Virasat ki sugandh

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06/11/2024

🌞 जय छठी मैया। 🙏

गत 10 वर्षों से माता रानी की सेवा का सौभाग्य प्राप्त होता रहा है, और उसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए इस वर्ष भी भव्य छठ महापर्व का आयोजन मंगलमस्तु फाउंडेशन द्वारा किया जा रहा है। आप सभी सादर आमंत्रित हैं। 🌾🌊

📍 स्थान – फॉर्म नंबर 8, अस्थल मंदिर रोड, फतेहपुर बेरी, नई दिल्ली 🏞

दुर्जन और सज्जन में बुनियादी अंतर विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय। खलस्य साधोर्विपरीतमेतत् ज्ञानाय दानाय...
28/06/2024

दुर्जन और सज्जन में बुनियादी अंतर

विद्या विवादाय धनं मदाय
शक्तिः परेषां परिपीडनाय।
खलस्य साधोर्विपरीतमेतत्
ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।
यानी दुर्जन की विद्या विवाद के लिये, धन उन्माद के लिये और शक्ति दूसरों का दमन करने के लिये होती है। जब कि सज्जन विद्या को ज्ञान के लिए, धन को दान के लिए और शक्ति को दूसरों के रक्षण के लिये उपयोग करते हैं।
ये बुनियादी सिद्धांत हैं और सदियों से प्रयुक्त होते रहे हैं और भविष्य में भी प्रयोग में लाए जाते रहेंगे। व्यक्ति का कार्यक्षेत्र पारिवारिक, सामाजिक और राजनीतिक कोई भी हो, सनातन काल से सज्जनों व दुर्जनों द्वारा इनका इस्तेमाल इसी तरह किया जाता रहा है।
हर हर महादेव।
- शीलभद्र उपाध्याय

राम काज में राम विमुख न आएं तो आश्चर्य कैसा ?कुछ लोग व्यर्थ में चिंतित व चकित भी हो रहे हैं कि भला आमंत्रण मिलने के बावज...
22/01/2024

राम काज में राम विमुख न आएं तो आश्चर्य कैसा ?

कुछ लोग व्यर्थ में चिंतित व चकित भी हो रहे हैं कि भला आमंत्रण मिलने के बावजूद कोई व्यक्ति रामलला की प्रतिमा के प्राण प्रतिष्ठा वाले महान उत्सव में सम्मिलित होने से भला कैसे मना कर सकता है! किंतु हमारे देश में ही ऐसा चौंकाने वाला कार्य धड़ल्ले से हो रहा है। फिर भी मेरा मानना है कि इसमें भी ज्यादा चकित करने वालीं कोई बात नहीं है। क्योंकि स्वयं रघुनाथ जी की वाणी है कि उनके दर्शन करने के लिए कौन जा पाता है और कौन नहीं, यह सब कुछ उस व्यक्ति के प्रारब्ध और कर्म पर निर्भर है। भगवान राम ने स्वयं अपने श्रीमुख से इस बात की घोषणा की है कि उनके पास कौन लोग आ पाते हैं और कौन उनके पास आने के अवसर को पाकर भी बड़ी सरलता से उसे बर्बाद कर देते हैं, यह सबकुछ उस व्यक्ति विशेष के प्रारब्ध और पूर्व कृत कर्मों पर निर्भर है। भगवान राम के वचन मानस में इस प्रकार अंकित किए गए हैं -
पापवंत कर सहज सुभाऊ।
भजन मोर तेहि भाव न काऊ ||
निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा ।।
जिन्हके कपट दंभ नहीं माया।
तिन्हके ह्रदय बसही रहघुराया।।
सरल सुभाव न मन कुटिलाई।
जथा लाभ संतोष सदाई॥
जय श्री राम!
- शीलभद्र उपाध्याय

सदियों की प्रतीक्षा के बाद की पावन घड़ीआख़िर आ ही गईं वह पावन घड़ी जिसका हम सनातनी सदियों से इंतजार कर रहे थे। कई कई पीढ...
22/01/2024

सदियों की प्रतीक्षा के बाद की पावन घड़ी

आख़िर आ ही गईं वह पावन घड़ी जिसका हम सनातनी सदियों से इंतजार कर रहे थे। कई कई पीढ़ियां खप गई हैं इस सपने को साकार करने में। भगवान राम के जन्म भूमि पर निर्मित मंदिर को विधर्मियों द्वारा बार बार ध्वस्त किए जाने और बनाने के बाद लगभग 500 वर्षों के खूनी संघर्ष तथा अदालती दाव पेंचों की पैंतरे बाजी झेलने के बाद श्री रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो गई एवं वे अपने भव्य मंदिर में विराजमान भी हो चुके हैं। हमारी वर्तमान पीढ़ी बड़ी ही भाग्यवान है कि आज यह उल्लास पूर्ण परिवेश का आनंद लेने में सफल हो पाए हैं।
आएं, हम सब अपने सारे विवाद भुलाकर प्रभु की भक्ति में लीन हो दूसरों के प्रति बदला की भावना का पूरी तरह परित्याग कर दें। किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचार को अपने हृदय में स्थान न दें।
जय श्री राम !
- शीलभद्र उपाध्याय

22/10/2023
संसद में राधा रानी का आशीर्वाद नारी शक्ति की वंदना की परिपाटी हमारे देश में सनातन काल से जारी रही है। पहले गौरी पीछे शंक...
23/09/2023

संसद में राधा रानी का आशीर्वाद

नारी शक्ति की वंदना की परिपाटी हमारे देश में सनातन काल से जारी रही है। पहले गौरी पीछे शंकर, पहले सीता पीछे राम और पहले राधा पीछे कृष्ण का सम्मान करते हुए ही सरलता से अपने उपास्य की उपासना को सफल बनाया जा सकता है, यह सीख हमारे प्राचीन मनीषियों ने विरासत में हमें प्रदान की है। विधर्मियों की हुकूमत में ढाये गये जुल्म के साए में हमारे देश में भी कुछ कुरीतियां घर कर गईं जिसमें नारी को भोग की वस्तु समझने वाली प्रवृत्ति भी बुरी तरह पसर गई है।
समाज सुधार के कई प्रयासों के बाद धीरे धीरे हम नारी को उसके पुराने गौरव पूर्ण स्थान पर स्थापित करने में सफल होते जा रहे हैं। आज उस गौरव को महसूस करने का एक और पावन अवसर हमें अपने जीवन में उपलब्ध हो गया है। आज हमें राधा अष्टमी के पावन पर्व पर स्वतंत्र भारत के नए संसद भवन में नारियों के 33 प्रतिशत आरक्षण का जो उपहार मिला है, वह मातृ शक्ति को राधा रानी का एक विशेष आशीर्वाद भी कहा जा सकता है। विश्वास कीजिए, इस आशीर्वाद का लाभ समस्त देश वासियों को मिलेगा और देश में खुशहाली का परिवेश बड़ी शीघ्रता से पसरेगा।
हर हर महादेव।
- शीलभद्र उपाध्याय

20/09/2023

जानिए सप्तऋषि की कहानी? कौन हैं सप्तऋषि।। शीलभद्र उपाध्याय।। Virasat ki sugandh।। #सुविचार

सन् 2923 की तस्वीर! Virasat ki sugandh Sheel Bhadra Upadhyay     Sanskriti sangyan-संस्कृति संज्ञान
04/09/2023

सन् 2923 की तस्वीर! Virasat ki sugandh Sheel Bhadra Upadhyay Sanskriti sangyan-संस्कृति संज्ञान

चंद्रमौली शिव के प्रिय महीने श्रावण में चंद्रमा पर चंद्रयान - 3आनंदातिरेक से प्रफुल्लित मन से सभी प्रबुद्ध मनीषियों व वै...
23/08/2023

चंद्रमौली शिव के प्रिय महीने श्रावण में चंद्रमा पर चंद्रयान - 3

आनंदातिरेक से प्रफुल्लित मन से सभी प्रबुद्ध मनीषियों व वैज्ञानिकों को आज चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास चंद्रयान - 3 को सफलता पूर्वक उतारने में सफल होने के लिए हार्दिक बधाई !!!!! यह भारत के करोड़ों लोगों के आशीर्वाद और दृढ़ संकल्प वाले वैज्ञानिकों के सतत प्रयास का नतीजा है कि हम सब इस गौरव पूर्ण क्षण के साक्षी बन पाए। चंद्रमौली शिव के प्रिय महीने में मिली यह सफलता निश्चित रूप से मानवता के लिए कल्याणकारी ही सिद्ध हो, यही उनसे बार-बार प्रार्थना है।
हर हर महादेव।
- शीलभद्र उपाध्याय

नियति नहीं कर्म पर भरोसा!शीलभद्र उपाध्याय।। Virasat ki sugandh।।
03/06/2023

नियति नहीं कर्म पर भरोसा!
शीलभद्र उपाध्याय।। Virasat ki sugandh।।

क्या हैं?शश्वत सत्य!
03/06/2023

क्या हैं?
शश्वत सत्य!

भारतीय परम्परा में जीवन का ध्येय पुरुषार्थ को माना गया है। धर्म का ज्ञान होना जरूरी है तभी कार्य में कुशलता आती है कार्य...
14/05/2023

भारतीय परम्परा में जीवन का ध्येय पुरुषार्थ को माना गया है। धर्म का ज्ञान होना जरूरी है तभी कार्य में कुशलता आती है कार्य कुशलता से ही व्यक्ति जीवन में अर्थ अर्जित कर पाता है। काम और अर्थ से इस संसार को भोगते हुए मोक्ष की कामना करनी चाहिए। Sheel Bhadra Upadhyay Virasat ki sugandh Td Tripathi || sheelbhdra upadhyay || Virasat ki sugandh ||

पुरुषार्थ चार है- (1)धर्म (religion 0r righteouseness), (2)अर्थ (wealth) (3)काम (Work, desire and S*x) और (4)मोक्ष (salvation or or liberation)।

उक्त चार को दो भागों में विभक्त किया है- पहला धर्म और अर्थ। दूसरा काम और मोक्ष। काम का अर्थ है- सांसारिक सुख और मोक्ष का अर्थ है सांसारिक सुख-दुख और बंधनों से मुक्ति। इन दो पुरुषार्थ काम और मोक्ष के साधन है- अर्थ और धर्म। अर्थ से काम और धर्म से मोक्ष साधा जाता है।

(1)धर्म- धर्म से तात्पर्य स्वयं के स्वभाव, स्वधर्म और स्वकर्म को जानते हुए कर्तव्यों का पालन कर मोक्ष के मार्ग खोलना। मोक्ष का मार्ग खुलता है उस एक सर्वोच्च निराकार सत्ता परमेश्वर की प्रार्थना और ध्यान से। ज्ञानीजन इसे ही यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार कहते हैं।

तटस्थों के लिए धारणा और ध्यान ही श्रेष्ठ है और भक्तों के लिए परमेश्वर की प्रार्थना से बढ़कर कुछ नहीं- इसे ही योग में ईश्वर प्राणिधान कहा गया है- यही संध्योपासना है। धर्म इसी से पुष्‍ट होता है। पुण्य इसी से अर्जित होता है। इसी से मोक्ष साधा जाता है।

(2)अर्थ- अर्थ से तात्पर्य है जिसके द्वारा भौतिक सुख-समृद्धि की सिद्धि होती हो। भौतिक सुखों से मुक्ति के लिए भौतिक सुख होना जरूरी है। ऐसा कर्म करो जिससे अर्थोपार्जन हो। अर्थोपार्जन से ही काम साधा जाता है।

(3)काम- संसार के जितने भी सुख कहे गए हैं वे सभी काम के अंतर्गत आते हैं। जिन सुखों से व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक पतन होता है या जिनसे परिवार और समाज को तकलीफ होती है ऐसे सुखों को वर्जित माना गया है। अर्थ का उपयोग शरीर, मन, परिवार, समाज और राष्ट्र को पुष्ट करने के लिए होना चाहिए। भोग और संभोग की अत्यधिकता से शोक और रोगों की उत्पत्ति होती है। दोनों के लिए ही समय और नियम नियुक्ति हैं।

(4)मोक्ष- मोक्ष का अर्थ है पदार्थ से मुक्ति। इसे ही योग समाधि कहता है। यही ब्रह्मज्ञान है और यही आत्मज्ञान भी। ऐसे मोक्ष में स्थित व्यक्ति को ही कृष्ण स्थितप्रज्ञ कहते हैं। हिंदूजन ऐसे को ही भगवान, जैन अरिहंत और बौद्ध संबुद्ध कहते हैं। यही मोक्ष, केवल्य, निर्वाण या समाधि कहलाता है।

योग में समाधि की दो अवस्थाएँ मानी गई है- (1) सम्प्रज्ञात और (2) असंम्प्रज्ञात समाधि। इन दोनों के उप-भेद भी है।

पुराणिकों ने इसके छ प्रकार बताए हैं- (1) सार्ष्टि (ऐश्‍वर्य), (2) सालोक्य (लोक की प्राप्ती), (3) सारूप (ब्रह्म स्वरूप), (4) सामीप्य (ब्रह्म के पास), (5) साम्य (ब्रह्म जैसी समानता), (6) लीनता या सामुज्य (ब्रह्म में लीन हो जाना)। ब्रह्मलीन हो जाना ही पूर्ण मोक्ष है।

मोक्ष प्राप्त व्यक्ति की देवता, पितर, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु और सामान्यजन आराधना करते हैं। उन्हें ही भगवान कहते हैं। किंतु श्रेष्ठजन सिर्फ परमेश्वर की ही आराधना करते हैं। क्योंकि वह जानते हैं कि उस एक परमेश्वर को साधने से ही सब स्वत: ही सधते हैं। उसे छोड़कर और किसी को साधने से जिसे साधा जा रहा है वही सधता है ईश्वर नहीं।

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