09/10/2025
आदि कैलाश और ॐ पर्वत के दर्शन हेतु अधिकतम तीर्थयात्रियों के बेस का काम करता है - गूंजी गांव। यह गांव इन दोनों स्थानों के बीच है कि.मी की नजरों से नहीं अपितु इन दोनों ही जगहों का मार्ग इसी गांव से विपरीत दिशाओ में जाता है।
गूंजी गांव के लोगों का सरनेम गुंज्याल है इधर व्यास घाटी में एवं उत्तराखंड के कई गांवों में लोगों के सरनेम उनके गांव के नाम से ही बनते है। जैसे गूंजी से आदि कैलाश जाने पर एक बड़ा गांव आता है कुटी। यहां के लोगों का सरनेम है कुटियाल।
यहां के अधिकतर लोग तिब्बत के तकलाकोट में व्यापार के लिए जाया करते थे। अभी वो व्यापार बंद है। यहां के लोग आज भी उस समय की दिल खोल कर बात करते है और बोलते बोलते बहुत सारी कहानियों में आपको हिस्सेदार बना देते है।
ऐसा ही हुआ इस बार जब दारमा घाटी के दंतु गांव से चलकर हमारी सवारी गूंजी पहुंची। हमने गूंजी की मुख्य सड़क पर (एक ही सड़क है) एक होमस्टे देखा। कमरा और रेट आदि पता करने के बाद हम लोगों वहीं रुक गए।
"शुभम गुंज्याल होमस्टे" : फिलहाल गूंजी के सबसे अच्छे होमस्टे में से एक है। ऐसा इसलिए बोल सकता हूं क्योंकि हमने कुछ और भी होमस्टे देखे थे। खैर,, यहां हमारी मुलाकात हुई इस जगह की मालकिन अर्चना गुंज्याल जी से। क्या गजब की पर्सनेलिटी है आंटी जी की!!! वो पाँच साल पहले गूंजी की प्रधान थी। सब लोग उन्हें जानते है और वो भी सब लोगो को जानती है।
गूंजी गांव कैलाश मानसरोवर की पैदल यात्रा के दौरान रास्ते में आने वाला मुख्य पड़ाव हुआ करता था और आज भी है। आंटी जी के पास कई हजार कहानियां थी उस समय को लेकर। उनका होमस्टे बहुत पुराना है। लेकिन हाल ही में उन्होंने लेंटर वाली पहली बिल्डिंग गूंजी में बनाई थी जो अब होमस्टे का काम करती है।
अर्चना गुंज्याल जी लिपूलेख दर्रे से होते हुए तिब्बत में व्यापार करने भी जाती थी। वहां गुड़, चीनी, नमक आदि लेकर जाना और वहां से बहुत कुछ यहां ले आना। यही हर साल की कहानी थी। उन्होंने कैलाश मानसरोवर की भी यात्रा की।
जब दो रात हमारा उनके यहां रुकना हुआ तो उन्होंने हमे अपने कई अनुभव सुनाए जो कभी कभी रोंगटे खड़े कर देने वाले थे।
उनके होमस्टे में 10 के आसपास कमरे है जिनमें 2, 3, 4 ,5 बेड वाले अरेंजमेंट है। उत्तराखंड के इस क्षेत्र में कमरे के पैसे नहीं प्रति व्यक्ति पैसे लिए जाते है। जैसे 1500 प्रति व्यक्ति प्रति रात, इसमें एक बेड, डिनर और सुबह का नाश्ता शामिल है।
हमारा अनुभव यहां रुकने का बहुत ही अच्छा था। पहले दिन आंटी जी ने अपने बाग से ही साग तोड़ कर बना दिया। अगले दिन अपने खेत से सब्जी लेकर आए और हमे रात को खिलाया। उनके साथ इनका बेटा शुभम इस होमस्टे को चलाते हैं। फार्मेसी से ग्रेजुएट शुभम अपनी मम्मी का पूरा साथ दे रहे हैं।
यदि आप उस तरफ जाते है तो एक बार उनके यहां रुक कर स्थानीय जन जीवन की बहुत जानकारियां समेट सकते है।
इनका होमस्टे, गूगल मैप पर भी दिखता है। फोटो वहीं का है।