09/06/2022
मानव कौल की रूह, सुरेंद्र मोहन पाठक की जादूगरनी, ज्ञानेश साहू की गुगली के साथ घर ले आइए आयुष वेदांत की गर्दिश में हूँ...
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पल्प फिक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक का ताज़ा-तरीन रिप्रिन्ट, नए कलेवर नए फ्लेवर और नए लेखकीय के साथ पहले ही पाठकों की खूब वाहवाही लूट रहा है। जादूगरनी नाम ही अपनी काबलियत बयां कर रहा है। इसकी कहानी मशहूर जर्नलिस्ट सुनील कुमार चक्रवर्ती की है जिसके सामने एक महीनों से बंद पड़े केस पर फिर से काम करने का चैलेंज होता है पर इससे पहले की वो किसी सिरे पर पहुँचे, केस से जुड़ी एक इम्पॉर्टन्ट गवाह की मौत हो जाती है। (कीमत 199/-)
दिल की गहराइयों से अपने मन के द्वन्द को लिखने में माहिर मानव कौल की नवीं किताब, रूह एक यात्रा वृतांत है जिसमें मानव कौल अपने अतीत से समझौता करते हुए, बरसों बाद फिर कश्मीर में अपने पुश्तैनी घर जाने की कोशिश करते हैं, पर हर दिन हर कहानी में अपने साथ पूरा बारामुला और ख्वाजाबाग लिए मानव के इलए ये यात्रा इतनी आसान नहीं होने वाली है। ऊपर से धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में हर वक़्त एक पैनिक मोड ऑन हुआ मालूम पड़ता है। (कीमत 249/-)
गर्दिश में हूँ युवा लेखक आयुष वेदान्त का पहला प्रयास है। पर किताब के चार पन्ने पढ़ते ही आप ये दावे से कह सकेंगे कि ये भले ही आयुष की पहली किताब हो, लेकिन आयुष लेखन में नए बिल्कुल नहीं है। सोशल मीडिया में बात का कैसे बतंगड़ बन जाता है और कैसे ज़रा सी कम्प्लैन्ट जेल की हवा खिलाने पर मजबूर कर देती है, फिर कैदखाने से बाहर आना, खुद को निर्दोष साबित करना कितनी टेढ़ी खीर हो जाता है; ये इस उपन्यास में तफ़सील से बताया गया है। (कीमत 269/-)
ज्ञानेश साहू की पहली किताब ‘दोस्ती प्यार और क्रिकेट की गुगली’ एक बार फिर कॉलेज और स्कूल के दिनों की याद दिलाती है। कॉलेज के शुरुआती दिनों में जब स्कूल की पाबंदियों से छूटे दोस्त किस कदर एक दूसरे से कभी न अलग होने की कसमें खाते है, नई-नई जवानी की बेचैनी को क्रिकेट की कॉमेंट्री की तरह कभी हड़बड़ाकर तो कभी अलसाये अंदाज़ में बयां करते-करते कब बालपन से ज़िम्मेदारी वाली उम्र में आ जाते हैं, ये इस उपन्यास में बेहतर तरीके से लिखा गया है। (कीमत 235/-)
तो इस कॉम्बो में घर के सबसे बुज़ुर्ग और तजुर्बेकार सदस्य की तरह पाठक साहब की जादूगरनी है तो जाने माने पके-पकाये लेखक मानव कौल की रूह भी, वहीं दो युवा लेकिन होनहार लेखकों की किताबें गर्दिश में यूँ और गुगली इस सेट को खूबसूरती से पूरा करती है।
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#साहित्यविमर्श