तोड़ ही दिया है ! आज शायद ही किसी के पाँव पृथ्वी की वह चुम्बकत्व एवं उर्जावान जमीन और मिटटी को स्पर्श करती हो !
आज तो मिट्टी का स्पर्श करना गंवारपन में शामिल हो गया ! हाय रे आधुनिकता , सब बर्बाद कर दिया !
शुद्ध हवा में हम श्वांस नहीं ले सकते ! शुद्ध जल हम पी नहीं सकते ! पहले नदियों के जल , कुओं का जल हाथ में लेकर ऐसे पीते थे मानों अमृत ही पी रहे हों !
आकाश तक को प्रदूषित कर दिया हम लोगों ने ! चन्द्रमा , तारों से भरा आकाश , सूर्य की वो मखमली किरण , चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे सोना , सब यह आधुनिकता लूट ले गयी !
मिटटी तक को हम लोगों ने नहीं छोड़ा , केमिकल खाद , यूरिया , प्लास्टिक , इत्यादि डाल डाल कर पृथ्वी को श्वांस लेने से मरहूम कर दिया !
पेड़ पौधों तक को हमने नहीं छोड़ा ! जो बचे हैं उनको भी संकर प्रजाति और किस्म की बनाने में लगे हुए हैं हम लोग दिन रात !
अट्टालिकाएं खड़ी की जा रही हैं ! वनों को काट काट कर , खेती की भूमि का CLU ( Change of Land Use ) करवा करवा कर बस एकमात्र पैसे बनाने की होड़ !
दिन रात एक एक पल हमारा मोबाइल , कंप्यूटर, electronic gadgets, Electrical gadgets के बीच में घूम रहा है ! इतना रेडिएशन हमारा शरीर कैसे बर्दाश्त करता होगा ? बाहर निकलो तो मोबाइल टावर्स . तरह तरह की तरंगों के बीच से हमारा जीवन गुजर रहा है !
प्लास्टिक , केमिकल खा रहे हैं , सूंघ रहे हैं , स्पर्श कर रहे हैं , मतलब कोई एक ऐसा हमारा कार्य हो जहाँ हम इन जहरीले उपकरणों से बचे हों !
हमारा ध्येय एकमात्र पैसा , पैसा , पैसा !!!
हम मूर्खों को पता नहीं कि ये पैसे खाए नहीं जायेंगे , ये पैसे पीये नहीं जायेंगे , ये पैसे शुद्ध श्वांस नहीं देंगे , ये पैसे एकमात्र diabetes, Cancer, Heart Attack, High/Low Blood Pressure, Motapa , चिडचिडापन , मानसिक अशांति ही देंगी !
लेकिन हम लोगों को कौन समझाए ! जो नींद में सोया हुआ होता है उसे जगाया जा सकता है पर जो सोने का नाटक कर रहा है , उसका विनाश निश्चित है !
पहले के लोग 90 साल तक चलते फिरते अपना काम करते थे , परन्तु आज वहीँ 50 तक आते आते लाठी टेक कर चलने की नौबत आ जाती है और जब तक मुट्ठी भर भर कर दवाई नहीं ली जाए , नासिका से श्वांस न आये !
न जाने हम क्या छोड़कर जा रहे हैं अपनी आने वाली पीढ़ियों को !
पहले के लोगों को हम अनपढ़ बोलते हैं कि उनके पास technology नहीं थी !
वो तो सबसे बड़े पढ़े लिखे थे जिन्हें पता था कि प्रकृति ही एकमात्र उनका जीवन है , आधार है ! और सबसे बड़े अनपढ़ हम हैं जो इन technology के पीछे आने वाली ताड़का जैसे विशाल दुर्दांत परिस्थिति को नहीं देख पा रहे हैं !
कुछ नहीं ! भोगेंगे , भोगेंगे , भोगेंगे !
जाके विधिना दुःख लिख दीन्हा !
ताकर मति पहिले हर लीन्हा !!
आरू और अंकिता.कॉम